National emergency in India in Hindi :- भारत देश का संविधान बहुत ही वृहद् है। इसमें नागरिकों को कई तरह के अधिकार व शक्तियां दी गयी है। संविधान हमें कई तरह के मौलिक अधिकार प्रदान करता है और उसी के अनुसार ही कुछ दायित्व भी निर्धरित किये गए हैं। भारत देश में एक वृहद् कानून व नियम है जिसका पालन नहीं किये जाने पर कानूनन दंड भी मिलता है जो अब न्याय का नाम ले चुका (Emergency provisions in Hindi) है।
आप सभी को यह भी याद होगा कि किस तरह से 25 जून 1975 को लोकतंत्र की हत्या कर पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गयी थी। राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा होते ही संपूर्ण देश में हाहाकार मच गया था और नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। राष्ट्रीय आपातकाल एक तरह से देश के मौलिक अधिकारों को न्यून कर न्यायालय की शक्तियों को भी कम कर देता है। इसमें विधायिका सर्वेसर्वा हो जाती है और कार्यपालिका को असीमित शक्तियां मिल जाती (Emergency in India in Hindi) है।
ऐसे में राष्ट्रीय आपातकाल किन परिस्थितयों में लगाया जा सकता है या फिर राष्ट्रपति शासन लगाने के क्या कुछ नियम होते हैं, इसके बारे में जानना आवश्यक हो जाता है। आज के इस लेख में हम आपके साथ राष्ट्रीय आपातकाल लागू करने के ऊपर ही बात करने वाले हैं। इसी के साथ ही राष्ट्रपति शासन को किस तरह से लागू किया जा सकता है, इसके बारे में भी चर्चा (Rashtriya aapatkal kab lagaya jata hai) करेंगे।
राष्ट्रीय आपातकाल कैसे लगता है? (National emergency in India in Hindi)
यहाँ हम देश में राष्ट्रीय आपातकाल किस तरह से लागू किया जा सकता है या इसके लिए क्या कुछ नियम व स्थितियां संविधान में उल्लेखित की गयी है, उसके बारे में चर्चा करने वाले हैं। दरअसल भारत देश का सर्वेसर्वा राष्ट्रपति होता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से देश के प्रधानमंत्री के पास ही सभी शक्तियां होती है। वह इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री का चुनाव देश की जनता के द्वारा किया जाता है जबकि राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद होता (Rashtriya aapatkal kaise lagta hai) है।
ऐसे में किस आधार पर या किन स्थितियों में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है, उसके बारे में जानना आवश्यक हो जाता है। सामान्य तौर पर देश में राष्ट्रीय आपातकाल तब लगाया जाता है जब देश युद्ध में चला जाए या उसका एक या एक से अधिक देशों के साथ युद्ध चल रहा हो या होने की संभावना हो तब देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है। वहीं यदि देश के किसी भूभाग पर बाहरी आक्रमण हो गया हो या ऐसी परिस्थिति बन रही हो तो भी राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है।
इनके अलावा यदि देश के अंदर ही सशस्त्र विद्रोह हो गया हो या इसकी संभावना बन रही हो तो भी देश में राष्ट्रीय आपातकाल या किसी एक भूभाग पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। सामान्य तौर पर राष्ट्रीय आपातकाल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। आइये उनके बारे में जान लेते हैं।
राष्ट्रीय आपातकाल के प्रकार (Rashtriya aapatkal ke prakar)
