गोवर्धन पूजा कब है? | गोवर्धन पूजा की विधि व महत्व (Govardhan puja par nibandh)

Govardhan puja par nibandh:- हम हर वर्ष गोवर्धन पूजा का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता हैं जिसकी कथा भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई हैं। इस दिन हर घर में गाय के गोबर से श्रीकृष्ण भगवान व गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती हैं। इस दिन का महत्व भी अत्यधिक खास हैं जो (Govardhan puja par lekh) हमें जीव जंतुओं और प्रकृति से प्रेम करने की सीख देता हैं। यही कारण हैं कि सभी स्कूल के शिक्षक अपनी कक्षा के छात्रों को गोवर्धन पूजा पर निबंध लिखकर आने को कहते हैं।

अब दिवाली की छुट्टियाँ लंबी होती हैं और खासकर स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को तो भरपूर छुट्टियाँ मिलती हैं। तो ऐसे में आपके शिक्षक ने भी गोवर्धन पूजा पर निबंध लिखकर आने का आदेश दिया हैं तो अवश्य ही आपकी इच्छा होगी कि आप गोवर्धन पूजा (Govardhan puja essay in Hindi) पर सबसे बढ़िया और बेहतर निबंध लिखकर अपने स्कूल जाए ताकि आपके शिक्षक आपकी वाहवाही कर सके। तो ऐसे में आज हम इस लेख के माध्यम से आपको गोवर्धन पूजा पर सबसे बेहतर निबंध लिख कर देंगे जिसे आप अपने शिक्षकों को दिखा सकते हैं।

गोवर्धन पूजा पर निबंध (Govardhan puja par nibandh)

गोवर्धन पूजा पर लिखे जाने वाले निबंध का अपना अलग महत्व होता हैं। इसके लिए आपको पहले से कुछ तैयारी करने की आवश्यकता नही हैं क्योंकि हम आपकी पूर्ण सहायता करने वाले हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस लेख के माध्यम से हम आपको गोवर्धन पूजा के बरे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं जिसे आप अपने निबंध में लिख सकते हैं।

गोवर्धन पूजा कब है गोवर्धन पूजा की विधि व महत्व

इस निबंध को पढ़कर अवश्य ही आपके अध्यापक अत्यधिक प्रसन्न हो जाएंगे और पूरी कक्षा के सामने आपको सम्मानित करेंगे। तो चलिए पढ़ते हैं गोवर्धन पूजा पर हमारे द्वारा लिखा गया आपके लिए बेस्ट निबंध।

प्रस्तावना

गोवर्धन पूजा का त्यौहार हर वर्ष दिवाली के अगले दिन मनाया जाता हैं। यह दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन होता हैं। इस दिन सभी हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान श्री कृष्ण को याद करते हैं और उनके पथ पर चलने का संकल्प लेते हैं। गोवर्धन पूजा के जरिये श्री कृष्ण ने हम सभी को यह संदेश दिया था कि हमें प्रकृति का पूर्ण सम्मान करना चाहिए और उसकी सुरक्षा करनी चाहिए। अब प्रकृति सुरक्षित हैं तो हम सभी सुरक्षित हैं।

इसी कारण गोवर्धन पूजा की महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती हैं। इसके लिए हर घर में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की आकृति बनाकर उनकी पूजा अर्चना करने का विधान हैं। हर भारतीय के द्वारा यह किया जाता हैं और हर कोई इस दिन अपने आप को प्रकृति के नजदीक पाता हैं। ऐसे में आपको भी अपने परिवार सहित गोवर्धन पूजा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए तभी यह सार्थक माना जाएगा।

गोवर्धन पूजा कब होती है?

हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात पहले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता हैं। हिंदू धर्म एक अनुसार एक माह में दो पक्ष आते हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। गोवर्धन पूजा से एक दिन पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात आखिरी दिन होता हैं। उसके अगले दिन से ही कार्तिक मास का अगला पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष शुरू हो जाता हैं जिसकी पहली तिथि को प्रतिपदा के नाम से जाना जाता हैं। बस इसी दिन गोवर्धन पूजा करने का विधान होता हैं।

गोवर्धन पूजा की कहानी

अब यदि गोवर्धन पूजा की कहानी की बात की जाए तो उसका संबंध भगवान श्री कृष्ण से हैं जो भगवान विष्णु के एक अवतार थे। उनका जन्म इस पृथ्वी लोक पर कई कार्यों को पूर्ण करने के उद्देश्य से हुआ था। जिस प्रकार श्रीराम के जन्म का उद्देश्य केवल पापी रावण का अंत करना था उसी प्रकार श्री कृष्ण के जीवन का उद्देश्य केवल एक ही ना होकर बल्कि कई थे। उसी में एक उद्देश्य मनुष्य को प्रकृति प्रेम की सीख देना था।

तो हुआ क्या कि देव इंद्र को अपने ऊपर अहंकार आ गया था और वे लोगों को उनकी पूजा किये जाने पर ही फल देने लगे थे। ऐसे में श्री कृष्ण ने वृंदावन वासियों को देव इंद्र की पूजा ना कर उनकी रक्षा करने वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। यह देखकर देव इंद्र अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने वृंदावन में भयंकर वर्षा शुरू कर दी। इस भयंकर वर्षा से वृंदावन वासियों की रक्षा करने के लिए श्री कृष्ण भगवान ने अपने दाए हाथ की छोटी ऊँगली से ही संपूर्ण गोवर्धन पर्वत को उठा लिया जिसके नीचे वृंदावन वासियों ने शरण ली।

