|| लोकतंत्र के चार स्तंभ कौन से हैं? | Loktantra ke char stambh kaun se hain | Four pillars of democracy in Hindi | Karyapalika in Hindi | Loktantra ke stambh | लोकतंत्र का सबसे बड़ा स्तंभ कौन सा है? | लोकतंत्र में कितने सीट होते हैं? |
Loktantra ke char stambh kaun se hain :- जब से मनुष्य इस धरती पर बसा है तब से ही उसे किसी ना किसी राजा, नेता, मार्गदर्शक इत्यादि की आवश्यकता होती है और बिना इसके वह कार्य नहीं कर सकता है। इसी कारण शासन तंत्र का चलन आया ताकि बहुत से मनुष्यों को एक मनुष्य संभाल सके और उन्हें दिशा निर्देश दे सके। मानव सभ्यता की शुरुआत से लेकर करोड़ों लाखों वर्षों तक राजतंत्र का ही प्रावधान हर देश में था लेकिन पिछले कुछ दशकों में एक और तरह का तंत्र आया है जिसे हम सभी लोकतंत्र के नाम से जानते (Four pillars of democracy in Hindi) हैं।
हालाँकि आज के समय में विश्व के बहुत से देशों में राजतंत्र ही काम कर रहा है लेकिन भारत जैसे कई देश लोकतंत्र का समर्थन करते हैं। हमारे देश को वर्ष 1947 में स्वतंत्रता मिली थी और उससे पहले तक हमारे देश में भी राजतंत्र ही था। देश के स्वतंत्र होने के बाद यहाँ पर लोकतंत्र की नींव रखी गयी और प्रजा को देश का अगला राजा अर्थात प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार दिया (Loktantra ke char stambh) गया।
अब हर देश में लोकतंत्र के कुछ ना कुछ स्तंभ होते हैं और उसमे से चार स्तंभ ही मुख्य होते हैं। भारत देश में भी लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं और इनके बारे में शायद आपने अपने स्कूल की पुस्तकों में पढ़ा भी होगा। हालाँकि आज के इस लेख में हम आपके साथ लोकतंत्र के इन्हीं चार स्तंभों के बारे में बात करने वाले हैं ताकि आप इनके बारे में बेहतर तरीके से जान (Loktantra ke stambh) सकें।
लोकतंत्र के चार स्तंभ कौन से हैं? (Loktantra ke char stambh kaun se hain)
भारत देश का लोकतंत्र देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद स्थापित हुआ था। उससे पहले हमारे देश ने एक लम्बे समय काल के लिए गुलामी देखी थी। हमारे देश के राजतंत्र के आखिरी राजा पृथ्वीराज चौहान थे जिनका शासन बारहवीं शताब्दी के अंत में खत्म हो गया था। उसके बाद से ही देश विदेशी आक्रमणकारी व आतंकीय शक्तियों के हाथ में चला गया (Loktantra ke stambh kaun se hain) था। यह शासन बदलता रहा जिसमे हमारे देश में अफगान, मुगल, पुर्तगाली व अंग्रेजों ने शासन किया।
उसके बाद 15 अगस्त 1947 को देश को स्वतंत्रता मिल गयी और देश के शासन तंत्र की बागडौर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में जवाहर लाल नेहरु को सौंप दी गयी। इसी के साथ ही देश में राजतंत्र को समाप्त कर लोकतंत्र की नींव रखी गई और भारत पर नेतृत्व करने का अधिकार प्रजा को सौंप दिया (Loktantra ke 4 stambh) गया। अब वे ही अपने वोट के माध्यम से अपना सांसद, विधायक, पार्षद इत्यादि चुनते हैं और उसी के दम पर ही कोई एक व्यक्ति उनका नेतृत्व करता (Vidhayika karyapalika nyaypalika kise kahate hain) है।
तो इस लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में चार चीज़ों या व्यवस्थाओं का निर्माण किया गया जिस पर किसी भी देश का लोकतंत्र टिका हुआ होता है। आज हम लोकतंत्र के इन्हीं 4 स्तंभों के बारे में ही आपसे बात करने वाले (Loktantra ke kitne stambh hote hain) हैं, आइये जाने लोकतंत्र के 4 स्तंभ के बारे में विस्तार से।
