बैंक दर क्या होती है? | बैंक दर को और क्या कहते हैं? | Bank rate kya hai

|| बैंक दर क्या होती है? | Bank rate kya hai | बैंक दर और रेपो रेट में क्या अंतर है? | Bank rate or repo rate mein antar | बैंक दर कौन निर्धारित करता है? | बैंक दर बढ़ने से क्या होता है? | भारत में बैंक रेट कौन तय करता है? ||

Bank rate kya hai :- किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आंकलन करना हो तो वहां के बैंकों की आर्थिक स्थिति को देख लेना चाहिए। यदि वह देश अच्छा कार्य कर रहा है और आगे बढ़ रहा है तो अवश्य ही वहां के बैंकों की स्थिति भी अच्छी होगी। हर देश में सरकारी से लेकर प्राइवेट बैंक होते हैं जो लोगों को तरह तरह की सुविधाएँ प्रदान करते हैं। आज के समय में तो सारा ऑनलाइन ढांचा इन्हीं बैंकिंग प्रणाली पर ही निर्भर हो गया (Bank rate in India in Hindi) है।

अब ऐसा नहीं है कि यह सभी बैंक हमेशा ही पैसों से भरे रहते हैं और इन्हें पैसों की जरुरत नहीं पड़ती है। कई बार बैंकों को अधिक पैसों की जरुरत पड़ जाती है। अब बैंक को ही पैसों की जरुरत पड़े तो आखिरकार वह पैसा लेगा तो लेगा कहाँ से। हम सभी बैंक को ही पैसों का भंडार सोचते हैं और उनसे खुद पैसे लेने का सोचते हैं लेकिन जब बैंक ही पैसे मांगे तो वह किससे लेगा? तो इसका उत्तर होता है उस देश का केंद्रीय बैंक। बैंक के द्वारा अपने देश के केंद्रीय सरकारी बैंक से पैसा कुछ समय अवधि के लिए उधार लिया जाता (Bank dar kya hoti hai) है।

ऐसे में उस देश का केंद्रीय बैंक अपने यहाँ के किसी भी बैंक को कुछ समय अवधि के लिए पैसे देने के बदले में उनसे ब्याज लेता है और इसे ही हम सभी बैंक दर के नाम से जानते हैं। ऐसे में यह बैंक दर क्या है, कितनी है, किन चीज़ों से प्रभावित होती है और यह क्यों ली जाती है, इत्यादि के बारे में सबकुछ आपको इस लेख के माध्यम से जानने को (Bank dar kise kahate hain) मिलेगा।

बैंक दर क्या होती है? (Bank rate kya hai)

अब भारत देश में एक नहीं बल्कि सैकड़ों तरह के बैंक काम कर रहे हैं। उनमे से कुछ सरकारी बैंक हैं तो कुछ निजी, कुछ ग्रामीण बैंक हैं तो कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बैंक भी हैं। हर किसी के काम करने का जरिया अलग होता है और हर किसी को कभी ना कभी पैसों की जरुरत होती ही है। ऐसे में कब किस बैंक को पैसों की जरुरत पड़ जाए यह कहा नहीं जा सकता है। अब यह इस पर निर्भर नहीं करता है कि वह बैंक बड़ा है या छोटा क्योंकि पैसों की जरुरत हर बैंक को पड़ती (What is bank rate in Hindi) है।

बैंक दर क्या होती है बैंक दर को और क्या कहते हैं  Bank rate kya hai

वह बैंक चाहे भारतीय स्टेट बैंक हो या करुर वैश्य बैंक, हर कोई भारत के केंद्रीय बैंक से पैसों की माँग कभी भी कर सकता है। वह इसलिए क्योंकि कभी भी किसी को भी किसी क्षेत्र में पैसों की जरुरत पड़ जाती है या पैसे कम पड़ जाते हैं। यही कारण है कि वे देश के केंद्रीय बैंक से पैसों की माँग कुछ समय के लिए करते हैं। ऐसे में देश का केंद्रीय बैंक देश के किसी भी वाणिज्यिक बैंक को एक रात के लिए या कुछ समय के लिए पैसा उधार पर देता है और उस पर ब्याज लेता (Bank dar ka arth) है।

तो देश का केंद्रीय बैंक अपने देश में काम कर रहे किसी भी वाणिज्यिक बैंक को जो पैसा एक रात के लिए या कुछ समय के लिए उधार देता है और उस पर जिस प्रतिशत से ब्याज लेता है, उसे ही हम सभी बैंक दर के नाम से जानते हैं। इस तरह से आप बैंक दर को बैंकों के द्वारा केंद्रीय बैंक से पैसा उधार लेने के बदले में दिया जाने वाला ब्याज भी कह सकते (Bank rate kya hoti hai) हैं।

किसी भी देश के लिए बैंक दर का ज्यादा होना उस देश में निवेश में कमी लाने या बाजार में मुद्रा के घटने का संकेत होता है जबकि बैंक दर के कम रहने से उस देश का आर्थिक विकास तेजी से हो पाता है और महंगाई नियंत्रण में रहती है। ऐसे में इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए आपको यह लेख बहुत ही ध्यान से और पूरा पढ़ना (Bank rate kya hota hai) होगा। आइये जाने बैंक दर के बारे में शुरू से लेकर अंत तक हरेक जानकारी विस्तार से।

बैंक दर को और क्या कहते हैं? 

