संविधान संशोधन क्या है? और संविधान संशोधन की प्रक्रिया क्या है? | Constitution amendment in Hindi

Constitution amendment in Hindi :- किसी भी देश को चलाने का काम उसका संविधान करता है। संविधान वह चीज़ होती है जो उस देश के सभी नियमों, अधिनियमों और कानूनों को अपने में समाहित किये हुए होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि उस देश की प्रक्रिया कैसे चलेगी, सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारी, शासन, प्रशासन, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सभी मंत्री, सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, न्यायालय, मीडिया, आम नागरिक इत्यादि कैसे काम करेंगे और उनके क्या क्या दायित्व व अधिकार हैं, वह इसमें बताये गए होते (Constitutional amendment in Hindi) हैं।

एक तरह से हमारे देश का संविधान ही हमें अपने देश में कैसे रहना है, क्या करना है, क्या दंडनीय है इत्यादि के बारे में बताने का कार्य करता है। देश का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया था और तब से आज तक हम उसी संविधान के बताये गए दिशा निर्देशों पर चल रहे हैं। हालाँकि समय समय पर इसमें परिवर्तन करने अर्थात कुछ धाराओं में बदलाव लाने या कुछ धाराएँ नयी जोड़ने या हटाने की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम संविधान संशोधन के नाम से जानते (Samvidhan sanshodhan in Hindi) हैं।

ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से आपका यह जानना बहुत ही जरुरी हो जाता है कि आखिरकार यह संविधान संशोधन होता क्या है, इसकी प्रक्रिया कैसी होती है और इसमें क्या कुछ किया जा सकता है। इससे आपको संविधान को और करीब से जानने का अवसर मिलेगा। तो आइये जाने संविधान संशोधन के बारे में शुरू से लेकर अंत तक (Constitution amendment kya hai in Hindi) सबकुछ।

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संविधान संशोधन क्या है? (Constitution amendment in Hindi)

अब आपने यह तो समझ ही लिया है कि संविधान क्या होता है और उससे हमारा क्या अभिप्राय है। तो यह संविधान संशोधन क्या बला है और इसमें क्या कुछ हो सकता है, वह जानना भी आपका अधिकार है। भारत देश का संविधान बहुत ही बड़ा है और इसमें कई तरह की धाराएँ जोड़ी गयी है जो विभिन्न चीज़ों पर अपनी राय रखती है और उसके लिए नियम बनाती है। यह धाराएँ सन 1950 में लागू कर दी गयी थी और उस दिन को हम सभी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते (What is constitution amendment in Hindi) हैं।

Constitution amendment in Hindi

अब समय के साथ साथ कई नए प्रावधान जोड़ने पड़ते हैं और उन्हें कानून का रूप दिया जाता है। सामान्य रूप से कानूनों का बनाया जाना एक अलग प्रक्रिया है जो संसद के हर सत्र में होता है लेकिन जब संविधान की किसी धारा या भाग में परिवर्तन किया जाता है तो उसे हम संविधान संशोधन के नाम से जानते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि भारत सरकार संविधान के किसी भाग में बदलाव करती है तो उसे संविधान संशोधन का नाम दिया जाता (Samvidhan sanshodhan kya hai) है।

संविधान संशोधन के अंतर्गत संविधान में लिखी गयी किसी बात को हटाना हो सकता है, किसी नयी बात को जोड़ना हो सकता है तो किसी बात में परिवर्तन करना या उसे अपडेट किया जाना होता है। इसे यदि आप उदाहरण से समझना चाहते हैं या विस्तार से जानना चाहते हैं तो हम तीनों भागों में तोड़कर आपको समझा देते हैं, आइये जाने।

संविधान के किसी भाग को हटाना

संविधान संशोधन में पहला काम यह होता है कि इसमें पहले से लिखी गयी किसी चीज़ को हटा दिया जाना अर्थात किसी नियम या भाग को संविधान से निकाल दिया जाना। उदाहरण के तौर पर आप भारत सरकार के द्वारा हाल के ही वर्षों में लिया गया अभूतपूर्व निर्णय ले सकते हैं जो उन्होंने कश्मीर से धारा 370 को हटा कर लिया था। तो संविधान की धारा 370 जम्मू कश्मीर राज्य को अलग राज्य का दर्जा देने के साथ साथ अलग प्रावधान तक देती थी।