विधायिका (Vidhayika in Hindi)
लोकतंत्र के चार स्तंभों के रूप में जो सबसे पहला और सबसे शक्तिशाली तथा मजबूत स्तंभ होता है वह होता है विधायिका। अब यह स्तंभ बाकि सभी स्तंभों से ज्यादा शक्तिशाली इसलिए है क्योंकि इसमें उस देश की प्रजा की भागीदारी होती है। इस विधायिका के अंतर्गत वह व्यक्ति होते हैं जिनका चुनाव देश की प्रजा करती है। अन्य सभी स्तंभ में जो भी व्यक्ति कार्य कर रहा होता है वह अपनी शिक्षा तथा बुद्धि के दम पर आगे बढ़ता है जबकि विधायिका में लोगों का साथ होना आवश्यक होता (Loktantra ke stambh ke naam) है।
एक तरह से विधायिका को हम लोकतंत्र की आवाज कह सकते हैं। इसमें जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि पहुँचते हैं। भारत देश में इसको लेकर तीन तरह से चुनाव होते हैं जिनके माध्यम से हम अपने मोहल्ले के पार्षद, शहर के विधायक तथा संसदीय क्षेत्र के सांसद को चुनते हैं। अब इसमें जो पद सबसे शक्तिशाली होता है वह सांसद होता है। वह इसलिए क्योंकि देश के सभी सांसद मिलकर एक मुख्य सांसद चुनते हैं जो उस देश का प्रधानमंत्री अर्थात राजा होता (Vidhayika ki paribhasha) है।
ऐसे में उस प्रधानमंत्री के ऊपर ही उस पूरे देश व लोकतंत्र की विधायिका की कमान होती है। वही उस देश को विदेशी मंच पर रखता है, देश का प्रतिनिधित्व करता है और देश को लेकर सभी महत्वपूर्ण व बड़े निर्णय भी वही लेता है। हालाँकि इसके लिए उसे देश के चुने गए सांसदों का बहुमत चाहिए होता (Vidhayika kise kahate hain) है।
विधायिका के कार्य (Vidhayika ke karya)
अब इस विधायिका के बारे में जानने के बाद यह जानना भी जरुरी है कि यह किस काम को करने के लिए बनायी गयी होती है। अब यदि कोई देश चलता है तो वह किसी नियम या कानून पर ही चलेगा ना, किसी के कह देने भर से थोड़ी ना चलता है। ऐसे में भारत देश के विधायिका में बैठे व काम कर रहे प्रतिनिधि हरेक चीज़ के लिए कानून बनाने का कार्य करते (Vidhayika ke kya karya hote hain) हैं।
तो सीधे सीधे शब्दों में कहा जाए तो विधायिका का कार्य देश के लोगों के लिए कानून व नियम बनाने का होता है। इसके लिए संसद का सत्र बुलाया जाता है जिसमे देश के चुने हुए सभी सांसद बैठते हैं। फिर उनके बीच किसी कानून को लेकर विचार विमर्श किया जाता है और अंत में उसे एक कानून का रूप दे दिया जाता है। अब देश के नागरिकों को उस कानून का पालन करना अनिवार्य होता है अन्यथा उनके विरुद्ध कार्यवाही की जाती है।
अब इसे विधायिका नाम ही इसलिए दिया गया है क्योंकि इसमें विधि अर्थात विधान शब्द जुड़ा हुआ होता है। विधि या विधान का अर्थ होता है नियम या जो हमारा विधाता है। अब सांसद ही हमारे विधाता माने जाते हैं क्योंकि वही हमारे भविष्य को ध्यान में रखकर सभी तरह के कानून, नियम, नीति निर्देश इत्यादि बनाते हैं और समय समय पर उनका मूल्याङ्कन करते हैं।
कार्यपालिका (Karyapalika in Hindi)
विधायिका के बाद लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में जो अगला स्तंभ आता है वह होती है कार्यपालिका। अब इसे कार्यपालिका नाम ही इसलिए दिया गया है क्योंकि इनका कार्य विधायिका के द्वारा बनाये गए कानूनों का पालन करवाना होता है। इन्हें जनता के द्वारा नहीं चुना जाता है बल्कि इन्हें विधायिका के द्वारा नियमों के तहत चुना जाता है। अब भारत देश में कार्य करने के लिए कई तरह के सरकारी विभाग होते हैं जहाँ सरकारी कार्य किया जाता (Karyapalika kya hai) है।
