|| लोक प्रशासन क्या है? | Lok prashasan kya hai | Public administration in Hindi | लोक प्रशासन की विशेषताएं | Lok prashasan ki visheshta | लोक प्रशासन के कार्य (Lok prashasan ke karya | लोक प्रशासन का अर्थ | लोक प्रशासन के कार्य क्या है? ||
Lok prashasan kya hai :- पहले के समय में केवल राजतंत्र हुआ करता था और जब से इस दुनिया में मानव सभ्यता की शुरुआत हुई है तब से ही वह राजतंत्र के ही अधीन चल रहा है। अब पिछली कुछ सदियों या यूँ कहें कि पिछली एक सदी से ही दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र देखने को मिल रहा है जबकि बहुत से देशों में आज भी राजतंत्र ही चल रहा है। दुनिया बहुत तेजी के साथ लोकतंत्र की ओर बढ़ रही है लेकिन इसी लोकतंत्र की नींव भी हिलने लगी (Public administration in Hindi) है।
अब इसी लोकतंत्र की दुनिया में एक शब्द बहुत प्रचलन में है और वह शब्द है लोक प्रशासन। आपने भी रह रह कर इस शब्द को सुना होगा और मन ही मन इसके बारे में सोचा होगा कि आखिरकार इस लोक प्रशासन का असलियत में क्या अर्थ होता है या इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं। ऐसे में बहुत से लोग इसके बारे में अलग अलग मत बना लेते हैं और उसी के अनुसार ही लोक प्रशासन की व्याख्या कर देते (Public administration meaning in Hindi) हैं।
यही कारण है कि आज के इस लेख में हम आपके साथ लोक प्रशासन की व्याख्या करने वाले हैं। आज के इस लेख को पढ़ कर आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि यह लोक प्रशासन होता क्या है और इससे हमारा क्या तात्पर्य (Public administration definition in Hindi) है। साथ ही लोक प्रशासन का लोकतंत्र से क्या संबंध है और किस तरह से यह सभी के बीच समन्वय स्थापित कर सभी की भलाई के लिए किया जाता है।
लोक प्रशासन क्या है? (Lok prashasan kya hai)
आज हम सबसे पहले लोक प्रशासन के अर्थ व व्याख्या की बात करेंगे और इसे बेहतर तरीके से समझने का प्रयास करेंगे। तो यदि हम किसी भी देश में लोक प्रशासन की बात करें तो उसका सीधा सा संबंध लोकतंत्र से होता है। लोक प्रशासन दो शब्दों को जोड़कर बना है जिसमें लोक का अर्थ लोगों से होता है तो वहीं प्रशासन का अर्थ प्रजा की भलाई के लिए किया जाने वाला शासन और बनायी जाने वाली (What is public administration in Hindi) नीतियाँ।
अब लोक प्रशासन को बेहतर तरीके से समझने के लिए प्रशासन शब्द का अर्थ समझना होगा और तभी आपको लोक प्रशासन का अर्थ बेहतर तरीके से समझ में आएगा। तो यहाँ प्रशासन शब्द का अर्थ होता है जनता के ऊपर किया जाने वाला शासन। अब शासन तो राजतंत्र में भी होता है और लोकतंत्र में भी तो दोनों में अंतर किस प्रकार हुआ। तो अभी हमने आपको लोक प्रशासन की परिभाषा नहीं बताई है बल्कि इसमें केवल एक शब्द प्रशासन की परिभाषा की व्याख्या की (Lok prashasan ki paribhasha kya hai) है।
तो प्रशासन का अर्थ केवल ऐसा शासन होता है जो जनता पर शासन कर रहा होता है और देश को चला रहा होता है। इसका लोकतंत्र या राजतंत्र से कोई अलग से संबंध नहीं है क्योंकि चाहे किसी भी तरह का तंत्र हो, वहां पर प्रशासन तो होता ही है। अब इसमें शासन की जगह प्रशासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें देश को आगे बढ़ाने के लिए कुछ निर्धारित नीतियों के तहत ही कार्य करना होता है और निर्णय लेने होते (Lok prashasan meaning in Hindi) हैं।
अब इसमें यदि लोक शब्द जोड़ दिया जाए तो इसका अर्थ हो जाता है लोगों का प्रशासन। किन्तु इससे आप यह मत समझिये कि लोगों के द्वारा अपना खुद का प्रशासन किया जाएगा या कोई भी किसी पर भी शासन करने लग जाएगा। इसमें लोक प्रशासन का अर्थ होता है प्रजा के द्वारा बनायी गयी ऐसी प्रणाली जिसके तहत उन्हें ही अपने ऊपर शासन करने वालो को चुनने का अधिकार होता है, आइये इसे गूढ़ रूप में समझ लेते (Lok prashasan ki paribhasha) हैं।
