Dabav samuh kya hai:- भारत देश में एक शासन व्यवस्था चलती है जो राज्य से लेकर केंद्र स्तर पर संविधान के अनुसार काम करती है। यहाँ कई तरह के स्तंभ होते हैं जो अलग अलग तरह का काम करते हैं। इसमें विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उन कानून का पालन करवाती है तो वहीं न्यायपालिका का कार्य कानून का उल्लंघन करने वालों पर कार्यवाही करने का होता है। वहीं उन कानूनों के बारे में प्रजा को बताना पत्रकारिता का कार्य होता (Dabav samuh kise kahate hain) है।
आपने इन चार स्तंभ के नाम तो सुने होंगे लेकिन क्या आपने एक पांचवें स्तंभ दबाव समूह का नाम सुना है? आपने प्रत्यक्ष तौर पर तो इसका नाम नहीं सुना होगा लेकिन अलग अलग संघ, संगठन या संस्था के तौर पर इसका नाम अवश्य सुना होगा। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह दबाव समूह बहुत ही ज्यादा अहम हो गए हैं क्योंकि इनकी कार्यशैली और अन्य निर्णय सभी चार स्तंभों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करते हैं। कई बार तो यह चार स्तंभ भी दबाव समूह के कारण हिल जाते हैं या अपने निर्णय पलट देते (Dabav samuh ka arth bataiye) हैं।
अब यह दबाव समूह होते क्या हैं और किस तरह से काम करते हैं, यही सबसे बड़ा प्रश्न उभर कर सामने आता है। आज के इस लेख में हम आपके साथ दबाव समूह के बारे में ही विस्तृत बात करने वाले हैं। इसके लिए आपको यह लेख पूरा और ध्यान से पढना होगा ताकि आपको दबाव समूह के बारे में समूची जानकारी हो जाए। आइये जाने यह दबाव समूह आखिरकार होते क्या (Dabav samuh ka arth) हैं।
दबाव समूह क्या है? (Dabav samuh kya hai)
आज के समय के अनुसार दबाव समूह का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है और यह प्रासंगिक भी होते जा रहे हैं। लोकतंत्र को ठीक से काम करवाने के लिए सही दबाव समूह का होना भी बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि हम सरकार तो पांच वर्ष में एक बार चुन लेते हैं लेकिन इन पांच वर्षों के दौरान सरकार तक अपनी बात पहुँचाना इन्हीं दबाव समूह के माध्यम से किया जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि हम कई राजनीतिक दलों में से किसी एक दल को अपना समर्थन देकर उसकी सत्ता को अगले पांच वर्षों के लिए बिठा देते (Dabav samuh kya hota hai) हैं।
अब इन पांच वर्षों के दौरान वह सरकार जो भी निर्णय ले, उसके लिए यह जरुरी नहीं है कि नागरिक भी उसी का समर्थन करते हो। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि सरकार या कार्यपालिका या अन्य किसी स्तंभ का निर्णय नागरिकों के हित में नहीं है या वह इसका विरोध करती है तो वह एक नागरिक के बलबूते या बंटे हुए आधार पर नहीं हो सकता है। इसके लिए प्रजा को एक संगठन बनाना होता है और उसी के आधार पर ही वह वर्तमान सरकार या कार्यपालिका पर दबाव डालकर अपना काम करवाती (Dabav samuh kya hai in Hindi) है।
एक तरह से दबाव समूह वह समूह या संगठन होता है जो सरकार तक या शीर्ष तक अपनी बात पहुंचाता है। इसे हम यदि रामायण के युग में लेकर जाएं तो भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद जब वे वापस अयोध्या पहुंचे थे तो उन्होंने अयोध्या का पदभार ग्रहण कर लिया था। अब वहां राम राज्य चल रहा था और वे अच्छे से अपना शासन चला रहे थे। किन्तु इसी बीच अयोध्या की प्रजा के द्वारा वहां की सत्ता पर दबाव बनाया गया जिसके तहत माता सीता का त्याग करना सम्मिलित (Dabav samuh kise kehte hain) था।