अब सरकार या विधायिका तो लोगों के बीच में जाकर काम कर नहीं सकती है, वह तो बस कानून बनाने का कार्य कर सकती है। तो ऐसे में उन्हें इन कानूनों को बनाने में सहायता करने और उसके बाद इन कानूनों का पालन करवाने के लिए कार्यपालिका की आवश्यकता होती है। इसके लिए देश के हरेक हिस्से में अलग अलग सरकारी काम को करने के लिए सरकारी कार्यालयों की स्थापना की जाती है। उदाहरण के तौर पर बिजली विभाग, जल विभाग, रेलवे विभाग, तहसील, जिलाधिकारी कार्यालय इत्यादि।
तो इनमे से किसी भी पद तक पहुँचने के लिए या कार्यपालिका में शामिल होने के लिए व्यक्ति विशेष को बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है। साथ ही इसमें पद के अनुसार ही अलग अलग मापदंड बनाये गए होते हैं जिन्हें चार तरह की श्रेणी में बांटा गया होता है। यह ग्रुप अ, ब, स व द के कर्मचारी व अधिकारी कहलाते हैं। इसमें ग्रुप अ में आने वाले अधिकारी होते हैं जो कार्यपालिका में सबसे ऊपर माने जाते (Karyapalika kise kahate hain) हैं। उसके बाद क्रमानुसार ब, स व द स्तर के अधिकारी व कर्मचारी होते हैं।
कार्यपालिका के कार्य (Karyapalika ke karya)
अब लोकतंत्र में रहकर जो मुख्य काम करना होता है या जिसकी वजह से असलियत में लोकतंत्र टिका हुआ है और देश काम कर रहा है तथा आगे बढ़ रहा है, वह इसी कार्यपालिका के कारण ही होता है। विधायिका तो बस सामने का चेहरा मात्र होती है जबकि पर्दे के पीछे का काम इसी कार्यपालिका का होता है। विधायिका को अपने हरेक काम करने या निर्णय लेने के लिए इसी कार्यपालिका पर ही निर्भर होना होता है लेकिन कार्यपालिका विधायिका के नीचे ही आती (Karyapalika ke karya kya hai) है।
इसे आप इसी से समझ लीजिये की किसी फिल्म में हम सभी हीरो को देखते हैं लेकिन उस फिल्म को बनाने में हजारों लोगों का योगदान होता है। जैसे कि उस फिल्म का डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, लेखक, कैमरामैन, कपड़े वाला, फोटो वाला, वीडियो वाला, एडिटिंग वाला, ग्राफ़िक्स वाला इत्यादि। तो लोकतंत्र में हीरो तो विधायिका हो गयी जबकि अन्य सभी काम करने वाले लोग कार्यपालिका के ही होते (Karyapalika ke karya ka varnan) हैं।
अब इसे लोकतंत्र की भाषा में समझा जाए तो विधायिका का कार्य कानून का निर्माण करना होता है जबकि आम जन के बीच उस कानून को लेकर जाना, उसके अनुसार कार्य करना तथा जनता को भी उस कानून को मानने के लिए बाध्य करना इन्हीं का ही काम होता है। ऐसे में जो भी कानून बनाये गए हैं तथा विधायिका ने जो भी दिशा निर्देश जारी किये हैं, उसी के अनुसार ही कार्य करना कार्यपालिका का उत्तरदायित्व होता है।
न्यायपालिका (Nyaypalika in Hindi)
लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ के रूप में जो आता है वह होती है न्यायपालिका। अब इसके बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे और इसमें भी देश की प्रजा उन्हें नहीं चुनती है। इसके लिए भी एक अलग व्यवस्था होती है जिसके तहत देश की पुलिस, अधिवक्ता व न्यायाधीश की टीम काम करती (Nyaypalika kise kahate hain) है। इसमें सबसे ऊपर न्यायाधीश आते हैं जिन पर विधायिका व कार्यपालिका का कोई नियंत्रण नहीं होता है। अधिवक्ता या वकील स्वतंत्र होते हैं जबकि पुलिस विधायिका के नियंत्रण में होती है।
