Coronil Patanjali In Hindi – कोरोनिल दवा की पूरी जानकारी | ड्रग लाइसेंस प्रक्रिया

कोरोनिल दवा की पूरी जानकारी – हम सब जानते हैं कि चीन से निकली बीमारी कोरोना ने दुनिया भर को अपनी चपेट में लिया हुआ है। भारत में भी लाखों लोग इसके शिकार हुए हैं। हर कोई इस वायरस से निजात पाना चाहता है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक कोई भी देश इस मर्ज की वैक्सीन निकाल पाने में सफल नहीं हो पाया है। हालांकि कई देश वैक्सीन बनाने का दावा कर चुके हैं और ट्रायल सफल होने का भी दावा कर चुके हैं, लेकिन वह थोथा ही निकला है।

इसी बीच हमारे देश में हरिद्वार जिले में स्थित पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की ओर से उनके चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण और स्वामी रामदेव ने प्रेस कांफ्रेंस कर कोरोना वायरस की दवा तैयार करने का दावा किया। कोरोनिल नाम की इस दवा को लेकर विवाद खड़ा हो गया। दोस्तों, आज इस पोस्ट के जरिये हम आपको कोरोनिल दवा, इससे जुड़े विवाद, क्लीनिकल ट्रायल की प्रक्रिया आदि के संबंध में जानकारी देंगे। आइए शुरू करते हैं-

कोरोनिल दवा को लेकर क्या दावा किया गया

Coronil Patanjali In Hindi - कोरोनिल दवा की पूरी जानकारी | ड्रग लाइसेंस प्रक्रिया

हरिद्वार में प्रेस कांफ्रेंस कर योगगुरु स्वामी रामदेव ने कोरोनिल टेबलेट और श्वासारि वटी दवा पेश की। उन्होंने मीडिया के सामने दावा किया कि इससे कोरोना मर्ज का सौ प्रतिशत इलाज संभव है। उन्होंने इसके क्लीनिकल ट्रायल और मरीजों पर इसका सौ प्रतिशत सकारात्मक प्रभाव होने का भी दावा किया। इसी दावे पर बाद में उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया गया।

कोरोनिल दवा बनाने में इन चीजों का इस्तेमाल

स्वामी रामदेव ने दावा किया कि आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल को बनाने में केवल आयुर्वेदिक जड़ी बूटी का इस्तेमाल किया गया है। इसमें मुलैठी, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वासारि का इस्तेमाल किया गया है। गिलोय में पाए जाने वाले टिनोस्पोराइड और अश्वगंधा में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व और श्वासारि के रस के प्रयोग से यह दवा बनी है। यह तत्व कतई हानिकारक नहीं। ऐसे में इनके इस्तेमाल से शरीर को लाभ ही होगा। खास तौर पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में।

कोरोनिल दवा इस्तेमाल में किस तरह असरकारी बताई गई

पतंजलि के स्वामी रामदेव का कहना था कि यह औषधियां मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं और कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ती हैं। कोरोना वायरस क्योंकि फेफड़ो की मूल इकाई एल्वियोलाई की कार्यप्रणाली को बाधित करने की कोशिश करता है। ये औषधियां इसे रोकती हैं। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर वायरस को खत्म करती हैं।

क्लीनिकल ट्रायल में कितना समय लगता है

स्वामी रामदेव के क्लीनिकल ट्रायल के दावे क्यों कठघरे में थे। इसकी एक अपनी बड़ी वजह है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ के अनुसार किसी भी दवा को विकसित करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल और बाजार में उतारने में कम से कम तीन साल का समय लगता है। विशेष हालात में यह अवधि कम हो सकती है, लेकिन दस महीने से एक साल का समय लगता ही है। ऐसे में तुरत फुरत स्वामी रामदेव कै दवा बाजार में उतार देने पर विवाद लाजिमी माना जा रहा था।

दवा को मंजूरी की एक अपनी अलग प्रक्रिया

ड्रग अप्रूवल प्रोसेस है। दवा अनुमति प्रक्रिया भारत में है। क्लीनिकल ट्रायल के लिए आवेदन, ट्रायल कराना, मार्केटिंग आथोराइजेशन के लिए आवेदन करना पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटेजी जैसे चरण हैं। हर देश में यह प्रक्रिया अलग है। भारत में यह कार्य औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 इसे नियमित करता है। दोस्तों, आइए आपको बताते हैं कि दवा मंजूरी की यह प्रक्रिया क्या है? इसके कौन कौन से चरण हैं। यह इस प्रकार से हैं-

