कार्यपालिका क्या है? | कार्यपालिका के कार्य और प्रकार | Karyapalika kya hai

|| कार्यपालिका क्या है? | Karyapalika kya hai | कार्यपालिका के प्रकार | Karyapalika ke prakar | कार्यपालिका के कार्य | Kendriya karyapalika kya hai in Hindi | Rajya karyapalika kise kahate hain | कार्यपालिका के कितने अंग होते हैं? ||

Karyapalika kya hai :- हर वह देश जहाँ पर लोकतंत्र होता है, वहां पर उस लोकतंत्र के चार आधार या स्तंभ होते हैं। इनके नाम विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा पत्रकारिता होते हैं। इसमें हर किसी का अपना अपना काम होता है और सभी उसी को ध्यान में रखकर ही अपने अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे होते हैं। अब इसमें जो कार्यपालिका होती है उसका कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि उसका जुड़ाव अन्य नामों से भी होता (Karyapalika kya hai in Hindi) है।

एक तरह से इसी कार्यपालिका को ही विधायिका, न्यायपालिका तथा पत्रकारिता के साथ समन्वय स्थापित करना होता है और सभी कार्य करने होते हैं जो लोक प्रशासन के लिए या लोकतंत्र के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसे में यह कार्यपालिका वास्तविकता में होती क्या है और किस तरह से कार्य करती है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज का यह लेख कार्यपालिका को ध्यान में रखकर और उसके बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए ही लिखा गया (Karyapalika kya hota hai) है।

आपके मन में कार्यपालिका को लेकर कई तरह के प्रश्न हो सकते हैं और आप उनके बारे में विस्तार से जानने को भी इच्छुक होंगे। यही कारण है कि हम आपको कार्यपालिका के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी विस्तृत रूप में देंगे। यहाँ आपको कार्यपालिका की परिभाषा, प्रकार, शक्तियों व कार्यों इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी (Karyapalika ka matlab kya hota hai) मिलेगी।

कार्यपालिका क्या है? (Karyapalika kya hai)

हम सभी यह तो जानते हैं कि कार्यपालिका संविधान का एक महत्वपूर्ण अंग होता है जो देश को चलाने का कार्य करता है किन्तु यह वास्तविकता में है क्या चीज़ और किसे हम कार्यपालिका के संदर्भ में रखकर देख सकते हैं। क्या हमारे नेता भी जिन्हें हम चुनते हैं, वे कार्यपालिका के अंतर्गत आते हैं? यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि जो भी नेता होते हैं या जिन्हें हम चुनते हैं और जो हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, वे कार्यपालिका के नहीं अपितु विधायिका के अंग होते (Karyapalika ka matlab kya hota hai hindi mein) हैं।

कार्यपालिका क्या है कार्यपालिका के कार्य और प्रकार Karyapalika kya hai

कार्यपालिका को हम आज की सरल भाषा में परिभाषित करना चाहें तो उन्हें हम सरकारी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी कह सकते हैं। एक तरह से किसी भी देश की लोकतांत्रिक सरकार के अंतर्गत आने वाले सभी तरह के अधिकारी व कर्मचारी जो कार्य करते हैं, उन्हें कार्यपालिका कहा जाता है। इसी कारण इनका नाम कार्य पालिका रखा गया है अर्थात कार्य की पालना करने वाले कर्मचारी व (Karyapalika kya hoti hai) अधिकारी।

अब आप सोच रहे होंगे कि सरकारी अधिकारी व कर्मचारी तो कई तरह के होते हैं, उसमे तो हमारे शहर का जिलाधिकारी अर्थात कलेक्टर भी आता है तो वहीं नाली की सफाई करने वाला कर्मचारी भी। तो क्या वे दोनों ही कार्यपालिका का अंग होते हैं। यदि आपके मन में यह प्रश्न है तो हम आपको बता दें कि, जी हां, दोनों ही कार्यपालिका के ही अंग होते हैं। बस अंतर है तो कार्यपालिका में उनके पद व कार्य को लेकर। एक तरह से दोनों ही अपने पद के अनुसार अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे होते हैं लेकिन होते दोनों कार्यपालिका के अंग ही (Karyapalika kya h) हैं।