अब न्यायपालिका के नाम से ही स्पष्ट है कि यह देश के लोगों के साथ न्याय करने का काम करती है। जहाँ एक ओर विधायिका को सर्वोच्च माना गया है और कार्यपालिका को पूर्णतः उसके अधीन रखा गया है तो न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। हालाँकि न्यायपालिका जिसके बल पर काम करती है वे दो स्तंभ हैं। इसमें से एक स्तंभ अधिवक्ता होते हैं जो आंशिक रूप से न्यायपालिका के अधीन होते हैं लेकिन मुख्य तौर पर स्वतंत्र ही होते हैं। वहीं जो दूसरा स्तम्भ पुलिस होती है वह पूर्ण रूप से स्थानीय या राजकीय विधायिका के नियंत्रण में होती (Nyaypalika kya hai) है।
न्यायपालिका को भारतीय संविधान व लोकतंत्र ने बहुत शक्तियां भी दी है जिसके तहत यह लोकतंत्र के अन्य तीन स्तंभों के ऊपर भी निर्णय सुना सकती है या उन्हें आदेश दे सकती है। हालाँकि यह विधायिका के सर्वोच्च नेताओं पर आदेश जारी करने की स्थिति में संकट की स्थिति में आ सकती है क्योंकि संविधान के अनुसार अंत में विधायिका ही सर्वोच्च होती है क्योंकि वह देश की प्रजा का मत होती है, ना कि न्यायपालिका जो शिक्षा के दम पर बनायी गयी (Nyaypalika kise kehte hain) है।
न्यायपालिका के कार्य
अब यदि हम न्यायपालिका के कार्यों की बात करें तो इनका काम बनाये गए कानून की व्याख्या करना और उनका उल्लंघन होने पर उस पर कार्यवाही करना होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि किसी भी देश को चलाने के लिए उस देश की विधायिका तरह तरह के कानून व नियम बनाती है। अब उन बने हुए कानूनों का पालन करवाने का उत्तरदायित्व वहां की कार्यपालिका के ऊपर आता है जबकि उन कानूनों का उल्लंघन करने पर कार्यवाही करने का अधिकार न्यायपालिका का होता (Nyaypalika ke karya) है।
अब न्यायपालिका का एक मुख्य कार्य तो बनाये गए कानूनों व नियमों का उल्लंघन होने पर संबंधित व्यक्ति, संस्था, कंपनी इत्यादि पर कानून सम्मत कार्यवाही करना होता है तो दूसरी ओर, विभिन्न विषयों पर नए कानून बना देना भी होता है। हालाँकि यह अधिकार सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के पास ही होता है। यह कोई नया कानून नहीं होता है बल्कि मौजूदा कानून की व्याख्या करना कहा जा सकता है।
इसके माध्यम से, न्यायपालिका देश के नागरिकों के साथ न्याय करने और उनके जीवन को सरल बनाने का कार्य करती है। हालाँकि कुछ मामलों में देश का संविधान व लोकतंत्र न्यायपालिका को भी कानून बनाने का अधिकार देता है और विधायिका के बनाये कानूनों को निरस्त करने का (Nyaypalika ke karya ka ullekh karen) भी ऐसे में यह कुछ और नहीं विधायिका व न्यायपालिका के बीच का टकराव होता है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
पत्रकारिता (Patrakarita in Hindi)
अब लोकतंत्र के चार स्तंभ में से जो आखिरी स्तंभ है वह होती है पत्रकारिता। आप और हम सभी समाचार देखते हैं और यह हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग होता है। देश विदेश में क्या घटित हो रहा है, किस पर कानून बनाया गया है, विधायिका उस पर किस तरह से काम कर रही है, कहाँ पर उस कानून का उल्लंघन हो रहा है, उस पर क्या कार्यवाही की गयी है या चल रही है इत्यादि सभी की जानकारी देने का कार्य यह स्तंभ अर्थात पत्रकारिता का ही होता (Patrakarita kya h) है।
