|| फाइनेंस कंपनी के क्या-क्या अधिकार हैं? | Finance company rights in Hindi | Finance company ke adhikar | Finance company rules in Hindi | रिकवरी एजेंट्स रखने का अधिकार | Finance company recovery agents | लोन का निपटारा क्या होता है? ||
Finance company rights in Hindi :- देश में कई तरह की फाइनेंस कंपनी होती है जो लोगों को लोन देने और अन्य आर्थिक गतिविधियाँ करने का काम कर रही होती है। ऐसे में देश के सभी बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाएं फाइनेंस कंपनी के अंतर्गत ही आती (Finance company ke adhikar) है। अब आपको यह जानने का अधिकार है कि इन फाइनेंस कंपनी के क्या कुछ अधिकार होते हैं या भारतीय कानून और RBI इन्हें किस किस तरह की शक्तियां व आधार प्रदान करता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि फाइनेंस कंपनियों के पास किस तरह के अधिकार होते हैं जो आपके ऊपर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकते हैं।
आज के इस लेख में हम मुख्य तौर पर फाइनेंस कंपनियों को मिले तरह तरह के अधिकारों और उनकी शक्तियों का विस्तार से वर्णन करने वाले (Loan recovery rights in Hindi) हैं। ऐसे में आपको यह जानने में सुविधा होगी कि वह लोन नहीं चुकाने वाले या अपने ग्राहकों पर किस तरह का असर डालती है या डाल सकती है। इसी के साथ ही भारतीय कानून व RBI के नियमों के अनुसार आपको किस तरह के अधिकार मिले हुए हैं, वह भी आपको बताये जाएंगे। आइये जाने फाइनेंस कंपनियों के अधिकारों के बारे में विस्तार से।
फाइनेंस कंपनी के क्या-क्या अधिकार हैं? (Finance company rights in Hindi)
यहाँ हम मुख्य तौर पर फाइनेंस कंपनी को मिले अधिकारों के बारे में ही बात करने वाले हैं किन्तु इससे पहले आपका यह समझना जरुरी है कि आखिरकार यह फाइनेंस कंपनी होती क्या है और इनका क्या कुछ काम होता है। ऐसे में वह हरेक संस्था या कंपनी या उद्योग या अन्य कोई चीज़ जो लोगों के साथ वित्तीय लेनदेन करती है, जैसे कि उनका पैसा या अन्य कीमती चीजें अपने पास सेव रखना, उन्हें तरह तरह की वित्तीय सुविधाएँ देना, उदाहरण के तौर पर लोन देना या लॉकर की व्यवस्था उपलब्ध करवाना या ऑनलाइन पेमेंट या ऐसी ही कुछ सुविधा देना, फाइनेंस कंपनी कहलाती है।
तो आप इसे बैंक के जरिये समझ सकते हैं। बैंक इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है लेकिन केवल बैंक ही फाइनेंस कंपनी के अंतर्गत नहीं आते हैं। इसके अंतर्गत आने वाली कई तरह की संस्थाएं भी होती है जो लोगों को लोन देन वाली, फाइनेंस का काम करने वाले व्यापारी, उद्योग, उनके स्टार्ट अप को शुरू करवाने में सहायता करने वाली कंपनियां इत्यादि होती है। तो ऐसे में वह हरेक कंपनी जो लोगों के साथ आर्थिक तौर पर जुड़ी हुई है, फाइनेंस कंपनी कहलाती है।
अब इस फाइनेंस कंपनी के कई तरह के अधिकार होते हैं क्योंकि इन्हें कई बार और बहुत से लोगों से प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति उनके द्वारा दिया गया पैसा नहीं लौटा रहा है अर्थात लोन की किश्तों का समय पर भुगतान नहीं कर रहा है या उसने बैंक के कुछ नियम या शर्तों की अवहेलना की है या ऐसा ही कुछ। ऐसे में भारत सरकार व न्याय व्यवस्था ने हरेक फाइनेंस कंपनी को कुछ अधिकार व शक्तियां प्रदान की हुई है। आइये उसके बारे में जान लेते हैं।
नियम बनाने का अधिकार (Finance company rules in Hindi)
हर फाइनेंस कंपनी अलग होती है और उसके नियम व शर्तें भी अलग होती है। ऐसे में भारत सरकार व RBI ने उन्हें अपने अनुसार नियम व शर्तें बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की हुई है लेकिन वह RBI के द्वारा बनाये गए नियमों के विरुद्ध नहीं होने चाहिए। कहने का अर्थ यह हुआ कि फाइनेंस कंपनी का कोई भी नियम या शर्त, RBI के बनाये गए किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं करता हुआ होना चाहिए। इसके अलावा वे किसी भी तरह का नियम और कड़ी शर्तों का प्रावधान रख सकती है।
