Dhanteras kab hai 2024:- हर वर्ष धनतेरस का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ आयोजित किया जाता हैं। जो लोग पूरे वर्ष खरीदारी नही भी करते, वे भी इस दिन कुछ ना कुछ अवश्य खरीदते हैं। वह इसलिए क्योंकि हिंदू धर्म में धनतेरस के दिन कुछ नया खरीदने का प्रावधान हैं। साथ ही इस दिन सब शुभ काम भी किये जाते हैं जैसे कि किसी को (Dhanteras kab ka hai) अपने मकान का मुहूर्त करवाना हो या नया वाहन खरीदना हो या कुछ और। इस कारण हिंदू धर्म में धनतेरस पर्व का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता हैं।
इस वर्ष भी धनतेरस त्यौहार को लेकर चारों ओर बहुत ही उल्लास देखने को मिल रहा हैं। लोगों के द्वारा इसके लिए बहुत तैयारियां की जा रही हैं और सब (Dhanteras kyu manaya jata hai) जगह के बाजार भी सज चुके हैं। ऐसे में आपके अंदर भी धनतेरस के बारे में जानने को बहुत कुछ चल रहा होगा। इसी के साथ इस बार की तिथियों को लेकर बहुत लोगों के मन में शंका हैं क्योंकि यह अलग तरीके से पड़ रही हैं।
तो ऐसे में यदि आप यह जानना चाहते (Dhanteras puja vidhi) हैं कि वर्ष 2024 में धनतेरस का त्यौहार कब पड़ रहा हैं तो आज हम आपको उसकी पूरी तिथि सहित पूजा करने का समयकाल भी बताएँगे। इसी के साथ आपको इस लेख के माध्यम से धनतेरस को मनाने का कारण (Dhanteras kyon manae jaati hai) और उसकी पूजा विधि के बारे में भी पता चलेगा। आइए जाने धनतेरस त्यौहार के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार से।
वर्ष 2024 में धनतेरस का त्यौहार (Dhanteras kab hai 2024)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार तिथियों और उनके समय को ग्रहों की चाल के अनुसार निर्धारित किया जाता हैं और इसी के अनुसार ही त्यौहार तथा अन्य उत्सवों की तिथि और समय निर्धारित होते हैं। यही कारण हैं कि इस बार धनतेरस का त्यौहार भी एक तरह से दो दिनों के बीच में पड़ रहा हैं। इस बार ग्रहों की स्थिति कुछ इस तरह से बनी हैं कि उसके लिए लोग दो तिथियों को लेकर झंझट में हैं। ऐसे में आपकी यह चिंता दूर करते हुए हम इसी के बारे में ही जानकारी देने वाले हैं।
इस बार का धनतेरस का त्यौहार वैसे तो 22 अक्टूबर को पड़ रहा हैं लेकिन वह मुख्य रूप से 23 अक्टूबर को बनाया जाएगा। ऐसे में जो लोग धनतेरस के अवसर पर व्रत रखते हैं या खरीदारी करते हैं वे 23 अक्टूबर को ही खरीदारी करेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि धनतेरस का त्यौहार 22 अक्टूबर की संध्या से शुरू होलकर 23 अक्टूबर की संध्या तक रहेगा। आइए इनका समय काल जान लेते हैं।
कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर शाम 6 बजकर 2 मिनट से शुरू हो रही हैं। ऐसे में 22 अक्टूबर को शाम 6 बजे के पास धनतेरस पर्व की शुरुआत हो जाएगी जो अगले दिन तक चलेगी। तो ऐसे में देखा जाए तो आप 22 अक्टूबर को शान 6 बजे के बाद धनतेरस की खरीदारी कर सकते हैं और पूजा इत्यादि कर सकते हैं। आपके घर में धनतेरस के दिन रात्रि में जो दीपक जलाया जाता हैं उसे भी आप 22 अक्टूबर को ही जलाए।
धनतेरस 2024 कब समाप्त होगा
चूँकि कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर की संध्या से शुरू हुई थी तो इसकी समाप्ति अगले दिन अर्थात 23 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 3 मिनट पर हो जाएगी। तो इस बार का धनतेरस 22 अक्टूबर की शाम से लेकर अगले दिन 23 अक्टूबर की शाम 6 बजे तक रहेगा। ऐसे में आपको जो भी खरीदारी या शुभ काम करने हो वह आप अगले दिन अर्थात 23 अक्टूबर को सुबह या फिर 22 अक्टूबर को शाम 6 बजे के बाद कर सकते हैं।
धनतेरस 2024 का पूजा मुहूर्त (Dhanteras puja muhurat 2024)
