अध्यक्षात्मक शासन क्या है? | विशेषताएं, लाभ व दोष | Adhyakshatmak shasan kya hai

|| Adhyakshatmak shasan pranali kya hoti hai | अध्यक्षात्मक शासन क्या है? | Adhyakshatmak shasan kya hai | Adhyakshatmak meaning in Hindi | अध्यक्षात्मक प्रणाली के दोष (Adhyakshatmak shasan pranali ke dosh ||

Adhyakshatmak shasan kya hai, हमारे देश में सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री होता है लेकिन उससे ऊपर भी एक पद होता है और वह होता है राष्ट्रपति का। अब उसे राष्ट्रपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह राष्ट्र का मुखिया या प्रमुख होता है। दोनों के बीच में बहुत अंतर है क्योंकि एक तो सरकार का प्रमुख होता है जबकि दूसरा राष्ट्र का प्रमुख। इसमें प्रधानमंत्री का चुनाव जनता के द्वार चुने गए सांसदों के द्वारा किया जाता है जबकि राष्ट्रपति का चुनाव संवैधानिक प्रक्रिया के तहत होता (Adhyakshatmak shasan pranali kya hoti hai) है।

अब इसमें भी एक अलग प्रणाली होती है और वह प्रणाली होती है अध्यक्षात्मक प्रणाली जिसे अलग रूप से जाना जाता है। यह बहुत हद्द तक लोकतंत्र व राजतंत्र के बीच की कड़ी होती है। ऐसे में यह संसदीय शासन प्रणाली से भिन्न होती है जिसे हम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के नाम से जानते हैं। तो बहुत से लोगों के मन इस अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के बारे में विस्तार से जानने की जिज्ञासा हो रही (Adhyakshatmak shasan kya hai in Hindi) होगी।

आज का यह लेख अध्यक्षात्मक प्रणाली के ऊपर ही लिखा गया है जिसे पढ़कर आप यह जान पाने में सक्षम होंगे कि आखिरकार यह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली होती क्या है और इससे हमारा क्या तात्पर्य है। साथ ही अध्यक्षात्मक प्रणाली के तहत क्या कुछ भिन्न होता है और यह किन किन प्रमुख देशों में है। इसी के साथ ही अध्यक्षात्मक प्रणाली की विशेषताएं व शक्तियां क्या होती है, वह भी आपको इस लेख में जानने को (Adhyakshatmak pranali kya hoti hai) मिलेगा।

अध्यक्षात्मक शासन क्या है? (Adhyakshatmak shasan kya hai)

यह एक तरह की ऐसी प्रणाली होती है जिसके तहत देश में केवल एक ही राष्ट्र प्रमुख होता है और उसके अलावा और कोई नहीं। अब हमारे देश में तो संसदीय प्रणाली है जिसके तहत सरकार का प्रधान तो प्रधानमंत्री होता है लेकिन राष्ट्र का प्रमुख राष्ट्रपति होता है। फिर भी राष्ट्रपति केवल कहने को राष्ट्रपति होता है, जबकि असल में देश को प्रधानमंत्री ही संचालित करता है। वह इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री का ही देश की कार्यपालिका पर नियंत्रण होता (Adhyakshatmak shasan pranali kya hoti hai in Hindi) है।

अध्यक्षात्मक शासन क्या है विशेषताएं, लाभ व दोष Adhyakshatmak shasan kya hai

अब यह जो कार्यपालिका होती है उसे हम देश के सभी सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के रूप में देख सकते हैं। अब यही अधिकारी व कर्मचारी ही देश को चलाने व कानूनों का पालन करवाने का कार्य करते हैं। ऐसे में जिस किसी का भी इस कार्यपालिका पर नियंत्रण होता है, वही उस राष्ट्र का प्रमुख होता है। तो संसदीय शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री या फिर राष्ट्रपति में से किसी एक का उस पर संपूर्ण नियंत्रण होता है। यह जरुरी नहीं है कि उस देश में प्रधानमंत्री ही सर्वोच्च हो बल्कि राष्ट्रपति भी सर्वोच्च हो सकता (Adhyakshatmak shasan pranali kya hai) है।

अब जो अध्यक्षात्मक प्रणाली होती है उसमे सबसे बड़ा अंतर तो यह होता है कि इसमें प्रधानमंत्री जैसा कोइ पद नहीं होता है। अर्थात जिस भी देश में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली कार्य कर रही होती है, उस देश में प्रधानमंत्री का पद नहीं होता है या फिर उस देश में कोई प्रधानमंत्री नही होता है। वहां पर केवल राष्ट्रपति का ही पद होता है और वही उस राष्ट्र या देश का सर्वेसर्वा होता है। इसका उदाहरण हम अमेरिका से ले सकते हैं क्योंकि अमेरिका में केवल राष्ट्रपति होता है, प्रधानमंत्री (Adhyakshatmak meaning in Hindi) नहीं।

