हमारे भारतवर्ष में स्त्री को शक्ति का स्वरूप माना गया है। इसीलिए यहां देवी की उपासना का चलन है। नवरात्र के दौरान नवदुर्गा की पूजा की जाती है। यदि आप भी नवरात्र के दौरान व्रत रखते हैं, पूजा-उपासना करते हैं तो आज की पोस्ट आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आज हम आपको बताएंगे कि चैत्र नवरात्र कब से हैं? नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? देवी दुर्गा के 9 स्वरूप कौन-कौन से हैं? नवरात्र के क्या नियम हैं? नवरात्र की पूजा का क्या विधि- विधान है? आदि। आइए, शुरू करते हैं-
दोस्तों, इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, आइए सबसे पहले नवरात्रि का अर्थ जान लेते हैं। मित्रों, नवरात्रि एक संस्कृत (Sanskrit) का शब्द है। यह दो शब्दों की संधि से बना है। नव+रात्रि। नव का मतलब है नौ और रात्रि का अर्थ है रात। ऐसे में इसका अर्थ होता है- नौ रातें। का समय। इन नौ रातों के दौरान, शक्ति/देवी की पूजा की जाती है। इसलिए नवरात्र को बेहद पवित्र माना जाता है।
दोस्तों, वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्र नौ अप्रैल से प्रारंभ हो रहे हैं। इसी तिथि से हिंदू नव वर्ष अथवा नव संवत्सर का भी शुभारंभ होगा। चैत्र नवरात्रि का समापन 17 अप्रैल, 2024 को होगा। दोस्तों, आपको बता दें कि दरअसल, हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2024 में चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को देर रात्रि 11 बजकर 50 मिनट से शुरू होगी। यह अगले दिन 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार चैत्र नवरात्र की शुरुआत इस बार 9 अप्रैल से मानी जाएगी।
दोस्तों, सबसे पहले जान लेते हैं की नवरात्र या नवरात्रि क्यों मनाई जाती है। इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। सबसे अधिक जो कथा कही जाती है उसके अनुसार मां भगवती देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक दैत्य के साथ नौ दिन तक युद्ध किया गया। इसके पश्चात बाद नवमी की रात्रि मां दुर्गा ने उस असुर का वध किया। तभी से देवी मां को ‘महिषासुर मर्दिनी’ के नाम से जाना गया तथा तभी से मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि के व्रत शुभारंभ हुआ।
नवरात्र से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्री राम ने नौ दिनों तक माता दुर्गा के स्वरूप चंडी देवी की उपासना करने के पश्चात लंकापति राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त की थी। कहते हैं कि तभी से नवरात्रि मनाए जाने एवं 9 दिन तक व्रत रखने की परंपरा की शुरुआत हुई। नवरात्र के दौरान मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। मां शक्ति के उपासक 9 दिन तक व्रत करके मां से अपने लिए शक्ति (power), समृद्धि (prosperity) एवं सुरक्षा (safety) की कामना करते हैं।
देवी दुर्गा के नौ स्वरूप कौन-कौन से हैं? (What are the nine other Swaroop of Devi Durga?)
दोस्तों, यह तो हम सभी जानते हैं की सारी सृष्टि नारी यानी स्त्री शक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। ऐसे में नवरात्रि के दौरान देवी मां की ही उपासना की जाती है। दोस्तों, आपको बता दे कि इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है, जो किस प्रकार से हैं-
1. शैलपुत्री :
पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मी देवी को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। नवरात्र पूजन में पहले मां शैलपुत्री की ही पूजा व उपासना की जाती है। दोस्तों, मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ होने की वजह से इन्हें देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल एवं बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही मां सती के नाम से भी जानी जाती हैं। इनकी पूजा से भय का नाश होता है एवं उपासक को घर में समृद्धि प्राप्त होती है।
2. ब्रह्मचारिणी :
मित्रों, नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ तपस्या एवं चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली होता है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है। मां का ध्यान उपासक के मन को एकाग्र एवं शांत कर देता है। उसका कल्याण होता है।
3. चंद्रघंटा :
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। मां के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहकर भी पुकारा जाता है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक एवं कल्याणकारी माना जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। इनका ध्यान साधक के इहलोक- परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी एवं सद्गति देने वाला माना जाता है।
