डेट फंड का क्या मतलब होता है? | डेट फंड के प्रकार व यह किस तरह काम करता है?

|| डेट फंड का क्या मतलब होता है? | Debt fund meaning in Hindi | Debt fund kya hota hai | Debt fund ke fayde | Debt fund ke bare mein jankari | Who should invest in debt fund | डेट फंड के प्रकार | डेट फंड किस तरह काम करता है? ||

Debt fund meaning in Hindi :- जिस किसी को 3 साल या उससे कम समय के लिए पैसे जमा करने होते हैं, तो वो अक्सर फिक्स्ड डिपॉजिट की तरफ रुख करते हैं। इसका कारण एफडी पर मिलने वाली सुरक्षा और सुरक्षित रिटर्न है। इसके साथ ही आज के समय में इनके साथ ही म्यूचुअल फंड में भी इन्वेस्ट करने लगे हैं। इसी में एक फंड का नाम डेट फंड होता (Debt fund kya hota hai) है। एफडी की तरह ही डेट फंड पर मिलने वाली रिटर्न पर भी बाजार के उतार चढ़ाव का बहुत कम फर्क पड़ता है। एफडी के मुकाबले डेट फंड पर मिलने वाली रिटर्न थोड़ी अधिक ही होती है।

इसलिए जो व्यक्ति एक निश्चित आय का साधन ढूंढने के लिए एफडी में पैसे जमा करते हैं, उनको डेट फंड के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी (Debt fund ke fayde) है। डेट फंड क्या होता है, किस तरह से काम करता है और इसके किस तरह के फायदे हैं, ये सब जान लेने से वो जान सकेंगे की एफडी के मुकाबले डेट फंड में पैसा लगाना भी फायदे का सौदा हो सकता है। परंतु ऐसे लोग अक्सर जानकारी के अभाव में रह जाते है। उनकी इसी विषय में नॉलेज को बढ़ाने के लिए इस लेख में हम डेट फंड से जुड़ी सारी चर्चा करेंगे।

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डेट फंड का क्या मतलब होता है? (Debt fund meaning in Hindi)

बाजार में निवेश करने के आपको बहुत से साधन मिल जायेंगे। उन्ही सभी साधनों में से एक म्यूचुअल फंड भी होता है। अब जो म्यूचुअल फंड फिक्स्ड इनकम स्कीम्स में पैसे लगाते हैं उन्हीं को डेट फंड कहते हैं। अंग्रेजी के डेट शब्द का हिंदी में अर्थ किसी को उधार देना होता (Debt fund ke bare mein jankari) है। इसलिए डेट फंड जब किसी भी कंपनी या सिक्योरिटी में पैसे लगाता है, तो वो उन्हें उधार के रूप में देता है। आपको पता ही है कि उधार पर बाजार में आने वाले उतार चढ़ाव का कोई फर्क नहीं पड़ता है। जितने पैसे उधार दिए गए होते हैं उतने तो लौटाने ही होते हैं, ब्याज भी लौटाना होता है।

डेट फंड का क्या मतलब होता है डेट फंड के प्रकार

इसी तरह से डेट फंड भी लोगो से इक्कठा किए हुए पैसे आगे कंपनी या सरकार को उधार के रूप में देता है। इसमें उधार देने के अलग अलग विकल्प हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर डेट फंड आमतौर पर किसी कंपनी के बॉन्ड, गैर परिवर्तनीय डिबेंचर, गवर्नमेंट बॉन्ड्स, कॉरपोरेट डेट सिक्योरिटी और ट्रेजरी बिल जैसे जगह पर पैसे लगाते हैं। इन सभी जगह पर पैसे लगाने की समान बात यह है कि ये पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं। लोगों को दिए उधार की तरह ही इन पर भी मूल के साथ ब्याज की राशि मिलती ही है।

डेट फंड किस तरह काम करता है? (How debt fund work)

