|| Nyuntam samarthan mulya kya hota hai | MSP क्या है? | MSP kya hai | MSP ke bare mein jankari | MSP ke fayde | Nyuntam samarthan mulya par kya vivad hai | yuntam samarthan mulya kyo jaruri hai |
MSP kya hai :- हाल ही में कृषि कानूनों को लेकर बहुत विवाद हुआ था जिसमे देश के कुछ राज्यों के किसानों ने बहुत दिनों तक आंदोलन कर रखा था। इसी आंदोलन के आगे विवश होकर भारत सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े थे और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा (MSP kya hota hai) था। हालाँकि इसमें कुछ राज्य के किसान ही आंदोलनरत थे जिनमे पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्से के किसान शामिल थे। अन्य किसी भी राज्य में छोटे मोटे विरोध को छोड़ कर कोई और विरोध देखने को नहीं मिला था।
तो यह विरोध मुख्य तौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर ही था क्योंकि किसानों के बीच यह डर था कि इन तीनों कृषि कानूनों की आड़ में भारत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म कर (Nyuntam samarthan mulya kya hota hai) देगी। अब इस न्यूनतम समर्थन मूल्य को ही हम MSP के नाम से जानते हैं और आपने भी इसी का ही नाम सुन रखा होगा। तो आज के इस लेख में हम आपके साथ इसी MSP के ऊपर ही चर्चा करने वाले हैं और आपको बताने वाले हैं कि आखिरकार यह MSP होती क्या है और किस तरह से यह किसानों के लिए बहुत जरुरी होती (MSP ke bare mein jankari) है।
MSP क्या है? (MSP kya hai)
सबसे पहले बात करते हैं इसी MSP के बारे में जिसे हम न्यूनतम समर्थन मूल्य भी कह देते हैं। तो जैसा कि इसके नाम से ही पता चल रहा है कि इस MSP का मतलब क्या हो सकता है। यह किसी भी चीज़ को समर्थन देने या उसे चलाये रखने के लिए कम से कम मूल्य होता (Nyuntam samarthan mulya kya hai) है। अब भारत के हर राज्य में किसानों के द्वारा फसलों की उगाई की जाती है और फिर उसके बाद उसे बाजार में या अन्य लोगों में बेच दिया जाता है।
हर बार इन फसलों के दाम अलग अलग होते हैं और इन पर कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की मार भी पड़ती है। साथ ही बाजार में भी बहुत बार प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है जिस कारण इन फसलों का दाम ऊपर नीचे होता रहता है। ऐसे में भारत सरकार के द्वारा किसानों को सहयोग देने और उन्हें आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से ही यह MSP की सुविधा चालू की गयी थी। इसके द्वारा किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य प्राप्त हो जाता था।
न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिभाषा के अनुसार किसी भी किसान के द्वारा यदि निर्धारित फसल का उत्पादन किया जा रहा है तो बाजार में उस फसल का भाव चाहे कितना भी कम या ज्यादा क्यों ना हो, भारत सरकार के द्वारा उस फसल का एक न्यूनतम मूल्य अर्थात कम से कम मूल्य निर्धारित कर दिया जाएगा। अब यदि बाजार में उस फसल का भाव बहुत कम भी है तो भी भारत सरकार उस न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत उस किसान से वह फसल खरीद लेगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य की जरुरत क्यों पड़ती है? (Nyuntam samarthan mulya kyo jaruri hai)
आपको यह भी जानना चाहिए कि आखिरकार भारत सरकार के द्वारा किसानों के द्वारा उगाई जा रही फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करने की क्या जरुरत पड़ जाती है या फिर इसका क्या लाभ होता है। तो यह तो हम सभी जानते हैं कि किसानों की आय पर बहुत ज्यादा प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं का पड़ता (MSP kyo jaruri hai) है। यदि मौसम की छाल में थोड़ा बहुत अंतर भी देखने को मिलता है तो इसका सीधा प्रभाव किसान ही झेलता है फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
मान लीजिए, यदि किसी मौसम में बारिश नहीं होनी चाहिए लेकिन तब भी बारिश हो जाती है तो उसकी मार किसान ही झेलता है। इसी के साथ बाजारी एकीकरण की कमी होना या पर्याप्त सूचनाओं के अभाव में या अन्य किसी कारण से जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, उससे भी फसलों के भाव बाजार में ऊपर नीचे चले जाते (MSP ke fayde) हैं। तो इन्हीं सब कारणों को देखते हुए ही भारत सरकार के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया जाता है।
अब यदि हम इसे एक उदाहरण से समझें तो किसी राज्य के किसान के द्वारा एक फसल का उत्पादन किया जाता है जिसका मूल्य सामान्य तौर पर 200 रुपए है तो यह जरुरी नही होता है कि वह उसी दाम पर ही बाजार में बिके। बाजार में आ रहे उतार चढाव के कारण उसका मूल्य 400 रुपए भी पहुँच सकता है तो वही उसका मूल्य गिर कर 100 रुपए भी हो सकता (Nyuntam samarthan mulya ke fayde) है।
अब यदि उस फसल का मूल्य 100 रुपए या उससे कम हो जाता है तो ऐसी स्थिति में किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यदि भारत सरकार उस फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 150 रुपए निर्धारित कर देती है तो किसानों को 150 रुपए से कम में वह फसल बेचने की जरुरत ही नहीं होती है। यदि उनकी फसल बाजार में किसी और के यहाँ 150 से ज्यादा में बिक रही है तो वह वहां उस फसल को बेच सकता है अन्यथा वह भारत सरकार को उस फसल को 150 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बेच सकता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य कौन निर्धारित करता है? (MSP kon jari karta hai)
अब आप सोच रहे होंगे कि भारत देश में तो अलग अलग राज्य है और हर राज्य के अनुसार भौगोलिक परिस्थिति, फसलों के आकार तथा अन्य कई चीज़ें अलग अलग होती (Nyuntam samarthan mulya kon jari karta hai) है। ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य को निर्धारित करने का काम भारत सरकार के द्वारा किया जाता है या फिर उसे भारत सरकार राज्य सरकार के भरोसे छोड़ देती है। तो यहाँ हम आपको बता दें कि आप चाहे भारत के किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में क्यों ना रहते हो, वहां की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है।
क्या न्यूनतम समर्थन मूल्य हमेशा एक जैसा रहता है?
