देश में किसानों की हालत कोई बहुत बेहतर नहीं है। खासतौर पर छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। इसी तरह उत्तराखंड में भी छोटे और सीमांत किसानों की अपनी समस्याएं हैं। उनकी वित्तीय स्थिति बेहतर ना होना एक बड़ी समस्या है। जिसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है। उत्तराखंड की पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सरकार ने किसानों की आर्थिक सहायता करने और उन्हें ब्याज मुक्त लोन देने के लिए उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना शुरू की है। आज हम आपको इस योजना के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए शुरू करते हैं –
उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना क्या है?
मित्रों, आपको बता दें कि उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय कल्याण योजना (uttarakhand Deen Dayal upadhyay sahkarita kisan Kalyan jojana) की शुरुआत उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 6 फरवरी, 2021 को की थी। आपको बता दें कि दीन दयाल उपाध्याय सहकारी किसान कल्याण योजना एक ब्याज मुक्त कृषि ऋण योजना है। इस योजना के तहत 0 प्रतिशत ब्याज दर पर 3 से लेकर 5 लाख रुपये तक का लोन दिए जाने का प्रावधान है।
छोटे किसानों और किसान संघ दोनों को लाभ –
साथियों, आपको बता दें कि इस योजना से छोटे और सीमांत किसानों के साथ ही संघ बनाकर कृषि कार्य में जुटे किसानों को लाभ होगा। बिना ब्याज के 3 लाख रुपये तक के लोन छोटे और सीमांत किसान ले सकते हैं, हैं, जबकि किसान संघ 5 लाख रुपये तक के ब्याज मुक्त ऋण ले सकेंगे। आपको बता दें कि इस योजना के तहत 25 हजार किसानों को खेती के साथ-साथ मछली पालन, सब्जी, पशुधन, मौन पालन आदि के लिए ऋण आवंटित किए जा चुके हैं। बगैर ब्याज लोन मिलने से इन किसानों की खेती के मूलभूत खर्चों से जुड़ी दिक्कत का हल संभव हो सका है।
किसानों की आय में बढ़ोतरी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार का उद्देश्य –
दोस्तों, आपको बता दें कि इस पहल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था (rural economy) में सुधार का उद्देश्य रखा गया है। माना जा रहा है कि उत्तराखंड में यह दीन दयाल उपाध्याय सहकारी किसान कल्याण योजना किसानों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करने में सहायता करेगी | इसके अलावा यह योजना 2024 तक, किसानों की आय को दोगुना करने के केंद्र सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में भी सहायता करेगी।
आपको बता दें कि इस दीन दयाल सहकारिता किसान कल्याण योजना के माध्यम से किसान आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे पैमाने पर कृषि इकाइयों की स्थापना कर सकेंगे। इससे उनकी अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तो उसका असर गांव की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेगा।
उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना का लाभ उठाने के लिए आवश्यक पात्रता/शर्तें
साथियों, आइए अब आपको बता देते हैं कि इस उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना का लाभ उठाने के लिए क्या-क्या आवश्यक शर्तें और पात्रता निर्धारित की गई हैं। ये इस प्रकार से हैं-
- ब्याज रहित तीन लाख तक का लोन केवल लघु और सीमान्त किसानों को प्रदान किया जाएगा।
- किसान संघों यानी farmers association पांच लाख रुपये तक का व्याज रहित लोन ले सकेंगे।
- किसान को अपनी जमीन का रिकार्ड पेश करना होगा।
- आवेदक का निवास प्रमाण पत्र।
- खेती की जमीन उसके नाम होनी चाहिए।
- आवेदक का आईडी प्रूफ जैसे-आधार कार्ड।
- आवेदक का रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर।
ये होते हैं लघु एवं सीमांत किसान –
दोस्तों, अधिकांश लोग लघु और सीमांत किसानों की समस्याओं को जानने का दावा करने हैं। और उन पर बात भी करते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि इन लघु और सीमांत किसानों में कौन से किसान शामिल होते हैं। उनकी परिभाषा क्या है? इनके दायरे में कौन से किसान आते हैं? आदि। तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि लघु और सीमांत किसान किसे कहते हैं।