अब श्रीराम चाहते तो उन्हें अनदेखा कर सकते थे लेकिन दबाव समूह बहुत ही ज्यादा प्रभावी था और उन्हें उसके आगे झुकना ही पड़ा था। यह दबाव समूह का ही परिणाम था कि श्रीराम को आखिरकार प्रजा के हितों को ध्यान में रखकर और राजधर्म का सम्मान करते हुए माता सीता का त्याग करना पड़ा था। इसके बाद माता सीता को वनवास दे दिया गया था और वे महर्षि वाल्मीकि आश्रम की ओर प्रस्थान कर गयी (Dabav samuh ka arth kya hai) थी।
दबाव समूह का उदाहरण (Dabav samuh ka udaharan)
अब हम आपके सामने दबाव समूह के कुछ प्रत्यक्ष उदाहरण रखने जा रहे हैं। इन्हें जानकर आप यह समझ पाएंगे कि आखिरकार दबाव समूह किस तरह से काम करते हैं। तो इसे आप किसी कॉलेज में होने वाले छात्र संघ के चुनावों से जोड़कर देख सकते हैं। किसी भी कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव यूँ ही नहीं करवाया जाता है बल्कि यह उस कॉलेज का दबाव समूह कहा जा सकता (Dabav samuh example in Hindi) है।
उस कॉलेज से जुड़े सभी निर्णय वहां की प्रबंधन कमेटी अर्थात मैनेजमेंट लेता है। बाकि के निर्णय वहां के प्रधानाचार्य, अध्यापक इत्यादि के द्वारा ही लिए जाते हैं लेकिन यदि कोई निर्णय छात्रों के लिए सही नहीं होता है या उन्हें गलत रूप में प्रभावित करता है तो यही छात्र संघ कॉलेज प्रबंधन पर अपना दबाव बनाता है और उन्हें अपना निर्णय बदलने के लिए विवश कर देता है। तो बस इसी तरह की भूमिका ही दबाव समूह के द्वारा अपनाई जाती है।
दबाव समूह के प्रकार (Dabav samuh ke prakar)
अब आपने दबाव समूह क्या होते हैं या दबाव समूह किसे कहा जाता है, इसे तो जान लिया है लेकिन जब तक आप दबाव समूह के प्रकारों के बारे में नहीं जान लेंगे तब तक आपको दबाव समूह की परिभाषा के बारे में सही से ज्ञान नहीं हो पायेगा। ऐसे में अब हम आपके सामने दबाव समूह किस किस तरह के हो सकते हैं या उस रूप में इनकी क्या कुछ भूमिका हो सकती है, इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं। आइये जाने दबाव समूह के प्रकारों के बारे में।
ट्रेड यूनियन
हमारे देश में कई तरह की ट्रेड यूनियन है। भारत में कई तरह के व्यापार होते हैं और उसके लिए अलग अलग यूनियन या संगठन बनते रहते हैं। अब यह यूनियन किसी भी तरह की हो सकती है जो अलग अलग क्षेत्रों में होती है। उदाहरण के तौर पर ट्रक यूनियन, सब्जी व्यापार की यूनियन इत्यादि। इस तरह की यूनियन एक राज्य या देश पर आधारित होती है जिनका प्रभाव पूरे देश में या राज्य में होता है। यह बहुत ही संस्थागत तरीके से काम करती है।
व्यापारिक संगठन
अब इस तरह का व्यापारिक संगठन एक शहर या जिले में विभिन्न क्षेत्र के व्यापारियों के द्वारा बनाया गया संगठन होता है। उदाहरण के तौर पर आपके शहर में सैकड़ों लोग चाय पत्ती को बेचने का काम करते हैं तो वे अपना एक संगठन बना लेते हैं जिसे चाय व्यापार संघ का नाम दिया जा सकता है। ठीक इसी तरह अलग अलग तरह का व्यापार करने वाले लोग अपने हितों की रक्षा करने के लिए अपने अपने शहर में एक संगठन बना लेते हैं।
धार्मिक संगठन
इस तरह का संगठन बनाना भारत देश में आम बात है। हम आपको कुछ चुनिंदा और बड़े धार्मिक संगठनों के नाम बताएँगे तो आप भी समझ जाएंगे। अब भारत देश में प्रमुख धार्मिक संगठन के नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, इत्यादि है। यहाँ इस बात का ध्यान रखें कि यह राजनीतिक पार्टी नहीं होती है लेकिन यह राजनेताओं पर दबाव बनाने के उद्देश्य से बनाये गए दबाव समूह होते हैं।