लोक प्रशासन की व्याख्या (Lok prashasan ki vyakhya)
अभी तक आपको लोक प्रशासन बारे में थोड़ा बहुत पता चल गया होगा लेकिन हम इसकी परिभाषा को आपके समक्ष स्पष्ट कर देना चाहते हैं ताकि आपके मन में किसी तरह की शंका शेष ना रहने पाए। तो लोक प्रशासन का अर्थ होता है किसी देश की प्रजा के द्वारा ऐसी शासन व्यवस्था को चलाना जो समता की भावना लेकर आये, देश की उन्नति करे और देश को आगे तक लेकर (Lok prashasan ke kshetra ki vyakhya kijiye) जाए।
एक तरह से हम इसे सीधे लोकतंत्र से जोड़ सकते हैं या इन्हें एक दूसरे का समानार्थी या पर्याय कह सकते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि लोक प्रशासन के बिना लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं और लोकतंत्र के बिना लोक प्रशासन का कोई अर्थ नहीं। दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे की प्रमुख विशेषताएं भी। जहां कहीं भी लोकतंत्र होगा वहां पर निश्चित तौर पर ही लोक प्रशासन भी होगा और जहाँ पर लोक प्रशासन कार्य कर रहा है, निश्चित तौर पर वहां लोकतंत्र ही (Lok prashasan ki paribhasha bataiye) होगा।
ऐसे में जिस देश की प्रजा के द्वारा एक निश्चित अवधि के बाद अपना नेतृत्व करने के लिए सांसदों, विधायों या अन्य लोगों को चुना जाता है और जिन्हें हम जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति कहते हैं, उसके द्वारा ही लोक प्रशासन की स्थापना की जाती है ताकि सब कुछ सुचारू रूप से और बेहतर तरीके से किया जा सके। इसी को ही लोक प्रशासन कहा जाता (Lok prashasan ki paribhasha bataen) है।
लोक प्रशासन की विशेषताएं (Lok prashasan ki visheshta)
अब हम बात करेंगे लोक प्रशासन की विशेषताओं के बारे में और इसके बारे में बेहतर रूप में जानने का प्रयास करेंगे। तो लोक प्रशासन की कई तरह की विशेषता हो सकती है और यह हर देश या क्षेत्र के अनुसार भिन्न भिन्न भी हो सकती है। हालाँकि हम उनमे से कुछ प्रमुख विशेषताओं को आपके सामने रखने जा रहे हैं ताकि आपके मन में किसी तरह की शंका शेष ना रहने पाए।
- लोक प्रशासन की सबसे प्रमुख विशेषता यही है कि इसमें राजतंत्र का कोई स्थान नहीं होता है और यह पूर्ण रूप से लोकतंत्र के अधीन होता है।
- लोक प्रशासन में सभी तरह की नीतियाँ व कार्यप्रणाली उस देश के संविधान में लिखी होती है और एक तरह से वह संविधान की पुस्तक ही उस देश में लोकतंत्र की परिचायक होती है।
- लोक प्रशासन में उस देश की प्रजा को अधिक अधिकार होते हैं और वह उन अधिकारों का सदुपयोग कर सकता है और उनमे परिवर्तन ला सकता है।
- लोक प्रशासन में लोगों के द्वारा अपने ऊपर शासन करने वाले लोगों को नीतियों में बदलाव लाने को विवश किया जा सकता है ताकि उन्हें समय के अनुसार प्रभावी बनाया जा सके।
- लोक प्रशासन में प्रजा को यह शक्ति होती है कि वह एक निश्चित अवधि के बाद उन पर शासन कर रहे व्यक्तियों को बदल सकती है या उनमे से ही किसी एक व्यक्ति को उस पद पर बैठा सकती है।
- यदि लोक प्रशासन में कोई व्यक्ति जो हम पर शासन कर रहा है, वह अनुचित कार्य करता है या लोक प्रशासन की भावना के विरुद्ध कार्य करता है तो उस पर उस देश की अलग ईकाई जिसे न्यायपालिका कहा जाएगा, उसके तहत उचित कार्यवाही हो सकती है।
- लोक प्रशासन की भावना के विरुद्ध कार्य करने वाले सामान्य जनता पर भी वह ईकाई अर्थात न्यायपालिका कार्यवाही कर सकती है या प्रशासन के व्यक्ति भी उसके विरुद्ध नियमो के तहत कार्यवाही करने को स्वतंत्र होते हैं।