अब हम बात करेंगे बैंक दर के अन्य नामों की क्योंकि कई बार इसे अन्य नाम से भी बुलाया जाता है। ऐसे में जब आप इन नामों को सुनेंगे तो अवश्य ही आप इसको लेकर झंझट की स्थिति में पहुँच सकते हैं। इसलिए आपका बैंक दर के लिए अन्य नाम जानना बहुत जरुरी हो जाता है। तो सबसे पहले तो यह जान लें कि बैंक दर को अंग्रेजी भाषा में क्या कहा जाता है। बैंक दर का अंग्रेजी में नाम बैंक रेट होता है और इसे भी बहुत जगह उपयोग में लिया जाता है।

इसी के साथ ही कई जगह इसे डिस्काउंट रेट भी कह देते हैं क्योंकि बैंक को किसी अन्य जगह की तुलना में यह अपने देश के केंद्रीय बैंक से बहुत ही कम ब्याज दर में मिल जाता है। इसी के साथ ही इसे सामान्य भाषा में बैंक की ब्याज दर भी कह दिया जाता है जो आम बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल में लाया जाता है।

बैंक दर कौन निर्धारित करता है? (Bank rate decided by in Hindi)

अब आपका अगला प्रश्न होगा कि बैंक दर को निर्धारित या फिक्स करने का काम किसका होता है। तो यह तो सीधा सा प्रश्न है क्योंकि जहाँ से बैंक उन पैसों को ले रहा है जो बैंक उनसे यह चार्ज या ब्याज ले रहा है, उसे ही अपने देश के लिए बैंक दर को निर्धारित करने का जिम्मा सौंपा जाता (Bank rate determined by in Hindi) होगा। तो हर देश के केंद्रीय बैंक को ही उस देश की बैंक दर निर्धारित करने का उत्तरदायित्व दिया जाता है।

भारत देश में केंद्रीय बैंक को हम सभी रिज़र्व बैंक ऑफ भारत या RBI के नाम से जानते हैं। ऐसे में भारत में बैंक दर को निर्धारित करने का कार्य रिजर्व बैंक ऑफ भारत का होता है जो कुछ समय अंतराल के बाद उसमें बदलाव करने के लिए उत्तरदायी होता है। वहीं इसमें भारत के वित्त मंत्रालय या वित्त विभाग की भी अहम भूमिका होती है जो अपने देश के लिए बैंक दर को निर्धारित करती है या उस पर अंतिम निर्णय लेती है।

बैंक दर कब बदलती है?

अब आप यह भी जान लीजिये कि आखिरकार कितने समय के बाद बैंक दर में समीक्षा कर उसमें बदलाव किया जा सकता है। तो एक बार जब रिज़र्व बैंक ऑफ भारत के द्वारा भारत देश के लिए बैंक दर को निर्धारित कर लिया गया है तो उसके 3 महीने तक यही बैंक दर रहती है। इस तरह से हर तीन महीने के पश्चात बैंक दर में बदलाव या परिवर्तन किया जा सकता है।

इसमें बदलाव देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति, बैंकों के कार्य तथा अन्य कई कारकों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ऐसे में हम बैंक दर को त्रिमासिक कह सकते हैं जिसका बदलाव एक वर्ष के अंदर कुल 4 बार संभव है। हालाँकि यह जरुरी नहीं है कि इसमें तीन माह के पश्चात बदलाव किया ही जाए क्योंकि इसे वही का वही भी रखा जा सकता है या इसमें बहुत ही मामूली परिवर्तन किया जा सकता है।

बैंक दर के ज्यादा होने से क्या होता है?

अब आपका अगला प्रश्न यह होगा कि किसी भी देश के अंदर बैंक दर के ज्यादा होने से उस देश के बैंकों तथा सामान्य नागरिकों पर किस तरह के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं। तो यहाँ हम आपके सामने यह बात पहले ही स्पष्ट कर दें कि किसी भी देश के लिए बैंक दर का ज्यादा होना वहां महंगाई को निमंत्रण देना होता है। वह इसलिए क्योंकि बैंक को अपने केंद्रीय बैंक से पैसे लेने के बदले में उन्हें ब्याज के तौर पर ज्यादा पैसों का भुगतान करना होता है तो वह ज्यादा कर्ज में डूब सकता है।

ऐसे में बैंक की नीतियाँ प्रभावित होती है और उसका प्रत्यक्ष प्रभाव उस बैंक के ग्राहकों और साथ ही देश के आम नागरिकों पर देखने को मिलता है। बैंक के द्वारा दिए जाने वाले लोन पर ब्याज की दर बढ़ जाती है, बैंक अपने ग्राहकों को उनके द्वारा जमा करवाए गए पैसों पर कम ब्याज देता है और ऐसे ही कई तरह के अन्य प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसका प्रभाव देश के शेयर बाजार पर भी देखने को मिलता है और उसमें भी महंगाई को देखा जाता है।

बैंक दर के कम होने से क्या होता है?