4. कूष्मांडा :
नवरात्र का चतुर्थ दिवस मां कूष्माण्डा की उपासना को समर्पित है। कहा जाता है कि जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर अन्धकार था, तब मां ने ही अपने मंद हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इन्हें कूष्मांडा के नाम से पुकारा जाता है। इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा/आदिशक्ति भी पुकारा जाता है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है।
5. स्कंद माता :
नवरात्रि का पंचम दिवस मां स्कंद माता की उपासना को समर्पित है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से पुकारा जाता है। दोस्तों, स्कंदमाता को मोक्ष के द्वार खोलने वाली, परम सुख प्रदान करने वाली तथा उपासकों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाली देवी माना गया है। स्कंदमाता को पर्वत पर निवास कर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली माना गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में मां की गोद में विराजित नजर आते हैं।
6. कात्यायनी :
मित्रों, नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है। कहा जाता है कि कात्य गोत्र में जन्में महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। कहा जाता है की मां कात्यायनी की पूजा एवं उपासना आराधकों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी की प्राप्ति होती है। उनके सभी कष्ट, रोग, शोक, संताप एवं भय नष्ट हो जाते हैं।
नवरात्रि के छठे दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। आपको बता दें कि योग साधना में आज्ञा चक्र को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मां कात्यायनी को अमोघ फलदायिनी भी माना जाता है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों द्वारा कालिंदी यमुना के तट पर इन्हीं की पूजा की गई थी। कात्यायनी देवी का वाहन सिंह है। यही ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी हैं।
7. कालरात्रि :
नवरात्रि के सप्तम दिवस देवी दुर्गा के कालरात्रि रूप की उपासना की जाती है। माना जाता है कि कल रात्रि की उपासना से उपासक के समक्ष ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुल जाता है। इस दिन मां की साधना में रत साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित होता है। मां के नाम के उच्चारण मात्र से समस्त तामसी एवं आसुरी शक्तियां भयभीत होकर स्थान छोड़ देती हैं।
इन्हें काल से भी रक्षा करने वाला माना जाता है। इन देवी के स्वरूप को भयानक माना जाता है, किंतु यह शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इनके भक्तों को कभी भय व्याप्त नहीं होता। वे सदैव निडर रहते हैं। इसीलिए इनका एक नाम शुभंकरी देवी भी है। यदि मुद्रा की बात करें तो मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्माण्ड की भांति गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है तथा यह गर्दभ की सवारी करती हैं। मां कालरात्रि को ग्रह बाधाओं को दूर करने वाला भी माना जाता है।
8. महागौरी :
मित्रों, नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है। नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि मां का स्वरूप गौर वर्ण है। सभी आभूषण एवं वस्त्र श्वेत होने के कारण इन्हें श्वेतांबरधरा भी पुकारा जाता है। इनकी उपमा चंद्र यानी चांद, शंख एवं कुंद के फूल से की जाती है। मां कालरात्रि के ठीक विपरीत इनकी पूरी मुद्रा बेहद शांत है। मां महागौरी भी अमोघ फलदायिनी हैं। इनकी उपासना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से भक्तों के पूर्व संचित सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं मां के उपासक अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करते हैं।
9. सिद्धिदात्री :
मां दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने के कारण इनका नाम सिद्धिदात्री पड़ा। कहा जाता है कि इस दिन संपूर्ण विधि-विधान एवं निष्ठा के साथ मां को साधने वाले साधक को अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व सभी 8 सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है एवं यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। मां के उपासक इनकी आराधना से कठिन से कठिन कार्य भी साध लेते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा भी मां सिद्धिदात्री द्वारा समस्त सिद्धियां प्राप्त की गई थीं।