- लोक प्रशासन की आवाज पत्रकारिता को कहा जाता है जिसके द्वारा लोक प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने, प्रजा को मन की बात को दिखाने तथा सभी तरह के व्यक्तियों पर नज़र रखी जाती है।
- राजतंत्र की तुलना में वृहद् स्तर पर लोक प्रशासन राजतंत्र के सामने बहुत शक्तिहीन होता है और राजतंत्र कभी भी लोक प्रशासन को कुचल सकता है।
- लोक प्रशासन के द्वारा शासन व्यवस्था जनता के तो अधीन हो जाती है लेकिन यह अपने साथ कई तरह की कमजोरियां तथा भ्रष्टाचारी भी लेकर आती है जिसके बारे में हम आपको नीचे बताएँगे।
लोक प्रशासन के अंग (Public administration types in Hindi)
अब हम बात करेंगे कि किसी भी देश में जहाँ पर लोक प्रशासन की व्यवस्था है, वहां उसे चलाये रखने के लिए कौन कौन से अंग कार्य करते हैं। तो इसके मुख्य तौर पर दो अंग होते हैं जिन्हें हम लोक प्रशासन के प्रत्यक्ष अंग या प्रकार कह सकते हैं और वहीं तीन अंग इसके अप्रत्यक्ष अंग होते हैं जो इसे सुचारू रूप से चलाये रखने या इसको चलाए रखने में सहायता करने के लिए आवश्यक होते हैं। तो ऐसे में इन सभी पांच अंगों के बारे में जानकारी ले ली जाए तो बेहतर रहेगा।
अब इसमें जो प्रत्यक्ष प्रकार है उसे ही हम प्रशासन या प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं जिन्हें हम अपनी रोजमर्रा के जीवन में देखते हैं। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से कार्य कर रहे लोक प्रशासन के अंग हमें डराते भी हैं तो वही हमारी आवाज भी होते हैं और हमारी शक्ति भी। आइये इन सभी के बारे में एक एक करके जान लेते हैं।
लोक प्रशासन के प्रकार – प्रत्यक्ष
- विधायिका: यह लोक प्रशासन की शुरुआत होती है जिस पर प्रजा का संपूर्ण अधिकार होता है। एक तरह से लोक प्रशासन के द्वारा जो नीतियाँ बनायी जाती है और जिसके पास सर्वाधिक शक्तियां होती है या जो उन शक्तियों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है, वह विधायिका ही होती है। इसके द्वारा किसी भी देश में लोगों के द्वारा अपने ऊपर शासन करने के लिए या अपना नेतृत्व करने के लिए अपनों में से ही नेताओं को चुना जाता है और उनके हाथ में लोक प्रशासन की बागडौर थमा दी जाती है लेकिन एक निश्चित अवधि के लिए। इस तरह से लोक प्रशासन में विधायिका प्रजा के लिए राजा नहीं बल्कि उनकी सेवक होती है।
- कार्यपालिका: यह लोक प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग है और जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि इस अंग में आने वाले व्यक्ति ही लोक प्रशासन का कार्य करते हैं और हमारे बीच में स्थित होते हैं। अब इस कार्यपालिका में कार्य कर रहे व्यक्तियों का चुनाव तो हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं होता है किन्तु इस पर पूर्ण रूप से विधायिका का नियंत्रण होता है और वही इन्हें सभी तरह के दिशा निर्देश देती है। इस तरह से लोक प्रशासन में हम विधायिका के माध्यम से अपने सेवक चुनते हैं और फिर विधायिका अपना कार्य करवाने के लिए कार्यपालिका का गठन करती है जो विधायिका की सेवक होती है।
लोक प्रशासन के प्रकार – अप्रत्यक्ष
- संविधान: यह लोक प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है लेकिन यह अप्रत्यक्ष होता है। अब किसी देश में लोक प्रशासन कैसे चलेगा, उसकी मूल नीतियाँ क्या होगी, उसमे क्या कुछ परिवर्तन किया जा सकता है और क्या नहीं, उसके लिए किस तरह की प्रक्रिया होगी इत्यादि सब इस संविधान की पुस्तक में लिखा होता है। यदि यह ना हो तो विधायिका में चुने गए व्यक्ति हमेशा के लिए उस पद पर बने रह सकते हैं। इसलिए यह संविधान लोक प्रशासन की नींव कहलायी जाती है जो सभी अंगों को नियंत्रित करने का कार्य करती है।