नहीं, न्यूनतम समर्थन मूल्य को हमेशा ही एक जैसा नहीं रखा जाता है बल्कि हर वर्ष इसका आंकलन किया जाता है और फिर उस वर्ष के लिए नया न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया जाता है। यह हर फसल के लिए जिस पर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू होता है, उसके अनुसार हर वित्तीय वर्ष के लिए भिन्न भिन्न होता है। इस हिसाब से वर्ष 2020 में गेहूं की फसल का जो भी न्यूनतम समर्थन मूल्य था, वह वर्ष 2019 में या वर्ष 2021 में भी हो, यह आवश्यक नहीं है। यह हर वर्ष ऊपर या नीचे हो सकता है जिसका निर्धारण भारत सरकार ही करती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य किन किन फसलों का होता है? (MSP kitni faslo ke liye hai)
अब यदि आप सोच रहे हैं कि भारत देश में जो भी या जिस भी तरह की फसल का उत्पादन किया जा रहा है, उनमे से हर किसी का न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार के द्वारा निर्धारित किया जाता है तो आप गलत (Nyuntam samarthan mulya kitni faslo par hai) हैं। दरअसल इसमें से कुछ प्रमुख फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य ही निर्धारित करने का काम किया जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि उनमें किस किस तरह के फसलें आती है जिनका MSP लागू होता है, तो उनकी सूची इस प्रकार है:
- गेहूं
- सरसों
- जौ
- बाजरा
- मक्का
- धान
- सोयाबीन
- सूरजमुखी
- कपास
- गन्ना
- जूट
- मूंग दाल
- चना दाल
- उड़द की दाल
- मसूर दाल
इस तरह से तरह तरह के अनाज व दलहन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था दी गयी है। हाल ही में भारत सरकार के द्वारा इसमें कुछ सब्जियों को भी सम्मिलित किया गया है जिनके तहत MSP को जारी किया जाता है। तो यदि आप भारत में अनाज, दलहन या सब्जियों का उत्पादन करने वाले किसान है तो आप उस वित्तीय वर्ष में जारी होने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य की सूची को ध्यान से देख लें और उसके बाद ही अपनी फसल को बाजार में बेचें।
MSP पर हुआ विवाद (MSP ki aalochana)
अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि हाल ही में हुआ किसान आंदोलन इतना उग्र क्यों था और उसमे कृषि कानूनों के ऊपर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर इतना विवाद क्यों था। तो किसानों को यह भ्रम था कि भारत सरकार तीनों कृषि कानूनों की आड़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म करने की साजिश रच रही है। एक तरह से उनका कहना था कि भारत सरकार ने MSP को ख़त्म करने का मन बना लिया है और कृषि कानूनों के द्वारा ही ऐसा किया जाएगा।
जबकि वास्तविकता इससे बहुत भिन्न थी। इन तीनों कृषि कानूनों के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म नहीं किया जा रहा था बल्कि इस व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का काम किया जा रहा (Nyuntam samarthan mulya par kya vivad hai) था। इनके द्वारा भारतीय किसानों के लिए उनकी फसल को खरीदने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाई जा रही थी जिससे कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलते लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं पाया।
अब चूँकि यह तीनों ही कानून रद्द हो चुके हैं तो इसका प्रश्न ही नहीं उठता है। किंतु यदि वह तीनों कानून बने रहते तो अभी तक देश की अर्थव्यवस्था को बहुत शक्ति मिल चुकी होती और किसान भी पहले की तुलना में आत्म निर्भर बन चुके होते। अब आगे देखते हैं इसको लेकर क्या निर्णय लिए जाते हैं और किस तरह के बदलाव कृषि के क्षेत्र में आते हैं।
MSP क्या है – Related FAQs
प्रश्न: MSP कानून क्या है?
उत्तर: MSP कानून के तहत भारत सरकार के द्वारा चुनिंदा फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया जाता है ताकि किसानों को किसी तरह का आर्थिक नुकसान ना झेलना पड़े।
प्रश्न: MSP की शुरुआत कब हुई?
उत्तर: MSP की शुरुआत वर्ष 1966-67 में हुई थी।
प्रश्न: MSP कौन तय करता है?
उत्तर: MSP भारत सरकार के द्वारा तय की जाती है।
प्रश्न: MSP कितनी फसलों पर दिया जाता है?
उत्तर: वर्तमान समय में MSP 24 के आसपास फसलों पर दिया जाता है।
इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में पूरी जानकारी ले ली है और यह जान लिया है कि इसे क्यों लागू किया गया था और इससे किसानों को क्या कुछ फायदा देखने को मिलता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो यह देश के किसानों को नुकसान से बचाने के उद्देश्य से लायी गयी एक व्यवस्था है जिसके तहत उन्हें उनकी फसलों का एक न्यूनतम मूल्य दिया जाता है।