भाई दूज क्यों, कब और कैसे मनाई जाती हैं? | Bhai Dooj kyu banai jati hai

जिस प्रकार रक्षाबंधन का त्यौहार प्रसिद्ध हैं और भाई बहन के प्रेम से जुड़ा हुआ हैं ठीक उसी तरह भाई दूज का त्यौहार भी भाई और बहन के प्रेम से जुड़ा हुआ दूसरा प्रमुख (Bhai Dooj kyu banai jati hai) त्यौहार माना जाता हैं। दिवाली पांच दिनों का त्यौहार होता हैं जिसमे सबसे अंतिम दिन भाई दूजा का त्यौहार मनाया जाता हैं। इस दिन सभी बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और उनकी सलामती की दुआ मांगती हैं। इसी कारण भाई दूज का महत्व (Bhai Dooj kab aati hai) अत्यधिक बढ़ जाता हैं।

ऐसे में यदि आप भाई दूज से जुड़ी कथा और इसके इतिहास को जानना चाहते हैं तो आज हम आपके साथ वही साँझा करने वाले हैं। इसी के साथ आपको भाई दूज (Bhai Dooj ki kahani) कब और कैसे मनाया जाता हैं, इसके बारे में भी जानने को मिलेगा। इस लेख में आपको भाई दूज से संबंधित हर एक जानकारी विस्तार से जानने को मिलेगी ताकि कुछ (Bhai Dooj kaise manate h) भी जानकारी अधूरी ना रहने पाए।

भाई दूज क्यों मनाई जाती है? (Bhai Dooj kyu banai jati hai)

सबसे पहले हम बात करते हैं कि भाई दूज आखिरकार क्यों और किस उद्देश्य से मनाई जाती हैं। अब रक्षाबंधन तो हर उम्र के भाई बहनों के लिए होता हैं लेकिन भाई दूज का त्यौहार मुख्य रूप से विवाहित बहन और भाई के बीच में मनाया जाता हैं। जिन भाइयों की बहनों का विवाह हो चुका हैं, उनके लिए ही यह भाई दूज का त्यौहार महत्व रखता हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि ब्याही हुई बहनों के लिए ही भाई दूज का महत्व ज्यादा होता हैं बजाए कि जिनका अभी तक ब्याह नही हुआ हैं।

भाई दूज क्यों कब और कैसे मनाई जाती हैं

ऐसा इसलिए किया जाता हैं क्योंकि एक भाई अपनी बहन के ससुराल जाकर उसका हालचाल जानता हैं और उसकी कुशल क्षेम लेता हैं। बहन भी अपने भाई को आया देख फूली नही समाती हैं और उसका पूरा आदर सत्कार करती हैं। बस अपनी बहन की कुशल क्षेम जानने के उद्देश्य से ही इस पर्व की शुरुआत हुई थी जो आज तक चली आ रही है। यही इस पर्व को मनाने का मुख्य कारण माना जाता हैं।

भाई दूज कब मनाई जाती है? (Bhai Dooj kab aati hai)

जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि दिवाली पांच दिनों का लंबा त्यौहार होता हैं जिसमें कई तरह के उत्सव आयोजित किये जाते हैं। इसी में आखिरी दिन भाई दूज का त्यौहार मनाने की परंपरा रही हैं। अब दिवाली तो कार्तिक मास की अमावस्या के दिन आती हैं। तो उसके दो दिन बाद जो दिन पड़ता हैं वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया होती हैं। इसी दिन भाई दूज का त्यौहार पूरे भारत वर्ष में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं।

कहने का अर्थ यह हुआ कि हम हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं। इसी दिन सभी बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और उसकी पूजा अर्चना करती हैं।

भाई दूज की कहानी (Bhai Dooj ki kahani)