- न्यायपालिका: अब जो लोक प्रशासन होता है उसमे लोगों की सहमति के माध्यम से नितियाँ, नियम, अधिनियम इत्यादि बनाये जाते हैं जिनका पालन करना सभी के लिए आवश्यक होता है। किन्तु हम यह नहीं कह सकते हैं कि समाज में सभी व्यक्तियों की सोच एक जैसी होगी क्योंकि उसमे बुरे कर्म करने वाले या नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति भी शामिल होते हैं। ऐसे में लोक प्रशासन में न्यायपालिका की व्यवस्थ भी की गयी है लेकिन उसे स्वतंत्र रूप दिया गया है ताकि उस पर लोक प्रशासन का दबाव ना हो और वह निष्पक्ष न्याय कर सके। किन्तु साथ ही उसकी शक्तियों को सीमित किया गया है ताकि वह विधायिका से ऊपर ना चली जाए।
- पत्रकारिता: अब लोक प्रशासन में पत्रकारिता वाले अंग की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह सभी अन्य अंगों के साथ साथ प्रजा की भी आवाज बनने का कार्य करती है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में कहाँ क्या कुछ हो रहा है, उस पर क्या नीतियाँ बनायी गयी है, नियमों का उल्लंघन कहाँ हो रहा है इत्यादि पर लोगों को सूचित करने का कार्य पत्रकारिता के माध्यम से ही किया जाता है।
लोक प्रशासन कैसे काम करता है?
अब आपका अगला प्रश्न यह होगा कि आखिरकार यह लोक प्रशासन किस तरह से कार्य करता है और उसकी नीति क्या होती है। तो इसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता है और उसी को ध्यान में रखकर ही कार्य किया जाता है। अब इसमें अधिनियम बनाने सहित योजनाओं का निर्माण किया जाना तथा सरकार व प्रशासन के द्वारा अन्य सभी कार्य किया जाना सम्मिलित होता है, आइये जाने इसकी प्रक्रिया के बारे में।
प्रजा से कर के रूप में धन का संचय
अब यदि लोक प्रशासन को कार्य करना है तो हर काम में धन तो लगता ही है। इसके लिए विधायिका के द्वारा प्रजा से अलग अलग चीज़ों से टैक्स या कर प्राप्त किया जाता है। अब यह कर आय पर होता है, क्रय-विक्रय पर होता है और साथ ही दंड के द्वारा भी राशि एकत्रित की जाती है जैसे कि यातायात नियमो के उल्लंघन पर या अन्य कोई कार्यवाही। इस तरह से इन टैक्स के पैसों का उपयोग ही लोक प्रशासन को चलाये रखने में किया जाता है।
योजना का निर्माण किया जाना
अब जो टैक्स के रूप में पैसे एकत्रित हुए हैं, उनसे ही तरह तरह की योजनाएं बनायी जाती है और उनका क्रियानव्यन किया जाता है। इसके लिए सरकार आज की स्थिति के अनुसार समावेशी योजनाओं का निर्माण करती है ताकि लोगों का कल्याण किया जा सके। अब यह योजनाएं एक निश्चित अवधि के लिए हो सकती है या किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बनायी जा सकती है या किसी और चीज़ से संबंधित हो सकती है।
कार्यपालिका को दिशा निर्देश देना
जब योजना बन जाती है तो उस पर कार्य करने का काम प्रशासन अर्थात कार्यपालिका अर्थात अधिकारियों का होता है। इसके लिए योजना के अनुसार विधायिका कार्यपालिका को सब कुछ समझा देती है और उसके तहत क्या कुछ किया जाना है, कब कब किया जाना है, कितने समय में किया जाना है और किसके साथ किया जाना है, यह सब कुछ बता दिया जाता है। उसके बाद कार्यपालिका ही उस योजना पर कार्य करती है।
विभागों में समन्वय स्थापित करना
लोक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न तरह के विभागों के बीच आपसी तालमेल बैठाना भी होता है क्योंकि तभी प्रशासन को सही रूप में चलाया जा सकता है। अब किसी भी योजना को एक स्तर पर तो चलाया नहीं जाता है और उसमे कई तरह के विभाग मिले होते हैं। ऐसे में इन सभी विभागों के बीच आपसी समन्वय स्थापित करना, उन्हें आवश्यक दिशा निर्देश देना, उनके लिए नीतियाँ बनाना इत्यादि भी लोक प्रशासन का ही कार्य होता है।
विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना
अंत में लोक प्रशासन का कार्य अपने लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना होता है जिसे प्रजा के सामने रखा जाता है। एक तरह से उस लोक प्रशासन में किस व्यक्ति के द्वारा या किस विभाग के द्वारा किसी योजना पर क्या कार्य हुआ है, कितना काम होना बाकि है, धन का उपयोग कहाँ हुआ है और किस रूप में हुआ है इत्यादि सभी का विस्तृत ब्यौरा तैयार करना होता है जिसे प्रजा के समक्ष रखना होता है।
लोक प्रशासन के कार्य (Lok prashasan ke karya)
यह तो आप समझते ही होंगे कि किसी भी देश में लोक प्रशासन के क्या कुछ कार्य हो सकते हैं। एक तरह से यदि हम आज के समय के अनुसार सीधे शब्दों में बात करें तो इसका अर्थ होता है हर वह काम जो सरकारी होता है, वह लोक प्रशासन के अंतर्गत ही आता है। एक तरह से जो भी काम सरकारी कार्यालयों में किये जाते हैं और जिनमें सरकारी अधिकारियों या कर्मचारियों की भूमिका होती है या उनकी सहायता चाहिए होती है, वह लोक प्रशासन का ही कार्य होता (Lok prashasan ke karya bataiye) है।
अब वह कार्य चाहे अपने यहाँ के पार्षद से किसी पेज दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाने से संबंधित हो या अपना पासपोर्ट बनवाने से हो या किसी योजना का लाभ उठाना हो और अन्य कोई काम। इस तरह से जो भी काम सरकारी होता है या जिस भी काम में सरकार की सहायता चाहिए होती है, वह सभी कार्य लोक प्रशासन के ही कार्य होते हैं। फिर भी कुछ मुख्य कार्य हम आपको बता देते (Lok prashasan ke karya par charcha karen) हैं।
- प्रजा के लिए समय समय पर योजनाओं को बनाया जाना और उनका क्रियानव्यन किया जाना।
- देश को सुचारू रूप से चलाये रखने के लिए प्रजा से कर को लिया जाना फिर चाहे वह किसी भी रूप में लिया गया हो।
- समय समय पर अधिनियम बनाना या बने हुए अधिनियमों में संशोधन करना और उसका पालन करने के लिए सभी को बाध्य करना।
- यदि किसी के द्वारा उन अधिनियम का उल्लंघन किया जाता है तो उस पर उचित कार्यवाही करना।
- सभी को साथ में लेकर चलना और समाज के हर वर्ग का एक समान कल्याण करना और उनके लिए योजनाओं का निर्माण किया जाना।
- अपराध पर नियंत्रण करना और जो अपराध कर रहे हैं, उन्हें दंड दिलवाना सुनिश्चित करना।
- आवश्यकता पड़े तो संविधान में संशोधन करना और उसमे समय के अनुसार परिवर्तन लाना।
- न्यायपालिका व पत्रकारिता को सुचारू रूप से चलाये रखने के लिए कार्य करना और उन्हें समय समय पर आवश्यक दिशा निर्देश या फिर परामर्श देना।
- देश के लोगों को विभिन्न पहलुओं पर जागरूक करने का कार्य करना और उन्हें नयी चीज़ों के बारे में बताना।
लोक प्रशासन क्या है – Related FAQs
प्रश्न: लोक प्रशासन से आप क्या समझते है?
उत्तर: लोक प्रशासन के बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने इस लेख के माध्यम से बताने का प्रयास किया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: लोक प्रशासन के कार्य क्या है?
उत्तर: लोक प्रशासन के कार्यों की सूची हमने ऊपर के लेख में विस्तार से दी है।
प्रश्न: लोक प्रशासन की विशेषता क्या है?
उत्तर: लोक प्रशासन की विशेषता आपको ऊपर के लेख में पढ़ने को मिलेगी।
प्रश्न: लोक प्रशासन भारत में कब शुरू हुआ?
उत्तर: लोक प्रशासन भारत में सन 1887 में शुरू हुआ था।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने लोक प्रशासन के बारे में जानकारी एकत्रित कर ली है। आपने जाना कि लोक प्रशासन क्या है लोक प्रशासन के अंग क्या हैं लोक प्रशासन कैसे काम करता है और लोक प्रशासन के क्या कार्य हैं इत्यादि। साथ ही हमने आपको इस लेख के माध्यम से लोक प्रशासन की विशेषताएं भी बताई है। आशा है कि जो जानने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह जानकारी आपको मिल गई होगी।