आसान भाषा में कहा जाए तो किसी भी देश में हर वह कर्मचारी व अधिकारी फिर चाहे वह छोटे स्तर पर कार्य कर रहा हो या बड़े स्तर पर, फिर चाहे वह केंद्र सरकार के अधीन रह कर कार्य कर रहा हो या राज्य सरकार के या स्थानीय स्तर की सरकार के अंतर्गत, वह कार्यपालिका का अंग होता है। इस तरह से कार्यपालिका की परिभाषा बहुत ही सरल व सामान्य है जिसमें देश के सभी सरकारी अधिकारी व सरकारी कर्मचारी कार्यपालिका का अंग होते हैं और यह हमने आपको ऊपर ही बता दिया था।

कार्यपालिका के प्रकार (Karyapalika ke prakar)

अब आपने कार्यपालिका की परिभाषा के बारे में तो जान लिया है लेकिन इस कार्यपालिका के क्या कुछ प्रकार होते हैं, इसके बारे में जानना बहुत ही जरुरी हो जाता है। तो इसके बारे में हमने आपको ऊपर ही हिंट दे दिया था कि हमारे देश में कई तरह की विधायिकाओं के अंतर्गत काम करने वाले कार्यपालिका के सदस्यों के प्रकार होते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि लोकतंत्र के चार स्तंभों में से विधायिका को चुनने का अधिकार क्षेत्र हमारा होता (Karyapalika ke prakar bataiye) है।

अब यह विधायिका भी एक तरह की नहीं होती है बल्कि इस में तीन तरह के पद या विधायिका के क्षेत्र बनाये गए होते है। सबसे ऊपर केंद्रीय विधायिका होती है जिनके तहत हम अपने सांसद चुनते हैं, फिर राजकीय विधायिका होती है जिसके तहत हम विधायक चुनते हैं और अंत में स्थानीय विधायिका के अंतर्गत पार्षदों व पंचों का चुनाव किया जाता है। ऐसे में इन विधायिका के अंतर्गत ही तरह तरह की कार्यपालिका की स्थापना की जाती है और उसी के अनुसार ही कार्यपालिका के प्रकार बदल जाते हैं, आइये इनके बारे में जाने।

केंद्रीय कार्यपालिका (Kendriya karyapalika)

अब कार्यपालिका के प्रकारों में यह प्रकार सर्वोच्च होता है और यह किसी भी देश की सबसे बड़ी कार्यपालिका मानी जाती है। हालाँकि इसमे भी वर्गों के आधार पर विभाजन किया जा सकता है क्योंकि इसमें भी अलग अलग श्रेणियों का समावेश होता (Kendriya karyapalika kya hai) है। कहने का अर्थ यह हुआ कि केंद्रीय कार्यपालिका में यह जरुरी नहीं है कि सभी सर्वोच्च अधिकारी ही हो क्योंकि इसमें कर्मचारियों की भर्ती भी की जाती है। ऐसे में जो केंद्रीय कार्यपालिका के कर्मचारी होंगे वे निश्चित तौर पर ही राज्य स्तरीय कार्यपालिका के अंतर्गत काम कर रहे अधिकारियों के नीचे ही आयेंगे।

ऐसे में हम कार्यपालिका में पदों के अनुसार श्रेणियों का भी विभाजन नीचे करेंगे ताकि आपको इसके बारे में उचित जानकारी हो सके। तो केंद्रीय कार्यपालिका वह कार्यपालिका होती है जिसके तहत काम करने वाले सभी अधिकारी व कर्मचारी केंद्र सरकार के अधीन रहकर कार्य करते हैं और उन्हें मुख्य रूप से उन्हीं के दिए गए दिशा निर्देश ही फॉलो करने होते हैं। इसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारत सरकार के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को केंद्रीय कार्यपालिका की श्रेणी या प्रकार में रखा जा सकता (Kendriya karyapalika kya hai in Hindi) है।