वर्ष 2019 में केंद्र की भाजपा सरकार ने संविधान की इस धारा को निरस्त कर दिया था और जम्मू कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह मान लिया गया था। इस तरह भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर संविधान संशोधन का कार्य किया था जो कि वर्षों वर्ष तक ऐतिहासिक व साहसिक निर्णय के रूप में याद रखा जाएगा।

संविधान में किसी भाग को जोड़ना

अब बात करते हैं संविधान संशोधन के अंतर्गत किसी नयी धारा या भाग को जोड़ा जाना। जिस तरह से संविधान में किसी धारा या भाग के काम के ना रहने के कारण उसे हटा दिया जाता है तो उसी तरह समय के साथ साथ इसमें कुछ चीज़ों या भाग या शब्दों को जोड़ भी लिया जाता है। इसके लिए आप कई दशकों पहले भारत सरकार में कांग्रेस के द्वारा उठाये गए संविधान संशोधन के कदम को लेकर जान सकते हैं।

जब देश का संविधान बना था तो उसमें समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता जैसे कोई शब्द नहीं थे। लेकिन बाद की कांग्रेस सरकार ने संसद के विशेष सत्र को बुलाकर संविधान में समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता शब्दों को जोड़ लिया था। आज हमारे देश में सेकुलरिज्म को लेकर जितना राजनीतिक द्वंद्व चलता है वह उस समय कांग्रेस सरकार के द्वारा संविधान में जोड़े गए धर्मनिरपेक्षता या सेकुलरिज्म शब्द की ही देन है।

संविधान के किसी भाग में परिवर्तन करना

यह जरुरी नहीं है कि संविधान संशोधन के अंतर्गत हमेशा किसी भाग को हटाया ही जाए या नए भाग को जोड़ा जाए, कभी कभार पहले से उपस्थित किसी भाग में कुछ परिवर्तन भी किया जा सकता है। ऐसे में संविधान के किसी भाग में परिवर्तन करने को भी संविधान संशोधन के नाम से ही जाना जाता है क्योंकि इससे संविधान के मूल भाग में बदलाव तो हो ही रहा है।

उदाहरण के रूप में यदि संविधान में देश के नागरिकों से कर लेने के रूप में तरह तरह के कर के प्रावधान लिखे गए हैं तो भारत सरकार ने उसको बदलकर उसे एक ही कर अर्थात वस्तु व सेवा कर के रूप में बदल दिया था। इसके तहत कर का प्रावधान तो वही रखा गया था क्योंकि देश के नागरिकों से कर तो लिया ही जाना था लेकिन उसके नाम व प्रक्रिया को बदलकर जीएसटी कर दिया गया था। तो यह भी संविधान संशोधन ही था जिसमें एक भाग में परिवर्तन करना शामिल था।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया क्या है? (Constitution amendment process in Hindi)

अब आपने यह तो जान ही लिया है कि संविधान संशोधन क्या होता है और इसके अंतर्गत भारत सरकार क्या कुछ कर सकती है। अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि जब संविधान संशोधन की बात आती है तो भारतीय संसद व भारत सरकार के पास क्या शक्तियां होती है और उसके तहत वह किस किस तरह के संविधान संशोधन कर सकती है और साथ ही उसके अंतर्गत किस तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक होता (Process of constitutional amendment in Hindi) है।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है। पहली प्रक्रिया के अनुसार इसे संसद के सामान्य बहुमत से पारित मान लिया जाता है जबकि दूसरी प्रक्रिया में संसद का विशेष बहुमत चाहिए होता है जबकि तीसरी और महत्वपूर्ण प्रक्रिया में जब संविधान के किसी महत्वपूर्ण भाग को बदलना होता (Samvidhan sanshodhan ki prakriya) है, उसमें संसद के विशेष बहुमत के साथ साथ देश की आधे से भी अधिक विधानसभाओं के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है। आइये एक एक करके इन सभी के बारे में जान लेते हैं।

संसद में साधारण बहुमत के आधार पर संविधान संशोधन

संविधान संशोधन की प्रक्रिया में सबसे पहली जो प्रक्रिया होती है, वह है देश की दोनों सर्वोच्च सदनों अर्थात लोकसभा व राज्य सभा से साधारण बहुत हासिल किया जाना। इसके लिए भारत सरकार संसद के दोनों पटलों पर संविधान संशोधन को रखती है। उसके बाद उस पर लंबी चर्चा आयोजित की जाती है और अंत में उस पर मत दिए जाते हैं। उस समय लोकसभा व राज्यसभा में उपस्थित कुल सदस्यों में से आधे से अधिक सदस्य उसके पक्ष में मतदान कर देते हैं तो मान लीजिये कि संविधान संशोधन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