ऐसे में एक फाइनेंस कंपनी पूरी तरह से अपनी कार्य प्रणाली को चलाये रखने और लाभ कमाने के उद्देश्य से किसी भी तरह के नियम को बनाने और ग्राहकों से उस पर हस्ताक्षर करवाने के लिए स्वतंत्र होती है। अब यह ग्राहक या उपभोक्ता पर निर्भर करता है कि वह उस फाइनेंस कंपनी की वह नियम या शर्तें मानता है या नहीं। वह चाहे तो उस फाइनेंस कंपनी के साथ काम कर सकता है या नहीं भी।
ग्राहक की संपत्ति या अन्य चीज़ के डाक्यूमेंट्स गिरवी रखने का अधिकार
जब कोई ग्राहक बैंक में आता है और किसी चीज़ के लिए लोन मांगता है या अन्य कोई सेवा की मांग करता है तो बैंक अपने नियम व शर्तों के अनुसार लोन की राशि के हिसाब से उसकी संपत्ति या अन्य किसी कीमती चीज़ के डाक्यूमेंट्स या उस चीज़ को ही अपने पास गिरवी रख सकती है। ऐसा बैंक या फाइनेंस कंपनी के द्वारा इसलिए किया जाता है ताकि भविष्य में किसी तरह की अनहोनी से बचा जा सके।
बहुत से बैंक इसके लिए ब्लेंक चेक भी रख लेते हैं क्योंकि इनके बाउंस होने की स्थिति में उस ग्राहक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। साथ ही कुछ बैंक अपने पास ग्राहक का सोना, अन्य बहुमूल्य वस्तुएं, प्रॉपर्टी के कागजात इत्यादि भी रख लेते हैं। फाइनेंस कंपनी को यह सब रखने का पूरा अधिकार भारतीय न्याय व्यवस्था प्रदान करती है।
रिकवरी एजेंट्स रखने का अधिकार (Finance company recovery agents)
अब बैंकों को बहुत बार प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अब मान लीजिये कि उस बैंक ने एक दिन में 100 लोगों को एक करोड़ रुपये का लोन दिया। उनके लिए लोन की शर्तें, राशि और अवधि अलग अलग हो सकती है किन्तु इस बात की क्या गारंटी है कि सभी व्यक्ति समय पर और सही से अपने लोन की राशि का पूरा भुगतान कर दे। बहुत बार ऐसा देखने में आता है कि 100 में से 2 से 3 लोग ऐसे निकल ही जाते हैं जो लोन की राशि को चुकाने में आनाकानी करते हैं।
ऐसे में हर फाइनेंस कंपनी को रिकवरी एजेंट्स रखने का अधिकार होता है। यह वे लोग होते हैं जो संबंधित व्यक्ति से बात करके या उन पर तरह तरह की कार्यवाही कर लोन की राशि को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यदि बात नहीं बनती है तो वे उस ग्राहक को यह भी बताते हैं कि उसके विरुद्ध क्या कुछ कार्यवाही की जा सकती है। आज के समय में लगभग हर फाइनेंस कंपनी के द्वारा रिकवरी एजेंट्स को रखा जाता है।
ग्राहकों से सुबह 7 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक संचार का अधिकार
अब आपको अपनी फाइनेंस कंपनी या बैंक के द्वारा सुबह से लेकर शाम तक कभी भी कोई भी कॉल आ सकता है, ईमेल आ सकता है या मोबाइल पर मैसेज और यहाँ तक कि व्हाट्सऐप भी आ सकता है। तो आप यह मत सोचिये कि यह कैसे आ रहा है क्योंकि उन्हें आपके साथ बातचीत करने या संचार करने का पूरा अधिकार होता है। आप जिस भी फाइनेंस कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं या उनके ग्राहक हैं तो वे आपसे किसी भी माध्यम से संपर्क साध सकती है।
यहाँ तक कि उनके अधिकारी या कर्मचारी सुबह 7 बजे से लेकर शाम के 7 बजे तक आपके घर या ऑफिस में आकर आपसे मिल भी सकते हैं या आपसे अपॉइंटमेंट माँग सकते हैं। इसके अलावा वे संचार के अन्य किसी भी विकल्प को अपना सकते हैं ताकि आपको किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी दी जा सके या अन्य कोई बातचीत की जा सके।