अब दूसरा अंतर यह होता है कि इसमें कार्यपालिका के ऊपर राष्ट्रपति का भी नियंत्रण नहीं होता है। एक तरह से अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका को विधायिका से अलग कर दिया जाता है और वह निरंकुश होकर निर्णय ले सकती है। अमेरिका जैसे देश में राष्ट्रपति अपने देश के सीनेटर या मेयर को कोई सीधा आदेश जारी नहीं कर सकता है और वह केवल परामर्श दे सकता है। हालाँकि विशेष परिस्थितयों में वह यह आदेश जारी करने का अधिकार रखता (Adhyakshatmak sarkar ki paribhasha) है।

संसदीय शासन प्रणाली व अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में अंतर

अब आपको संसदीय शासन प्रणाली व अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में मुख्य अंतर को भी समझ लेना चाहिए। वैसे तो आपने दोनों के बीच के प्रमुख अंतरों को ऊपर समझ ही लिया होगा लेकिन फिर भी हम इसे विस्तृत रूप दे देते हैं ताकि आपके मन में किसी तरह की शंका शेष ना रहने पाए। तो दोनों के बीच बहुत व्यापक अंतर देखने को मिलता है क्योंकि यह उस देश की शासकीय व्यवस्था को पूर्ण रूप से बदल देता है।

इसके लिए पहले आपको विधायिका व कार्यपालिका को समझना होगा। विधायिका वह होती है जिसे हम वोट के माध्यम से चुनते हैं। इसमें सभी तरह के सांसद, विधायक, पार्षद इत्यादि आते हैं और वे सभी मिलकर ही विधायिका का निर्माण करते हैं या उसके अंग होते हैं। कार्यपालिका जो होती है, वह अधिकारी स्तर की होती है तथा शासन व्यवस्था के तहत कार्य कर रहे सभी तरह के अधिकारी व कर्मचारी कार्यपालिका का अंग होते हैं। जैसे कि जिलाधिकारी, SDM, तहसीलदार इत्यादि।

अब संसदीय शासन प्रणाली में क्या होता है कि जो कार्यपालिका होती है, उस पर पूर्ण रूप से वहां की विधायिका का नियंत्रण होता है और वह उसी के आदेशों का पालन करती है। एक तरह से संसदीय शासन प्रणाली में विधायिका कार्यपालिका की बॉस मानी जाती है। वहीं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में विधायिका व कार्यपालिका को पृथक कर दिया जाता है और दोनों के बीच कोई भी आपसी संबंध नहीं होता है। साथ ही उस राष्ट्र में कार्यपालिका पर जो भी थोड़ा बहुत नियंत्रण होता है वह वहां के राष्ट्रपति का ही होता है किन्तु पूर्ण रूप से नहीं।

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं (Adhyakshatmak shasan pranali ki visheshtaen)

अब यदि हम अध्यक्षात्मक प्रणाली की विशेषताओं का अध्य्यन करें तो हमें पता चलेगा कि यह किस प्रकार से संसदीय शासन प्रणाली से बिल्कुल अलग है और क्यों यह संसदीय शासन प्रणाली से मजबूत भी मानी जा सकती (Adhyakshatmak shasan pranali ki visheshta) है। तो यहाँ हम आपका अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की कुछ प्रमुख विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे जो कि इस प्रकार है:

  • इसकी सबसे बड़ी विशेषता तो यही है कि इसमें जो कार्यपालिका होती है, वह पूर्ण रूप से सरकार के नियंत्रण से बाहर चली जाती है और उसे केवल और केवल संविधान की मूल भावना के तहत कार्य करना होता है।
  • एक तरह से यहाँ पर कार्यपालिका पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है और उस पर विधायिका के किसी भी नेता का नियंत्रण नहीं रह जाता है। हालाँकि उस पर न्यायपालिका की सहायता से अंकुश लगाया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति ही उस राष्ट्र का प्रमुख होता है और उसके समकालीन किसी अन्य तरह का कोई पद नहीं होता है। अध्यक्षात्मक प्रणाली में कोई प्रधानमंत्री या अन्य मंत्री नहीं होते हैं और वहां पर राष्ट्रपति को ही सबकुछ देखना होता है व निर्णय लेने होते हैं।
  • राष्ट्रपति स्वयं भी कार्यपालिका के कार्यों में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और वह उन्हें केवल परामर्श जारी कर सकता है, ना कि उन्हें किसी चीज़ के लिए बाध्य कर सकता है।
  • जिस भी देश में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की व्यवस्था होती है वहां पर आमतौर पर स्थित सरकार देखने को मिलती है क्योंकि उसे आसानी से हटाया नहीं जा सकता है और ना ही उसे अल्पमत में लाया जा सकता है।
  • इसका उदाहरण हम अमेरिका व भारत देश को लेकर देख सकते हैं। जहाँ एक ओर भारत में कुछ सांसदों के द्वारा समर्थन लिए जाने पर सरकार अल्पमत में हार सकती है या उसे हटाया जा सकता है और देश में फिर से चुनावी प्रक्रिया संपन्न करवानी होती है तो वहीं अमेरिका में सांसदों के द्वारा ऐसा नहीं किया जा सकता है।
  • अमेरिका जैसे देश में जहां पर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की व्यवस्था है वहां पर राष्ट्रपति को केवल और केवल महाभियोग के द्वारा ही हटाया जा सकता है जिसकी प्रक्रिया बहुत ही जटिल होती है और यह करना सरल नहीं होता है।
  • जब कार्यपालिका विधायिका के अंतर्गत कार्य करती है तो उसे दबाव में रहकर या विधायिका को प्रसन्न रखने के लिए काम करना होता है जिस कारण उसका कार्य प्रभावित होता है। जबकि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की स्थिति में विधायिका निरंकुश होकर कार्य कर सकती है।

