नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या होता है? No Poaching Agreement In Hindi

भारत ही नहीं, दुनिया भर में लोगों का बेहतर वेतन एवं सुविधाओं के लिए एक नौकरी छोड़ दूसरी नौकरी पकड़ना आम बात है। ज्यादातर स्किल्ड लोगों को यह करने में उनकी विशेषज्ञता का लाभ मिलता है। कई बार एक ही क्षेत्र के विशेषज्ञ उसी क्षेत्र में कार्यरत प्रतिद्वंद्वी कंपनी में बड़े पद और पैसे पर जाब स्विच कर लेते हैं। जिस कंपनी को ये कर्मचारी छोड़ते हैं, उसके टाप मैनेजमेंट को यह गवारा नहीं होता।

ऐसे में दो कंपनियां मिलकर आपस में नो पोचिंग एग्रीमेंट कर लेती हैं। यह नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या है? इससे कर्मचारियों पर क्या असर पड़ता है? इन दिनों नो पोचिंग एग्रीमेंट पर चर्चा क्यों हो रही है, जैसे अनेक सवालों का जवाब हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से देंगे। आइए, शुरू करते हैं-

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नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या है? (What is no poaching agreement?)

दोस्तों, आइए अब जान लेते हैं कि नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या है? यह तो आप जानते ही हैं कि पोचिंग (poaching) का शाब्दिक अर्थ शिकार करना होता है। कई बार लालच देकर शिकार किया जाता है। ऐसे में बात व्यवसाय जगत से संबंधित है तो इसे कर्मचारियों के शिकार अर्थात उन्हें पद, पैसे का लालच देकर हायर करने से लगाया जाता है।

आपको बता दें कि यह एक लिखित स्वीकृति पत्र होता है। इस एग्रीमेंट के तहत एक ही क्षेत्र में कार्यरत दो कंपनियां एक-दूसरे के कर्मचारियों को अपनी कंपनियों में नौकरी नहीं देतीं। सामान्य शब्दों में कहें तो नो पोचिंग एग्रीमेंट दो कंपनियों के बीच एक दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी न देने को लेकर होने वाला स्वीकृति पत्र है।

ऐसा इसलिए, ताकि एक कंपनी के काबिल कर्मचारियों का लाभ दूसरी कंपनी न उठा सकें। यह तो आप जानते ही हैं कि कई बार कर्मचारियों को कंपनी के अंदरूनी राज पता होते हैं। दूसरी कंपनी में जाकर वे पहली कंपनी को इनके आधार पर नुकसान पहुंचा सकते हैं। लिहाजा, नो पोचिंग एग्रीमेंट दो कंपनियों का एक दूसरे को नुक़सान से बचाने का एक तरीका है।

नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या होता है? No Poaching Agreement In Hindi

इन दिनों नो पोचिंग एग्रीमेंट चर्चा में क्यों है? (Why no poaching agreement is in news these days?)

दोस्तों, हाल ही में भारत में गौतम अडाणी के नेतृत्व वाला अडाणी ग्रुप एवं मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के बीच एक ‘नो पोचिंग एग्रीमेंट’ हुआ है, जिसके बाद से यह टर्म लगातार चर्चा में है। दरअसल, ये दोनों ग्रुप अब एक-दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में रिलायंस ग्रुप का दबदबा है, लेकिन पिछले वर्ष ही अडाणी समूह ने अडाणी पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड के साथ पेट्रोकेमिकल के क्षेत्र में प्रवेश करने की घोषणा की है।

वहीं डाटा सर्विसेज, जहां रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की बड़ी मौजूदगी है, वहां भी अडाणी ग्रुप ने 5G स्पेक्ट्रम की बोली लगाकर अपनी दस्तक दे दी है। ऐसे में दोनों कंपनियों ने नो पोचिंग एग्रीमेंट करके यह तय किया है कि वे एक दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी नहीं देंगे। आपको बता दें दोस्तों कि दोनों ही कंपनियों के लिए इस करार की बेहद अहमियत है।