जाति संगठन
जिस प्रकार हमारे देश में धार्मिक संगठन होते हैं जो दबाव समूह का काम करते हैं, ठीक उसी तरह विभिन्न जातियों के द्वारा भी अपने अपने संगठन बनाये जाते हैं। अब यह संगठन हर शहर में भी अलग अलग जातियों के द्वारा बनाये जाते हैं तो देशव्यापी स्तर पर भी इन्हें बनाया जाता है। शहर में इन्हें ब्राह्मण सभा, अग्रवाल सभा, अरोड़ा ट्रस्ट इत्यादि के नाम से बनाया जाता है तो वहीं देश भर में इसे दलित संगठन, अखिल भारतीय राजपूत संगठन या ब्राह्मण संगठन इत्यादि के नाम से बनाया जा सकता है।
भाषा का संगठन
धर्म व जाति के अलावा हमारे देश में कई तरह की भाषाएँ भी बोली जाती है जो अपनी अपनी भाषा के उत्थान के लिए कार्य करती है और विभिन्न संस्थाओं और सरकारों पर भाषा के उत्थान के लिए दबाव बनाने का भी काम करती है। देश के हरेक राज्य में अपनी अपनी भाषा के दबाव समूह हैं जैसे कि तमिल भाषा का संगठन, राजस्थानी भाषा का दबाव समूह इत्यादि।
छात्र संगठन
इसका उदाहरण तो हमने आपको ऊपर ही दे दिया है। तो यह भी एक दबाव समूह का ही काम करते हैं जो हर कॉलेज व यूनिवर्सिटी में होते हैं। इसी के साथ ही देश के स्तर पर भी यह दबाव समूह बनाये जाते हैं जिन्हें आप राजनीतिक पार्टियों के द्वारा बनाये गए संगठन भी कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर दो प्रमुख छात्र संगठन के नाम ABVP व NSUI है जो क्रमशः भाजपा व कांग्रेस के दबाव समूह हैं।
प्रचार संगठन
यह भी दबाव समूह का ही एक समूह होते हैं जो प्रचार प्रसार करने का काम करते हैं। इन्हें किसी के भी द्वारा बनाया जा सकता है जो उस कंपनी या काम के लिए प्रचार प्रसार करने का काम करते हैं। आज के समय में इस तरह के दबाव समूह बहुत ही ज्यादा हो गए हैं और उनके द्वारा किसी भी कंपनी का उनके बनाये उत्पाद या सेवाओं का जमकर प्रचार प्रसार भी किया जाता है।
प्रोफेशनल ग्रुप
हमारे देश में कई तरह के प्रोफेशनल काम करने के लिए या उन पर दबाव बनाने के लिए भी दबाव समूह बनाये गए होते हैं। उदाहरण के तौर पर वकीलों का दबाव समूह या आईएएस अधिकारियों का दबाव समूह या सॉफ्टवेयर इंजीनियर का दबाव समूह इत्यादि होते हैं। ऐसे में कोई निर्णय इनके विरुद्ध होता है या ऐसा कुछ होने वाला होता है तो इन दबाव समूह के द्वारा संबंधित सरकार या संस्था के विरुद्ध आंदोलन किया जाता है।
याचिकाकर्ता
इस तरह के दबाव समूह भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर दबाव डालने के लिए बनाए जाते हैं। इन्हें हम प्रोफेशनल लोगों का संगठन भी कह सकते हैं जिसके अंतर्गत वकील से लेकर प्रभावशाली व्यक्ति तक शामिल होते हैं। इनके द्वारा समय समय पर न्यायालय में किसी ना किसी मामले के लिए याचिका डाली जाती रहती है और उसके लिए काम किया जाता है। उदाहरण के तौर पर राम मंदिर के लिए भी इसी तरह के दबाव समूह ने न्यायालय में याचिका लगायी थी और काम किया गया था।
किसान संगठन
इसके बारे में तो शायद ही आपको बताने की आवश्यकता पड़े क्योंकि कुछ समय पहले तक किसान संगठनों ने दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों में तीन किसान कानूनों को रद्द करवाने के लिए जो उत्पात व उपद्रव मचाया था उसे पूरी दुनिया ने ही देखा था। ऐसे में हमारे देश में किसानों के बहुत से दबाव समूह बनाये गए हैं जो अलग अलग क्षेत्रों या राज्यों या देश के अंतर्गत काम करते हैं।
