कोर्ट से बेल या जमानत कैसे ले? समाज में कई प्रकार के लोग रहते हैं। हर इंसान का स्वभाव, प्रकृति एक सी नहीं होती है। हर इंसान का अलग अलग सोचने का तरीका होता है। यह सोचने का तरीका ही किसी इंसान को अच्छे व्यक्तित्व बनाने में सफल होता है। हमारे समाज में कई प्रकार की गतिविधियां होती हैं कुछ अच्छे होती हैं तो कुछ बुरी। किसी गतिविधि को इंसान कितना सकारात्मक रूप से लेता है, वह उस इंसान के ऊपर ही निर्भर करता है।
समाज में जितनी ही बुरी गतिविधियां जैसे मौत, चोरी, लूटपाट, दहेज प्रताड़ना, भ्रूण हत्या होती रहती हैं। उसके आसपास का माहौल भी कुछ वैसा ही हो जाता है। आपने देखा होगा कि जब भी कोई अमानवीय गतिविधि होती है , तो सबसे ज्यादा असर इंसानों पर ही दिखाई देता है और यह असर सही नहीं होता है। ज्यादातर नकारात्मक असर देखने को ही मिलता है।
कानून की नजर में हर गुनाह के लिए अलग से दंड का प्रावधान है। आरोपी कुछ दिन की सजा के बाद जमानत पर रिहा हो जाता है। कई बार गुनाह के बड़े होने पर भी बेल देने का प्रावधान है। इस बात की पूरी छानबीन की जाती है कि बेल के बाद कहीं अमानवीय गतिविधि तो नहीं हो रही है?
जमानत क्या है? What is bail?
जैसा की आप जानतें हैं – जमानत एक कानूनी प्रक्रिया है, जहां किसी व्यक्ति द्वारा कोई जुर्म किया जाता है उस व्यक्ति को कारावास से छुड़ाने के लिए न्यायालय में कुछ संपत्ति जमा की जाती है। बेल के बाद आरोपी अपने घर में रह सकता है लेकिन उसे सुनवाई के समय न्यायालय में आना होता है। बेल के बाद आरोपी देश छोड़कर नहीं जा सकते और जब भी पुलिस ने न्यायालय से बुलावा आए तो हाजिरी लगाना भी अनिवार्य होता है।यदि आरोपी सुनवाई के लिए ना आए तो इसके लिए भी सजा बढ़ाई जा सकती है या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
बेल के प्रकार – Types of Bail
जमानत दो प्रकार के होते हैं –
1) जमानती अपराध – Bailable offense
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 के अनुसार जमानती अपराध निम्न समय लागू हो सकते हैं
यदि प्रथम अनुसूची में जमानत ही अपराध के रूप में दिखाया गया हो।
- तत्समम प्रतिवर्ती किसी विधि द्वारा जमानत अपराध बनाया गया हो।
- गैर जमानती अपराध से दिन भिन्न अन्य कोई अपराध हो।
2) गैर जमानती अपराध – Non bailable offense
इसके अंतर्गत ऐसे अपराध आते हैं, जो जमानत ही नहीं होते एवं जिसे प्रथम अनुसूची में गैर जमानती अपराध के रूप में अंकित किया गया हो। सामान्यता गंभीर प्रकृति के अपराधों को गैर जमानती बनाया गया है। ऐसे अपराधों में जमानत स्वीकार करना या न करना न्यायाधीश पर ही निर्भर करता है जैसे चोरी के लिए , गृह भेदन , अपराधिक न्याय भांग आदि गैर जमानती अपराध होते हैं। इनमें जमानत भारतीय दंड संहिता की धारा 437 के अंतर्गत आती है।
3) अग्रिम जमानत – Anticipatory bail
कानून के अनुसार अग्रिम जमानत में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार के पहले ही जमानत दे दिया जाए। यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी का अंदेशा हो , तो ऐसे में भी अग्रिम जमानत मिल जाती है। यह बेल पुलिस की सुनवाई तक जारी रहती है। बेल के लिए यह प्रावधान धारा 438 में दिया गया है ऐसे में आरोपी को मौका दिया जाता है जिससे अग्रिम जमानत का विरोध कर सकें।
बेल के लिए प्रतिभूति – Security for security
किसी आरोपी को जेल से छुड़ाने के लिए कोर्ट के समक्ष संपत्ति जमा होती है उसे प्रतिभूति या बांड कहा जाता है। कोर्ट इस बात से निश्चित रहती है कि आरोपी सुनवाई के लिए कोर्ट अवश्य आएगा। ऐसा नहीं होने पर आरोपी की जमानत रद्द कर दी जाती है। जैसे दिल्ली , राजस्थान में लोगों को बेल के लिए एक ही बेल देना होता है और हरियाणा , उत्तर प्रदेश में लोगों के ऊपर शिनाख्ती भी देना पड़ता है।