अब यदि आप भाई दूज के बारे में इतना सब जान रहे हैं तो आपको इसके पीछे की कहानी भी जाननी चाहिए। जब तक आपको इसकी कहानी नही पता होगी तब तक आप इसका महत्व और रहस्य भी नही समझ पाएंगे। ऐसे में हर पर्व को मनाने के पीछे एक कहानी जुड़ी हुई होती ही हैं। तो यदि आप भी भाई दूज का त्यौहार मनाने जा रहे हैं तो इसके लिए आइए इसकी कहानी जान लेते हैं।

तो बहुत पहले की बात हैं। हम सभी मृत्यु के देवता यमराज का नाम तो जानते ही होंगे। तो उन्हीं यमराज जी की बहन हैं जिनका नाम यमुना हैं। वही यमुना जो नदी रूप में वृंदावन इत्यदि में बहती हैं। तो यमराज की बहन यमुना का विवाह हो गया और वह अपने ससुराल चली गयी। उसके बाद बहन यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने ससुराल आने का कई बार न्यौता भेजा लेकिन यमराज जी अपने काम में इतने ज्यादा व्यस्त थे कि समय ही नही निकाल पाए।

फिर एक दिन यमराज ने अपनी बहन के लिए समय निकाला और उनसे मिलने चले गए। वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया का ही दिन था। जब यमराज अपनी बहन यमुना के घर पधारे तो यमुना माता बहुत ही अधिक प्रसन्न हो गयी। उन्होंने अपने भाई के स्वागत में कोई कमी नही रहने दी और उनकी पूरी आवभगत की। उन्होंने यमराज को नाना तरह के पकवान बनाकर खिलाए। अपनी बहन के द्वारा इस तरह का स्वागत और सत्कार देखकर यमराज जी भी बहुत खुश हो गए और उन्होंने अपनी बहन को वरदान मांगने को कहा।

जब यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान मांगने को कहा तो इसके उत्तर में यमुना ने उनसे यही वरदान मांग लिया कि अब से हर वर्ष इसी दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने यूँ ही आया करेंगे। यह सुनकर यमराज जी ने भी उन्हें यह वचन दे दिया और वहां से चले गए। उसके बाद से हर वर्ष यमराज जी अपनी बहन से मिलने भाई दूज के दिन आने लगे। बस तभी से हर भाई भी अपनी विवाहित बहन के घर उसकी कुशल क्षेम जानने भाई दूज के दिन जाने लगा।

भाई दूज कैसे मनाई जाती है? (Bhai Dooj kaise manate h)

अब बात करते हैं कि भाई दूज का त्यौहार आखिरकार मनाया कैसे जाता हैं। तो इसे मनाने की विधि भी एकदम सरल हैं। यह रक्षाबंधन के समान ही हैं लेकिन इसमें राखी नही बाँधी जाती हैं। हालाँकि बहने अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या मोली का धागा अवश्य बाँध सकती हैं। तो इसके लिए सबसे पहले तो भाई अपनी विवाहित बहन के घर जाने का प्लान करते हैं। अब यह निर्भर करता हैं कि वहां जाना संभव हैं भी या नही लेकिन हर भाई को इस दिन अपनी बहन के ससुराल अवश्य जाना चाहिए।

बहन भी अपने भाई के आने की खुशी में तरह तरह के पकवान बनाकर तैयार रखती हैं। इसके लिए वह एक दिन पहले से ही तैयारियां करने में लग जाती हैं और कई तरह के पकवान बना लेती हैं। इसके बाद जब उसका भाई घर आता हैं तो वह उसकी बहुत आवभगत करती हैं और उसका सत्कार करती हैं। भाई भी अपनी बहन का हालचाल जानता हैं और उसके बारे में पूछता हैं।

फिर अपने भाई को आँगन में एक चौकी लगाकर उस पर बिठाया जाता हैं और पूजा की थाल तैयार की जाती हैं। इसमें रोली, मोली, चंदन, दिया व ज्योति, गुड़ इत्यादि होते हैं। बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और उस पर चावल लगाती हैं। इसके बाद वह अपने भाई को गुड़ खिलाती हैं और उसकी आरती उतारती हैं। जब वह भाई की आरती उतार लेती हैं तो उसके बाद वह उसकी कलाई पर मोली का धागा बांधती हैं। इसी के साथ वह अपने भाई के हमेशा स्वस्थ रहने की कामना करती हैं।