  • दवा को मंजूरी के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेशन यानी आईएनडी को सीडीएससीओ के पास जमा करना होगा
  • न्यू ड्रग डिवीजन इस आवेदन की जांच करेगा।
  • आईएनडी समिति इसका अध्ययन और समीक्षा करेगी।
  • इसके बाद दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया यानी डीजीसीआई को भेजा जाता है।
  • वहां से आवेदन को मंजूरी मिलने के बाद क्लीनिकल ट्रायल कराया जा सकता है।
  •  क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद फिर से सीडीएससीओ के पास आवेदन जाता है।
  •  यह आवेदन नई दवा के रजिस्ट्रेशन के लिए होता है।
  • फिर से डीजीसीआई इसे रिव्यू करते हैं।
  • सभी मानकों पर खरा उतरने के बाद आवेदक कंपनी को लाइसंस जारी किया जाता है।
  •  यदि ऐसा नहीं होता तो डीजीसीआई इसे रद कर देता है।
  • और यदि नियमों का पालन नहीं किया जाता तो कानूनी कार्रवाई भी संभव है।

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दवा लांच करने के बाद कुछ घंटे बाद ही लगी रोक

रामदेव पर आरोप है कि उन्होंने दवा मंजूरी की ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। आपको बता दें कि दवा लांच करने के कुछ घंटे बाद ही आयुष मंत्रालय की ओर से इस दवा के प्रचार प्रवार और बेचे जाने पर रोक लगा दी गई। मंत्रालय का कहना था कि दवा उसके संज्ञान में नहीं है। मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से दवा का पूरा नाम, इसके निर्माण में इस्तेमाल गए तत्वों की पूरी जानकारी मांगी।

इसके साथ ही इसके सैंपल साइज, दवा का टेस्ट जहां किया गया था, उस लैब का नाम, आचार समिति की मंजूरी का भी पूरा ब्योरा तलब किया। आयुष मंत्रालय के साथ ही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान यानी इंडियन कौंसिल आफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने भी इस तरह की दवा की जानकारी होने से इनकार किया।

पतंजलि बोला-कानूनी रूप से कोरोना की दवा नहीं कहा

पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के चेयरमैन और रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण ने आयुष मंत्रालय को सारी जानकारी दे दिए जाने का दावा किया। उनका कहना था कि मामले मे संवादहीनता में रही। क्लीनिकल ट्रायल के सभी मानक पूरे किए जाने का दावा किया। कहा कि इस संबंध में जानकारी आयुष मंत्रालय को दी गई थी। उनका दावा था कि पतंजलि ने कोरोना के लिए क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने से पहले कोरोनिल टेबलेट को चिकित्सीय या कानूनी रूप से कोरोना की दवा नहीं कहा है।

वहीं रामदेव ने कहा कि कोरोना वायरस की दवा की इस किट को डबल लेवल ट्रायल पर खरा उतरने के बाद तैयार किया गया। कहा कि क्लीनिकल कंट्रोल के अध्ययन के साथ ही इसका क्लीनिकल ट्रायल भी किया गया।

जयपुर में ट्रायल का दावा, राजस्थान सरकार का नोटिस

दोस्तों, पतंजलि का दावा था कि ट्रायल जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यट आफ मेडिकल साइंस यानी निम्स में किया गया। राजस्थान सरकार ने निम्स को नोटिस देकर ट्रायल संबंधी जानकारी मांगी। कहा कि न तो सरकार को इसकी जानकारी है और न ही अस्पताल ने इस संबंध में इजाजत मांगी। वहीं, अस्पताल के चेयरमैन बीएस तोमर ने कहा कि पतंजलि और रामदेव का दावा गलत है। कहा कि उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग किया था, लेकिन यह कोई दवा या इलाज नहीं। उन्होंने कोरोनिल बनाने में पतंजलि के सहयोग से इन्कार किया।