डेट फंड भी अन्य म्यूचुअल फंड के जैसा ही होता है। इसमें फंड मैनेज करने वाली कंपनी या कहें म्यूचुअल फंड के द्वारा लोगों से पैसे इक्कठे किए जाते हैं। लोग डेट फंड में पैसे उसकी एनएवी (NAV) पर लगाते हैं। मान लो किसी डेट फंड की एनएवी 20 है और आप उसमे 1000 रुपए लगाना चाह रहे हो, तो आपको उस फंड की 50 यूनिट्स मिलेगी। इस तरह डेट फंड के पास जो पैसे जमा होते हैं, उन्हें वो आगे फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में लगाते हैं। जिससे की डेट फंड को जोखिम का कम से कम सामना करना पड़े। इस तरह से लोग इनडायरेक्ट तरीके से डेट फंड के माध्यम से डेट से जुड़ी जगहों पर अपने पैसे लगाते हैं।

डेट फंड अपने पास पैसों से फिक्स्ड इनकम वाली प्रतिभूति खरीदता है और फिर कुछ समय के बाद इनकी कीमत बढ़ जाने पर बेच देता है। इसके साथ ही डेट फंड को इन पर समय समय पर ब्याज की कमाई भी होती (Debt fund kaise kaam karta hai) है। इन सब से डेट फंड को जो मुनाफा होता है, उससे डेट फंड की एनएवी बढ़ जाती है। मान लो डेट फंड ने 2 साल की मैच्योरिटी वाले बॉन्ड में इन्वेस्ट किया है और इस बॉन्ड से हर साल 10% ब्याज मिलेगा, तो कुल ब्याज को 365 दिन से भाग करने के बाद जो आएगा वो हर दिन डेट फंड की कुल एसेट में जोड़ दिया जाता है। इसके बाद इसको कुल यूनिट से भाग करने पर डेट फंड की नई एनएवी आ जाती है। इस तरह से डेट फंड की एनएवी बढ़ती है।

इसके साथ ही डेट फंड के द्वार इन्वेस्ट किए हुए सिक्योरिटीज के कीमत में बदलाव आने पर भी डेट फंड को मुनाफा या नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी डेट फंड ने 10% ब्याज देने वाले किसी बॉन्ड में पैसे लगाए हुए हैं और बाजार में ब्याज की दर गिर जाए, तो अब बाजार में जो नए बॉन्ड्स आयेंगे वो इस कम ब्याज की दर के (Debt fund ke bare mein bataye) होंगे। ब्याज के इस गिरी हुए रेट के बराबर आने के लिए बाजार में अपने आप 10% वाले बॉन्ड्स की कीमत बढ़ जाएगी। इससे डेट फंड को मुनाफा होगा और इसके साथ ही डेट फंड की एनएवी में बढ़ोतरी हो जायेगी।

डेट फंड में पैसे किसे लगाने चाहिए? (Who should invest in debt fund)

जैसा कि हमने जाना डेट फंड अपने पैसे आगे फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में लगाता है। इसी लिए डेट फंड को फिक्स्ड इनकम फंड या बॉन्ड फंड भी कहा जाता है। इसलिए डेट फंड में पैसे लगाना उन निवेशकों के लिए फायदेमंद है, जो छोटे समय के लिए पैसे लगाना चाहते हैं। इसके साथ ही ऐसे निवेशक जो रिस्क लेने से डरते हैं, उनके लिए भी डेट फंड की सुरक्षा के चलते यह आकर्षक निवेश हो जाता है। जो व्यक्ति किसी निवेश से रेगुलर इनकम की तलाश में रहते हैं, उनके लिए तो डेट फंड सबसे अच्छा रहता है।

आपने बहुत से लोगों को फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे जमा करवाने की बात करते सुना होगा। ऐसे लोग अक्सर सिर्फ सुरक्षित ब्याज की कमाई के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे लगाते हैं। इन्हीं तरह के निवेशकों के लिए डेट फंड एक कारगर निवेश का साधन है, क्योंकि ऐसे निवेशक बाजार में आने वाले उतार चढ़ाव से डरते हैं। बाजार के प्रभावों का असर इक्विटी फंड पर बहुत होता है। परंतु डेट फंड इतने लचीले नहीं होते, इसलिए ऐसे निवेशक डेट फंड में पैसे लगा सकते हैं। डेट फंड ऐसे व्यक्तियों की जरूरत के लिए टैक्स के फायदे के साथ निवेश का साधन है।