तत्काल संगठन
इस तरह के दबाव समूह भी आज के समय में बहुत देखने को मिल रहे हैं। यदि सरकार या किसी के द्वारा कोई ऐसा निर्णय लिया जाता है जो किसी एक वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है और उनका कोई संगठन या दबाव समूह नहीं बना हुआ तो उनके द्वारा एक तत्काल दबाव समूह बनाया जाता है ताकि उसका विरोध किया जा सके। यह केवल अपनी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाये गए दबाव समूह होते हैं जो उसकी पूर्ति होते ही समाप्त हो जाते हैं।
समाज सेवा संगठन
इस तरह के दबाव समूह तो बहुत ही आम हैं और इन्हें हम समाजसेवी या NGO इत्यादि भी कह सकते हैं। भारत देश में इस तरह के हजारों दबाव समूह मौजूद हैं जो अलग अलग क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं।
इस तरह से आपको अलग अलग तरह के और भी कई दबाव समूह देखने को मिल जाएंगे। कुल मिलाकर जो किसी एक चीज़ को ध्यान में रखकर बनाया गया संगठन होता है और वह राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से भाग ना लेकर राजनेताओं को प्रभावित करता है, उसे ही हम दबाव समूह के नाम से जानते हैं।
दबाव समूह के कार्य (Dabav samuh ke karya)
अब हमें शायद ही आपको दबाव समूह के कार्यों के बारे में अलग से समझाने की आवश्यकता पड़े क्योंकि ऊपर आपने जो दबाव समूह के विभिन्न प्रकारों के बारे में पढ़ा है, उसे पढ़कर अवश्य ही आप दबाव समूह की कार्यप्रणाली और कार्यशैली के बारे में समझ गए होंगे। फिर भी हम आपके समक्ष दबाव समूह के क्या कुछ कार्य हो सकते हैं या ये किस तरह से कार्य करते हैं, उसके बारे में एक तथ्यात्मक विश्लेषण रख देते हैं।
- दबाव समूह का मुख्य कार्य राजनीति में अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करना होता है। ये भारत व राज्य सरकार की नीतियों व योजनाओं की समीक्षा करते हैं। जिस भी समूह या संगठन से वह दबाव समूह जुड़ा हुआ होता है और यदि कोई निर्णय उनके विरुद्ध आता है या उनके लिए सही नहीं होता है तो वे उसके विरुद्ध अपनी आवाज उठाते हैं।
- यदि आवश्यकता पड़ती है तो इन दबाव समूह के द्वारा आंदोलन किये जाते हैं। उदाहरण के तौर पर आप हमारे देश और दुनिया में भी होते हुए कई तरह के आंदोलनों को देख सकते हैं। हालाँकि जो आंदोलन राजनीतिक पार्टियों के द्वारा किये जाते हैं, उन्हें इसमें नहीं गिना जाता है।
- आवश्यकता पड़ने पर यह दबाव समूह न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाते हैं। उनके द्वारा कोर्ट में याचिकाएं लगायी जाती है, लोगों को भेजा जाता है, केस लड़ा जाता है और फंडिंग करवायी जाती है।
- दबाव समूह का कार्य अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत लोगों की सहायता करना और उन्हें सरकारी नीतियों से अवगत करवाना भी होता है।
- उनके द्वारा अपने संगठन के लोगों को उचित सुविधाएँ उपलब्ध करवाना, उनकी आवाज को उठाना और उसके लिए निरंतर कार्य करना शामिल होता है।
- यदि कोई अन्य दबाव समूह के साथ अन्याय हो रहा है और वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें भी प्रभावित करता है या उनका कोई काम उनके द्वारा होता है तो वह उनके लिए भी आवाज उठा सकता है।
- इसका काम केवल सरकार पर दबाव बनाना ही नहीं होता है बल्कि यह उनका सहयोग भी करता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि उनके समूह या संगठन के लिए क्या सही हो सकता है, इसके बारे में सरकार को अवगत करवाना और अपने लोगों को मनाना भी इसी दबाव समूह का ही कार्य होता है।