अध्यक्षात्मक प्रणाली के लाभ (Adhyakshatmak shasan pranali ke labh)

अब आपने अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषता तो जान ली है लेकिन इसके तहत क्या कुछ लाभ देखने को मिलते हैं, इसके बारे में भी समय रहते जानकारी ले ली जाए तो बेहतर रहता है। इससे आपको अपना ज्ञानवर्धन करने में सहायता मिलेगी और यह भी जान पाएंगे कि आखिरकार क्यों अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को संसदीय शासन प्रणाली से बेहतर माना जा सकता है।

  • अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का सबसे बड़ा गुण या लाभ यही है कि यहाँ पर देश को एक स्थिर सरकार मिलती है। अब अन्य देश जहाँ पर संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था होती है वहां पर उस देश की सरकार को हमेशा ही अपनी सरकार के गिर जाने या बहुमत खो जाने का डर सताता रहता है। इसी कारण वह सभी तरह के सांसदों को खुश रखने के अनुसार ही अपनी नीतियों का निर्माण करती है जिसका प्रभाव उसके देश पर भी पड़ता है।
  • वहीं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की व्यवस्था में देश को एक स्थित सरकार मिलती है जिसे एक निर्धारित अवधि से पहले हटाना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे में वह देश पांच या जो भी उस देश में चुनाव की अवधि है, तब तक एक स्थित सरकार को अपने सामने देखता है।
  • अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की दिशा में सरकार को अलग अलग राजनीतिक पार्टियों को खुश करने की जरुरत नहीं होती है जैसा कि संसदीय शासन प्रणाली में देखने को मिलता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि संसदीय शासन प्रणाली में बहुत बार ऐसा देखने में आता है कि वहां किसी एक राजनीतिक पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाता है और उस स्थिति में कई राजनीतिक पार्टियाँ गठबंधन बनाकर सरकार चलाती है। ऐसे में सरकार को अन्य राजनीतिक पार्टियों को साथ में बनाये रखने के लिए समझौता करना पड़ता है।
  • अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में मुख्य तौर पर देश में एक ही या फिर दो राजनीतिक पार्टियाँ होती है और उनमे ही विभिन्न व्यक्तियों के बीच वोटिंग की जाती है और किसी एक उम्मीदवार को चुना जाता है। फिर उसके बाद उन उम्मीदवारों में से किसी एक को जनता के द्वारा राष्ट्रपति चुन लिया जाता है। इस तरह से वहां पर किसी अन्य राजनीतिक पार्टी का कोई प्रभाव नहीं होता है।
  • अब सरकार स्थित है तो अवश्य ही वहां की नीतियाँ व अधिनियम भी स्थिर होंगे और उनमे जल्दी से बदलाव नहीं होंगे। इस स्थिति में सरकार कठिन व कठोर निर्णय लेने की शक्ति रखती है और वह भी प्रभावी ढंग से जबकि संसदीय शासन प्रणाली में ऐसा संभव बहुत ही कम हो पाता है।
  • संसदीय शासन प्रणाली में देश को अनपढ़ या ऐसे नेता जो देश पर राज करने लायक नहीं हैं, वे भी चला रहे होते हैं जबकि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में मुख्य तौर पर कार्यपालिका ही देश को चलाती है। अब जो कार्यपालिका होती है वह जनता में से चुनकर नहीं आती है बल्कि वे अपने अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं। ऐसे में देश का संचालन बेहतर हाथों में होता है।
  • इसी कारण देश में अधिक कार्य कुशलता व काम करने की शक्ति देखने को मिलती है। किसी भी योजना को बेहतर ढंग से बनाया जा सकता है, सही दिशा निर्देश दिए जा सकते हैं तथा संकट की स्थिति में उसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।