धनतेरस पर लोग भगवान धन्वंतरी की पूजा करते हैं और उनसे अपनी और संपूर्ण परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। भगवान धन्वंतरी को ही आयुर्वेद का जनक कहा जाता हैं और उनके प्रभाव से हम सभी स्वस्थ और उचित काया वाले रहते हैं। ऐसे में धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी की ही पूजा करने का प्रावधान हैं।
उनकी पूजा का शुभ मुहूर्त 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा जो कि उसी दिन शाम 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। ऐसे में आप इस समयकाल में भगवान धन्वंतरी की पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस दौरान आप धनतेरस की संपूर्ण पूजा विधि का पालन करेंगे तो ज्यादा सही रहेगा। इसके बारे में हम आपको लेख के अंत में बताएँगे ताकि आप सही से भगवान धन्वंतरी की पूजा कर उन्हें खुश कर सके और परिवार को नियोगी रख सके।
धनतेरस 2024 में प्रदोष काल का समय
धनतेरस पर प्रदोष काल का समय जान लेना भी बहुत आवश्यक होता हैं। ऐसे में यह 23 अक्टूबर को शाम से ही शुरू होगा जिसका समय काल 5 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर रात्रि 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस 2024 में वृषभ काल का समय
वही यदि धनतेरस पर लगने वाले वृषभ काल के समय की बात की जाए तो वह भी उसी दिन की शाम को लगेगा। यह शाम में 6 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर रात्रि 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस क्यों मनाई जाती है? (Dhanteras kyu manaya jata hai)
हिंदू धर्म में हर त्यौहार और मान्यता के पीछे एक कथा या कोई कारण जुड़ा हुआ हैं। धनतेरस तो फिर भी एक बड़ा पर्व है जिसे भारत के हर राज्य में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। ऐसे में इसके पीछे कथा भी बहुत पुरानी हैं जो सतयुग के समय की हैं। जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा करने का विधान हैं तो इसकी कथा भी उनके उद्गम से ही जुड़ी हुई हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि जिस दिन भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ, उस दिन को धनतेरस के दिन से मनाया जाता हैं। आइए जानते हैं उनका जन्म किस तरह से हुआ।
धनतेरस को मनाने का कारण
सतयुग का समय काल था और देवताओं और दानवों में युद्ध होता ही रहता था। कभी देव दानव पर भारी पड़ते थे तो कभी दानव देवों पर। हालाँकि उस समय तक दोनों को ही अमरत्व का वरदान प्राप्त नही था। इसलिए कोई भी किसी को भी मार सकता था। यही कारण था कि दोनों को ही अपने जीवन की चिंता सताती रहती थी और हर कोई इसे बचाने की जुगत में लगा रहता था। उसी समय भगवान विष्णु के द्वारा देवताओं को बताया गया कि अंतरिक्ष में स्थित समुंद्र के अंदर बहुत सारे अमूल्य रत्न छिपे हुए हैं जो सभी के लिए बहुत लाभदायक हो सकते हैं।
इन अमूल्य रत्नों में गाय, धन, आयुर्वेद, और यहाँ तक कि अमृत भी छिपा हुआ हैं। इसके लिए देवताओं को समुंद्र का मंथन करना होगा और उसके बाद ही वह इन्हें पा सकेंगे। किंतु दुविधा यह थी कि सभी देवता मिलकर भी समुंद्र का मंथन करेंगे तो भी यह संभव नही था। ऐसे में उन्हें दानवों की आवश्यकता पड़नी ही थी। तो इसके लिए देवता व दानवों के बीच समझौता हुआ और दोनों ने मिलकर समुंद्र का मंथन करना शुरू किया।
समुंद्र मंथन के लिए भगवान विष्णु ने अपना शेषनाग दिया जिसे मंदार पर्वत पर लपेट कर उससे समुंद्र मंथन शुरू हुआ। शेषनाग का मुख दानवों की ओर था जबकि पूँछ देवताओं की ओर। मंदार पर्वत जिस धरातल पर टिका हुआ था उसके लिए भगवान विष्णु के द्वारा अपना दूसरा पूर्ण अवतार कच्छप अवतार लिया गया था। समुंद्र मंथन शुरू हो चुका था और एक एक करके इसमें कई बहुमूल्य रत्न निकाले जा रहे थे।