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि कुल दो तरह की परिस्थितयों में देश में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाता है लेकिन इसके अलावा एक तीसरी परिस्थिति भी होती है जो है वित्तीय (National emergency types in Hindi) आपातकाल। इस स्थिति में भी देश पर राष्ट्रीय आपातकाल ही घोषित किया जाता है लेकिन उसे राष्ट्रीय आपातकाल ना कहकर वित्तीय आपातकाल कहा जाता है। ऐसे में मुख्य तौर पर राष्ट्रीय आपातकाल के दो ही प्रकार होते हैं, जिन्हें हम नीचे समझाने जा रहे हैं।
बाह्य आपातकाल
यहाँ पर राष्ट्रीय आपातकाल को बाह्य आपातकाल कहा गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यह देश के किसी बाहरी भूभाग पर या अन्य किसी देश पर आपातकाल लगाने के समान है। अब अन्य किसी देश से हमारे राष्ट्रीय आपातकाल का क्या संबंध हो सकता है। ऐसे में इसे बाह्य आपातकाल इसलिए नाम दिया गया है क्योंकि यह बाहरी परिस्थितियों के कारण निर्मित हुआ राष्ट्रीय आपातकाल होता है।
अब यदि हमारा देश किसी बाहरी देश से युद्ध कर रहा है या युद्ध होने वाला है, जैसे कि 1965 व 1971 में आतंकी देश पाकिस्तान के साथ हुआ था तो उस समय देश में कुछ समय के लिए भय आपातकाल की घोषणा की गयी थी। ठीक इसी तरह यदि देश के किसी भूभाग पर बाहरी आक्रमण हो गया हो जैसे कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर आक्रमण कर दिया था तो भी बाह्य आपातकाल की घोषणा की जाती (National emergency kya hai) है।
आंतरिक आपातकाल
अब इस आंतरिक आपातकाल का मतलब भी आप समझ ही गए होंगे। बाह्य आपातकाल के विपरीत यह देश के अंदर ही विद्रोह होने से उत्पन्न हुई राजनीतिक अस्थिरता के कारण लगाया जाने वाला राष्ट्रीय आपातकाल होता है। अब यदि पुलिस या सेना में असंतोष उत्पन्न हो जाए या सशस्त्र विद्रोह होने लगे जो देश की सरकार को चुनौती दे या उसे अस्थिर करने का प्रयास करे तो उस स्थिति में आंतरिक आपातकाल लगाया जाता है।
देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सन 1975 में देश में जो राष्ट्रीय आपातकाल लगाया था वह इसी आंतरिक आपातकाल के मद्देनज़र लगाया था। उस समय जयप्रकाश नारायण जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में बहुत ही विशाल जनसभा को संबोधित किया था। उन्होंने पुलिस और सेना को यह कहा था कि वह केंद्र सरकार के आदेश को मानने से मना कर दे। उस समय इंदिरा गांधी के द्वारा पूर्व राष्ट्रपति की अनुशंसा पर देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गयी थी।
राष्ट्रपति शासन कैसे लागू होता है? (Rashtrapati shasan kaise lagu hota hai)
देश में जब राष्ट्रीय आपातकाल लगता है तो उसे एक तरह से हम सभी राष्ट्रपति शासन ही कहते हैं। अब यह राष्ट्रपति शासन पूरे देश में भी लग सकता है या किसी एक राज्य में या किसी एक भूभाग पर। सामान्य तौर पर यह देश में या एक या एक से अधिक राज्यों में लगता है। तो यह संविधान की किन धाराओं के तहत किया लगता है और उसके तहत किस प्रक्रिया का पालन किया जाता है, इसके बारे में जानना आवश्यक हो जाता (Rashtrapati shasan kaise lagta hai) है।
इसे हम तीन भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं, जिन्हें हम राष्ट्रीय आपातकाल, राजकीय आपातकाल व वित्तीय आपातकाल का नाम दे सकते हैं। तीनों में ही अलग अलग धाराएँ हैं जो संविधान में दी गयी है। साथ ही उन तीनों की प्रक्रिया भी भिन्न भिन्न होती है। आइये जाने देश में किस तरह से राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
राष्ट्रीय आपातकाल का देश में लागू होना