उसके बाद तो उसे बस राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि इसके लिए लोकसभा के आधे से अधिक उपस्थित सदस्य की सहमति व उसके बाद राज्यसभा के आधे से अधिक उपस्थित सदस्यों की सहमति और अंत में राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है। इसके तहत सामान्य तरह के संविधान संशोधन ही किये जा सकते हैं जिनकी सूची इस प्रकार है:

  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व न्यायाधीश के वार्षिक वेतन व अन्य भत्तों में बढ़ोत्तरी करना।
  • देश के सभी राज्यों की सीमाओं का निर्धारण, नए राज्यों का निर्माण या दो या दो से अधिक राज्यों का मिलन इत्यादि से संबंधित मामले।
  • राज्य के अंदर विधान परिषद का गठन किया जाना या उसे निरस्त कर दिया जाना।
  • संघ के अंदर किसी नए राज्य का प्रवेश लिया जाना या उसे हटाया जाना।
  • संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाना ताकि बड़े निर्णय पारित करवाए जा सके।
  • केंद्र शासित प्रदेशों में नये मंत्री पदों का बनाया जाना या उन्हें हटाया जाना।

इस तरह इन सामान्य संविधान संशोधन के लिए संसद के साधारण बहुमत की ही आवश्यकता होती है। यदि भारत सरकार दोनों सदनों से साधारण बहुमत हासिल कर लेती है तो उसके बाद संविधान में किया गया यह बदलाव संविधान का ही अंग बन जाता है। इसके लिए किसी विशेष प्रावधान की आवश्यकता नहीं होती है।

संसद में विशेष बहुमत के आधार पर संविधान संशोधन

संविधान में कुछ भाग ऐसे होते हैं जो सामान्य ना होकर विशेष महत्व वाले होते हैं। यदि इनमें किसी तरह का परिवर्तन किया जाना है तो वह भारत सरकार यूँ ही नहीं कर सकती है। इसके लिए उसे लोक सभा और राज्य सभा में उपस्थित सभी सदस्यों में से दो तिहाई का समर्थन हासिल करना जरुरी होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि संसद में 100 सांसद बैठे हुए हैं तो सरकार को 67 सांसदों का समर्थन इसके लिए चाहिए होगा और वो भी दोनों सदनों से अलग अलग।

वहीं यदि संयुक्त अधिवेशन चल रहा है तो दोनों सदनों के कुल सांसदों में से भी दो तिहाई का बहुमत इसके लिए आवश्यक हो जाता है। इसी कारण इसे साधारण बहुमत ना कहकर विशेष बहुमत कहा जाता है। यदि किसी संविधान संशोधन को दोनों सदन दो तिहाई बहुमत से पास कर देते हैं तो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही वह संविधान संशोधन संविधान का अभिन्न अंग बन जाता है। इसके तहत संविधान के इन अंगों में संशोधन किया जा सकता है।

  • राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो अर्थात उसे अपने पद से निष्कासित करना हो।
  • देश के राज्यों को जो भी शक्तियां संविधान के अंतर्गत दी गयी है, उन्हें सीमित करना या उनमें किसी तरह का बदलाव किया जाना।
  • संविधान की सातवीं अनुसूची में शामिल सभी तरह के विषय भी इसके अंतर्गत आ जाते हैं।
  • संसद का विशेष सत्र बुलाकार विशेष अधिकार देने का प्रावधान भी इसके अंदर आ जाता है।
  • देश की भाषाओं को लेकर सभी तरह के निर्णय।
  • अनुसूचित जाति व जनजाति से संबंधित निर्णय जिसमें उनके अधिकार व अन्य मामले हो।

इनके अलावा भी कई तरह के अनुच्छेद और धाराओं में परिवर्तन किया जा सकता है जिनमें मुख्य अनुच्छेद 75, 97, 125, 148, 165 व 221 इत्यादि आती है। इस तरह से इन सभी में परिवर्तन करने, हटाने या कुछ नया जोड़ने के लिए संसद के विशेष बहुमत की जरुरत होती है।

संसद में विशेष व आधे से अधिक विधानसभाओं के साधारण बहुमत के आधार पर संविधान संशोधन