दोस्तों, आपको बता दें की नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है इस दिन मां दुर्गा की उपस्थिति के संकेत या सिंबल के तौर पर कलश स्थापित किया जाता है। दोस्तों, आइए जान लेते हैं कि कलश स्थापना किस प्रकार की जाती है-
- चैत्र प्रतिपदा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
- इसके पश्चात घर के ही किसी स्वच्छ स्थान पर साफ मिट्टी से वेदी बनाएं।
- इस वेदी में जौ एवं गेहूं दोनों को मिलाकर साथ बोएं।
- वेदी अथवा इसके पास ही साफ-सुथरे स्थान पर पृथ्वी का पूजन करें ।
- इसके पश्चात यहां सोना, चांदी, तांबा अथवा मिट्टी का कलश स्थापित करें।
- अब इस कलश में आम के हरे पत्तों के साथ ही दूब एवं पंचामृत डालकर इसके मुंह पर पवित्र सूत्र बांध नारियल रख दें।
- इस प्रकार कलश स्थापना हो जाएगी।
दोस्तों, हमने ऊपर आपको कलश स्थापना के बारे में जानकारी दी। अब जान लीजिए कि कलश स्थापना के पश्चात पूजा कैसे करें-
- आप कलश स्थापित हो जाने के पश्चात सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।
- अब वेदी के किनारे देवी की धातु, पाषाण यानी पत्थर अथवा मिट्टी की चित्रमय मूर्ति को विधि पूर्वक विराजमान करें।
- इसके बाद इस मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्द्ध, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन-अर्चन करें।
- अब दुर्गा सप्तशती का पाठ यानी दुर्गा स्तुति करें।
- पाठ स्तुति पूर्ण होने के पश्चात मां दुर्गा की आरती कर प्रसाद का वितरण करें।
- इसके पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
दोस्तों, नवरात्रि व्रत करना थोड़ा कठिन होता है। यदि आप भी इस व्रत को करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको कुछ नियमों का विशेष रूप से पालन करना पड़ेगा, जो कि इस प्रकार से हैं-
- नवरात्रि व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- नवरात्रि व्रत के दौरान यदि संभव हो तो जमीन पर सोएं।
- नवरात्रि व्रत के दौरान किसी महिला या कन्या का अपमान ना करें ना ही किसी अन्य से बुरे-भले शब्द कहें।
- नवरात्रि के दौरान अपनी क्षमता के अनुसार उपवास करें।
- नवरात्रि के उपवास दौरान असत्य संभाषण न करें। साथ ही किसी पर क्रोधित भी न हों।
- यदि घर में अखंड ज्योति जला रहे हैं तो घर खाली छोड़कर न जाएं।
- नवरात्रि व्रत के दौरान घर में भी प्याज, लहसुन का इस्तेमाल न करें।
- व्रत के नौ दिन नियम से स्नान करें। गंदे और बिना धुले कपड़े न पहनें।
- व्रतियों को चमड़े की बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग आदि के साथ ही चमड़े की बनी चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- नवरात्रि व्रत के दौरान दिन में न सोएं।
- नवरात्रि के दौरान बाल काटने, दाढ़ी बनाने, नाखून काटने जैसे कार्य न करें।
- फलाहार एक ही स्थान पर बैठकर ग्रहण करें।
- यदि दुर्गा चालीसा, मंत्र अथवा सप्तशती पढ़ रहे हैं तो बीच में दूसरी बात न बोलें, न ही उठें।
- व्रत के दौरान धूम्रपान, तंबाकू आदि का सेवन वर्जित है।
दोस्तों, अष्टमी तथा नवमी महा तिथि मानी जाती हैं। कहीं उपासक अष्टमी तिथि को व्रत का पारायण करते हैं तो कहीं नवमी के दिन। आप व्रत पारायण के पश्चात हवन करें तथा फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराएं व उन्हें अपनी क्षमता अनुसार दक्षिणा/उपहार देकर व्रत का उद्यापन करें। दोस्तों, यह तो हम आपको बता ही चुके हैं कि चैत्र प्रतिपदा के दिन घर में जौ बोए जाते हैं। ऐसे में नवमी वाले दिन इन्हें पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सिर पर रखकर किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए।
दोस्तों, आम तौर पर कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अपनी आस्था के बल पर नवरात्रि के व्रत कर सकता है। लेकिन आपको बता दें कि कुछ ऐसी स्थितियां हैं, जबकि नवरात्रि के व्रत नहीं करने चाहिए। जैसे – रजस्वला महिला एवं गंभीर शारीरिक बीमारी/रोग से ग्रस्त व्यक्ति को नवरात्रि के व्रत करने से परहेज़ करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को आवश्यक लंबी यात्रा (long journey) पर जाना हो तो उसे भी नवरात्रि का व्रत नहीं करना चाहिए। युद्ध (war) जैसी स्थिति में भी नवरात्र के व्रत त्याज्य होते हैं।