अब बैंक दर के कम होने से उस देश की अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव देखने को मिलता है क्योंकि बैंक अपनी ब्याज दरों को घटा देते हैं। ऐसे में देश के अंदर मुद्रा का ज्यादा निवेश देखने को मिलता है और बाजार में भी वह अधिक मात्रा में आती है। लोगों के द्वारा तरह तरह के क्षेत्रों में निवेश किया जाता है और बैंक में भी ज्यादा पैसा आता है।

लोन के कम ब्याज दर में मिलने के कारण लोगों के द्वारा बैंक से लोन लेने की संख्या बढ़ जाती है जिससे देश में ज्यादा मात्रा में विकास देखने को मिलता है। बाजार में मुद्रा का लेनदेन ज्यादा मात्रा में होता है और शेयर बाजार में भी उछाल देखने को मिलता है। यह सभी उस देश की आर्थिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाये रखने के लिए और नागरिकों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए जरुरी होता है।

बैंक दर और रेपो रेट में क्या अंतर है? (Bank rate or repo rate mein antar)

बहुत से लोग बैंक दर को रेपो रेट ही समझ लेते हैं लेकिन यह गलत है। दरअसल दोनों में ही बैंकों के द्वारा केंद्रीय बैंक से उधार या कर्ज लिया जाता है और बदले में वह उसे मूल धन के साथ साथ ब्याज को चुकाता है लेकिन दोनों में बहुत बारीक सा अंतर देखने को मिलता है। आइये दोनों के बीच में मूलभूत अंतर को देख व समझ लेते हैं ताकि आप भी बैंक दर और रेपो रेट को लेकर कंफ्यूज ना हो (Difference between bank rate or repo rate in Hindi) जाएं।

तो बैंक दर तो वह होती है जिसमें उस देश का केंद्रीय बैंक अपने देश के सभी वाणिज्यिक बैंकों को बिना किसी सुरक्षा के लोन दे देता है या कुछ समय के लिए पैसा उधार दे देता है जबकि रेपो रेट में वह बैंक की सिक्योरिटीज को बेच कर या उसे अपने पास रख कर उसे पैसा उधार देता है। तो इस तरह से बैंक दर सीधे तौर पर बिना किसी सिक्योरिटीज के दी जाती है तो रेपो रेट में बैंक को अपनी सिक्योरिटीज को बेचना पड़ता है या उन्हें RBI में गिरवी रखना पड़ता है। यही इन दोनों के बीच में मूलभूत अंतर होता है।

बैंक दर क्या होती है – Related FAQs 

प्रश्न: बैंक दर का क्या अर्थ होता है?

उत्तर: देश का केंद्रीय बैंक अपने देश में काम कर रहे किसी भी वाणिज्यिक बैंक को जो पैसा एक रात के लिए या कुछ समय के लिए उधार देता है और उस पर जिस प्रतिशत से ब्याज लेता है, उसे ही हम सभी बैंक दर के नाम से जानते हैं।

प्रश्न: बैंक दर और रेपो दर क्या है?

उत्तर: बैंक दर सीधे तौर पर बिना किसी सिक्योरिटीज के दी जाती है तो रेपो रेट में बैंक को अपनी सिक्योरिटीज को बेचना पड़ता है या उन्हें RBI में गिरवी रखना पड़ता है।

प्रश्न: भारत में बैंक रेट कौन तय करता है?

उत्तर: भारत में बैंक रेट भारतीय रिजर्व बैंक तय करता है।

प्रश्न: बैंक दर बढ़ने से क्या होता है?

उत्तर: बैंक दर बढ़ने से जो प्रभाव पड़ता है उसके बारे में जानकारी आपको ऊपर का लेख पढ़ कर मिल जाएगी जो आपको पढ़ना चाहिए।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि बैंक दर क्या होती है। साथ ही आपने बैंक दर से संबंधित अन्य जानकारी भी इस लेख के माध्यम से हासिल की है जैसे कि बैंक दर कौन निर्धारित करता है बैंक दर के ज्यादा होने से क्या होता है बैंक दर के कम होने से क्या होता है इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई शंका आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
[fluentform id="3"]

Leave a Comment