- सरकार के साथ निरंतर बातचीत करना और अपने समूह के लोगों पर दबाव डालने का कार्य भी इसी दबाव समूह के द्वारा ही किया जाता है। इस तरह से यह दबाव किसी के भी ऊपर हो सकता है, फिर चाहे वह सरकार हो या अन्य दबाव समूह या अपने ही समूह के लोग इत्यादि।
इस तरह से एक दबाव समूह के कई कार्य हो सकते हैं लेकिन मुख्य रूप से उसे अपने लोगों के लिए और उनकी भलाई के लिए निरंतर कार्य करना होता है। इसी कारण ही एक दबाव समूह का निर्माण किया जाता है।
दबाव समूह की विशेषता (Dabav samuh ki visheshta)
अब हम बात करते हैं दबाव समूह की विशेषताओं के बारे में और इन्हें क्यों ही बनाया जाता है, इसके बारे में। तो यहाँ हम आपको बता दें कि यदि देश के विभिन्न क्षेत्रों में दबाव समूह नहीं होंगे तो सरकारी अंकुश बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। यदि किसी देश में दबाव समूह नहीं होते हैं तो वहां से धीरे धीरे लोकतंत्र खत्म होने लगता है और राजतंत्र स्थापित हो जाता है। आपको उन देशों में कोई दबाव समूह नहीं मिलेगा जहाँ पर तानाशाही चलती है जैसे कि चीन, रूस, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया इत्यादि क्योंकि वहां पर तानाशाह सरकार के द्वारा सभी तरह के दबाव समूह को कुचल दिया जाता है।
वहीं लोकतंत्र वाले देशों में दबाव समूह होते हैं जो वहां की सरकार और प्रशासन की नीतियों को प्रभावित करने का काम करते हैं। ऐसे में चाहे सरकार कितने भी वर्ष राज करे या सत्ता में रहे लेकिन उसे दबाव समूह की बात भी सुननी पड़ती है अन्यथा आंदोलन होते हैं और सत्ताएं हिल जाती है। इसलिए दबाव समूह का महत्व किसी से छुपा हुआ नहीं है और यह बहुत ही ज्यादा आवश्यक भी होते हैं।
दबाव समूह क्या है – Related FAQs
प्रश्न: दबाव समूह से क्या समझते हैं?
उत्तर: दबाव समूह वे होते हैं जो भारत की राजनीति और प्रशासन पर दबाव बनाने का काम करते हैं। इनके माध्यम से सरकार को जनता के हित में कार्य करने या निर्णय लेने के लिए दबाव डाला जाता है।
प्रश्न: दबाव समूह का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर: दबाव समूह का मुख्य कार्य सरकार को अपने हित में निर्णय लेने के लिए दबाव देना होता है। वह दबाव समूह जिस भी चीज़ के लिए बना है, उसके हित के लिए वह सरकार पर दबाव डालने का काम करता है।
प्रश्न: दबाव समूह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर: दबाव समूह कितने भी तरह के हो सकते हैं और यह अपने अपने क्षेत्र से संबंधित होते हैं। उदाहरण के तौर पर किसान संगठन, छात्र संगठन, ट्रेड यूनियन, व्यापारिक समूह इत्यादि।
प्रश्न: दबाव समूह का उदाहरण क्या है?
उत्तर: दबाव समूह का सबसे बढ़िया उदाहरण आप किसान संगठनों से समझ सकते हैं। उन्होंने कुछ वर्ष पहले दिल्ली की सीमाओं पर जो धरना दिया था और भारत सरकार को निर्णय लेने पर विवश होना पड़ा था, वह उनके दबाव का ही एक उदाहरण है।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि दबाव समूह क्या है। साथ ही हमने आपको दबाव समूह के बारे में अन्य जानकारी भी इस लेख के माध्यम से दी है जैसे कि दबाव समूह के प्रकार क्या हैं इसके कार्य क्या हैं और इसकी विशेषता क्या है इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई शंका आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।