फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या है? इनका गठन क्यों होता है? इन कोर्ट के क्या-क्या लाभ होते हैं? इनके गठन की क्या प्रक्रिया है? (What is fast track court? Why they are catastasisd? What are the advantages of these courts? What is the process of fast track court’s catastesis?)
आपको बॉलीवुड अभिनेता सनी देओल का ‘दामिनी’ फिल्म में बोला गया यह डायलाग ‘तारीख पे तारीख…’ जरूर याद होगा। यह डायलॉग भारतीय न्याय व्यवस्था की असली तस्वीर पेश करता है। अदालतों पर मुकदमों का बोझ इतना ज्यादा है कि सुनवाई में ही सालों गुजर जाते है। न्याय की आस लिए कई लोग तो दुनिया से ही कूच कर जाते हैं। इन स्थितियों को देखते हुए सरकार द्वारा फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया था।
आपको सन् 2012 का निर्भया कांड नहीं भूला होगा, जिसमें सरकार द्वारा त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया था। ये फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या हैं? इनका गठन क्यों होता है? इन कोर्ट के क्या-क्या लाभ होते हैं? इनके गठन की प्रक्रिया क्या है? जैसे आपके दिमाग में उठने वाले तमाम सवालों का जवाब आज हम आपको इस पोस्ट में देने की कोशिश करेंगे। आइए, शुरू करते हैं-
फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या है? (What is fast track court?)
दोस्तों, इससे पूर्व कि फास्ट ट्रैक कोर्ट (fast track court) के बारे में विस्तार से जानें, सबसे पहले जान लेते हैं कि फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या है? जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-फास्ट (fast) का मतलब होता है तेज। कोर्ट (court) का अर्थ है न्यायालय। ऐसे में साफ है कि तेजी से न्याय देने के लिए गठित न्यायालय फास्ट ट्रैक कोर्ट कहलाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो यह त्वरित सुनवाई के लिए बनी अदालत है।
इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा नाबालिगों के खिलाफ रेप एवं नाबालिगों के शोषण जैसे अपराधों पर पॉक्सो एक्ट (POCSO act) के तहत तेजी से सुनवाई एवं न्याय को देखते हुए फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों (fast track special courts) यानी एफटीएससी (FTSC) का भी गठन किया जाता है। आपको बता दें दोस्तों कि POCSO की फुल फॉर्म protection of children from sexual offences act है। इसे केंद्र सरकार द्वारा आज से करीब 11 वर्ष पूर्व यानी सन् 2012 में लाया गया था।
हमारे देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत कब हुई? (When did fast track court start in india?)
मित्रों, हमारे देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत आज से करीब 23 वर्ष पूर्व सन् 2000 में हुई थी। उस समय इन्हें निचली अदालतों (lower courts) में रुके हुए मुकदमों का निपटाने करने के लिए शुरू किया गया था। एक अनुमान के अनुसार आज भी भारत में 5 करोड से अधिक ऐसे केस हैं, जिनका अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है।
दोस्तों, आपको बता दें उ इनमें जिला एवं हाई कोर्टों (district and high courts) में 30 से भी अधिक सालों से लंबित पड़े 1,69,000 से भी अधिक मामले शामिल हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दिसंबर, 2022 तक 5 करोड में से करीब 4.3 करोड़ यानी 85 प्रतिशत से भी अधिक मामले जिला अदालतों (district courts) में ही सुनवाई की बाट जोह रहे हैं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का क्या उद्देश्य है? (What is the objective of fast track court?)
आइए, दोस्तों अब आपको बता दें कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का क्या उद्देश्य हैं? इससे न्याय व्यवस्था को किस प्रकार से सहायता मिलती है। ये उद्देश्य इस प्रकार से हैं-
- मामलों की तेजी से सुनवाई करना।
- न्याय प्रक्रिया में तेजी लाना।
- अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम करना।
- मामलों के बैकलॉग को कम करना।
- मामलों का निश्चित समय पर निपटान करना।
फास्ट ट्रैक कोर्ट के क्या लाभ हैं? (What are the advantages of fast courts?)
हमने फास्ट ट्रैक कोर्ट का अर्थ एवं उद्देश्य तो जान लिए अब बारी है, इनसे होने वाले लाभ की, जो कि इस प्रकार से हैं-
- फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामलों की तेजी से सुनवाई होती है।
- इनसे सेशन अदालतों में आने वाले मामलों का बोझ काफी कम हुआ है।
- लोगों को तीव्र न्याय मिलना संभव हुआ है।
- इन कोर्ट में समन, वारंट आदि की तैयारी में देरी की वजह से सुनवाई स्थगित नहीं होती।
- न्यायपालिका शक्तिशाली होती है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किस प्रकार से किया जाता है? (How fast track courts are catastesisd?)
फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कैसे होता है? हममें से बहुत से लोगों के दिमाग में यह सवाल अवश्य उठता है तो आपको बता दें दोस्तों कि फास्ट ट्रैक बनाने अथवा इनका गठन किए जाने संबंधी निर्णय संबंधित राज्य सरकार (state government) द्वारा हाईकोर्ट (High court) से चर्चा/परामर्श (consultation) के बाद लिया जाता है। हाल फिलहाल में कई रेप (rape) से जुड़े मामलों में हमने इस प्रकार के फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन देखा है, ताकि मामले की तेजी से सुनवाई हो एवं अपराधियों को सजा तक पहुंचाया जा सके।
आपको बता दें दोस्तों कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए टाइम लाइन हाईकोर्ट तय कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि वह बता सकता है कि सुनवाई (hearing) कब तक पूरी होनी है। टाइम लाइन (time line) के जरिए फास्ट ट्रैक कोर्ट इस बात को तय करता है कि मामले की सुनवाई रोज होगी अथवा कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर। नियत टाइम लाइन में फैसला सुनाने के लिए कोर्ट सभी पक्षों को तेजी से सुनता है। यहां तारीख पे तारीख जैसी स्थिति नहीं आती।
फास्ट ट्रैक अदालतों में इस समय कितने मामले लंबित हैं? (How much cases are pending in fast track courts this time?)
दोस्तों, कई बार यह भी होता है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट से त्वरित निर्णय के बाद मामले उच्च न्यायालयों में फंस जाते हैं। यदि भारत की बात करें तो यहां विभिन्न राज्यों में फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी लाखों मामले लंबित हैं। यदि हाल ही में कानून मंत्री किरण रिजिजू द्वारा संसद में दी गई जानकारी पर गौर करें तो इसके अनुसार इस समय भारत में फास्ट ट्रैक कोर्ट में 13.81 लाख से भी अधिक मामले लंबित हैं। इनमें से 70 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का ही है। यहां करीब 9.33 लाख से भी अधिक मामले लंबित हैं। 1.4 लंबित मामलों (pending cases) के साथ इस सूची में महाराष्ट्र (Maharashtra) दूसरे स्थान पर है।
इसी प्रकार तमिलनाडु (Tamilnadu) में 1.06 लाख, पश्चिम बंगाल (West Bengal) में 71,260, जबकि तेलंगाना (Telangana) में 12,538 मामले लंबित हैं। आपको बता दें दोस्तों कि फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (fast track special courts), जिन्हें केंद्र प्रायोजित योजना (centrally sponsored scheme) के अनुसार रेप एवं पॉक्सो अधिनियम के मामलों के त्वरित जांच के लिए गठित किया गया था, में भी उत्तर प्रदेश से करीब 60 हजार से अधिक मामले लंबित हैं।
इसी प्रकार महाराष्ट्र (Maharashtra) में एफटीएससी (FTSC)) में 43 हजार, पश्चिम बंगाल (West Bengal) में 35,653, बिहार (Bihar) में 22,592, तमिलनाडु (Tamilnadu) में 20,037, ओडिशा (Odisha) में 19,214, राजस्थान (Rajasthan) में 18,077, केरल (Kerala) में 14,392, गुजरात (Gujarat) में 12,347, जबकि तेलंगाना (Telangana) में इन विशेश अदालतों में 12,248 मामले लंबित हैं।
सरकार द्वारा इन कोर्ट के गठन के लिए करोड़ों रुपए का बजट निर्गत किया जाता है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आ सके। हमारे देश में सभी अदालतों का स्वरूप बदल सके और इन पर मुकदमों के बोझ में कमी आए। लेकिन दोस्तों कोई भी चीज बहुत जल्द नहीं होती। सिस्टम की तस्वीर बदलने में वक्त लगता है।
भारत में इस समय कितने फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं? (At present how many fast track courts are there in india?)
मित्रों, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 14वें वित्त आयोग (finance commission) द्वारा 1,800 फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का सुझाव दिया गया था, लेकिन 31 जुलाई, 2022 तक इन फास्ट ट्रैक अदालतों में से इस समय केवल 896 कोर्ट ही कार्यरत हैं। वहीं, यदि फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की बात करें तो इस प्रकार की 1,023 कोर्ट के गठन का सुझाव दिया गया था, जिनमें से हमारे देश के 28 राज्यों में केवल 731 ही ऐसे कोर्ट काम कर रहे है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट से इंसाफ मिलना कितना आसान हुआ है? (How much easy it has become to get justice through fast track court?)