उत्तराखंड सरकार ने भी मामले से झाड़ा पल्ला

उत्तराखंड सरकार ने भी मामले से पल्ला झाड़ लिया है। वह भी तब, जबकि केंद्रीय मंत्रालय ने दवा पर रोक लगाई ।तो उत्तराखंड राज्य के अयुष विभाग के अनुसार पतंजलि को इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था। कोरोना की दवा कैसे बन गई और दवा की किट का विज्ञापन क्यों किघ्या गया, इसका पता लगाया जाएगा। उसने भी पतंजलि को नोटिस देकर इस संबंध में जवाब मांगा। हालांकि उत्तराखंड राज्य की सरकार ने इस दवा पर किसी तरह की रोक अभी तक नहीं लगाई है। उसका नोटिस केवल इसी बात पर आधारित है कि उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर का लाइसेंस दिया था, दवा कैसे बनाई गई।

महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार ने लगाई पाबंदी

कोरोनिल पर महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार ने पाबंदी लगा दी है। महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने दवा के ट्रायल के बारे में अभी कोई खरी जानकारी न होने की बात कहीं। वहीं, राजस्थान सरकार ने कहा कि महामारी के उपचार कीदवा के तौर पर किसी भी औषधि की बिक्री करने पर बेचने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सोशल मीडिया पर छाया कोरोनिल मसला

साथियों, जाहिर है कि मामला स्वामी रामदेव से जुड़ा था तो कईघ् लोगों ने इसे राजनीतिक रंग भी दे दिया। यह मसला सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त तरीके से छाया रहा। कोरोनिल को लेकर स्वामी रामदेव के समर्थक और विपक्षी आमने सामने आ गए। कुछ इसे स्वदेशी आयुर्वेद का विरोध बताने लगे तो कुछ स्वामी रामदेव पर कोरोना काल में व्यापार को प्रमुखता देने पर उनके खिलाफ नजर आए। उन्होंने उन पर आपदा को अवसर में बदलने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ज्ञान को भी तोड़ने मरोड़ने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि स्वामी का स्वदेशी से कोई लेना-देना नहीं। वह आयुर्वेद का नाम लेकर केवल अपने कारोबार को चमकाना चाहते हैं।

कुछ लोग इसलिए भी दवा का विरोध कर रहे थे, क्योंकि उनका आरोप था कि स्वामी रामदेव ने नियम कानून को ताक पर रखते हुए इस दवा को बाजार में उतारा है। कई प्रदेशों की सरकारों पर भी स्वामी रामदेव को संरक्षण देने का आरोप लगा। खुद स्वामी रामदेव एक एक मुद्दे पर सफाई से जुड़ा बयान जारी करते रहे। हालांकि विवाद अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है। इस पर बहस-मुबाहिसा कायम है।

कोरोनिल विवाद से पतंजलि को लाभ

दोस्तों, ढेरों ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि जितना बड़ा विवाद कोरोनिल दवा को लेकर उठ खड़ा हुआ है, उससे पतंजलि का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फायदा ही हुआ है। कोरोनिल का नाम लोगों की जुबान पर आ गया है। और यह कोरोनिल का प्रचार ही है। उनका मानना यह है कि लाइसेंस दवा के नाम पर लिए जाने या ना लिए जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। जो लोग कोरोना संक्रमण से ग्रसित हैं या कोरोना संक्रमण की आशंका में जी रहे हैं, जिन्हें बुखार सर्दी जुकाम जैसे लक्षण हो गए हैं वह निश्चित रूप से इस दवा का प्रयोग बीमारी से छुटकारा पाने के लिए करेंगे।

ठीक उसी तरह, जिस तरह वे पतंजलि के अन्य आयुर्वेद के उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चाहे वह आटा हो, दंत मंजन हो या फिर कपड़ों की रेंज। स्वदेशी उत्पाद के नाम पर पतंजलि का कारोबार बीते सालों में बहुत फला फूला है। उत्तराखंड की भाजपा सरकार भी इस बढ़ोतरी में बहुत सहायक रही है।

दोस्तों, यह थी कोरोनिल पर सारी जानकारी। यदि आप इसी तरह के किसी अन्य विषय पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो उसके लिए हमें नीचे दिए गए कमेंट बाक्स में कमेंट करके बतासकते हैं। यदि आप किसी विशेष योजना पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो हमें बता सकते हैं। उम्मीद है कि हमारी ओर से दी गई जानकारी आपके काम आ रही होगी। आपकी प्रतिक्रियाओं और सुझावों का हमें इंतजार है। ।।धन्यवाद।।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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