हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार आया है। आज की तारीख में वे बड़े-बड़े पदों पर काम कर रही है और हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं। लेकिन पति की मृत्यु के बाद आज भी महिला का जीवन बहुत आसान नहीं है। यह तो भला हो हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम का, जिसने विधवा महिलाओं को अपने लिए एक बार और जीवनसाथी को पाने व बेहतर जिंदगी चुनने का मौका दिया। आज इस पोस्ट में हम आपको इसी अधिनियम के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं-
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम क्या है? (What is Hindu widow re-marriage act?)
मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम विधवाओं के पुनर्विवाह को वैध (valid) बनाता है। हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम में इस कानून में यह प्रावधान किया गया कि विधवा को भी शादी करने का हक होगा। विधवा पुनर्विवाह करना नाजायज नहीं होगा। भारत में विधवा महिलाओं का विवाह इसी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत होता है।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह कानून कब लागू हुआ? (When hindu widow remarriage act was implemented?)
साथियों, अब आपको जानकारी देते हैं कि यह हिंदू विधवा पुनर्विवाह कानून कब लागू हुआ? आपको बता दें कि इस अधिनियम को 16 जुलाई, सन् 1856 को पारित किया गया, जबकि यह एक्ट 26 जुलाई, सन् 1856 को लागू हुआ। आप यह भी जान लीजिए कि एक्ट को लॉर्ड डलहौजी (lord Dalhousie) के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया था, लेकिन इसे लॉर्ड कैनिंग (lord canning) द्वारा पारित किया गया।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्या प्रावधान किए गए? (What provisions have been made under hindu widow remarriage act?)
दोस्तों, आइए, अब जान लेते हैं कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं। ये इस प्रकार से हैं-
- इस अधिनियम के जरिए विधवा महिलाओं को भी शादी का हक मिला।
- इस कानून के जरिए पुनर्विवाह करने वाली विधवाओं को वे सभी अधिकार प्रदान किए गए, जो पहली बार शादी करने वाली महिला को प्राप्त होते हैं।
- इस कानून में यह साफ किया गया कि दो हिंदुओं के बीच हुआ विवाह अमान्य नहीं होगा। कानून यह साफ किया गया कि विधवाओं से शादी करना नाजायज नहीं होगा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि किसी भी हिंदू रीति-रिवाज और कानून की व्याख्या ऐसी शादी के विपरीत नहीं।
- विधवाओं से विवाह करने वाले पुरुषों को भी हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा (legal security) प्रदान करने का प्रावधान किया गया।
- इस एक्ट में विधवा को उसके प्रथम विवाह से मिली विरासत व अधिकार प्राप्त करने का भी हक होगा।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के तहत पहली शादी कब हुई? (When did first marriage held under hindu widow remarriage act?)
मित्रों, आपको बता दें कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के लागू होने के पश्चात इस अधिनियम के अंतर्गत पहला विवाह 7 दिसंबर, 1856 को उत्तरी कोलकाता (north Kolkata) में हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम- 1856 लागू होने से पूर्व भारत में विधवा महिलाओं की क्या स्थिति थी? (What was the condition of women before implementing hindu widow remarriage act-1856?)
दोस्तों, आपको बता दें कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 19वीं सदी में महिलाओं की स्थिति में एक बड़ा बदलाव था। इस अधिनियम को बनाने में महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रमुख भूमिका रही। इसके लिए उन्होंने हिंदू धर्म शास्त्रों का भी उल्लेख किया, बताया कि हिंदू धर्म में पूर्व में भी हिंदू विधवा पुनर्विवाह का प्रावधान रहा है। आपको बता दें दोस्तों कि हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम महिलाओं के सशक्तिकरण (women empowerment) की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम था।
दोस्तों, यह तो आप जानते ही होंगे कि उस समय महिलाओं के बीच शिक्षा का अभाव था। समाज में विधवाओं के पुनर्विवाह की इजाजत नहीं थी, भले ही बालिका बालिग हो और उसका विवाह संपन्न भी न हुआ था। देश के कुछ हिस्सों में प्रचलित रीति-रिवाजों के मुताबिक, विधवाओं और वह भी खास तौर पर उच्च जाति से संबंधित हिंदू विधवाओं से हर समय तपस्या में लीन रहने व एकांत जीवन जीने की उम्मीद की जाती थी।
विधवाओं को आम तौर पर मोटे कपड़े की सफेद साड़ी पहनने को विवश होना पड़ता था। उन्हें बहुधा अपने बाल मुंडवाने/कटवाने पड़ते थे। अक्सर उनका त्योहार व अन्य समारोहों से उनका बहिष्कार किया जाता था। ऐसा करने वालों में अधिकांशतः उनके परिवार के लोग ही शामिल रहते थे।
विभिन्न अदालतों ने विधवाओं के पक्ष में कौन-कौन से फैसले दिए हैं? (What decisions have been made by different courts in favour of the widows?)