यह एक चमत्कार ही था जो श्री कृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में कर दिया था। उसके बाद देव इंद्र ने भयंकर वर्षा करनी जारी रखी लेकिन वे किसी का बाल भी बांका ना कर सके। यह देखकर देव इंद्र का मान भंग हो गया और वे श्री कृष्ण के चरणों में आकर गिर पड़े। तब श्री कृष्ण ने उन्हें क्षमा कर दिया। बस उसी दिन के बाद से ही गोवर्धन पूजा को एक पर्व का रूप दे दिया गया और इसे हर वर्ष आयोजित किया जाने लगा।

गोवर्धन पूजा की विधि

गोवर्धन पूजा की कहानी जानने के बाद आपको यह भी जानना चाहिए कि आखिरकार यह पूजा कैसे की जाती हैं। तो इसके लिए सबसे पहले तो गाय का शुद्ध और ताजा गोबर लाना आवश्यक होता हैं। जब आप गाय का गोबर ले आये तो उससे अपने घर के आँगन में श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए एक आकृति बनाए। यह आकृति परफेक्ट ही बने, यह आवश्यक नही, बस आपको एक पुरुष की आकृति बनाकर उसके एक हाथ पर पर्वत को दिखाना हैं।

उसके बाद घर के सभी सदस्य एकत्रित हो जाए और घर का सबसे बड़ा व्यक्ति सभी सदस्यों की धोक लगाए। इसके लिए वह सभी के माथे पर तिलक लगाकर चावल लगाए। उसके बाद सभी के हाथ में अक्षत, चावल, पुष्प इत्यादि देकर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ाने को कहे। इसी के साथ सभी को गोवर्धन भगवान के मंत्र का जाप भी करते रहना चाहिए। अंत में गोवर्धन भगवान की आरती करें और इसकी सात बार परिक्रमा करें। जब परिक्रमा पूर्ण हो जाए तो गोवर्धन पर्वत को छू कर उन्हें प्रणाम करें। इस प्रकार गोवर्धन भगवान की पूजा समाप्त हो जाएगी।

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा तो हम सभी ने कर ली लेकिन यदि हम इसके महत्व को ही नही समझ पाए तो फिर ऐसी पूजा से क्या ही लाभ मिलेगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि हिंदू धर्म में प्रत्येक रीति रिवाज, पर्व इत्यादि को मनाने के पीछे का कोई कारण होता हैं और उसके पीछे कोई ना कोई सीख जुड़ी हुई होती हैं। ऐसे में यदि आप कोई पर्व मना रहे हैं तो उसका महत्व जानना भी उतना ही आवश्यक हो जाता हैं। इसे जानकर ही तो आप उस पर्व से मिलने वाली सीख को समझ पाएंगे।

तो गोवर्धन पूजा का संबंध प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति प्रेम से हैं। श्री कृष्ण ने भी इस घटना के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की थी कि हम मनुष्यों का आधार पूर्ण रूप से प्रकृति और हमारे साथ रह रहे जीव जंतुओं के कारण ही हैं। यदि हम स्वार्थी होकर प्रकृति का दोहन करेंगे और अपने साथ वाले जीव जंतुओं का अंत कर देंगे तो इससे हम भी जीवित नही रह पाएंगे। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हम सभी और हमारे आगे की आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रहें तो हमें प्रकृति को संभाल कर रखना होगा।

इस प्रकार गोवर्धन पूजा के जरिये प्रकृति से प्रेम करने की बहुत बड़ी सीख मिलती हैं। हम सभी को इस सीख का पालन करना चाहिए और अनावश्यक ही चीज़ों का इस्तेमाल करना बंद कर देना चाहिए। प्रकृति हैं तो हम हैं और हम हैं तो जीवन हैं। इसलिए प्रकृति को भी भगवान का दिया हुआ उपहार मानकर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे तो जीवन सफल हो जाएगा।

गोवर्धन पूजा पर निबंध – Related FAQs

प्रश्न: गोवर्धन पूजा का महत्व क्या है?

उत्तर: गोवर्धन पूजा का महत्व प्रकृति से प्रेम करना होता हैं। यही सीख भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर और इंद्र देव का मान भंग करके दी थी कि सबसे पहले प्रकृति ही आती हैं और उसके बाद बाकि सब।

प्रश्न: गोवर्धन पूजा की क्या विधि है?

उत्तर: गोवर्धन भगवान की पूजा करने के लिए अपने घर के आँगन में गोबर की उनकी आकृति बनाकर उसकी पूजा अर्चना करें।

प्रश्न: क्या गोवर्धन पूजा के दिन पढ़ना चाहिए?

उत्तार: ईश्वर कभी भी आपको पढ़ने से मना नही करेंगे क्योंकि यही ज्ञान का एकमात्र स्रोत होता हैं। इसलिए गोवर्धन पूजा हो या अन्य कोई दिन, आप अवश्य ही पढ़ सकते हैं।

प्रश्न: गोवर्धन का अर्थ क्या है?

उत्तर: मथुरा के गोकुल में गोवर्धन नाम का एक पर्वत हैं। यह पर्वत वही पर्वत हैं जिसे श्री कृष्ण भगवान ने अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया था।

तो इस तरह से गोवर्धन पूजा पर लिखे जाने वाले निबंध का अंत हो जाता हैं। अब आप अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि यदि आपके शिक्षक ने आपको गोवर्धन पूजा पर निबंध लिखकर लाने को बोला हैं तो उसके पीछे उनका क्या गूढ़ रहस्य हैं। बस आप इसी सीख को अपने ध्यान में रखकर गोवर्धन पूजा पर हमारे द्वारा लिखे गए निबंध में से पंक्तियाँ लेकर लिख ले। हालाँकि आप इसमें अपनी भी कुछ पंक्तियाँ जोड़ेंगे तो बहुत अच्छा रहेगा।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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