जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या है? | Difference between TDS and TCS in GST in Hindi

|| जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या है? | Difference between TDS and TCS in GST in Hindi | जीएसटी में टीडीएस काटने के नियम | जीएसटी के तहत टीडीएस कब तक जमा करना होता है? | जीएसटी में टीसीएस कौन भरता है? ||

Difference between TDS and TCS in GST in Hindi :- अब जो लोग नौकरी करते हैं उन्हें टीडीएस का मतलब तो अच्छे से पता होगा क्योंकि जब भी उनका वेतन आता है तो उस वेतन में से कुछ हिस्सा टीडीएस के रूप में भारत सरकार के द्वारा काट लिया जाता है। सामान्य तौर पर यह 2 प्रतिशत से लेकर कितना भी हो सकता है। हालाँकि बहुत से ऐसे लोग जो व्यापार कर रहे हैं उनके लिए टीडीएस का मतलब अलग होता है। इसी के साथ ही उन्हें टीसीएस का भी ध्यान रखना होता है क्योंकि दोनों ही उनके लिए जरुरी चीजें (TDS or TCS in Hindi) हैं।

जो भी व्यक्ति व्यापार में है वह सरकार को जीएसटी के तौर पर हर महीने या तिमाही में अपने ऊपर जो भी टैक्स बनता है, उसे जमा करवाता है। अब इस जीएसटी के अंतर्गत उसे कई तरह की टर्म्स को देखना होता है जिसमें दो मुख्य टर्म है टीडीएस व टीसीएस। हर व्यापारी या बिज़नेस करने वाले व्यक्ति को भारत सरकार को जीएसटी के साथ साथ टीडीएस व टीसीएस भी जमा करवाना होता (TDS or TCS full form in Hindi) है।

ऐसे में यह टीडीएस व टीसीएस क्या होता है और इसका जीएसटी से क्या कुछ संबंध है, आज हम उसी के बारे में ही बात करने जा रहे हैं। आज के इस लेख में आपको जीएसटी में टीडीएस व टीसीएस क्या है और यह किस तरह से एक व्यापारी को प्रभावित करता है, इसके बारे में जानकारी मिलने वाली है, आइये (TDS TCS in GST in Hindi) जाने।

जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या है? (Difference between TDS and TCS in GST in Hindi)

नौकरी कर रहे व्यक्ति को जीएसटी नहीं भरना होता है क्योंकि यह चीज़ों के क्रय व विक्रय पर लगता है। हालाँकि हम जो भी सामान खरीदते हैं उस पर हम अप्रत्यक्ष रूप से भारत सरकार को टैक्स के रूप में जीएसटी भर ही रहे होते हैं। अब वह किस तरह से होता है, वह आपको इस लेख में अपने आप ही जानने को मिल जाएगा क्योंकि यह आपको टीडीएस व टीसीएस की परिभाषा पढ़कर पता (TDS vs TCS in Hindi) लगेगा।

जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या है

ऐसे में किसी भी व्यापारी के द्वारा अपने द्वारा ख़रीदे गए माल और बेचे गए माल पर भारत सरकार को टैक्स भरना होता है जिसे हम जीएसटी कहते हैं। अब इस जीएसटी पर ही टीडीएस व टीसीएस को लगाया जाता है जो हर व्यापारी या दुकानदार भारत सरकार को दे रहा होता है। ऐसे में इन दोनों के बीच में क्या अंतर है और किस तरह से हम इन्हें अलग कर सकते हैं, आइये उसके बारे में जान लेते (TDS or TCS in GST in Hindi) हैं।

टीडीएस एक ऐसा टैक्स होता है जो व्यापारी के द्वारा भुगतान करते समय काटा जाता है और उसकी एक स्लिप भी बनायी जाती है। एक तरह से वह व्यापारी जो भी सामान खरीद रहा है, और उसके लिए जिसे भी भुगतान कर रहा है, उस कुल भुगतान पर उसके द्वारा एक टैक्स काटा जाता है जिसे हम टीडीएस के नाम से जानते हैं। अब उस सामान पर टीडीएस तभी काटा जाता है जब उस सामान की कुल कीमत 2.5 लाख से अधिक हो जाती है अन्यथा यह टीडीएस नहीं (TDS or TCS me difference in Hindi) कटेगा।

वहीं अब वह व्यापारी उस सामान को लोगों को बेचता है तो उनसे भी वह टैक्स लेता है जो उसकी राशि में ही छुपा हुआ होता है। ऐसे में ग्राहक से लिया गया टैक्स ही टीसीएस कहलाता है जो वह सरकार को देता है। तो यदि आप सोच रहे हैं कि आम लोग जो व्यापार नहीं कर रहे हैं, वे किसी तरह का जीएसटी नहीं भरते हैं तो आप गलत सोच रहे हैं। आपके द्वारा जिस भी वस्तु का क्रय किया जा रहा है, आप उस पर अपनी ओर से जीएसटी का कुछ अंश भारत सरकार को उसी समय दे दे रहे (difference between TDS or TCS in Hindi) हैं।