इस तरह की कार्यपालिका में मुख्य रूप से हमारे शहर के जिलाधिकारी आते हैं जिन्हें हम अंग्रेजी में कलेक्टर कहते हैं। अब जो कलेक्टर होता है, वह किसी भी शहर में कार्यपालिका का मुखिया होता है और उसके ऊपर कोई भी अन्य अधिकारी नहीं होता है। तो इस तरह से केंद्रीय कार्यपालिका को सबसे ऊपर रखा जाता है। यही कलेक्टर ही सभी केंद्रीय एजेंसियों, विदेशी संस्थाओं, सभी केंद्रीय कंपनियों इत्यादि में उच्च पदों पर कार्य करते हैं।

राज्य स्तरीय कार्यपालिका (Rajya karyapalika)

विधायिका का दूसरा अंग होता है राज्य की विधानसभा जहाँ पर उस राज्य के चुने गए विधायक बैठते हैं और उन पर मुख्यमंत्री का चुनाव किया जाता है। अब राज्य स्तर की विधायिका को चलाने के लिए भी कार्यपालिका की आवश्यकता होती है क्योंकि विधायिका तो जाकर काम करेगी नही। विधायिका का कार्य केवल नीतियों पर अपनी अनुमति प्रदान करना होता है या यूँ कहें कि अधिनियम बनाना होता है जबकि उनका पालन करवाना कार्यपालिका का ही कार्य होता (Rajya karyapalika kya hai) है।

ऐसे में राज्य स्तर पर व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राज्य स्तर की कार्यपालिका की आवश्यकता होती है जो राज्य की विधायिका के अंतर्गत काम करती है। ऐसे में किसी भी राज्य सरकार के सभी अधिकारी व कर्मचारी राज्य स्तर की कार्यपालिका का प्रकार कहे जा सकते हैं। अब केंद्रीय व राज्य स्तर की कार्यपालिका में यह अंतर है कि दोनों में ही एक समान श्रेणी में काम कर रहे अधिकारी या कर्मचारी होते हैं किन्तु उसमें केंद्रीय कार्यपालिका के अधिकारी व कर्मचारी ऊपर (Rajya karyapalika kise kahate hain) होंगे।

इसे हम एक उदाहरण से समझ लेते हैं। जब किसी व्यक्ति का केंद्रीय कार्यपालिका में चुनाव होता है तो वह सीधे कलेक्टर बनता है तो वहीं राज्य स्तर की कार्यपालिका में सबसे ऊपरी पद SDM का होता है। ऐसे में वह SDM कलेक्टर के नीचे रहकर कार्य करता है और कलेक्टर उसे सभी आवश्यक दिशा निर्देश देता है। राज्य स्तर की कार्यपालिका में हम पटवारी, गिरदावर, तहसीलदार, SDM इत्यादि पदों को देख सकते (Rajya ki karyapalika) हैं।

स्थानीय कार्यपालिका (Sthaniya karyapalika kya hai)

अब कार्यपालिका के प्रकारों में अंतिम पद होता है स्थानीय कार्यपालिका का जो हमारे बीच में ही मौजूद रहकर कार्य कर रही होती है। हालाँकि इनका चुनाव स्थानीय विधायिका के द्वारा नहीं किया जाता है और उनकी शक्तियां बहुत ही सीमित होती है। ऐसे में स्थानीय कार्यपालिका के अधिकारियों या कर्मचारियों का चुनाव केंद्रीय व राज्य स्तर की विधायिका के द्वारा ही किया जाता है।

इसमें भी राज्य स्तर की विधायिका का अहम योगदान होता है क्योंकि केंद्र ने इसका मुख्य उत्तरदायित्व राज्य सरकार को ही सौंप रखा है क्योंकि यह पूर्ण रूप से राज्य की स्थानीय ईकाई का विषय हो जाता है। ऐसे में राज्य सरकार ही अपने यहाँ की स्थानीय कार्यपालिका का विभिन्न परीक्षाओं के माध्यम से चुनाव करती है। एक तरह से ऊपर की दोनों कार्यपालिका में काम कर रहे निम्न स्तर के अधिकारी या कर्मचारी इसी स्थानीय कार्यपालिका का ही हिस्सा होते हैं।

इसमें पटवारी से लेकर पंचायत सचिव, लेखाधिकारी, परिषद अधिकारी, पालिका अधिकारी, पंचायक अधिकारी इत्यादि आते हैं जो स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कार्य करते हैं। इसी के साथ ही इसमें अस्थायी तौर पर या स्थायी तौर पर कर्मचारियों की भी नियुक्ति की जाती है। उदाहरण के तौर पर हम मनरेगा में काम कर रहे कर्मचारियों को देख सकते हैं।

कार्यपालिका में पद के अनुसार श्रेणी

अब ऊपर आपने यह तो जान लिया है कि कार्यपालिका के क्या कुछ प्रकार हो सकते हैं लेकिन अभी भी आपकी जानकारी अधूरी है और वह क्यों है, इसके बारे में अब आपको जानने को मिलेगा। दरअसल ऊपर हमने कार्यपालिका को उसके बेस के आधार पर वर्गीकृत किया है अर्थात वह किस तरह की विधायिका के अंतर्गत रह कर कार्य करती है, उसके आधार पर हमने कार्यपालिका का वर्गीकरण किया है किन्तु आपको यदि कार्यपालिका को बेहतर तरीके से समझना है तो आपको इसके लिए उसके पदों को जानना होगा।

अब कार्यपालिका में पदों के अनुसार जो वर्गीकरण होता है वह मुख्य तौर पर केंद्रीय कार्यपालिका को ध्यान में रखकर समझा जा सकता है क्योंकि राज्य स्तर पर पद व उनका वर्गीकरण भिन्न भिन्न हो सकता है जो पूर्ण रूप से उस राज्य की नीति व दिशा निर्देशों पर निर्भर करता है। हालाँकि राज्य स्तर की कार्यपालिका में भी कुछ पद ऐसे होते हैं जो सर्वोच्च माने जाते हैं और उन पर अप्रत्यक्ष रूप से केंद्रीय कार्यपालिका या केंद्रीय विधायिका का नियंत्रण होता है। तो चलिए समझते हैं, पदों के अनुसार कार्यपालिका की श्रेणियां या उनके प्रकार।

ग्रुप अ (Group a jobs in India in Hindi)

यह किसी भी स्तर की कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं और इन्हें एक तरह से कार्यपालिका का बॉस कहा जा सकता है। विधायिका के सबसे ज्यादा संपर्क में यही रहते हैं और विधायिका को यदि कोई भी काम करवाना हो या कोई भी निर्दश देना हो तो वे सीधे ग्रुप अ के तहत कार्य कर रहे कार्यपालिका के अधिकारियों से ही बात करती है। यहाँ तक कि विधायिका के सभी तरह के कार्यों को करवाना और उस पर उन्हें विस्तृत रिपोर्ट देना, इसी वर्ग के अधिकारियों का कार्य होता है। यह कार्यपालिका के अध्यक्ष या मुख्य कार्यकारी अधिकारी कहे जा सकते हैं।

इन्हें आप हमारे देश में आईएस, आईएफएस, आईपीएस इत्यादि की नौकरी कर रहे व्यक्ति कह सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ग्रुप अ के तहत कार्यपालिका में जाना है तो उसे आईएस, आईएफएस, आईपीएस या इसके सामानांतर परीक्षा में बैठना होगा और सभी तरह की प्रक्रिया का पालन करना होगा। ग्रुप अ में काम कर रहे अधिकारी से बड़े केवल वही अधिकारी होते हैं जिनका चयन ग्रुप अ में पहले हो चुका है और अब उन्हें अच्छा खासा अनुभव है। कहने का अर्थ यह हुआ कि अभी अभी चयनित हुए ग्रुप के अधिकारी से बड़ा दस वर्षों से ग्रुप अ में नौकरी कर रहा अधिकारी होगा। इन्हें हम किसी बैंक शाखा के मैनेजर कह सकते हैं।

ग्रुप ब (Group b jobs in India in Hindi)

अब इसमें वे अभी सरकारी अधिकारी आते हैं जो ग्रुप अ के नीचे रह कर कार्य कर रहे होते हैं। एक तरह से अधिकारी भी बहुत बड़ी पोस्ट वाले होते हैं और केंद्र सरकार इनके साथ भी संपर्क करती है और राज्य सरकार भी। मुख्य रूप से केंद्र सरकार तो ग्रुप अ के अधिकारियों के संपर्क में ज्यादा रहती है जबकि राज्य सरकार का काम यही ग्रुप ब के अधिकारी ही करके देते हैं और उनकी सुन भी लेते हैं जबकि ग्रुप अ के अधिकरी राज्य सरकार को भी चुनौती देने की शक्ति रखते हैं।

इसी के साथ ही ग्रुप ब के अधिकारियों को ग्रुप अ के अधिकारियों से ही निर्देश लेने होते हैं और उसी के अनुसार ही कार्य करना होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि ग्रुप ब के अधिकारियों के प्रत्यक्ष बॉस ग्रुप अ के ही अधिकारी होते हैं जो उन्हें सभी तरह के दिशा निर्देश देते हैं। ग्रुप ब में जाने के लिए किसी व्यक्ति को मुख्य रूप से एसएससी सीजीएल अर्थात स्नातक के बाद होने वाली एसएससी की परीक्षा में बैठना होता है। इन्हें हम किसी बैंक शाखा के PO कह सकते हैं।

ग्रुप स

अब आप जैसे जैसे कार्यपालिका की श्रेणी में नीचे जाते जाएंगे तो उसी अनुसार ही उनका वर्गीकरण होता जाएगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि जिस प्रकार ग्रुप ब के तहत काम कर रहे अधिकारियों के लिए ग्रुप अ के अधिकारी का महत्व होता है, ठीक उसी तरह ग्रुप स के लिए ग्रुप ब के अधिकारी होते हैं। तो इस तरह से ग्रुप स के अधिकारी ग्रुप ब के नीचे रहकर कार्य करते हैं और उनके बताये दिशा निर्देशों का पालन करते हैं। हालाँकि अप्रत्यक्ष रूप से इनके मुख्य बॉस ग्रुप अ के ही अधिकारी होते हैं।

अब यदि किसी व्यक्ति को ग्रुप स की कार्यपालिका में जाना होता है तो उसे एसएससी की ही परीक्षा में ही बैठना होता है लेकिन बारहवीं के बाद ली जाने वाली परीक्षा। इस तरह से यदि किसी व्यक्ति को कार्यपालिका का अंग बनना है तो वह अपनी बारहवीं कक्षा को उत्तीर्ण करके एसएससी की बारहवीं वाली परीक्षा में बैठ सकता है और उसमे चयनित होकर निर्धारित प्रक्रिया के तहत ग्रुप स का अधिकारी बन सकता है। इन्हें हम किसी बैंक शाखा के क्लर्क कह सकते हैं।

ग्रुप द

कार्यपालिका में ग्रुप द की श्रेणी अधिकारियों के लिए नहीं अपितु कर्मचारियों के लिए होती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो जिन भी व्यक्तियों का चुनाव कार्यपालिका के ग्रुप द के तहत होता है, उन्हें अधिकारी नहीं अपितु कर्मचारी कहा जाता है। यह किसी को निर्देश नहीं दे सकते हैं और ना ही प्रजा पर यह अपनी शक्ति दिखा सकते हैं। इन्हें बस नीचले कार्य करने के लिए रखा जाता है।

उदाहरण के तौर पर सफाई कर्मचारी, नाली साफ करने वाले, सड़क पर झाड़ू लगाने वाले, मजदूर, निर्माता, नाई, खाना बनाने वाला, माली, सिक्योरिटी गार्ड इत्यादि कार्य करने वाले इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। इसके लिए अलग अलग पोस्ट व उनकी जरूरतों के अनुसार ही चयन किया जाता है जो स्थायी आधार पर भी हो सकता है तो अस्थायी भी हो सकता है। यह निर्णय केंद्र सरकार के विभागों में केंद्र सरकार तो राज्य सरकार के विभागों में राज्य सरकार लेती है। इन्हें हम बैंक शाखा में यही कार्य करने वाले व्यक्तियों के रुप में देख सकते हैं।

कार्यपालिका के कार्य (Karyapalika ke karya)

अब यदि हम कार्यपालिका के कार्यों की बात करें तो यह तो हम जानते ही हैं कि हर वह काम जो सरकारी होता है, वह कार्यपालिका का ही होता है क्योंकि हमारे सभी सरकारी काम सरकारी अधिकारी या कर्मचारी ही करके देते हैं। ऐसे में आपका उत्तर सही है और हर सरकारी काम ही कार्यपालिका का कार्य होता है और वह वही करती है किन्तु हम इसे कार्यपालिका की सही परिभाषा के रूप में समझा देते (Karyapalika ke karya kya hai) हैं।

इसके लिए आपको पहले विधायिका के कार्यों को समझना होगा। तो विधायिका के कार्य देश व राज्य की उन्नति के लिए योजनाओं व कानूनों को बनाना होता है। योजना के जरिए वह लोगों की उन्नति करती है जबकि कानूनों के जरिये वह एक व्यवस्था का निर्माण करती है। तो विधायिका का कार्य केवल इनके निर्माण से है जो कि भगवान ब्रह्मा करते हैं। अब इसमें कार्यपालिका की भूमिका भगवान विष्णु की भांति है जो इसका पालन सुनिश्चित करवाती (Karyapalika ke pramukh karya kya hai) है।

कहने का तात्पर्य यह हुआ कि विधायिका ने जो भी योजना बनायी है, उसका क्रियान्वयन करवाना इसी कार्यपालिका का कार्य होता है। इसी के साथ ही विधायिका के द्वारा जो कानून या अधिनियम बनाये गए हैं, उनका पालन सुनिश्चित करवाना भी इसी कार्यपालिका का ही कार्य होता है। तो इस तरह से योजना का क्रियानव्यन व अधिनियम का पालन करवाना कार्यपालिका का मुख्य कार्य है।

कार्यपालिका क्या है – Related FAQs 

प्रश्न: कार्यपालिका क्या होती है?

उत्तर: कार्यपालिका के बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने इस लेख के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: कार्यपालिका के कितने अंग होते हैं?

उत्तर: कार्यपालिका के 3 अंग होते हैं।

प्रश्न: कार्यपालिका का प्रमुख कार्य क्या है?

उत्तर: कार्यपालिका के कार्यों की सूची को हमने इस लेख में बताया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: राज्यों में कार्यपालिका का प्रमुख कौन होता है?

उत्तर: राज्यों में कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने कार्यपालिका के बड़े में जानकारी हासिल कर ली है आपने जाना कि कार्यपालिका क्या है कार्यपालिका के प्रकार क्या हैं और इसके कार्य क्या हैं इत्यादि। आशा है कि जो जानने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह जानकारी आपको मिल गई होगी। यदि अभी भी आपके मन में कोई भी शंका शेष रह गई है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके वह पूछ सकते हैं।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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