भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार – Legal rights of women in India

हम अपने दैनिक जीवन में अपने परिवार के साथ रहते हैं। परिवार यह जगह है, जहां पर हम अपना ज्ञान का विकास और सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने में कामयाब होते हैं। परिवार के बिना जीवन संभव नहीं होता है। किसी भी इंसान का आधार उसका परिवार ही होता है। हमारे जीवन में सीखी हुई बातों का आधार सर्वदा हमारा परिवार ही होता है।

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परिवार क्या है? what is a family?

किसी एक परिवार में पति-पत्नी बच्चों का समूह होता है। परिवार में रहकर इस परिवार में ही संपत्ति के उत्तराधिकारी के हकदार भी होते हैं ,जो परिवार की स्मृति और धरोहर को संभाल कर रखने का कार्य भी करते हैं। परिवार में रहकर लोगों को सही दिशा में ले जाने का भी कार्य बखूबी करते हैं। परिवार ही हमारी प्रथम पाठशाला है जिसके माध्यम से हम जीवन में आने वाली सारी बातों को समझदारी के साथ सीख कर आगे बढ़ सकते हैं।

परिवार में बेटियों का महत्व- Importance of daughters in the family

परिवार को तभी संपूर्ण माना जाता है ,जब परिवार में हर सदस्य की उपस्थिति हो। किसी भी परिवार में हर सदस्य का महत्व फिर वह चाहे बेटा हो, बेटी हो, माता पिता या बड़े बुजुर्ग हो। कहा जाता है कि बेटियां घर की कली है, जो बाहर जाकर महकती है यह कथन सत्य भी मालूम पड़ता है। समाज में बेटियों के महत्व को समझा जा रहा है जिसकी वजह से अब बेटियां समाज के हर क्षेत्र में भी अपनी बहुमुखी प्रतिभा की प्रदर्शन कर रही हैं। सरकार की तरफ से भी ऐसे कई योजना चलाई जा रही हैं, जिसके तहत रहकर बेटियों को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है, जो कि बहुत ही अच्छा कदम माना जाता है।

बेटियों के साथ किया गया भेदभाव- Discrimination against daughters

समाज में भले ही बेटियों को उनका उचित अधिकार दिया गया है, उसके बावजूद भी कई बार भेदभाव देखा जाता है। कई बार बेटियों को गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है। उन्हें उच्च शिक्षा लेने से मना कर दिया जाता है। घर में बेटे के होने पर भेदभाव किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद तो घर का ही काम संभालना है। आज की बेटियां किसी से कम नहीं है। यह जानते हुए भी जाने अनजाने उनके अधिकारों का हनन किया जाता है।

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भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार – Legal rights of women in India

भारत के कानून में भी बेटियों को उचित अधिकार देकर उन्हें सही दिशा में लाने का प्रयास किया गया है। सरकार ने हिंदू उत्तराधिकार 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पिता के पैतृक संपत्ति में बेटे के समान अधिकार प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दिया है। इस कानून के हिसाब से कोई भी सदस्य बेटी का अधिकार देने से मना नहीं कर सकते हैं। अगर ऐसी कोई स्थिति आ भी जाए तो कानूनी रूप से लिया जा सकता है।

पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार- Right of daughter in father’s property-

प्राचीन काल में बेटी को अधिकारों से वंचित रखा जाता था। बदलते कानूनी पैतरों के मद्देनजर पिता की संपत्ति में भी बेटी को पूरा अधिकार दिया गया है। संपत्ति के अंतर्गत 4 सीढ़ी से पहले अर्जित प्रॉपर्टी आती है, जिसका बंटवारा नहीं हुआ हो।  साल 2005 के पहले पिता की संपत्ति में बेटे का अधिकार होता था लेकिन कानून संशोधन के फलस्वरूप बेटियों को भी पिता की संपत्ति में अधिकार मिल सकता है। अब बेटियों को उनका अधिकार लेने से कोई भी नहीं रोक सकता।

पिता की खुद से अर्जित संपत्ति पर बेटी का अधिकार – Daughter’s right over father’s own property

पिता द्वारा कमाई गई अर्जित संपत्ति को लेकर बेटियों का पक्ष थोड़ा कमजोर है। यह पूर्ण रुप से पिता की मर्जी है कि वह अपनी बेटी को अपनी निजी संपत्ति में अधिकार देना चाहते हैं या नहीं ? अगर पिता ना चाहे तो फिर पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार नहीं होता है।