यह संविधान संशोधन की सबसे जटिल और लंबी चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इससे पूरे देश के संविधान में महत्वपूर्ण बदलाव किये जा सकते हैं। इससे ऊपर का कोई बदलाव नहीं है जो भारतीय संसद कर सकती है अर्थात यह संविधान में संशोधन करने वाले सर्वोच्च बदलाव होते हैं जिनकी शक्तियां स्वयं संविधान ने भारतीय संसद व सरकार को दी है।

इसके तहत लोकसभा और राज्य सभा के विशेष बहुमत अर्थात उपस्थित सांसदों में से दो तिहाई का बहुमत तो जरुरी होता ही है। उसके बाद यदि यह पास हो जाता है तो इसे भारत के सभी राज्यों की विधानसभाओं में भेजा जाता है। अब देश की कुल विधानसभाओं में से आधे से अधिक विधानसभाओं के द्वारा इसे साधारण बहुमत से पास कर दिया जाता है तो इस संविधान संशोधन को कानून मान लिया जाता है। हालाँकि अंत में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की आवश्यकता तो पड़ती ही है। इसके अंतर्गत ये वाले संविधान संशोधन आते हैं:

  • देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव किया जाना हो।
  • देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कार्यपालिका से संबंधित शक्तियों के नियम।
  • संघ से संबंधित उच्च न्यायालयों से संबंधित निर्णयों का लिया जाना।
  • संविधान में केंद्र व राज्य के बीच में जो विधायी संबंध स्थापित किये गए हैं, उनमें परिवर्तन।
  • संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों में किसी तरह का परिवर्तन किया जाना।
  • संसद में राज्यों का क्या प्रतिनिधित्व रहेगा, उसके बारे में।
  • संविधान संशोधन की प्रक्रिया में ही किसी तरह का संशोधन किया जाना।

इस तरह से देश की सरकार व संसद को इन नियमों या भाग में बदलाव करने के लिए संसद के विशेष बहुमत सहित आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं के साधारण बहुमत की जरुरत होती है। उसके बाद वह संविधान संशोधन भी संविधान का हिस्सा बन जाता है।

संविधान संशोधन की सीमायें

अब आप यह मत मान लें कि भारत सरकार दोनों सदनों के विशेष बहुमत और आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं के साधारण बहुमत के आधार पर संविधान में कुछ भी बदलाव करने का अधिकार रखती है। दरअसल इसमें स्वयं संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कुछ सीमायें लगायी गयी है और भारत सरकार किसी भी स्थिति में उसका उल्लंघन नहीं कर सकती है अर्थात संविधान में उस तरह का बदलाव नहीं कर सकती है।

इन्हें हम संविधान संशोधन की सीमायें भी कह सकते हैं। तो इसके तहत भारत सरकार संविधान की मूल भावना को नहीं बदल सकती है। इसी के साथ ही देश के नागरिकों के जो मूल अधिकार हैं जिन्हें हम मौलिक अधिकार भी कहते हैं, उसमें भी किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। तो यह दोनों ही संविधान संशोधन की सीमाओं के रूप में जानी जाती है जिसे किसी भी तरह से बदला नहीं जा सकता है, हटाया नहीं जा सकता है या इसमें कुछ नया भाग नहीं जोड़ा जा सकता है।

संविधान संशोधन क्या है – Related FAQs 

प्रश्न: संविधान में संशोधन का क्या अर्थ है?

उत्तर: जब संविधान की किसी धारा या भाग में परिवर्तन किया जाता है तो उसे हम संविधान संशोधन के नाम से जानते हैं।

प्रश्न: भारतीय संविधान में संशोधन कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: भारतीय संविधान में संशोधन तीन प्रकार के होते हैं जिनके बारे में हमने ऊपर के लेख में विस्तार से जानकारी दी है।

प्रश्न: संविधान में संशोधन कैसे होता है?

उत्तर: संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को हमने ऊपर के लेख में विस्तार से समझाया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: संशोधन किसे कहते हैं?

उत्तर: किसी कानून, कानूनी दस्तावेज़ या नियम में जब कोई बदलाव किया जाता है तो उसे संशोधन कहते हैं।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने संविधान संशोधन क्या होता है यह जान लिया है। साथ ही आपने जाना कि संविधान संशोधन को प्रक्रिया क्या होती है और संविधान संशोधन की सीमाएं क्या हैं इत्यादि। आशा है कि आपको संविधान संशोधन के बारे में जानकारी इस लेख के माध्यम से समझ आ गई होगी। फिर भी यदि कोई शंका आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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