डेट फंड और अन्य म्यूचुअल फंड (Debt fund vs equity fund)

हालांकि डेट फंड भी अन्य म्यूचुअल फंड की तरह ही कार्य करता है। फिर भी डेट फंड और अन्य म्यूचुअल फंडों में बहुत फर्क होता है। डेट फंड के अलावा मुख्य रूप से बैलेंस फंड और इक्विटी फंड ही होते हैं। इनमे से इक्विटी फंड बहुत लचीला होता है। बाजार में आने वाले छोटे से छोटे बदलाव का असर इक्विटी फंड पर पड़ता है। अगर बाजार किसी दिन गिरता है, तो इक्विटी फंड की एनएवी एक दम से काफी नीचे आ जाती है। परंतु डेट फंड में ऐसा नहीं होता, डेट फंड की एनएवी पर असर जरूर होता है, फिर भी डेट फंड की एनएवी एक दम से ज्यादा नीचे नहीं आती।

इसी के साथ डेट फंड इक्विटी फंड से बहुत ज्यादा सेफ भी होता है। इक्विटी फंड पर मिलने वाली रिटर्न भी स्थाई नहीं होती, परंतु डेट फंड पर एक निश्चित रेट के आस पास ही रिटर्न मिलती है। इसी के साथ डेट फंड में मिलने वाली रिटर्न में बेशक से रिस्क कम होता है, परंतु इक्विटी फंड पर अधिक रिटर्न मिलता है। डेट फंड में खर्चे भी कम होते हैं क्योंकि इसके मैनेजर को ज्यादा काम नहीं करना पड़ता। इसके विपरित इक्विटी फंड को मैनेज करने वाले को बाजार की बहुत सारी रिसर्च करनी पड़ती है, इसलिए इक्विटी फंड में मैनेजमेंट के खर्चे अधिक होते हैं।

डेट फंड और एफडी (Debt mutual fund vs FD)

जो लोग रिस्क लेने से डरते हैं और एक निश्चित इनकम के लिए पैसे जमा करते हैं, वो अक्सर बैंक एफडी में पैसे जमा करवाते हैं। उनके लिए एफडी के बजाए डेट फंड में पैसे लगाना फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके पीछे बहुत से कारण है। डेट फंड में एफडी के मुकाबले रिटर्न अधिक मिलती है क्योंकि डेट फंड बाजार में निवेश करके कमाई करता है। एफडी पर आमतौर पर 7% के आस पास रिटर्न मिलती है। परंतु इसके विपरित अगर डेट म्यूचुअल फंड में पैसे लगाए जाएं, तो निवेशक को औसत 12 फीसदी रिटर्न मिल जाती है।

इसके अलावा डेट फंड में किए गए निवेश में लिक्विडिटी भी अधिक होती है। इसका अर्थ है कि डेट फंड से पैसे निकालना आसान होता है। एफडी में अगर आपको मैच्योरिटी से पहले पैसे की जरूरत पड़े तो 1.5 से 2 फीसदी तक चार्ज देने पड़ सकते हैं। परंतु डेट फंड में ऐसा नहीं होता है। डेट फंड से पैसे निकालने पर इतने चार्ज देने की जरूरत नहीं होती है। इसके साथ ही आपको एफडी से पैसे निकालने में समय भी अधिक लगता है, जबकि डेट फंड में एक बार सेल करने के बाद अगले ही दिन आपके खाते में पैसे आ जाते हैं। इन्हीं अंतर के चलते आमतौर पर एफडी के मुकाबले डेट फंड ज्यादा अच्छा रहता है।

डेट फंड पर टैक्स कैसे लगता है? (Taxability of debt fund in Hindi)