साथियों, जिन किसानों के पास ढाई एकड़ से कम जमीन है उन्हें सीमांत, जबकि जिनके पास पांच एकड़ से कम जमीन होती है, उन्हें लघु किसान कहते हैं। भारत देश की बात करें तो देश में छोटे किसान अधिक हैं। पूरे देश में करीब 14 करोड़ जोतेें हैं, जिनमें से 95 प्रतिशत पर लघु और सीमांत किसानों का कब्जा है। जबकि केवल 5 प्रतिशत पर बड़े किसान काबिज हैं। अब उत्तराखंड पर आते हैं। दोस्तों, आपको बता दें कि उत्तराखंड में कुल नौ लाख से अधिक किसान हैं। जिसमें से 90 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान हैं। अब आपको भूमि के हिसाब से किसानों की संख्या का break up बताते हैं, जो कि इस प्रकार है-
भूमि का आकार (हेक्टेयर में) | किसानों की संख्या |
एक हेक्टेयर से कम | 672138 |
एक से दो | 157330 |
दो से चार | 64781 |
चार से दस | 17302 |
10 से अधिक | 10998 |
छोटे किसान किसी भी पार्टी के लिए बड़े वोटर होते हैं –
मित्रों, यह ऊपर दिया गया आंकड़ा साफ इशारा करता है कि उत्तराखंड राज्य में छोटे किसानों की तादाद आज कितनी अधिक है। और इनसे जुड़ी किसी भी योजना की शुरुआत से कितनी बड़ी संख्या में किसानों को उसका फायदा पहुंचता है। यही किसान किसी भी पार्टी के बड़े वोटर होते हैं, इसलिए बजट पेश करते हुए भी सरकार इस वर्ग के लिए विशेष रूप से घोषणाएं करती है। इसी तरह की एक घस्यारी योजना भी कुछ समय पूर्व उत्तराखंड में शुरू की गई थी।
यह बात अलग है कि कई बार इन किसानों के लिए शुरू की गई योजनाएं पूरी होती हैं और कई बार नहीं हो पाती। कई बार केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ भी वाजिब लाभार्थी तक नहीं पहुंच पाता। ऐसा ज्यादातर उन योजनाओं में होता है, जिनके आवेदन अभी भी आफलाइन किए जाने का प्रावधान है।
पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों को यह दिक्कत होती हैं
दोस्तों, यदि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में यदि छोटे किसानों की दिक्कत पर बात करें तो उसका पूरा रोजनामचा तैयार हो जाए। आपको बता दें कि पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों का आधार लिंक, कृषि भूमि का रिकॉर्ड, बैंक खातों में त्रुटियों और इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या बहुत होती है। केंद्र सरकार ने बेशक किसानों के हितों के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन दूरस्थ क्षेत्र में जानकारी के साधन कम होने और जागरूकता का अभाव होने से किसानों को इन योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाता।
दूसरे इन स्थानों तक दूरसंचार के साधन न होने और इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी ठीक से नहीं होती जिस वजह से न तो वे ऑनलाइन योजनाओं की जानकारी ले पाते हैं और यदि आवेदन करना चाहे तो यह भी उनके लिए संभव नहीं हो पाता।
उत्तराखंड में सहकारिता के जरिए गठित होंगे सौ एफपीओ
उत्तराखंड में सहकारिता विभाग के माध्यम से किसानों ने सौ किसान उत्पादक संघ यानी सौ एफपीओ (FPO) के गठन की ओर कदम बढ़ाया है। इससे 14 हजार किसान जुड़ेंगे। आपको बता दें कि अभी तक राज्य के विभिन्न जिलों में तीन हजार से अधिक किसान पंजीकरण (registration) करा चुके हैं। एफपीओ का गठन होने के बाद ये किसान न सिर्फ अधिक मुनाफा कमाएंगे, बल्कि स्वयं मंडी भी संचालित करेंगे। इससे प्रदेश के किसान बड़ी संख्या में एक साथ लाभान्वित होंगे।
हरियाणा, पंजाब समेत अन्य राज्यों में भी इस तरह के एफपीओ संचालित हो रहे हैं, जिनके जरिए बड़े पैमाने पर किसानों को योजनाओं का लाभ पहुंचता है। जिससे उनकी स्थिति भी मजबूत बनती है। उत्तराखंड, हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्यों के लिए जहां बहुतायत में छोटी जोत के किसान हैं, इस तरह के कदम लाभकारी कहीं जा सकते हैं। आपको बता दें कि जहां उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश 12 ही जिलों का राज्य है।
FPO में 22 गतिविधियां शामिल की गई हैं?