प्रतिभूति के प्रकार – Types of securities
बेल के लिए प्रतिभूति के तौर पर निम्न चीजें दे सकते हैं
- अपनी गाड़ी की आर सी
- रजिस्टर्ड जमीन के पेपर
- बैंक की एफडी
- इंदिरा विकास पत्र
- 3 महीने से कम पुरानी पे स्लिप
- ऑफिस आईडी कॉपी
बेल के आधार – Grounds of Bail in Hindi
- यदि कोई आरोपी व्यक्ति न्यायालय को अपनी संपत्ति जमा कर देता है, तो जमानत ही मामलों में जमानत मिल जाती है।
- यदि जमानती अपराध में कोई व्यक्ति 7 दिन के अंदर अपनी वारंटी नहीं देता है , तो कोर्ट उस व्यक्ति को खुद के मुचलके पर छोड़ देती है। इसमें प्रति प्रतिबंधात्मक कार्यवाही में नियम लागू नहीं होता है।
- अगर अपराधी अपनी सजा के आधी से ज्यादा सजा भुगत चुका हो , ऐसे में उस आरोपी को जमानत मिल सकती है। इस बात का विरोध भी किया जा सकता है फिर भी कानून की नजर में जमानत दिया जाता है।
- सीआरपीसी की धारा 436a के अनुसार गैर जमानती अपराध में जब आरोपी को बिना वारंट की पुलिस न्यायालय लेकर आए या आरोपी खुद ही न्यायालय आ जाए तो मजिस्ट्रेट जमानत देकर छोड़ सकता है। ऐसा तभी हो सकता है यदि अपराधी को मृत्युदंड की सजा ना मिली हो , आजीवन कारावास ना हुआ हो, पहले से ही कोई दोषी ना हो अथवा कोई महिला या बीमार हो।
- साथ ही सीआरपीसी की धारा 437 के तहत मजिस्ट्रेट जमानत ना दें , तो सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट में बेल के लिए अर्जी दी जा सकती है।
- सीआरपीसी की धारा 439 के अनुसार गैर जमानती अपराध में यदि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट आरोपी को जमानत ना दें , ऐसे में आरोपी हाई कोर्ट , सेशन कोर्ट में जमानत की अर्जी देने पर बेल मिल सकती है।
- जब न्यायालय किसी आरोपी को दोष मुक्त करते हुए फैसला कर दे तब इस बात से भी जमानत दी जा सकती है कि जरूरत पड़ने पर न्यायालय में आरोपी को हाजिर होना होगा। ऐसी जमानत की अवधि 6 महीने तक होती है।
- सीआरपीसी की धारा 437 ए के अनुसार जब व्यक्ति को डर सताने लगे या उसे गैर जमानती अपराध में गिरफ्तार किया जाए तो अपराधी हाई कोर्ट सेशन कोर्ट में बेल के लिए अर्जी दे सकता है।
- साथ ही सीआरपीसी की धारा 442 के अनुसार यदि कोर्ट को यह लगे कि अपराधी किसी भूल, कपट या अलग कारण से जमानत मंजूर की गई है , तो ऐसी स्थिति में पर्याप्त कारणों से फिर से जेल भेजा जा सकता है।
- सीआरपीसी की धारा 443 के अनुसार यदि आरोपी को जमानत दी जाए यदि वह जमानत रद्द करने के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। आवेदन को मान लिया जाता है। मजिस्ट्रेट फिर से जमानत का नया आवेदन पेश करने का निर्देश देता है। अगर आरोपी जमानत पेश नहीं करता तो आरोपी को जेल भी भेजा जा सकता है।
- सीआरपीसी की धारा 442 के तहत जब आरोपी कोई जमानतदार पेश नहीं कर पा रहा है , तो आरोपी जमानत की राशि नगद जमा करने या बैंक एफडी वचन पत्र जमा करने के लिए कोर्ट में आवेदन कर सकता है। कोर्ट द्वारा अनुमति देने पर आरोपी को रिहा भी किया जा सकता है।
- साथ ही सीआरपीसी की धारा 445 के तहत जब आरोपी न्यायालय से गैर हाजिर हो और जमानत की शर्तों का पालन ना करें तो कोर्ट जमानत जप्त कर लेता है और उस मुचलके की राशि जमा करने को भी कहा जा सकता है।
इसी प्रकार सीआरपीसी की धाराओं के अंतर्गत बेल के अलग-अलग तरीके दिए गए हैं जिनके माध्यम से आरोपी को जमानत दिया जा सकता है।
अग्रिम जमानत कहाँ दाखिल हो सकती है? Where can I file anticipatory bail?