अध्यक्षात्मक प्रणाली के दोष (Adhyakshatmak shasan pranali ke dosh)

अब सभी तरह की शासन प्रणाली के कुछ ना कुछ लाभ होते हैं तो इसी के साथ ही वह अपने साथ तरह तरह के दोष भी लेकर आती है। कहने का अर्थ यह हुआ की जिस प्रकार संसदीय शासन प्रणाली के अपने अलग लाभ व हानि हैं ठीक उसी तरह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली भी लाभ व दोष दोनों लिए हुए हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली पूर्ण रूप से उचित है और यदि यह होती तो सभी जगह इसी प्रणाली का ही पालन किया गया होता। ऐसे में अध्यक्षात्मक प्रणाली के क्या कुछ दोष हैं, इसके बारे में जानने का समय आ गया है।

  • विधायिका जो होती है, वह जनता के बीच में से ही निकलती है और यही लोकतंत्र की मुख्य पहचान है। वहीं कार्यपालिका जो होती है, वह अपनी शिक्षा के दम पर उच्च पदों तक पहुँचती है और प्रशासनिक व्यवस्था को संभालती है।
  • जब कार्यपालिका को स्वतंत्र कर दिया जाता है तो विधायिका का उस पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है। ऐसे में जनता का प्रतिनिधि उस पर शासन ना करते हुए, शिक्षा के दम पर आगे बढ़ा व्यक्ति आप पर शासन करता है।
  • यह उसी तरह का निर्णय हो गया जहाँ एक मोहल्ले में 10 घर हैं और ज्यादातर घर के आदमी कम पढ़े लिखे हैं लेकिन एक आदमी जो स्नातक पास है, वह बाकि सभी घरों पर हुकुम चला रहा है, जबकि उसे दस घरों के द्वारा अपना नेता चुना ही ना गया हो।
  • ऐसी स्थिति में निरंकुशता फैल सकती है और प्रजा में अराजकता की भावना आती है। इसका सीधा प्रभाव हम अमेरिका में लगातार कमजोर होते राजतंत्र के रूप में देख सकते हैं। साथ ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भी इसी कारण ही कार्यपालिका से टकराव हो गया था जिस कारण पूरे अमेरिका में गृह युद्ध के हालात निर्मित हो गए थे।
  • कार्यपालिका को ना तो प्रजा चुनती है और ना ही उन्हें प्रजा का वोट चाहिए होता है और ना ही उस पर विधायिका का नियंत्रण होता है और ना ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी मानी जाती है। ऐसे में कार्यपालिका को असीमित शक्तियां व अधिकार मिल जाते हैं जो उसे अहंकारी बना देते हैं।
  • बहुत बार यह देखने में आया है कि जिन देशों में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की व्यवस्था है, वहां पर विधायिका व कार्यपालिका के बीच टकराव हो जाता है।
  • अब कार्यपालिका के कारण उस देश की न्यायपालिका के ऊपर भी काम का बोझ बहुत बढ़ जाता है क्योंकि कार्यपालिका के मामलों का निपटारा विधायिका को ना करके न्यायपालिका को करना होता है जिससे आम प्रजा के केस प्रभावित होते हैं।

इस तरह से अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के भी अपने बहुत दोष हैं और इसी कारण इस पर लगाम कसने की तैयारी हो चुकी है। कोई भी देश जहाँ पर लोकतंत्र है वह यह नहीं चाहेगा की वहां कोई ऐसा व्यक्ति शासन करे जिसे प्रजा के द्वारा ना चुना गया हो या उसके द्वारा ना नियंत्रित किया जाता हो।

अध्यक्षात्मक शासन क्या है – Related FAQs 

प्रश्न: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषता क्या है?

उत्तर: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषता हमने ऊपर के लेख में बताई है जो आपको पढ़नी चाहिए।

प्रश्न: भारत में कौन सी प्रणाली है?

उत्तर: भारत में संसदीय प्रणाली है।

प्रश्न: विश्व में सबसे अच्छी शासन व्यवस्था कौन सी मानी जाती है?

उत्तर: विश्व में सबसे अच्छी संसदीय अर्थात लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है।

प्रश्न: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली क्या है?

उत्तर: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको ऊपर के लेख के मिलेगी जो आपको पढ़ना चाहिए।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने अध्यक्षात्मक शासन क्या है इसके बारे में जानकारी ले ली है आपने जाना कि अध्यक्षात्मक शासन क्या है इस प्रणाली की विषेताएं, लाभ और दोष क्या कुछ हैं इत्यादि। साथ ही हमने आपको संसदीय शासन प्रणाली और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में क्या अंतर है यह भी बताया ताकि आपको सही से समझ में आ जाए। आशा है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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