वसीयत ना होने पर भी बेटी का अधिकार-

कभी कभी ऐसा होता है कि पिता वसीयत नहीं बना पाते हैं। बिना वसीयत बनाए ही अगर किसी कारणवश पिता की मृत्यु हो जाए तो भी पिता की संपत्ति में बेटी का पूर्ण अधिकार होता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष अधिकारियों को भी चार श्रेणियों में बांटा गया है जिनमें बेटियों को भी खास स्थान प्राप्त है। पिता की मौत के बाद भी बेटी को बेटे के तुल्य संपत्ति का अधिकार प्राप्त है। बेटी के इस अधिकार को लेने से बेटा कभी भी नहीं रोक सकता है।

बेटी की शादी के बाद के अधिकार-

कहा जाता है कि शादी के बाद बेटी का अपने घर पर अधिकार खत्म हो जाता है। बेटी को सिर्फ उसको ससुराल से ही अधिकार मिलते हैं। ऐसी मान्यता पूर्व काल में होती थी परंतु अब यह सर्वथा गलत साबित हो चुकी है। 9 सितंबर साल 2005 में कानून संशोधन के पास से बेटी की शादी के बाद पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी हो सकती है । शादी के बाद बेटी को सारे अधिकार प्राप्त होंगे जो बेटे को होते हैं। शादी ना होने की स्थिति में भी सारे अधिकार बेटी को मिलना कानूनी रूप से माने हैं इस अधिकार से कोई भी मनाही नहीं हो सकती।

दादाजी की संपत्ति में शादीशुदा बेटी का अधिकार-

कानून में इस बात का संशोधन किया है कि बेटी का पिता की संपत्ति में अधिकार होता है। जब बेटी दादा जी के साथ रहती हो तो इस सिलसिले में भी बेटियों को कुछ अधिकार दिए हैं। यदि दादाजी की बिना वसीयत बनाए ही मौत हो जाती है, तो ऐसे में माता-पिता ही दादाजी की संपत्ति के अधिकारी होंगे ना कि पोते पोती या नातिन । केवल उसी स्थिति में दादाजी की संपत्ति में अधिकार होगा यदि पिता की मौत दादाजी के पहले ही हो जाए। ऐसी स्थिति में बेटे के साथ साथ बेटी का भी अधिकार बनता है।

शादीशुदा बेटी का नाना की संपत्ति में अधिकार-

नाना की संपत्ति में अधिकार ना के बराबर ही होता है । नाना ने संपत्ति पूर्वजों की हो या खुद की संपत्ति बनाई  हो नाना के मौत के बाद संपत्ति का अधिकार मां, मौसी या मामा का ही होता है।

कुछ बड़े अदालती फैसले जिनसे महिलाओं के अधिकार का दायरा बढ़ा

वर्ष 2018 में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कई ऐसे फैसले दिए गए जो महिलाओं के लिए फायदेमंद साबित  होगा। महिलाओं को समाज में सम्मान देने के लिए यह कदम मददगार होंगे।

1) पिता की पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का अधिकार

इस अधिकार की वजह से बेटियों में खुशी की लहर दौड़ गई है। जो बेटियां अपने घर में परेशान होती थी, उन्हें इस फैसले के फायदे होंगे। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार अब बेटियों को भी पिता की संपत्ति में अधिकार होगा। शादीशुदा हो, तो भी पिता की संपत्ति में अधिकार से कोई भी नहीं रोक सकता है ऐसे में बेटी की शादी शुदा जिंदगी सही नहीं चलने की स्थिति में भी अपने पैतृक संपत्ति के सहारे सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकती है।

2) दहेज के मामले में गिरफ्तारी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही यदि शादी के बाद बेटी के ससुराल वाले दहेज के लिए परेशान करते हैं या किसी कारणवश घर से निकाल देते हैं, ऐसे में महिला को पूर्ण अधिकार है कि वह ससुराल वालों को तुरंत गिरफ्तार करवा सके । हालांकि आरोपियों के पास अग्रिम जमानत का अधिकार बरकरार है। आईपीएस की धारा 498 ए के तहत दहेज आरोपियों की सजा का प्रावधान है। आज भी ना जाने कितनी महिलाएं दहेज हत्या के गवाह हैं। ऐसे में दहेज प्रथा के खिलाफ कानून से अधिकार प्राप्त हैं।

3) महिला के रंग पर टिप्पणी अनुचित

महिलाओं को कई बार कई बातों को लेकर बातें सुननी पड़ती है। महिला के रंग को लेकर तंज कसना अपराध माना गया है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने महिलाओं के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के अनुसार ऐसे किसी टिप्पणी  से महिलाओं को तलाक लेने का भी अधिकार है। इस अधिकार के तहत महिला अपना जीवन सही तरीके से आगे बढ़ाने में समर्थ हो सकती है और किसी प्रकार की हीन भावना से बाहर आ सकती है।