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय की आर पी सी की धारा 438 के तहत बराबर अधिकार प्राप्त है। आरोपियों को दोनों ही अदालत में अर्जी देने से जमानत मिल सकती है। प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रावधान संविधान में प्रदत्त व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अनावश्यक उत्पीड़न की गारंटी के तहत लागू किया गया है , जो आरोपी निराधार साबित होते हैं के उत्पीड़न से बचा जा सकता है। अग्रिम जमानत से संबंधित न्यायालय से आरोपी को समन जारी किए जाने तक प्रभावी रहेगा। सीआरपीसी की धारा के तहत आरोपी नियमित जमानत ले सकता है लेकिन सत्र न्यायालय में अर्जी खारिज होने पर हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की जा सके यह सही नहीं है।
जमानत दायर करने की सही प्रक्रिया क्या है? What is the correct procedure for filing bail?
किसी भी व्यक्ति को अपराधी ठहराए जाने पर बेल के लिए आवेदन दायर करने का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है। जिसमें आरोपी व्यक्ति कानून के समक्ष रिहाई की मांग करता है। आरोप लगने पर जमानत कानूनी हिरासत से हासिल करने की प्रक्रिया है। जिसके लिए आरोपी व्यक्ति को जमानत बांड भरना होता है। अपराधी को आवश्यकता पड़ने पर पुलिस के समक्ष प्रस्तुत भी होना होता है।
आरोपी को दूसरी अनुसूची में दिए गए फॉर्म 45 को अदालत में प्रस्तुत करना होगा जिसमें उसके मामले की सुनवाई हो रही है। यदि गैर जमानती अपराध का आरोप लगा है , तो अदालत के समक्ष फॉर्म प्रस्तुत करते हैं जिसमें मामले की सुनवाई होती है। यदि न्यायालय संतुष्ट है ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए जमानत से इनकार भी किया जा सकता है।
जमानत प्रार्थना पत्र का प्रारूप – Bail application format – जमानत की अर्जी का प्रारूप
अदालत मैं फॉर्म नंबर 45 श्री……………………. पुलिस स्टेशन सुनवाई की अगली तारीख ………….……..एफ आर आई धारा के अंतर्गत भेजा गया ………………जमानत बांड …………….पिता श्री ………………..के बेटे को जेल भेजा गया जो……………… के निवासी को ………..……….माननीय न्यायालय द्वारा इस अपराध के लिए आरोपित किए जाने से पहले पुलिस स्टेशन लाया गया। पुलिस स्टेशन के अधिकारी प्रभारी द्वारा वारंट के गिरफ्तार किया गया है जिससे इस माननीय न्यायालय द्वारा………………….. अपराध के साथ आरोपित किया गया था और इस तरह के अधिकारी और अदालत के समक्ष मेरी उपस्थिति के लिए बेल देने के लिए आवश्यक है कि मैं इस शर्त पर हूं कि प्रत्येक तीन अधिकारी या न्यायालय में उपस्थित हो जिस पर इस तरह के आरोप के संबंध में कोई भी जांच या परीक्षा आयोजित किया जाता है। मेरे द्वारा वहां चूक करने के मामले में जिससे सरकार के की राशि ……………देने के लिए बाध्य हूं मैं……………… का पुत्र …………………निवासी हूं ………………. …..के लिए स्वयं का उपरोक्त घोषित करता हूं। श्री……………………….. वह प्रभारी अधिकारी के रूप में उपस्थित होगा।………………….. पुलिस स्टेशन या न्यायालय के श्री…………………… हर दिन जिस पर आरोप की जांच की जाती है या ऐसे आरोप की जाती है उसके खिलाफ आरोप का जवाब देने के लिए ऐसी जांच के प्रयोजन के लिए अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होगा मैंने सरकार को रुपए की राशि जप्त करने के लिए बाध्य किया है।
…………………. दिनांक…………….. दिन
………………….20…………. दिन
गवाह…………………..