जीएसटी में टीडीएस क्या होता है? (TDS in GST in Hindi)

यदि आप इसे पढ़ कर शंका में पड़ गए हैं तो यहाँ हम आपको विस्तार से इसके बारे में समझाने वाले हैं ताकि आपके मन में टीडीएस को लेकर किसी तरह की शंका ना रहने पाए। तो जो भी व्यक्ति व्यापारी है, वह किसी ना किसी जगह से सामान को खरीद रहा होता है। वह उस सामान का उत्पादनकर्ता नहीं होता है और वह किसी अन्य व्यक्ति से कच्चा माल खरीद कर उससे किसी नयी चीज़ का उत्पादन करता है या फिर उस सामान को वैसा का वैसा दुकानदार की तरह बेचने का कार्य करता है।

अब जो भी व्यक्ति व्यापारी है और वह सामान को ख़रीद रहा है और यदि उसका बिल 2.5 लाख से ऊपर का है तो उसे कुल बिल पर 2 प्रतिशत का टीडीएस भरना होगा। यह टीडीएस उस व्यक्ति के द्वारा काटा जाएगा जो उस प्राप्त हुए माल पर विक्रेता को भुगतान कर रहा है। ऐसे में उस व्यक्ति के द्वारा 3 लाख पर 2 प्रतिशत टीडीएस के हिसाब से कुल 3 लाख 6 हज़ार का बिल बनाया जाएगा। ऐसे में वह व्यक्ति सामने वाले को 3 लाख 6 हज़ार का भुगतान करेगा और उस 6 हज़ार को टीडीएस के तौर पर सरकार को (TDS kya hota hai) देगा।

चूँकि यह टीडीएस उस सामान के भुगतान करने पर क्रय करने वाले व्यापारी के द्वारा चुकाया जा रहा है तभी इसको Tax deducted at source के नाम से जाना जाता है। इसी को ही शोर्ट फॉर्म में टीडीएस नाम दे दिया गया है। हालाँकि इसमें भी आपकी कई तरह की शंकाएं हो सकती है, जैसे कि यदि उस बिल का भुगतान टुकड़ों में किया जाए तो क्या टीडीएस कटेगा या फिर अलग अलग सामान का बिल बनाकर 2.5 लाख से ज्यादा का बिल बनता है तो क्या टीडीएस काटा जाएगा या नहीं। तो आइये उसके बारे में भी जान लेते (GST me TDS kya hai) हैं।

जीएसटी में टीडीएस काटने के नियम

एक व्यापारी के द्वारा तरह तरह का सामान अलग अलग व्यक्तियों से ख़रीदा जाता है। अब उसे कभी किसी कच्चे माल की जरुरत होती है तो कभी किसी तरह के कच्चे माल या अन्य सामान की जरुरत होती है। ऐसे में उस व्यक्ति के द्वारा कब टीडीएस का भुगतान किया जाएगा और कब नहीं, इसको लेकर क्या नियम है, आइये इसके बारे में बात कर लेते हैं।

  • यदि व्यापारी के द्वारा एक ही व्यक्ति से कोई सामान ख़रीदा गया है और वह बिल 2.5 लाख से ज्यादा का बन जाता है तो उस स्थिति में वह व्यक्ति 2 प्रतिशत का टीडीएस भारत सरकार को देता है।
  • इस 2 प्रतिशत टीडीएस में से एक प्रतिशत टीडीएस भारत सरकार को तो एक प्रतिशत टीडीएस राज्य सरकार को जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि केंद्र सरकार व राज्य सरकार में टीडीएस का बराबर बराबर भुगतान करना होता है।
  • अब यदि व्यापारी के द्वारा एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान को ख़रीदा जा रहा है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान का व्यापारी हरियाणा के विक्रेता से सामान खरीद रहा है तो उस स्थिति में वह भारत सरकार को पूरा टीडीएस चुकाता है और बाद में केंद्र सरकार बराबर बराबर उस टीडीएस को राज्य में बाँट देती है।
  • यदि वह दो अलग अलग लोगों से सामान खरीदता है जिसका बिल क्रमशः 2 लाख व 1.5 लाख बनता है तो तो यह आंकड़ा कुल 3.5 लाख का हो जाता है किन्तु उस स्थिति में उसे टीडीएस नहीं चुकाना होगा क्योंकि यह अलग अलग व्यक्तियों को किया गया भुगतान होता है।
  • अब यदि वह एक ही व्यक्ति से 3.5 लाख का सामान खरीदता है लेकिन उसका भुगतान दो बारी में 2 लाख और फिर 1.5 लाख रुपये में करता है तो फिर उसे 3.5 लाख पर 2 प्रतिशत की दर से टीडीएस का भुगतान करना होगा।