यह लोकतंत्र का एक ऐसा स्तंभ होता है जो बाकियों की तुलना में संवैधानिक रूप से इतना शक्तिशाली तो नहीं होता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह बाकि के तीन स्तंभों को हिलाकर रख सकता है। मुख्य रूप से कार्यपालिका व विधायिका को पत्रकारिता के माध्यम से प्रभावित किया जा सकता है लेकिन न्यायपालिका को नहीं। किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता ने अपनी शक्ति इतनी बढ़ा दी है कि अब न्यायपालिका भी पत्रकारिता से प्रभावित होने लगी है जो कि बिल्कुल भी ठीक नहीं है क्योंकि इससे निर्णय गलत लिए जा सकते (Media kya hai) हैं।
पत्रकारिता को हम मीडिया भी कह सकते हैं जो किसी भी रूप में हो सकती है। यह न्यूज़ चैनल भी होते हैं, डिजिटल मीडिया भी, प्रिंट मीडिया भी, सोशल मीडिया भी तथा अन्य किसी माध्यम की मीडिया भी। एक तरह से वह हर व्यक्ति जो लोगों तक समाचार पहुँचाने का कार्य कर रहा है वह मीडिया अर्थात पत्रकारिता का भाग होता है।
पत्रकारिता के कार्य (Patrakarita ke karya)
अब पत्रकारिता का जो कार्य होता है वह बहुत ही बिखरा हुआ और व्यापक होता है। इसकी परिभाषा को लोगों के द्वारा अपने लाभ के अनुसार बदल दिया जाता है या यह स्थिति के अनुसार बदलती चली जाती है। हालाँकि वास्तविकता में पत्रकारिता का मुख्य कार्य केवल और केवल देश व विदेश में घटित हो रही हरेक घटना की जानकारी को जनता के समक्ष रखना, उन तक संपूर्ण जानकारी पहुँचाना, कानून को सरल शब्दों में समझाना तथा जनता को लोकतंत्र, अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में बताना होता (Media ke karya) है।
पत्रकारिता कभी भी किसी भी घटना, मामले या स्थिति में निर्णय नहीं सुना सकती है और ना ही न्यायपालिका के आदेश के बिना किसी को दोषी ठहरा सकती है या पक्षपाती रिपोर्टिंग कर सकती है। उसे केवल और केवल प्राप्त जानकारी के आधार पर संपूर्ण न्यूज़ को जनता के समक्ष रखना होता है। इसके अलावा उसका कोई काम नहीं होता है लेकिन वर्तमान समय में पत्रकारिता ने अपने आप को विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तीनो मान लिया है।
लोकतंत्र के चार स्तंभ कौन से हैं – Related FAQs
प्रश्न: लोकतंत्र के 4 स्तंभ कौन से हैं?
उत्तर: लोकतंत्र के चार स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता है।
प्रश्न: भारत में कितने स्तंभ है?
उत्तर: भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां पर 4 स्तंभ हैं जिनके बारे में जानकारी आप ऊपर के लेख के माध्यम से प्राप्त कर सकते हो।
प्रश्न: लोकतंत्र में कितने सीट होते हैं?
उत्तर: लोकसभा में कुल 543 सीटें है।
प्रश्न: लोकतंत्र का सबसे बड़ा स्तंभ कौन सा है?
उत्तर: लोकतंत्र का सबसे बड़ा स्तंभ विधायिका है।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने लोकतंत्र के चार स्तंभों के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। आपने जाना कि चार स्तंभों के नाम क्या हैं और साथ ही उनके कार्य क्या हैं। आशा है कि जो जानने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह जानकारी आपको मिल गई होगी। यदि अभी भी आपके मन में कोई शंका शेष रह गई है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।