वार्षिक, तिमाही या मासिक तौर पर ग्राहक के पैसे काटने का अधिकार
फाइनेंस कंपनी के द्वारा अपने ग्राहकों को कई तरह की सुविधाएँ प्रदान की जाती है। अब आप अपने बैंक को ही ले लीजिये। आपका जिस भी बैंक में खाता होगा, वहां से आपको कई तरह की ऑफलाइन व ऑनलाइन सुविधाओं का लाभ उठाने को मिलता होगा। जैसे कि आपके पास बैंक की ऐप होगी और आपको घर बैठे ही ऑनलाइन तरीके से कई तरह की बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिलता होगा। आप अपने बैंक खाते के जरिये किसी भी अन्य पेमेंट ऐप से ऑनलाइन भुगतान कर सकते हैं।
इसी तरह ही आपको कई तरह की सुविधाएँ आपकी फाइनेंस कंपनी के द्वारा दी जाती है जो ऑफलाइन व ऑनलाइन किसी भी तरह की हो सकती है। ऐसे में हर बैंक या फाइनेंस कंपनी अपने बनाये नियम व शर्तों के अनुसार आपके खाते में से कुछ रूपये चार्ज के तौर पर हर वर्ष या तीन महीने में या मसिक तौर पर काटता है। यह आप अपने बैंक से पता कर सकते हैं या जब आपने उसमें खाता खुलवाया था, तब जान सकते हैं। फाइनेंस कंपनी अपने द्वारा सेवाओं को देने के बदले में ग्राहक से पैसे वसूलने का अधिकार रखती है।
लोन नहीं चुकाने पर कानूनी कार्यवाही का अधिकार (Finance company legal rights in Hindi)
अब जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि फाइनेंस कंपनी के द्वारा जितने भी लोगों को लोन दिया जाता है, उसमें से कुछ ऐसे भी निकल जाते हैं जो लोन की राशि को नहीं चुकाते हैं या जान बूझकर ऐसा करते हैं या एक निश्चित अवधि बीत जाने के बाद भी उसे चुका पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में बैंक के द्वारा रिकवरी एजेंट्स की सहायता से तो पैसों को वापस लाने का प्रयास किया जाता है लेकिन जब सभी तरह के प्रयास विफल रहते हैं तो बैंक या फाइनेंस कंपनी उस व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही करने का भी अधिकार रखती है।
इसके लिए फाइनेंस कंपनी के द्वारा लोन देने के नियम व शर्तों के आधार पर कोर्ट में केस किया जाता है और उसके लिए एक वकील रखा जाता है। इसके अलावा फाइनेंस कंपनी सभी तरह के दस्तावेजों और संबंधित कार्यवाही को कोर्ट के समक्ष रखती है और संबंधित व्यक्ति को कानूनन दंड दिलवाने का प्रयास करती है।
ग्राहक की संपत्ति व अन्य कीमती चीज़ जब्त करने का अधिकार
इतना ही नहीं, बल्कि भारतीय कानून और न्यायिक व्यवस्था ने फाइनेंस कंपनी को ग्राहक की संपत्ति और अन्य कीमती सामान को जब्त करने का भी अधिकार दिया हुआ है। यह आप भगौड़े विजय माल्या व अन्य व्यापारियों का उदाहरण लेकर समझ सकते हैं जिसमें उनकी भारत में स्थित संपत्ति व अन्य चीज़ों को जब्त कर उसे नीलाम कर दिया गया है। ऐसे में बैंक किसी भी ऐसे व्यक्ति की संपत्ति को जब्त करने का अधिकार रखता है जो समय पर उसका लोन नहीं चुकाता है और ना ही उसके लिए प्रयास करता है।
इसके लिए फाइनेंस कंपनी के पास उसकी चल व अचल संपत्ति को अपने कब्जे में लेने, उसे बेचने या अपने पास रखने या उसको तोड़ देने इत्यादि सभी का अधिकार होता है। एक तरह से उस व्यक्ति की संपत्ति अब बैंक की संपत्ति बन जाती है जिसको लेकर बैंक कोई भी निर्णय ले सकता है। इन सभी के अलावा वह उस व्यक्ति की कोई अन्य बहुमूल्य वस्तु पर भी कब्ज़ा कर सकता है जिससे लोन की राशि की भरपाई की जा सके।
लोन नहीं चुकाने पर ग्राहक के अधिकार
अब आप यह सोच कर निराश मत हो जाइये कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था ने सभी तरह के अधिकार केवल फाइनेंस कंपनियों को ही दे दिए हैं और उसमें ग्राहकों का कुछ भी ध्यान नहीं रखा है। अब ऐसे लोगों से तो किसी को सहानुभूति नहीं होनी चाहिए जो जान बूझकर लोन नहीं चुकाते हैं लेकिन हम सभी के मामले में ऐसा नहीं कह सकते हैं।