4) एकल मां पिता का नाम बताने नहीं है बाध्य

मद्रास हाईकोर्ट ने एक और फैसला महिलाओं के हक में किया है। इस फैसले के बाद महिलाएं खुद को सक्षम साबित कर सकती हैं। अब एकल माँ के बच्चों के जन्म के पंजीकरण या किसी भी मौके पर पिता का नाम बताने को बाध्य नहीं किया जाएगा। एकल माँ  मूलतः विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता हैं, जो अकेले ही बच्चों का पालन पोषण करती हैं। पिछले कुछ दिनों में एकल माँ की संख्या में बढ़ोतरी हुई। ऐसे में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला महिलाओं को उनका हक दिलाता है। इसके वजह से एकल मां की समाज में चुनौती कम होने की उम्मीद है।

महिलाओं के कुछ अन्य महत्वपूर्ण अधिकार – Some important rights of women

सरकार की तरफ से महिलाओं को कुछ अधिकार दिए हैं जो उनके हित के लिए लाभप्रद है जिसे महिलाएं समाज में अपना मुकाम हासिल कर सकती हैं।

1) प्रसूति लाभ अधिनियम 2017

हाल ही में संशोधित मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 के अनुसार गर्भावस्था के समय काम करने वाली महिलाओं के हित में फैसला लिया गया है । इस अधिनियम के अनुसार महिलाओं के मातृत्व अवकाश 12 से 26 सप्ताह का कर दिया गया है । जिसके तहत महिलाएं अपने बच्चों का भी सही देखभाल कर सकती हैं और आगे भविष्य में उनका पालन पोषण करने में भी मदद हो सकती है।

2) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न

हमारे समाज में महिलाओं का उत्पीड़न देखा जा सकता है। इस उत्पीड़न की वजह से महिलाओं में हीन भावना घर कर जाती है। महिलाओं के यौन उत्पीड़न प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है। अधिनियम 2013 के अनुसार किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न जैसे अश्लील हरकत ,अश्लील बातें, बेवजह की टिप्पणी ,शारीरिक संपर्क आदि होने पर महिला को फौरन ही पुलिस से संपर्क कर शिकायत दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है। महिलाओं का यौन उत्पीड़न सामान्यतः कार्यस्थल पर देखा जाता है। यौन उत्पीड़न के मामले में कम से कम 6 महीने की सजा अनिवार्य होती है।

3) घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा

यह कानून और महिलाओं के लिए है, जो घर में होने वाले हिंसा से ग्रसित होते हैं । महिलाओं को बार बार प्रताड़ित किया जाता है। घरेलू हिंसा के कानून के हिसाब से महिला साथी या परिवार के खिलाफ शारीरिक, मानसिक ,भावनात्मक रूप से परेशान करने पर शिकायत दर्ज करा सकती है। किसी भी महिला को परेशान करना या घरेलू हिंसा करना अपराध माना गया है, इसी वजह से गुनहगार बड़ी सजा के हकदार होते हैं।

4) बाल विवाह अधिनियम निषेध 2006

बाल विवाह हमारे देश में लंबे समय से चली आ रही प्रक्रिया है। बाल विवाह कानूनन रूप से अपराध है। ज्यादातर मामलों में छोटी लड़कियों का विवाह बड़े उम्र के पुरुषों के साथ कर दिया जाता है, जो बिल्कुल गलत है। कानून के अधिनियम के बाद शादी के लिए लड़की की उम्र कम से कम 18 वर्ष और लड़के की उम्र कम से कम 21 21 वर्ष जरूरी मानी गई है। अधिनियम के हिसाब से इस तरह से हम बाल विवाह को रोकने में कामयाब हो सकते हैं।

अब वह दौर खत्म हो चुका है ,जब महिलाओं को ज्यादा अधिकार प्राप्त नहीं थे। प्राचीन समय में महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता था चाहे वह घर हो या बाहर। आज की महिला में बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है, जहां वह घर को भी संभालती है वहां बाहर की दुनिया में बखूबी अपना  कार्य पूर्ण करती है। अब महिलाओं को भी सारे अधिकार प्राप्त हैं, जिनसे महिलाएं समस्याओं का सामना करके आगे बढ़ पाने में सक्षम होती हैं। किसी भी नियम की अवहेलना होने पर  कानूनी कार्यवाही किया जा सकता है और गुनाहगारों को सजा दिलाई जा सकती है।

अब महिलाओं को डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि निरंतर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। महिलाओं को हमेशा अधिकारों के लिए जागरूक होना भी आवश्यक है ताकि वे भविष्य को सही दिशा में आगे बढ़ा सके और आने वाले पीढ़ी को भी जागरूक बना सके।  महिलाओं को हमेशा  खुश रहने की आवश्यकता है।

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