इस तरह से एक व्यक्ति या व्यापारी के द्वारा दूसरे व्यापारी से किसी भी सामान को ख़रीदे जाने पर कुल बिल 2.5 लाख से अधिक का बनता है तो उसे 2 प्रतिशत का टीडीएस भारत सरकार को चुकाना होता है। इस टीडीएस की दर अलग अलग स्थितियों में अलग अलग हो सकती है। सामान्य तौर पर यह जीएसटी में 2 प्रतिशत की दर से ही काटा जाता है।

जीएसटी के तहत टीडीएस कौन काट सकता है?

अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि जब आप भारत सरकार को कुल बिल पर टीडीएस चुका रहे होते हैं तो उसे लेने का या काटने का अधिकार भारत सरकार ने किस किस को दिया हुआ है। ऐसे में उसकी सूची इस प्रकार है:

  • भारत सरकार या उसके संबंधित विभाग
  • राज्य सरकार व उसके संबंधित विभाग
  • सरकारी एजेंसियां
  • स्थानीय प्राधिकरण या लोकल अथॉरिटी
  • सरकार के द्वारा अधिकृत अधिकारी
  • सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां
  • भारत या राज्य सरकार के द्वारा बनायी गयी या स्थापित सोसाइटी
  • संसद के द्वारा गठित किया गया बोर्ड

इस तरह से यह सभी आपसे जीएसटी पर टीडीएस वसूलने के लिए प्राधिकृत संस्थाएं या विभाग कहे जा सकते हैं। इनके अलावा कोई अन्य आपसे टीडीएस वसूलने का अधिकार क्षेत्र नहीं रखता है।

जीएसटी के तहत टीडीएस कब तक जमा करना होता है?

अब आपके द्वारा या जो भी व्यापारी सामान की खरीदी कर रहा है, उसके द्वारा यह कार्य हर महीने या किसी ना किसी महीने में किया जाता रहता है। तो जब भी आपके ऊपर टीडीएस बनता है, आपको उसके अगले महीने की 10 तारीख तक उस टीडीएस का भुगतान भारत सरकार को कर देना होता है।

उदाहरण के तौर पर यदि आपने 15 जुलाई को किसी विक्रेता से मिले सामान का भुगतान किया है और उस पर टीडीएस लगा है तो आपको वह टीडीएस भारत सरकार को अगले महीने की 10 तारीख अर्थात 10 अगस्त तक जमा करवा देना होगा। इस तरह से यह नियम हर महीने पर एक समान रूप से लागू होगा।

जीएसटी में टीसीएस क्या होता है? (TCS in GST in Hindi)

पहले के समय में हम केवल दुकान पर जाकर ही खरीदारी करते थे किन्तु आज के समय में हम लोगों के द्वारा ऑनलाइन शॉपिंग भी बहुत ज्यादा की जा रही है। अब भारत सरकार देशभर में व्यापार कर रहे हर तरह के व्यापारी के द्वारा 2.5 लाख से अधिक का क्रय किये जाने पर 2 प्रतिशत की दर से जीएसटी वसूल रही है तो फिर इसमें करोड़ों अरबो का व्यापार कर रही ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां क्यों छोड़ दी जाए। यह ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां अमेज़न, फ्लिप्कार्ट, स्नेपडील, मीशो इत्यादि है।

जिस प्रकार कोई व्यापारी अपनी दुकान पर सामान को बेच रहा होता है ठीक उसी तरह से बहुत से व्यापारी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के जरिये भी अपने उत्पाद को बेच रहे होते हैं या सेवा उपलब्ध करा रहे होते हैं। ऐसे में उन व्यापारियों के द्वारा ऑनलाइन जो भी उत्पाद बेचे जा रहे हैं या सेवाएं उपलब्ध करवायी जा रही है, उस पर उन्हें भारत सरकार को टैक्स देना होता है जिसे हम टीसीएस के नाम से जानते हैं। अंतर बस इतना है कि यह टैक्स उन्हें नहीं बल्कि उस ऑनलाइन कंपनी को देना होता है लेकिन वह ऑनलाइन कंपनी टैक्स लेती उन व्यापारियों से ही (TCS kya hai) है।