दोस्तों, हमारे यहां एक कहावत है कि ‘justice delayed is justice denied’. इसका अर्थ है कि न्याय में देरी यानी न्याय से वंचित। हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिनकी एड़ियां तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते लगाते बीत गई, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। ऐसे में ‘भले ही सारे जहां को गुलिस्तां न बना सकें हों हम, कुछ कांटे तो हुए हैं कम, गुजरे हैं जहां से हम…’।
यह बात फास्ट ट्रैक कोर्ट पर एकदम फिट बैठती है। अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम करने में इन कोर्ट के सहयोग से इन्कार नहीं किया जा सकता। इन्होंने इंसाफ को लेकर देरी एवं इंसाफ न मिलने जैसी लोगों के दिलों में घर कर गई अवधारणा को भी तोड़ा है। बहुत से मामलों में लोगों को तेजी से न्याय मिला है और अपराधी सीखचों के पीछे पहुंचे हैं।
आप अपने केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में कैसे ट्रांसफर कर सकते हैं? (How you can transfer your case in fast track court?)
मित्रों, यह तो हम आपको बता ही चुके है। कि फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना सेशन अदालतों में लंबे समय से लंबित मामलों एवं विचाराधीन कैदियों के लंबे समय से लंबित मसलों के जल्द निपटान के लिए की गई थी। यदि आप अपने मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में शिफ्ट (shift) करना चाहते हैं तो आप इसके लिए एक आवेदन दायर कर सकते हैं। यदि अदालत आपके आवेदन में दिए गए कारणों से कोर्ट सहमत होती है और आपके को मंजूर कर लेती है तो आपके मामले को भी फास्ट ट्रैक क कोर्ट में तेजी से निपटाया जा सकता है।
किन राज्यों में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट में एक भी मामला लंबित नहीं है? (In which states there is no case painding in fast track special courts?)
साथियों, हमने आपको उन राज्यों की जानकारी दी, जिनमें फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी मामले लंबित हैं। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसे कई राज्य हैं, जहां फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट में एक भी मामला लंबित नहीं है। इनमें सात केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। इनके नाम अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, दमन एवं दीव, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, पुडुचेरी एवं चंडीगढ़ हैं।
दोस्तों, आइए अब एक नजर उन बड़े मामलों में डालते हैं, जिन पर हमारे देश में कोर्ट में सुनवाई हुई है। इनमें सबसे पहले निर्भया कांड का नाम लिया जा सकता है। आज से करीब 11 वर्ष पूर्व दिल्ली में हुए इस सामूहिक दुष्कर्म के केस ने पूरे देश को हिला दिया था। उस वक्त तत्कालीन मनमोहन सरकार ने मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का फैसला लिया था। इसके पश्चात तेलंगाना रेप केस भी काफी चर्चा में रहा। हाल फिलहाल में ज्ञानवापी केस में भी मामले की जल्दी सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया था।
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फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या होती है?
मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए यह कोर्ट गठित की जाती है।
एफटीएससी का क्या अर्थ है?
ये फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट होती है। इसे शार्ट में एफटीएससी कहा जाता है। यह नाबालिगों के खिलाफ रेप, नाबालिगों के शोषण यानी पॉक्सो एक्ट के तहत तेजी से सुनवाई के लिए गठित की जाती हैं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कैसे किया जाता है?
राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट के परामर्श से इन कोर्ट का गठन किया जाता है।
भारत में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत कब हुई?
भारत में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत आज से करीब 23 वर्ष पूर्व सन् 2000 में हुई।
फास्ट ट्रैक कोर्ट के सबसे अधिक मामले कहां लंबित हैं?
जनसंख्या के आधार पर देश के सबसे बड़े राज्य माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में ही फास्ट ट्रैक कोर्ट के सबसे अधिक मामले लंबित हैं।
दोस्तों, हमने इस पोस्ट (post) में आपसे फास्ट ट्रैक कोर्ट के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उम्मीद करते हैं कि आपको यह जानकारी बेहद उपयोगी लगी होगी। यदि इसी प्रकार की जानकारी परक पोस्ट आप हमसे चाहते हैं तो उसके लिए नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके हमें बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।
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