डेट फंड में पैसे लगाने से पहले आपको डेट फंड से जुड़े टैक्स के बारे में भी जानना जरूरी है। भारत में एफडी की मैच्योरिटी पर होने वाले फायदे पर व्यक्ति के ऊपर लगने वाली स्लैब रेट से टैक्स लगता है। इसके विपरित डेट फंड पर होने वाले बेनिफिट पर स्लैब रेट से टैक्स नहीं लगता है। डेट फंड को खरीदने और बेचने के बीच के समय अंतराल के हिसाब से डेट फंड पर कम और ज्यादा टैक्स लगता है।

अगर डेट फंड के खरीद और बिक्री के बीच का समय अंतराल 3 साल से कम होता है तो इनकम टैक्स में उस पर होने वाले फायदे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं। इनकम टैक्स में एसटीसीजी पर स्लैब रेट से ही टैक्स लगता है। इसके विपरित अगर डेट फंड को 3 साल बाद बेचा जाता है तो उस पर होने वाले फायदे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं। इनकम टैक्स में एलटीसीजी पर 20% का टैक्स लगता है। इसके साथ ही इस टैक्स पर आपको खरीद की लागत के इंडेक्सेशन का फायदा भी मिल जाता है।

डेट फंड कितने प्रकार के हैं? (Types of debt fund in Hindi)

डेट फंड के मैच्योरिटी समय, उसके अंदर मिलने वाली रिटर्न और उसके द्वारा बनाए हुए पोर्टफोलियो के आधार पर डेट फंड अलग अलग तरह के हो सकते हैं। अलग अलग डेट फंड की अपनी की अपनी खासियत होती है। किसी निवेशक को कौन से डेट फंड में इन्वेस्ट करना चाहिए ये उस निवेशक की जरूरत और रिस्क लेने की क्षमता पर निर्भर करता है। मुख्य रूप से डेट फंड निम्न प्रकार के होते हैं:

  • लिक्विड फंड्स
  • अल्ट्रा शॉर्ट टर्म बॉन्ड्स फंड
  • शॉर्ट टर्म इनकम फंड
  • लॉन्ग टर्म इनकम फंड
  • फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान्स (FMPs)
  • गिल्ट फंड्स (Gilt)
  • मंथली इनकम प्लान्स (MIPs)
  • कैपिटल प्रोटेक्शन ओरिएंटेड फंड्स
  • डायनामिक बॉन्ड्स फंड
  • क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड
  • फ्लोटिंग रेट फंड
  • मल्टीपल यील्ड फंड

डेट फंड का चुनाव कैसे करें? (How to choose best debt fund)

दोस्तों अगर डेट फंड के बारे में इतनी जानकारी लेने और इससे जुड़े फायदों के बारे में जानने के बाद आपका भी डेट म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने का मन है, तो अपने पैसे निवेश करने से पहले ध्यान रखे। डेट फंड में पैसे इन्वेस्ट करने से पहले अलग अलग डेट फंड में से चुनाव करना बढ़ा ही कठिन काम है। इसके साथ ही एक सही चुनाव करने के लिए आपको पूरी तरह से विश्लेषण कर लेना अति आवश्यक है।

आपके एक चुनाव से आपकी मेहनत की कमाई पर पूरा असर आ सकता है। डेट फंड का चुनाव मुख्य रूप से उस फंड के द्वारा ली गई एसेट के पोर्टफोलियो पर निर्भर करता है। इसलिए डेट फंड को चुनने से पहले उसके अंदाजन रिटर्न, जोखिम और तरलता को देखना जरूरी है। डेट फंड के चुनाव को प्रभावित करने वाले बहुत से कारण हैं। हम एक एक करके सभी के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।

डेट फंड का आकार (Debt fund corpus size)