इन रत्नों को देवताओं व दानवों के बीच उनकी विशेषता और उपयोगिता के अनुसार वितरित किया जा रहा था। इसी बीच समुंद्र मंथन में से भगवान धन्वंतरी का उदय हुआ। वे उसमे से निकलने वाले अंतिम रत्न थे जो अपने साथ दो बहुमूल्य चीज़े लेकर आये थे। उनके एक हाथ में आयुर्वेद का खजाना था जो संपूर्ण विश्व का कल्याण करने वाला था तो दूसरे हाथ में अमृत कलश। इसी अमृत कलश को लेने के लिए देवताओं और दानवों के बीच पुनः युद्ध हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर शांत करवाया था।
तो बस इन्हीं भगवान धन्वंतरी के उदय होने वाले दिन को धनतेरस के नाम से जाना गया। उन्होंने संपूर्ण विश्व को आयुर्वेद का ज्ञान देकर निरोगी काया का वरदान दिया। उनके कारण ही मनुष्य को स्वस्थ रहने और काया को सुरक्षित रखने का गूढ़ ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी उपलक्ष्य में तब से लाकर आज तक धनतेरस का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं और भगवान धन्वंतरी की पूजा की जाती हैं।
धनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras puja vidhi)
अभी तक आपने यह जान लिया कि वर्ष 2024 में धनतेरस का त्यौहार कब पड़ रहा हैं और उस दिन किसकी पूजा की जाती हैं और क्यों उनकी पूजा की जाती हैं। तो इस तरह से आप यह जान चुके हैं कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा करने का विधान हैं तो अवश्य ही आपके मन में यह जानने की जिज्ञासा उठ रही होगी कि आखिरकार उनकी पूजा करने की उचित विधि क्या होगी ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। तो अब हम आपको भगवान धन्वंतरी की धनतेरस के दिन सही तरीके से पूजा करने की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।
इसके लिए आपको कई तरह की पूजा सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे में हम आपको इसकी सूची भी देंगे जिन्हें आपको पहले ही मंगवा कर रख लेना होगा ताकि अंतिम समय में कोई समस्या ना आने पाए। इसके बाद हम आपको भगवान धन्वंतरी की पूजा करने की संपूर्ण विधि विस्तार सहित बताएँगे। आइए जाने धनतेरस की पूजा विधि के बारे में।
धनतेरस पूजा विधि की सामग्री
सबसे पहले तो आप हमारे द्वारा बताई गयी सभी पूजा सामग्री को मंगवा ले क्योंकि इनसे ही पूजा संपन्न हो पायेगी। ऐसे में इनमे से कोई एक भी चीज़ रह गयी तो पूजा अधूरी मानी जाती हैं। तो धनतेरस की पूजा विधि के लिए आपको जिस जिस सामान की आवश्यकता होगी, वह हैं:
- धन्वंतरी भगवान का चित्र
- पूजा की चौकी
- कलश
- नारियल का गट
- रोली
- अक्षत
- चावल
- मोली का धागा
- धातु या चांदी
- लाल रंग का वस्त्र
- लौंग
- इलाइची
- सुपारी
- तुलसी
- गंगा जल
- मिट्टी के दीपक
- लाल पुष्प
- गुड़
- चंदन
- शुद्ध जल
- पंच मेवा
- केसर
- गेहूं
- धनिया
- पीली सरसों
- धूप बत्ती
- अगर बत्ती
- घी
- तेल
- दिया बाती
- कमल गट्टा
- मिश्री
- सिंदूर
- मीठा व्यंजन
- चांदी की चम्मच
धनतेरस की पूजा कैसे करे
अब जब आप ऊपर दी गयी सब सामग्री ले लेंगे तो अब हम जानेंगे कि आखिरकार किस तरीके से आप धनतेरस की पूजा कर सकते हैं और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आपको हमारे द्वारा बताई गयी पूजा विधि का पालन करते हुए ही आगे बढ़ना होगा और सब कार्य करने होंगे। तो आइए जाने धनतेरस की पूजा विधि करने की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में।
- धनतेरस वाले दिन आपको सुबह सूर्योदय के समय उठना चाहिए और सब काम निपटा देने चाहिए। कहने का अर्थ यह हुआ कि आप सुबह सूर्योदय के समय उठे और अपने शरीर के नित्य क्रम करके स्नान कर ले।
- धनतेरस के दिन ना तो आप पहले के पहले हुए पुराने वस्त्र पहने और ना ही नए धुले हुए पुराने वस्त्र। इस दिन के लिए आप बाजार से ख़रीदे हुए नए वस्त्र धारण करेंगे तो ज्यादा सही रहता हैं।
- तो आप स्नान इत्यादि करने के पश्चात नए वस्त्र पहन ले और उसके बाद पूजा का सब सामान लेकर अपने घर के ईशान कोण में बैठ जाए।