संविधान की धारा 352 के अनुसार देश के राष्ट्रपति के द्वारा देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है। यह मुख्यतया उन्हीं परिस्थितयों में होता है जो हमने आपको ऊपर बाह्य व आंतरिक आपातकाल में दिखायी है। ऐसे में यदि देश को किसी बाहरी देश से खतरा हो, युद्ध होने वाला हो या हो रहा हो, बाहरी आक्रमण हुआ हो या देश के अंदर ही सशस्त्र विद्रोह हो गया हो तो देश के राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर देते हैं।
हालाँकि राष्ट्रीय आपातकाल घोषित होने के एक महीने के अंदर अंदर उस आपातकाल को दोनों सदनों अर्थात लोकसभा व राज्यसभा के आधे से अधिक सदस्यों की अनुमति की आवश्यकता होती है अन्यथा इस आपातकाल को निरस्त कर दिया जाता है। 1975 में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन के नेतृत्व में देश में राष्ट्रीय आपातकाल आंतरिक आधार पर घोषित कर दिया था जिसके सूत्रधार संजय गांधी थे।
राजकीय आपातकाल का लगना
राजकीय आपातकाल को किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के रूप में भी देखा जाता है। इसे हम राष्ट्रीय आपातकाल नहीं कह सकते हैं क्योंकि यह सामान्य तौर पर किसी राज्य की सत्ता को वहां की सरकार को ना सौंप कर केंद्र सरकार अपने हाथ में ले लेती है। ऐसा देश में लगभग 100 से भी अधिक बार हो चुका है जब विभिन्न राज्यों में समय समय पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया हो। सबसे अधिक कांग्रेस की सरकार में देश के विभिन्न राज्यों पर राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया है।
संविधान की धारा 356 के अनुसार यदि किसी राज्य की सरकार अस्थिर हो गयी हो, वहां बहुमत नहीं मिल पा रहा हो, राज्य में विद्रोह हो गया हो, राज्य सरकार केंद्र सरकार के आदेश मानने से मना कर दे, कानून सही से काम नहीं कर रहा हो या सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हो रहा हो तो वहां के राज्यपाल की अनुशंसा पर केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपातकाल लागू करवा देती है। इसके लागू होते ही वहां की पूरी सत्ता केंद्र सरकार के हाथों में चली जाती है।
वित्तीय आपातकाल का लगना
देश में अज तक कभी भी वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गयी है लेकिन संविधान की धारा 360 में इसका प्रावधान दिया गया है। यह तब लागू होता है जब देश में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया हो, खाने पीने की चीज़ों में भारी कमी आ गयी हो, लोग बेरोजगार हो गए हो या आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी हो तो उसे ठीक करने के लिए केंद्र सरकार को अधिक शक्तियों की आवश्यकता होती है।
ऐसे में मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर भारत देश के राष्ट्रपति देश में वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर देते हैं। यह कुछ हद्द तक राष्ट्रीय आपातकाल के जैसा ही होता है। इसके लागू होने के बाद दो महीने के अंदर अंदर लोकसभा व राज्य सभा के सभी नामित सदस्यों में से आधे से अधिक का बहुमत लिया जाना आवश्यक होता है अन्यथा इस वित्तीय आपातकाल को निरस्त कर दिया जाता है।
तो इस तरह से देश में राष्ट्रीय आपातकाल या राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है जो केंद्र सरकार को अधिक शक्तियां प्रदान करता है। अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने के बाद देश में किस तरह का अंतर देखने को मिलता है या फिर भारत के आम नागरिकों के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ता है या केंद्र सरकार को क्या कुछ शक्तियां अधिक मिल जाती है।
राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने के बाद क्या होता है?
देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगना बहुत ही असामान्य स्थिति है जो बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में ही लगाया जाता है। आज तक देश में राष्ट्रीय आपातकाल आंतरिक स्थितियों में एक बार ही लगाया गया है जिसका श्रेय इंदिरा गांधी को जाता है। राष्ट्रीय आपातकाल लगते ही भारत के संविधान के द्वारा नागरिकों को जो भी मौलिक अधिकार मिले हुए हैं, वह समाप्त हो जाते हैं। भारत के आम नागरिक उनके लिए कहीं पर भी आवाज नहीं उठा सकते हैं।
भारत देश में लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं जिनके नाम हैं विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका व पत्रकारिता। राष्ट्रीय आपातकाल लगते ही सभी शक्तियां विधायिका और वो भी केंद्र सरकार व मंत्रिपरिषद में आ जाती है। एक तरह से देश के प्रधानमंत्री व उनकी मंत्रिपरिषद ही सर्वेसर्वा होती है व अन्य सांसदों का कोई मोल नहीं रह जाता है। भारत का प्रधानमंत्री कोई भी आदेश पारित कर सकता है और उसके लिए उसे सांसद की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
भारतीय लोकतंत्र का दूसरा मजबूत स्तंभ न्यायपालिका विधायिका से नीचे चला जाता है। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधिश केंद्र सरकार को कोई भी आदेश नहीं दे सकते हैं और ना ही उसके विरुद्ध जा सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्हें बंधक बनाया जा सकता है या उन्हें कारावास में डाला जा सकता है। तीसरा स्तंभ कार्यपालिका जिसे हम प्रशासन कहते हैं, उसे विधायिका के द्वारा असीमित शक्तियां दे दी जाती है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की चिंता किये बिना कुछ भी कर सकते हैं।
चौथा स्तंभ अर्थात पत्रकारिता जो अभी तक स्वतंत्र चिड़िया थी, वह पिंजरे में कैद कर दी जाती है। देश का कोई भी पत्रकार, मीडिया ग्रुप या अन्य कोई भी समाचार माध्यम देश की सरकार के विरुद्ध बोल नहीं सकता है, लिख नहीं सकता है, बात नहीं कर सकता है और ना ही ऐसी किसी गतिविधि में सम्मिलित हो सकता है। यदि वह ऐसा करता है तो तुरंत उस पर दंडात्मक कार्यवाही की जाती है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद क्या होता है?
अब यदि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है तो ऊपर बताये गए किसी भी तरह के अधिकारों का हनन नहीं होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि राजकीय आपातकाल या राष्ट्रपति शासन एक अलग तरह का आपातकाल होता है। हालाँकि यह उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि केंद्र सरकार ने किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन क्यों लागू किया है।
सामान्य तौर पर वहां की राज्य सरकार के अस्थिर होने पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। इसमें केवल सत्ता का हस्तांतरण होता है। यह वहां की राज्य सरकार के हाथों से निकल कर केंद्र सरकार के हाथों में चली जाती है। ऐसे में उस राज्य का प्रशासन व पुलिस वहां की राज्य सरकार को रिपोर्ट ना करके केंद्र सरकार या उसके द्वारा नियुक्त किये गए राज्यपाल को रिपोर्ट करती है। बाकि सभी चीजें सामान्य रूप से चलती रहती है और उनमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं होता है।
हालाँकि यदि वहां कानून विफल हो गया है या विद्रोह हो रहा है तो केंद्र सरकार वहां पर राजकीय आपातकाल घोषित करती है जो आंतरिक आधार पर या बाह्य आधार दोनों में से किसी भी परिस्थिति में हो सकता है। उस स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल के सभी नियम वहां लागू हो जाते हैं। किसी भी राज्य में राजकीय आपातकाल या राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए केंद्र सरकार को लोकसभा या राज्यसभा की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
राष्ट्रीय आपातकाल कैसे लगता है – Related FAQs
प्रश्न: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान क्या होता है?
उत्तर: राष्ट्रीय आपातकाल में विधायिका सर्वेसर्वा हो जाती है और नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए जाते हैं।
प्रश्न: राष्ट्रीय आपातकाल कब लगाया जाता है?
उत्तर: राष्ट्रीय आपातकाल कब लगता है इसके बारे में जानने के लिए आप ऊपर का लेख विस्तार से पढ़ सकते हो।
प्रश्न: भारत में आपातकाल कौन लागू करता है?
उत्तर: भारत में आपातकाल राष्ट्रपति लागू करता है।
प्रश्न: देश में इमरजेंसी लगने पर क्या होता है?
उत्तर: देश में इमरजेंसी लगने पर विधायिका सर्वेसर्वा होती है और वह कार्यपालिका को असीमित शक्तियां देती है और नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए जाते हैं।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि राष्ट्रीय आपातकाल कैसे लगता है। साथ ही हमने आपको बताया कि राष्ट्रीय आपातकाल के प्रकार क्या हैं राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने के बाद क्या होता है और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद क्या होता है इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई शंका मन में शेष रह गई है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।