कई बार यह देखने में आता है कि व्यक्ति की वित्तीय स्थिति अचानक से ख़राब हो जाती है जो किसी भी कारण से हो सकती है और उसके फलस्वरूप वह लोन की बाकि राशि को चुकाने में उस समय के लिए या हमेशा के लिए असमर्थ हो जाता है। ऐसे में उस समय या सभी ऐसे व्यक्तियों के लिए जो लोन की राशि को नहीं चुका पा रहे हैं, उनके क्या कुछ अधिकार होते हैं, आज वह हम आपको बताने जा रहे हैं।
- बैंक के द्वारा आपसे लोन की राशि को वापस प्राप्त करने के लिए जिन रिकवरी एजेंट्स को रखा जाता है, वे किसी भी तरह से आपको धमका नहीं सकते और ना ही मारपीट कर सकते हैं। वे बस आपको सूचित करने या आपको आगे की कार्यवाही के बारे में बता सकते हैं। यदि उनके द्वारा धमकाया जाता है तो आप इसकी शिकायत बैंक में या फिर RBI से कर सकते हैं।
- लोन नहीं चुकाने पर बैंक आपको सीधा ही नोटिस नहीं भेज सकता है, बल्कि यह 90 दिन या 3 माह तक लगातार लोन की राशि नही चुकाने पर मिलता है। ऐसे में आप 3 माह तक लोन नहीं चुकायेंगे तो बैंक आपके घर पर एक सामान्य नोटिस भिजवाता है।
- यदि आप उस नोटिस का उत्तर नहीं देते हैं तो 2 माह या 60 दिन के पश्चात बैंक आपके घर पर एक कानूनी नोटिस भिजवाता है। ऐसे में आपको उस कानूनी नोटिस का उत्तर देना होता है अन्यथा आपके विरुद्ध कार्यवाही हो सकती है।
- अब यदि आप उस कानूनी नोटिस का भी उत्तर नहीं देते हैं तो आपकी संपत्ति नीलाम करने से पहले बैंक उसके लिए एक माह पहले का सार्वजनिक नोटिस जारी करता है। उस नोटिस में संपत्ति की नीलामी की तिथि, बेसिक मूल्य सहित अन्य जानकारी लिखी हुई होती है।
- आपकी संपत्ति या अन्य चीज़ की नीलामी के बाद बैंक उस लोन की राशि को वसूल लेता है किन्तु आपकी संपत्ति लोन की राशि की तुलना में अधिक राशि में बिकी है तो बैंक लोन की राशि को काटने के बाद बची हुई राशि को आपको ही पुनः लौटा देता है।
इस तरह से भारतीय न्यायिक व्यवस्था ने फाइनेंस कंपनियों को कई तरह के अधिकार प्रदान किये हैं तो उपभोक्ता या ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भी उन्हें कई तरह के अधिकार दिए गए हैं। इसलिए आप सभी का अपने अपने अधिकारों के बारे में जानना जरुरी है ताकि कोई भी आपको डरा या धमका नहीं सके।
फाइनेंस कंपनी के क्या-क्या अधिकार हैं – Related FAQs
प्रश्न: लोन डिफाल्टर के क्या अधिकार हैं?
उत्तर: लोन डिफाल्टर के अधिकार हमने ऊपर के लेख में विस्तार से बताएं हैं जो आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: लोन का सेटलमेंट कैसे होता है?
उत्तर: यदि आप लोन को चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं तो बैंक या लोन देने वाली कंपनी आपके साथ बातचीत कर इसे एक बार के सेटलमेंट में बदल देती है और यह आप दोनों की सहमति से ही होता है।
प्रश्न: जब कोई कर्जदार कर्ज चुकाने में विफल रहता है?
उत्तर: जब कोई कर्जदार कर्ज चुकाने में विफल रहता है तो वह लोन देने वाली कंपनी से संपर्क करता है और विस्तार से अपनी समस्या बताता है। इसके बाद वह कंपनी और कर्जदार दोनों मिलकर इस समस्या का समाधान निकालते हैं।
प्रश्न: लोन का निपटारा क्या होता है?
उत्तर: बहुत बार यह देखने में आता है कि लोन लेने वाला उस राशि को वापस लौटाने में असमर्थ हो जाता है। ऐसे में लोन देने वाली कंपनी कुछ राशि को माफ़ कर देती है तो कुछ राशि उस व्यक्ति को चुकानी होती है।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि फाइनेंस कंपनी के क्या क्या अधिकार होते हैं। साथ ही आपने जाना कि लोन ना चुका पाने पर ग्राहक के क्या अधिकार होते हैं। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। यदि कोई प्रश्न आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।