अब इसे भी हम एक उदाहरण के जरिये समझने का प्रयास करते हैं। मान लीजिये कि राम नाम का एक व्यापारी अमेज़न की वेबसाइट पर अपने उत्पाद बेचता है। अब उसके द्वारा जो भी उत्पाद बेचे जा रहे हैं, वह सब पैसा उस अमेज़न कंपनी को मिलता है। महीने के अंत में अमेजन कंपनी उस राम नाम के व्यापारी के द्वारा जो भी कमाई की गयी है, उसका भुगतान वह उसे कर देती है किन्तु यह भुगतान करने से पहले वह उसमें से एक प्रतिशत की दर से टैक्स काट लेती है और इसे ही हम टीसीएस के नाम से जानते (GST me TCS kya hai) हैं।

चूँकि यह टैक्स भुगतान कलेक्ट करते समय काटा जाता है इस कारण इसका नाम Tax collected at source रखा गया है जिसे हम सभी शोर्ट फॉर्म में टीसीएस के नाम से जानते हैं। इस तरह से यदि उस राम ने किसी महीने एक लाख रुपये की आय की है तो अमेज़न कंपनी उसमें से एक हज़ार का टीसीएस पहले ही काट लेगी और राम को 99 हज़ार का भुगतान करेगी। साथ के साथ वह अमेज़न कंपनी भारत सरकार को एक प्रतिशत का टीसीएस चुका देगी।

जीएसटी में टीसीएस कौन भरता है?

भारत सरकार के द्वारा किसी व्यापारी से टीसीएस नहीं लिया जाता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वही टीसीएस का भुगतान जीएसटी के तौर पर कर रहे होते हैं जिसे वे अपनी बैलेंस शीट में दिखा सकते हैं। हालाँकि भारत सरकार को टीसीएस चुकाने का उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से उस ऑनलाइन ई कॉमर्स वेबसाइट का ही होता है। अब भारत देश के अंदर जितनी भी इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स वेबसाइट हैं जो सामान को बेचने का काम कर रही हैं, उन्हें अपने पोर्टल पर व्यापार कर रहे व्यापारियों की हो रही कुल कमाई में से एक प्रतिशत की दर से टीसीएस को काटना होता है।

फिर वह शॉपिंग वेबसाइट महीने के अंत में भारत सरकार को कुल टीसीएस जमा करवा देती है। यह टीसीएस भारत सरकार के पास 0.5 प्रतिशत की दर से पहुँचता है तो उतना ही राज्य सरकार को भी मिलता है जहाँ पर उसका आदान प्रदान किया गया है।

जीएसटी में टीसीएस कब तक भरना होता है?

जिस प्रकार जीएसटी के अंतर्गत टीडीएस को भरने के लिए अगले महीने की 10 तारीख का प्रावधान रखा गया है, ठीक उसी तरह का प्रावधान टीसीएस के लिए भी रखा गया है। ऐसे में जिस भी शॉपिंग वेबसाइट के द्वारा किसी भी महीने में जो भी कमाई की गयी है और उस पर जितना भी टीसीएस उसने कलेक्ट किया है, उसका पूर्ण रूप में भुगतान उसे अगले महीने की 10 तारीख को कर देना होगा।

इस तरह से अमेज़न कंपनी के द्वारा मार्च महीने में जो भी टीसीएस कलेक्ट किया गया है फिर चाहे वह एक लाख हो या एक करोड़, वह पूर्ण रूप में उन रुपयों का भुगतान टीसीएस के तौर पर भारत सरकार को 10 अप्रैल तक कर देगी। इसके बाद यदि वह भुगतान करती है तो उस पर अतिरिक्त शुल्क उस वेबसाइट को अपनी ओर से भारत सरकार को चुकाना होता है।

जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या है – Related FAQs 

प्रश्न: टीडीएस का क्या मतलब है?

उत्तर: टीडीएस की फुल फॉर्म Tax deducted at source है और संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे द्वारा लिखे गए लेख के पढ़ सकते हो।

प्रश्न: TDS कौन काट सकता है?

उत्तर: इसके बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने ऊपर के लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया है जो आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: टीसीएस का क्या मतलब है?

उत्तर: टीसीएस की फुल फॉर्म Tax collected at source है और संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे द्वारा लिखे गए लेख के पढ़ सकते हो।

प्रश्न: टीसीएस कौन भरता है?

उत्तर: भारत सरकार को टीसीएस चुकाने का उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से उस ऑनलाइन ई कॉमर्स वेबसाइट का ही होता है।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि जीएसटी में टीडीएस और टीसीएस क्या होता है। साथ ही आपने जाना कि जीएसटी में टीडीएस काटने के क्या नियम हैं टीडीएस कौन काटता है जीएसटी में टीसीएस कौन भरता है इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई प्रश्न आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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