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम में विधवा महिलाओं को कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त भारत में समय-समय पर हाई कोर्ट (high court) एवं सुप्रीम कोर्ट (supreme court) की ओर से भी विधवा महिलाओं के पक्ष में कई प्रकार के आदेश जारी किए गए हैं, जिनमें से कुछ आदेश इस प्रकार से हैं-
हिंदू विधवा महिला का भरण-पोषण ससुर करेगा :
दोस्तों, आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (chattisgarh high court) ने हिंदू विधवा महिला के भरण पोषण पर आदेश दिया। उसने कहा कि यदि किसी हिंदू विधवा महिला की आमदनी बहुत कम हो अथवा उसके पास इतनी संपत्ति भी न हो कि वह अपना भरण पोषण न कर सके तो वह अपने ससुर पर भरण पोषण का दावा कर सकती है। बेशक पति की मौत के बाद ससुर उस महिला को घर से निकाल दे अथवा महिला अपनी मर्जी से अलग रह रही हो, लेकिन ऐसी स्थिति में भी महिला ससुर पर भरण पोषण का दावा ठोक सकती है।
दूसरी शादी के बाद पहले पति की संपत्ति में हक :
मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा विधवा महिला के दूसरी शादी कर लेने पर उसका पहले पति की संपत्ति पर दावा संबंधी एक महत्वपूर्ण आदेश दिया गया है। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) ने साफ कहा कि भले ही विधवा महिला ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन इससे उसका मृत पति ( पहले पति) की संपत्ति पर हक खत्म नहीं हो जाता।
पति की संपत्ति पर पूरा हक :
सुप्रीम कोर्ट (supreme court) द्वारा महिला के संपत्ति पर सीमित अधिकार को लेकर यह अहम फैसला दिया है। इसके अनुसार यदि पति के जिंदा रहते किसी संपत्ति पर महिला का सीमित अधिकार है और पति के जीवित रहते उस संपत्ति की देखभाल का काम वही महिला कर रही है तो पति की मौत के बाद उस संपत्ति पर उसी महिला का पूरा अधिकार हो जाएगा। साफ है कि पति की मौत के साथ ही महिला का संपत्ति पर सीमित अधिकार पूर्ण अधिकार में बदल जाएगा। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 के सेक्शन 14(1) का हवाला दिया गया था।
पहले पति की संतान को भी दूसरे पति की संपत्ति में हक होगा :
दोस्तों, आपको बता दें कि हाईकोर्ट द्वारा इस संबंध में एक बेहद अहम फैसला दिया गया है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी विधवा महिला की वसीयत करने से पहले ही मौत हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में उसकी संतान का उसकी पैतृक संपत्ति में हिस्सा होगा। ऐसे में यदि कोई महिला दूसरा विवाह करती है, तो पहले पति से जन्मी संतान भी उसके दूसरे पति की संपत्ति में हिस्सेदार होगी।
मायका पक्ष भी उत्तराधिकार का हकदार :
मायका पक्ष के उत्तराधिकार के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक अहम फैसला सुनाया गया है। उसके द्वारा कहा गया कि यदि किसी हिंदू विधवा महिला की मौत हो जाती है और उसकी कोई संतान न हो या उसकी संपत्ति का कोई उत्तराधिकारी न हो तो उसके मायके के लोग भी उसकी संपत्ति के उत्तराधिकार के हकदार होते हैं।
पति की संपत्ति में विधवा का अधिकार :
भारतीय संविधान (constitution of India) में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम- 1956 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी महिला के पति की अचानक मौत हो जाती है और उसके द्वारा कोई वसीयत नहीं की गई है तो ऐसी स्थिति में उसकी विधवा पत्नी भी उसकी संपत्ति के एक हिस्से की हकदार होगी।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम कब पारित हुआ?
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम सन् 1856 में पारित हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम किसके कार्यकाल में तैयार किया गया?
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान तैयार किया गया।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम किसके कार्यकाल में लागू हुआ?
हिंदू विवाह अधिनियम हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लार्ड कैनिंग के कार्यकाल में लागू हुआ।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम से पहले महिलाओं की स्थिति क्या थी?
इस अधिनियम से पूर्व महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। इस बारे में अधिक आप ऊपर पोस्ट में जान सकते हैं।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम में क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं?
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के द्वारा विधवाओं को भी शादी का अधिकार दिया गया। इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के संबंध में हमने आपको ऊपर पोस्ट में विस्तार से बताया है। आप वहां से देख सकते हैं।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम में विधवाओं से विवाह करने वाले पुरुषों के लिए क्या प्रावधान है?
इस अधिनियम में विधवा महिलाओं से विवाह करने वाले पुरुषों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के अंतर्गत पहला विवाह कब और कहां हुआ?
इस अधिनियम के अंतर्गत पहला विवाह 17 अक्टूबर, सन् 1856 को पश्चिम कोलकाता में हुआ था।
क्या अदालतों द्वारा भी विधवा महिलाओं के पक्ष में आदेश दिए गए हैं?
जी हां भारत की विभिन्न अदालतों द्वारा समय-समय पर विधवा महिलाओं के पक्ष में आदेश जारी किए गए हैं। इनकी डिटेल हमने आपको ऊपर पोस्ट में दी है।
दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उम्मीद है कि इस अधिनियम के सभी प्रावधान आपको स्पष्ट हो गए होंगे। यदि इसी प्रकार के किसी अन्य अधिनियम के बारे में आप जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके हमें बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।
—————–