- ईशान कोण भगवान धन्वंतरी का स्थान माना जाता हैं। इसलिए आप उसी दिशा में चौकी लगाए और उस पर लाल वस्त्र बिछा दे। ध्यान रखे यह चौकी अच्छे से साफ की गयी हो और वस्त्र भी सही से धुला हुआ और शुद्ध हो।
- अब आप इस चौकी पर वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान धन्वंतरी का चित्र लगाए और उनके ऊपर एक पुष्प माला चढ़ाये।
- जब आप पुष्प माला चढ़ा लेंगे तो उस समय उस पर गंगा जल भी छिडके और उसे साफ कपड़े से पोछे ताकि वह पूर्ण रूप से शुद्ध हो सके।
- इसके पश्चात आपको चौकी पर चावल से एक गोला बनाना हैं और उस पर बीच में कलश रख देना हैं। यह कलश इस तरह से रखना हैं कि यह चावल के गोले के एकदम बीच में हो।
- जब आप कलश रख लेंगे तो उसके बाद उसमे शुद्ध जल को भरे और नारियल के गट से उसे ढक दे। नारियल का गट उसमे थोड़ा डूबा हुआ होना चाहिए। इसलिए गट का चुनाव करते समय सावधानी बरते।
- अब आप बाकि सब पूजा सामग्री भी एक एक करके चौकी पर कलश के आसपास सजाये और उन्हें खोलकर रख ले ताकि समय आने पर इनका इस्तेमाल किया जा सके।
- अब आप चावल, लौंग, इलाइची, तुलसी व अक्षत को दाए हाथ में लेकर भगवान धन्वंतरी का ध्यान करे। कुछ देर ध्यान करने के बाद आप उसे भगवान धन्वंतरी के आगे चढ़ा दे।
- अब फिर से वही सब चीज़े लेकर कलश का ध्यान करे और कुछ देर के बाद उसे कलश के पास रख दे।
- अब आप रोली से भगवान धन्वंतरी को तिलक करे और कलश पर रखे नारियल को भी तिलक लगाए। उसके बाद मोली के धागे को तोड़कर दोनों के सामने रखे और हाथ जोड़े।
- हाथ जोड़कर आपको भगवान विष्णु का ध्यान करना हैं और उसके बाद तुलसी पर गंगा जल छिड़कर भगवान धन्वंतरी के आगे रख देना हैं।
- इसी तरह आपको बाकि सब सामग्री पर भी एक एक करके गंगा जल छिड़कर कर भगवान विष्णु व भगवान धन्वंतरी का ध्यान करते हुए उन्हें कलश और भगवान धन्वंतरी के चित्र के बीच में रख देनी हैं।
- जब यह सब हो जाए तो आप दिया ले और उसमे तेल डालकर बाती की सहायता से उसे प्रज्ज्वलित करें। जब यह प्रज्ज्वलित हो जाए तो आप भगवान धन्वंतरी की चालीसा पढ़ें और उनकी आरती करें।
- यह आप पूरी श्रद्धा भाव के साथ करेंगे तभी आपको इसका उचित फल मिल पाएगा। इसलिए भगवान धन्वंतरी की पूजा करते समय मन में कोई अशुद्ध भाव ना आने दे और उसे पूर्ण रूप से निर्मल रखे।
- इस तरह से आपकी धनतेरस की पूजा समाप्त हो जाएगी। यदि आपने यह श्रद्धा भाव से कर ली तो अगले एक वर्ष तक भगवान धन्वंतरी की कृपा आप पर और आपके परिवार पर बनी रहेगी और उनके आशीर्वाद से सभी स्वस्थ रहेंगे।
धनतेरस के त्यौहार से Related FAQs
प्रश्न: धनतेरस की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर: धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा करने की विधि के बारे में जानने के लिए आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह लेख पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: धनतेरस की पूजा में क्या क्या सामग्री होनी चाहिए?
उत्तर: धनतेरस की पूजा में कई तरह की सामग्री चाहिए होती हैं जिसकी सूची हमने इस लेख में दी हुई हैं।
प्रश्न: धनतेरस पर दिया कैसे जलाएं?
उत्तर: धनतेरस पर आपको ईशान कोण में भगवान धन्वंतरी को एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर बिठाना चाहिए और उनके चित्र के सामने दिया जलाना चाहिए।
प्रश्न: धनतेरस के दिन कौन सा बर्तन खरीदना चाहिए?
उत्तर: धनतेरस के दिन चांदी का बर्तन खरीदना चाहिए।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आज आपने जान लिया कि वर्ष 2024 में धनतेरस का त्यौहार किस तिथि को पड़ रहा हैं और उसका समय काल क्या हैं। इसी के साथ आपने धनतेरस बनाने के पीछे के कारण को जाना और उस दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा किस विधि के तहत की जाए, इसके बारे में भी जान लिया हैं। आशा हैं कि अब आप धनतेरस का त्यौहार पूरी भक्तिभाव के साथ बना पाएंगे।