किसी भी डेट फंड में इन्वेस्ट करने से पहले देख लें कि उसके पास एसेट का कुल साइज कितना है। इसका मतलब है कि इन्वेस्टर्स के द्वारा उस फंड में कितने पैसे लगाए हुए हैं। डेट फंड का कोरपस जितना ज्यादा होगा, उसमे पैसे लगाने का जोखिम उतना ही कम होगा। इसके साथ ही ये भी जानना जरूरी है कि कहीं लगभग सारा इन्वेस्टमेंट एक ही व्यक्ति ने तो नहीं कर रखा। अगर ऐसा होता है और वो एक इंसान अपने पैसे निकालने की सोचता है, तो आपको भरी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

डेट फंड के लिक्विड एसेट (Liquid asset of debt fund)

डेट फंड के द्वारा आगे कहां पैसे लगाए गए हैं ये जानना भी बहुत जरूरी है। अगर फंड के द्वारा लिक्विड एसेट में पैसे लगाए गए हैं, तो उसमे पैसे लगाने में कम जोखिम होगा। परंतु अगर किसी डेट फंड के ज्यादा से ज्यादा पैसे लिक्विड एसेट के अलावा किसी और एसेट में लगे हैं तो उसमे पैसे लगाने से बचें। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर किसी स्थिति में फंड को पैसे की जरूरत पड़ेगी तो फंड को अपने एसेट बेचने होंगे। परंतु अगर उसने फिक्स्ड सिक्योरिटीज में पैसे लगा रखे होंगे तो जरूरत की वजह से उसे अपनी संपत्ति घाटे के सौदे में भी बेचनी पड़ सकती है। जिससे एनएवी गिर जायेगी।

डेट फंड का मैच्योरिटी समय (Maturity period of debt fund in Hindi)

किसी भी डेट फंड की मैच्योरिटी का समय उससे मिलने वाली रिटर्न पर पूरा पूरा प्रभाव डालता है। अगर किसी डेट फंड में लगे हुए पैसे की औसत मैच्योरिटी कम है, तो उस फंड की रिटर्न में वोलेटिलिटी यानी कि लचीलापन बहुत कम होगा, क्योंकि फंड को कम समय में अपनी संपति बेच कर यूनिट परचेज करनी पड़ेगी। परंतु इसके विपरित अगर औसत मैच्योरिटी समय अधिक होता है, तो डेट फंड की रिटर्न में लचीलापन अधिक होता है, क्योंकि पहले वाली एसेट को बेचकर नई एसेट खरीदी जा सकती है। इसके साथ ही जितनी अधिक लचीली रिटर्न होती है, तो पैसों की औसत मैच्योरिटी भी उतनी अधिक होगी। इसलिए लंबी मैच्योरिटी वाले डेट फंड में ही पैसे लगाए।

Debt fund meaning in Hindi – Related FAQs

प्रश्न: डेट फंड क्या होता है?

उत्तर: डेट फंड एक तरह का म्यूचुअल फंड होता है जो डेट सिक्योरिटीज में पैसे लगाता है।

प्रश्न: क्या डेट फंड में पैसे लगाना सेफ है?

उत्तर: डेट फंड में इन्वेस्ट करना काफी हद तक सुरक्षित होता है।

प्रश्न: डेट फंड और एफडी में क्या बेहतर है?

उत्तर: डेट फंड काफी मायने में एफडी से अच्छे होते हैं।

प्रश्न: डेट फंड और इक्विटी फंड में क्या अंतर है?

उत्तर: इस लेख में इनके बारे में अंतर अच्छे से बताया गया है।

इस तरह से दोस्तों इस लेख के माध्यम से हमने डेट फंड से जुड़े बहुत से सवालों का जवाब ढूंढा है। हमने डेट फंड के काम करने का तरीका, उससे होने वाले फायदे और अन्य निवेशों से डेट फंड में अंतर को जान लिया है। इसके साथ ही हमने सही डेट फंड को चुनना भी अच्छी तरह से सीख लिया है। हम आशा करते हैं कि ये लेख आपके बहुत काम आया होगा। अगर आपको ये लेख अच्छा और इनफोर्मेटिव लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें ताकि वो भी इसका फायदा उठा सके।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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