दोस्तों, नवरात्रि का पर्व पवित्रता का पर्व है। इन दिनों माता दुर्गा भक्तजनों को भक्ति की शक्ति और सामर्थ्य देती हैं। यदि भोजन की बात करें तो इन दिनों साधकों को व्रत के दौरान सात्विक भोजन लेना होना है। इसे आप शुद्ध शाकाहारी भोजन भी कह सकते हैं। मुख्य रूप से नवरात्रि व्रत के दौरान आप कुट्टू, आलू, सिंघाड़े का आटा, साबूदाने की खीर, दूध, दही आदि का सेवन कर सकते हैं। यदि आपकी क्षमता है तो आप सूखे मेवे का भी सेवन कर सकते हैं। बहुत से लोग फलाहार के नाम पर दिन भर कुछ ना कुछ खाते रहते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। फलाहार नियमित समय पर करें।
बहुत से लोग भूख ना लगे, इसके लिए तंबाकू चबाते रहते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे व्रत टूट जाता है। एक बात और, व्रत के फलाहार में साधारण नमक के स्थान पर सेंधा नमक का इस्तेमाल करें। दोस्तों, आप यह भी जानते होंगे कि विभिन्न होटल व रेस्टोरेंट इन दोनों व्रतियों की सुविधा के मद्देनजर व्रत की थाली की पेशकश करने लगे हैं। जहां तक हो सके, आप इन थालियों से परहेज बरतें। क्योंकि अमूमन वहां सफाई और स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता।
दोस्तों, अधिकांश लोग केवल दो ही प्रकार के नवरात्र के बारे में जानते हैं। एक चैत्र नवरात्र और दूसरे शारदीय नवरात्र। लेकिन आपको बता दें कि हकीकत में एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के साथ ही दो गुप्त नवरात्र आते हैं। दोस्तों, अब आप सोचेंगे कि गुप्त नवरात्र को यह नाम क्यों दिया गया है? तो आपको बता दें कि गुप्त नवरात्र के दौरान तंत्र साधनाओं का अत्यधिक महत्व होता है।
ये साधनाएं आम तौर पर गुप्त रूप से की जाती हैं, लिहाजा, यह गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। इसमें अघोरी तांत्रिकों द्वारा गुप्त महाविद्याओं को सिद्ध करने लिए विशेष पूजा की जाती है। मोक्ष की कामना के लिए भी गुप्त नवरात्र महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये माघ और आषाढ़ माह में पड़ते हैं।
शारदीय नवरात्र का समापन दशहरे के दिन दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के रूप में होता है। दोस्तों, दूसरी दृष्टि से देखें तो नवरात्र में तीन-तीन महीने का अंतर होता है। हिन्दू कैलेंडर (Hindu calendar) के मुताबिक सबसे पहले चैत्र मास में चैत्र नवरात्र होते है। इसके तीन माह पश्चात आषाढ़ में गुप्त नवरात्र आते हैं। पुनः इसके तीन माह पश्चात शारदीय नवरात्र माघ माह में गुप्त नवरात्र आते हैं।
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वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्र 9 अप्रैल से शुरू होंगे तथा 17 अप्रैल को इनका समापन होगा।
नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
देवी दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं?
देवी दुर्गा के नौ रूपों के बारे में हमने आपको ऊपर पोस्ट में विस्तार से जानकारी दी है आप वहां से देख सकते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा होती है।
नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना की जाती है।
इन नियमों के बारे में हमने आपको ऊपर पोस्ट में विस्तार से जानकारी दी है। आप वहां से देख सकते हैं।
रजस्वला महिला, गंभीर शारीरिक बीमारी/रोग से ग्रस्त व्यक्ति या किसी लंबी यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति को नवरात्रि का व्रत नहीं करना चाहिए।
वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। चैत्र नवरात्र, शारदीय नवरात्र तथा दो गुप्त नवरात्र।
गुप्त नवरात्र आषाढ़ और माघ माह में आते हैं।
इन नवरात्रों के दौरान आम तौर पर साधकों, तांत्रिकों द्वारा तंत्र साधना करने की वजह से इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है।
शारदीय नवरात्र का समापन दशहरे के दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के रूप में होता है।
व्रतियों को फलाहार में किस नमक का इस्तेमाल करना चाहिए?
व्रतियों को फलाहार में सेंधा नमक का इस्तेमाल करना चाहिए।
दोस्तों इस पोस्ट (post) में हमने आपको जानकारी दी कि चैत्र नवरात्र कब से हैं? नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? देवी दुर्गा के 9 स्वरूप कौन-कौन से हैं? नवरात्र के क्या नियम हैं? नवरात्र की पूजा का क्या विधि- विधान है? उम्मीद करते हैं कि यह जानकारी आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगी। इसी प्रकार की जानकारी से भरी पोस्ट पाने के लिए आप हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।