मित्रों, आपको बता दें कि 95 ब्लाक वाले उत्तराखंड में कुल सौ एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन बनाए जाएंगे। इन एफपीओ का गठन राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम (एनसीडीसी) के सहयोग से किया जाएगा। एफपीओ के तहत करीब 22 गतिविधियां शामिल की गई हैं।
इसके तहत उत्तरकाशी जिले में अखरोट, देहरादून के जौनसार बावर में सेब, बागेश्वर व अल्मोड़ा में मसाले, चंपावत में अदरक, टिहरी, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ में दालें, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली व अल्मोड़ा जिलों में मिलेट के एफपीओ बनाए जाएंगे। साथियों, यहां एक संदर्भ से हटकर बात भी आपको बताएं।
दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना से जुड़े आवश्यक सवाल और उनके जवाब-
उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना क्या है?
यह उत्तराखंड की एक ब्याज रहित ऋण योजना है। इसके बारे में ऊपर जानकारी दी गई है।
उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना के लाभार्थी कौन हैं?
उत्तराखंड राज्य के लघु और सीमांत किसान इस योजना के लाभार्थी हैं।
दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना किस विभाग के सहयोग से चलाई जा रही है?
यह योजना उत्तराखंड राज्य के सहकारिता विभाग के सहयोग से चलाई जा रही है।
उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना की शुरुआत किसने की?
यह योजना उत्तराखंड की भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शुरू की थी।
इस योजना के तहत कितने तक का ब्याज रहित लोन मिल सकता है?
इस योजना के अंतर्गत छोटे और सीमांत किसानों को तीन लाख, जबकि किसान संघों को पांच लाख रुपए तक का लोन मिल सकता है।
अंतिम शब्द –
दोस्तों, आपको बता दें कि बेशक उत्तराखंड के दूरस्थ इलाकों में संचार के साधन बेहद कम हैं, इसके बावजूद केंद्र के कृषि कानूनों की आंच यहां के कई कृषि प्रधान जिलों तक पहुंची है और किसान आंदोलन में शामिल हुए हैं। आपको बता दें कि उत्तराखंड में खासतौर पर उधम सिंह नगर जिले, हरिद्वार जिले के रुड़की और देहरादून के डोईवाला क्षेत्र में किसानों का आंदोलन देखने को मिला है।
छोटे बड़े सभी तरह की जोत के किसान किसान संगठनों की ओर से आयोजित महापंचायत में शामिल हुए है। ये वह किसान हैं, जो केंद्र सरकार की किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं से नाइत्तेफाकी नहीं रखते, लेकिन उनकी मांग कृषि कानूनों को वापस लेना है।किसानों को आंदोलन पर बैठे छह माह से अधिक हो गया है, लेकिन कई दौर की वार्ता हो चुकने के उपरांत भी अभी तक इस मुद्दे का कोई हल नहीं निकल सका है।
दोस्तो, यह थी उत्तराखंड दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना के संबंध में जानकारी। यदि आप किसी अन्य सरकारी और महत्वपूर्ण योजना के बारे में हम से जानकारी चाहते हैं तो हमें नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में comment करके अवगत करा सकते हैं। यह पोस्ट (post) आपको कैसी लगी? जरूर बताइएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार है। ।।धन्यवाद।।