………………….
हस्ताक्षर हाल की जमानत अर्जी का प्रारूप अपराध और परिस्थितियों की प्रकृति पर निर्भर करता है जिसके तहत एक अभियुक्त व्यक्ति बेल देने का प्रयास करता है।
जमानत कौन दे सकता है? Who can give bail?
कोई व्यक्ति जिसकी हैसियत बंधपत्र की राशि चुका सकता हो और आसानी से उतनी राशि वसूल की जा सके वह जमानत दे सकता है। इसके लिए जमानतदार व स्वामित्व की उतनी संपत्ति का कोई प्रमाण होना चाहिए जैसे वाहन का रजिस्ट्रेशन, मकान के दस्तावेज आदि। जमानतदार की फोटो कॉपी भी होना अनिवार्य है तथा घर के पते का प्रमाण पत्र भी अनिवार्य होता है जिसे बंध पत्र के साथ लगाया जा सकता है।
कितने लोगों को जमानत दे सकते हैं? How many people can be given bail?
कोई व्यक्ति कितनी भी जमानत दे सकता है मगर शर्त यह है कि प्रस्तुत बंधपत्र और उसकी हैसियत से न्यायालय की संतुष्टि हो जाए। आमतौर पर एक मुकदमे में एक जमानतदार ही जमानत दे सकता है क्योंकि 1 से अधिक लोगों के लिए एक ही जमानत होना पसंद नहीं किया जाता। एक जमानतदार जिसने पूर्व में एक जमानत दे रखी हो और उसी अदालत में दोबारा किसी दूसरे मुकदमे में बेल देने लगे, तो न्यायालय को पता लगने पर उस व्यक्ति के बंधपत्र पत्र को अस्वीकार भी किया जा सकता है।
जमानती बनना आसान नहीं है? Isn’t it easy to be bailable?
किसी भी केस के लिए जमानती बनना आसान नहीं होता। अगर जमानत आरोपी का रिश्तेदार है, तो इस बात का पूरा जिक्र किया जाता है। जमानती इस बात को स्वीकार करता है कि अदालत के निर्देशानुसार वह आरोपी को न्यायालय में पेश करेगा। इसके अलावा प्रॉपर्टी के डिपॉजिट जमा करने होते हैं। किसी तरह का संदेह होने पर वेरिफिकेशन किया जा सकता है। आरोपी को अदालत के द्वारा दी गई तारीख को ना ला सकें जमानती द्वारा पेश की गई राशि जमानत जप्त कर लिया जाता है। अगर जमानतदार की जानकारी फर्जी निकले तो कानूनी कार्यवाही भी की जा सकती है। किसी प्रकार के संदेह होने पर भी कार्यवाही की जा सकती है।
जमानत वह प्रक्रिया है, जब गिरफ्तार होते हुए भी रिहा हो सकते हैं। जमानत होने के बाद के लिए कानून की कुछ शर्ते मानना जरूरी है। अगर कोई भी आरोपी जल्द से जल्द जेल से बाहर आना चाहें , तो बेल के आधार को मानना होगा। जमानत आरोपी का कानूनी अधिकार है। किसी भी असावधानी के होने पर फिर से गिरफ्तारी का आदेश पारित हो सकता है इसलिए कानूनी कार्यवाही के रहते हुए जमानत की कोशिश करके सही तरीके से जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए।