|| Kumbh mela kyu lagta hai, कुंभ मेला क्यों लगता है?, कुंभ मेला की शुरुआत किसने और कैसे की थी?, Kumbh mela kyu manaya jata hai, कुंभ मेला 12 साल में क्यों मनाया जाता है?, कुंभ मेला का उद्देश्य क्या है? ||
Kumbh mela kyu lagta hai :- हिंदू धर्म के सबसे बड़े मेले कुंभ मेले के बारे में कौन नही जानता होगा। यह हर 4 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है तो वही 12 वर्षों में महा कुंभ का आयोजन किया (Kumbh mela kyu manaya jata hai) जाता है। देश सहित पूरी दुनिया में इसी कुंभ मेले की चर्चा जोरो पर रहती है और करोड़ो करोड़ श्रद्धालु कुंभ मेले के अवसर पर पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं और अपने पापो को धोते हैं।
ऐसे में क्या आपके मन में कभी यह विचार नहीं आया कि यह कुंभ मेला आखिरकार क्यों लगता है और इसको मनाने के पीछे का क्या उद्देश्य है। क्या इसके पीछे कोई कथा जुड़ी हुई है और यदि जुड़ी भी हुई है तो वह कथा क्या है और उससे हमें क्या शिक्षा (Kumbh mela kyu lagaya jata hai) मिलती है। इसी के साथ यदि कुंभ मेला लगता ही है तो फिर यह 12 वर्षों में एक बार क्यों आयोजित होता है और छोटा कुंभ चार चार वर्षों के अंतराल में क्यों मनाया जाता है। आज हम आपके साथ इन्ही सब बातो पर गहनता से विचार विमर्श करने वाले हैं।
कुंभ मेला क्यों लगता है? (Kumbh mela kyu lagta hai)
सबसे पहले बात करते है कुंभ मेले की और इसकी महत्ता के बारे में। तो यदि आप कुंभ मेले के बारे में और इसके लगने के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि इसके पीछे कौन सी कथा जुड़ी हुई है और वह किस समय काल (Kumbh mela kyon lagta hai) की है। इस तरह से आप कुंभ मेले का इतिहास जान पाएंगे और आपको यह पता चलेगा कि आखिरकार क्यों कुंभ मेले को इस तरह से मनाया जाता है और इसके पीछे का क्या उद्देश्य है।
तो आज के इस लेख में हम आपके साथ कुंभ मेले का पूरा इतिहास साँझा करने वाले हैं और साथ ही इसे मनाने का उद्देश्य (Kumbh ka mela kyu lagta hai) भी। इसे पढ़कर आप यह जान पाएंगे कि आखिरकार क्यों हम कुंभ मेले को प्रति वर्ष आयोजित ना करके चार वर्षों में एक बार ही मनाते हैं और क्यों इसे 12 वर्षों के अंतराल में बड़ा रूप दिया जाता है। आइए जाने कुंभ मेले के पूरे इतिहास के बारे में।
कुंभ मेले का इतिहास (Kumbh mela ka itihas)
कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है और इसे क्यों आयोजित किया जाता है, इसके पीछे की कहानी सतयुग के समय की जुड़ी हुई है। अब आपको तो यह पता ही होगा कि एक युग में चार युग होते हैं जिसमे से पहला युग सतयुग होता है और उसके बाद त्रेता युग, फिर द्वापर युग और अभी वाला युग कलियुग (Kumbh mela ka itihas in Hindi) कहलाता है। इसे ही एक कल्प कहा जाता है और एक कल्प के ख़त्म होने के बाद नए कल्प की शुरुआत होनी मानी जाती है। तो इसी कल्प के सतयुग की घटना ही इस कुंभ मेले से जुड़ी हुई है।
उस समय कल्प की शुरुआत हुई ही थी और सतयुग चल रहा था। तब स्वर्ग लोक में देवता रहते थे और पाताल लोक में दैत्य। चूँकि सृष्टि की रचना हुई ही थी तो बहुत सारी चीज़े समुंद्र में दबी पड़ी थी। इनमे बहुत सारे अमूल्य रत्न थे और अमृत भी था। आपको बता दे कि उस समय तक कोई भी देवता अमर नहीं था क्योंकि अमृत तो समुंद्र में दबा (Kumbh ka mela history in Hindi) हुआ था। ऐसे में हर दिन ही देवता और दानवो के बीच में युद्ध होता था और सभी को अपनी मृत्यु का भय सताता था।
हुआ समुंद्र मंथन का निर्णय (Samudra manthan history in Hindi)
रोजाना होते युद्ध को देख कर और देवताओं में फैले भय के कारण बहुत ही विकट स्थिति पैदा हो गयी। सभी देवता बहुत दुखी रहते और उन्हें समझ में नही आता कि वे क्या करे और क्या (Samudra manthan ki katha) ना करे। हर दिन उनके मन में मृत्यु का ही भय रहता और इस कारण कुछ भी काम सही से नही हो पा रहा था। अपनी इसी दुविधा को लेकर सभी देवता इंद्र सहित भगवान विष्णु के पास गए और उनके सामने अपनी व्यथा बताई।
भगवान विष्णु भी यह सुनकर बहुत चिंता में पड़ गए और सोचने लगे कि अब क्या किया जाये जिस कारण देवताओं की यह चिंता दूर हो (Samudra manthan story in Hindi) जाए। तभी उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों ना समुंद्र मंथन किया जाए और उसमे से अमृत निकाल कर देवताओं को दे दिया जाए। इससे समस्या का समाधान भी हो जाएगा और सब कुछ बढ़िया तरीके से भी चलेगा। तो इसी कारण सभी ने मिल कर समुंद्र मंथन का निर्णय लिया।
दैत्यों के साथ हुआ समुंद्र मंथन शुरू
अब समुंद्र तो बहुत बड़ा था और देवताओं के अकेले बस की बात ही नही थी इतने बड़े समुंद्र को मंथना। अब सभी देवता फिर से दुखी हो गए और शोक में चले (Samudra manthan kab hua) गए। उन्हें समझ में ही नही आ रहा था कि कैसे वे अपना दुःख दूर करे और मृत्यु का भय दूर करे। तो इसके लिए भी वे फिर से भगवान विष्णु के पास गए और अपना दुःख उन्हें बताया। तो भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया की सब काम साथ में किया जाता है और तभी वह काम होता है। इसलिए जाओ और अपने भाइयों दैत्यों से सहायता मांगो और दोनों मिल जुलकर समुंद्र मंथन करो।
इसके बाद देवता पाताल लोक गए और दैत्यों को पूरी योजना बताई। उन्होंने दैत्यों को तरह तरह का लालच दिया और दैत्य बहुत ही खुश हो गए यह सब सुनकर। अब दैत्य तो लालची ही होते थे और इसी कारण वे मुर्ख कहलाते थे और वे देवताओं के लालच में आ भी गए और समुंद्र मंथन करने को राजी हो गए। अब देवताओं और दानवो ने समुंद्र मंथन का काम शुरू कर दिया।
समुंद्र मंथन से निकले कई रत्न व अमृत
देवताओं और दानवो ने मंदार पर्वत से समुंद्र मंथन का काम शुरू किया और इसके लिए भगवान विष्णु ने अपना शेषनाग भी दिया ताकि उसे पकड़ कर समुंद्र मंथन का काम किया जा सके। अब समुंद्र में तो अमृत के अलावा बहुत सारी चीज़े थी जो एक एक करके बाहर आ (Samudra manthan se kitne ratna nikle the) रही थी। कभी उसमे से हीरे मोती बाहर आते तो कभी दूध देने वाली गाय तो कभी दवाइयों वाले पेड़ पौधे तो कभी कुछ। तो जैसे जैसे समुंद्र में से चीज़े बाहर आती जा रही थी वैसे वैसे ही देवता और दैत्य अपने दोनों के बीच उनका बंटवारा करते जा रहे थे।
अंत में समुंद्र मंथन में से जो मुख्य चीज़ बाहर निकली वह थी अमृत। यह अमृत का कलश लिए हुए भगवान धन्वंतरी बाहर निकले थे और उसे देखते ही देवता और दानवो दोनों के मुहं में पानी आ गया। दोनों ही उस अमृत को पाना चाहते थे और उसे पीना चाहते थे। अब दैत्य यदि उसे पी लेते तो वे अमर हो जाते और इस कारण उनका खात्मा असंभव हो जाता और यह तो लेने के देने पड़ जाते।
अब जैसे ही भगवान धन्वंतरी अमृत कलश लेकर बाहर निकले तो दैत्य उनसे वह कलश छीनने के लिए उनकी और लपके। यह देखते ही भगवान धन्वंतरी आकाश में उड़ गए और भागने लगे। यह देख कर देवता और दैत्य भी उनका पीछा करने लगे और अमृत कलश पाने के लिए एक दूसरे से बहुत लड़े। कभी वह अमृत कलश दैत्य ले लेते तो कभी देवता ले (Samudra manthan details in Hindi) लेते। एक समय यह कलश किसी के हाथ में होता तो कभी किसी के हाथ में।
तो अब यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा और अमृत कलश कोई नहीं हथिया पाया। कुल मिलाकर यह युद्ध 12 दिनों तक चला था और कोई भी जीत नही पाया था। साथ ही इसी छीना झपटी में इस अमृत कलश से 12 दिनों में 12 बूंदे नीचे गिर गयी थी और बहुत नुकसान हो गया था। इसी को देखते हुए ही भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धरा था और दैत्यों को एक बार फिर से मुर्ख बनाकर उस अमृत को देवताओं को पिला दिया था।
किंतु उसी में से दो दैत्य बहुत ही शातिर निकले और उन्होंने देवताओं का भेष बनाकर चुपके से अमृत पी लिया। उन दोनों का नाम था राहु व केतु जिन्होंने आज तक आतंक मचाया हुआ है। अब वे दोनों तो अमृत पी चुके थे तो उनको मारना तो असंभव था। इसी कारण वे अभी भी किसी की कुंडली में बैठ जाते हैं और उसका सर्वनाश कर देते हैं।
कुंभ मेला 12 साल में क्यों मनाया जाता है? (Kumbh mela 12 saal me kyu lagta hai)
अब आपका यह प्रश्न होगा कि यह कुंभ मेला 12 सालो में क्यों मनाया जाता है। आपने कुंभ मेले से जुड़ी इतनी बड़ी कहानी तो पढ़ ली लेकिन आपको इसका सही सही मतलब समझ में नहीं आया होगा। कहने का मतलब यह हुआ कि अब अमृत के लिए देवताओं और दानवो की लड़ाई से कुंभ मेले का क्या ही संबंध और यह इतने लंबे समय बाद अर्थात 12 सालो के बाद मनाने का क्या ही मतलब हुआ।
तो यहाँ हम आपको बता दे कि यह जो लड़ाई देवता और दानवो के बीच में लड़ी गयी थी वह आकाश में लड़ी गयी थी। अब वहां का समय और यहाँ का समय तो अलग अलग होता है। वहां का एक दिन धरती के एक साल के बराबर होता है। कहने का मतलब यदि आप वहां एक दिन रह कर आएंगे तो इसका मतलब हुआ धरती पर पूरा पूरा एक साल बीत चुका होगा।
तो अब आपने ऊपर कहानी में पढ़ा कि देवता और दानव इस अमृत कलश के लिए 12 दिनों तक लड़े थे और आखिरी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर इस झगड़े का निपटारा किया था। तो इस हिसाब से वह 12 दिन धरती के 12 वर्षों के बराबर हो गए। तो इस झगड़े का निपटारा तो असलियत में 12 दिनों में हुआ था लेकिन धरती के लिए वह समय 12 साल का हो गया। यही कारण है कि हर 12 वर्षों के बाद ही महा कुंभ का आयोजन करते हैं।
कुंभ 4 जगहों पर क्यों मनाया जाता है? (Kumbh mela 4 places in Hindi)
अब ऊपर समुंद्र मंथन और उसमे से निकले अमृत कलश के पीछे हुई लड़ाई को आपने पढ़ लिया है और उसको पढ़ कर आपने यह भी जाना की इन 12 दिनों की लड़ाई में इस अमृत कलश से 12 बूंदे 12 अलग अलग जगह पर गिरी थी। तो इसमें से हर चौथे दिन यह बूंदे पृथ्वी पर गिरी थी और बाकि की 8 बूंदे कही और (Kumbh mela kaha kaha lagta hai) गिरी थी। कहने का मतलब यह हुआ कि देवता और दानव हर जगह लड़ाई लड़ रहे थे और उसमे से कुछ बूंदे टपक टपक कर यहाँ वहां गिर रही थी।
तो उसी में से चार बूंदे टपक कर पृथ्वी पर आकर गिर गयी और वही पर हम 4 वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन करते हैं। यह चार जगह हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज व उज्जैन में आयोजित किया जाता है। तो इन्ही चार जगहों पर यह अमृत की बूंदे गिरी थी और इसी कारण हर चार वर्ष के बाद यहाँ पर कुंभ मेले का आयोजन बहुत ही धूमधाम के साथ किया जाता है।
कुंभ मेला क्यों लगता है – Related FAQs
प्रश्न: कुंभ मेला का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कुंभ मेला का उद्देश्य सभी हिन्दुओ को संगठित कर धर्म का प्रचार प्रसार करना है और देश की नीति तय करना है।
प्रश्न: कुंभ मेला का क्या मतलब है?
उत्तर: कुंभ मेला का मतलब होता है जहाँ पर कुंभ का आयोजन हो रहा है वहां जाकर माँ गंगा में डुबकी लगा कर शाही स्नान करना और अपने पापों को धोना।
प्रश्न: कुंभ की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर: कुंभ की शुरुआत समुंद्र मंथन से हुई थी जिसके बारे में पूरी कहानी हमने आपको इस लेख के माध्यम से बताई है।
प्रश्न: कुंभ की शुरुआत किसने की थी?
उत्तर: कुंभ की शुरुआत सतयुग में देवताओं और दानवों ने की थी।
तो इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि कुंभ मेले का आयोजन क्यों 12 वर्षों में किया जाता है, इसके पीछे क्या कथा जुड़ी हुई है, उसका हिंदू धर्म से क्या संबंध है और क्यों हम इसे मनाते हैं। तो अब कोई आपसे पूछे कि आखिरकार क्यों तुम लोग हर चार वर्ष में या फिर 12 वर्षों में महा कुंभ को मनाते हो तो आप उसे हमारे द्वारा बताई गयी पूरी कहानी बताकर उसका ज्ञानवर्धन कर सकते हो।