भाई भी अपनी बहन को आशीर्वाद देता हैं और उसकी कुशल क्षेम की प्रार्थना करता हैं। इस तरह दोनों ही एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं। तो बस इसी तरह भाई दूज का त्यौहार समाप्त हो जाता हैं। उसके बाद बहन अपने भाई को भरपेट भोजन करवाती हैं। भोजन करने के बाद और कुछ पल अपनी बहन के साथ व्यतीत करने के पश्चात भाई अपने घर चला जाता हैं।

भाई दूज का महत्व (Bhai Dooj ka mahatva)

अंत में हम भाई दूज के महत्व के ऊपर चर्चा करेंगे। अब यदि आप किसी त्यौहार को मनाने जा रहे हैं तो उसका उद्देश्य क्या हैं या फिर उसकी क्या महत्ता हैं, इसके बारे में भी जान लेना चाहिए। तो भाई दूज त्यौहार का संबंध भाई और बहन के रिश्ते से हैं, यह तो आपने जान लिया लेकिन इसे मनाने से किस उद्देश्य की प्राप्ति होती हैं। तो आज आप यह जान ले कि आज तो मोबाइल आ गया हैं लेकिन प्राचीन समय में इस तरह की कोई चीज़ नही हुआ करती थी।

ऐसे में एक बहन के विदा होने के बाद उनका हालचाल जानना अति आवश्यक होता था। अब बहन तो समय समय पर अपने मायके आ जाया करती थी और अपना हाल बता दिया करती थी किंतु उसके भाई का भी यह कर्तव्य बनता था कि वह वर्ष में कम से कम एक बार अपनी बहन के ससुराल जाकर वहां की स्थिति का आंकलन करें। ऐसे में इस पर्व को मनाने की शुरुआत हो गयी जिसमे बहन का भाई वर्ष में एक बार अपनी बहन के घर जाता था और वहां की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात लौटता था।

बस इसी कारण भाई दूज को मनाने की शुरुआत हो गयी और तब से लेकर आज तक यह पर्व दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाने लगा। इसी दिन सभी विवाहित बहाने अपने भाई की प्रतीक्षा करती हैं और जब वे आते हैं तो उनकी बहुत आवभगत करती हैं। साथ ही यह पर्व अविवाहित बहनों के द्वारा भी अपने भाई के साथ मनाया जाता हैं.

भाई दूज पर्व की जानकारी – Related FAQs

प्रश्न: भैया दूज का क्या महत्व है?

उत्तर: भैया दूज का अत्यधिक महत्व हैं क्योंकि यह भाई और बहन के प्रेम को दिखाने वाला पर्व होता हैं।

प्रश्न: भाई दूज की शुरुआत कैसे हुई?

उत्तर: जब यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए और उन्होंने अपनी बहन को यह वचन दे दिया कि वे हर वर्ष इसी दिन उसके घर आएंगे। बस तभी से भाई दूज की शुरुआत हुई।

प्रश्न: भाई दूज की परंपरा क्या है?

उत्तर: भाई दूज की परंपरा के अनुसार एक भाई को अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे तिलक लगवाना होता हैं।

प्रश्न: भाई दूज की थाली कैसे सजाते हैं?

उत्तर: भाई दूज की थाली में रोली, मोली, दिया, बाती, गुड़ इत्यादि रखें और अपने भाई की आरती उतारे।

तो इस तरह से आज आपने जाना कि भाई दूज का त्यौहार कब और कैसे मनाया जाता हैं। साथ ही आपने इससे जुड़ी कहानी और अन्य चीज़ों के बारे में जान लिया हैं। आशा हैं कि अब आपको इस पर्व का महत्व अच्छे से समझ में आ गया होगा।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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