विशेष बात यह है कि यह अडाणी ग्रुप और रिलायंस ग्रुप के सभी व्यवसायों पर समान रूप से लागू होगा। यानी अब रिलायंस ग्रुप की किसी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों को अडाणी ग्रुप में नौकरी नहीं मिलेगी और न ही अडाणी ग्रुप की किसी कंपनी में कार्यरत कोई कर्मचारी रिलायंस ग्रुप की किसी कंपनी में नौकरी नहीं पा सकेगा।

इस एग्रीमेंट के जरिए दोनों ग्रुप अपने हित साध रहे हैं। जैसे कि पहले जहां कोई कंपनी दूसरे कंपनी के कर्मचारी को तोड़कर अंदरूनी महत्वपूर्ण सूचनाएं हासिल कर सकती थीं, अब ऐसा नहीं कर सकेंगीं। ऐसा करना कांट्रेक्ट की शर्तों का उल्लंघन होगा। यह दोनों में से कोई कंपनी नहीं करना चाहेगी। वैसे भी बड़ी कंपनियों के लिए यह आम बात है।

नो पोचिंग एग्रीमेंट से कर्मचारियों को क्या नुकसान होता है?

मित्रों, कर्मचारियों के लिहाज से देखें तो नो पोचिंग एग्रीमेंट उनके लिए नुकसानदायक होता है। इसकी वजह यह है कि इससे उनके लिए उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं। कर्मचारी कभी यह नहीं चाहते कि जिस क्षेत्र में वह कार्यरत हैं, उस व्यवसाय में जुटीं दो कंपनियों के बीच आपस में कोई नो पोचिंग एग्रीमेंट हो।

इससे आगे बढ़ने की काबिलियत एवं ख्वाहिश के बावजूद उनके सामने एक ही कंपनी से बंधे रहने की मजबूरी हो जाती है। उनकी तरक्की एवं कार्य में आगे बढ़ने कै रास्ते बाधित हो जाते हैं। उन्हें या तो नई नौकरी के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है या फिर ऐसा नियोक्ता खोजना पड़ता है, जिसका इनकी कंपनियों से किसी प्रकार का कोई जुड़ाव न हो। कुल मिलाकर कर्मचारियों के लिए मुश्किलों में बढ़ोत्तरी होती है।

अडाणी-अंबानी के बीच एग्रीमेंट से कितने कर्मचारियों पर असर पड़ेगा? (How many employees will get effected by this agreement between adani-ambani?)

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि अडाणी-अंबानी ग्रुप के बीच नो पोचिंग एग्रीमेंट से कोई सौ-पांच सौ नहीं, बल्कि लाखों कर्मचारियों पर असर पड़ेगा। आपको बता दें कि यह एग्रीमेंट दोनों कंपनियों के बीच मई से लागू हुआ है। इससे दोनों कंपनियों के लाखों कर्मचारियों के रास्ते इन कंपनियों में नौकरियों के लिए बंद हो गए हैं।

यदि बात रिलायंस की करें तो उसके 3.80 लाख से ज्यादा कर्मचारी इस एग्रीमेंट की जद में आएंगे। वहीं, अडाणी ग्रुप के भी हजारों कर्मचारियों पर यह एग्रीमेंट लागू होगा और वे मुकेश अंबानी की किसी कंपनी में नौकरी नहीं ले पाएंगे। अब उन्हें अपने स्किल या कौशल के अनुसार नौकरी के लिए किसी ऐसे नियोक्ता को खोजना होगा, जिसका इन दोनों से कोई लेना देना न हो।

क्या भारत में नो पोचिंग एग्रीमेंट कोई नई व्यवस्था है? (Is no poaching agreement any new arrangement in India?)

दोस्तों, यदि आपको लगता है कि भारत में ‘नो पोचिंग एग्रीमेंट’ कोई नई व्यवस्था है तो आपको जानकारी दे दें कि ये कोई नई बात नहीं है। यह जरूर है कि अब इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसके साथ ही सूचना प्रसारण के साधनों के बढ़ जाने के बाद से इस प्रकार की सूचनाएं तेजी से फैलती हैं। यदि मामला बड़े कारपोरेट घरानों से जुड़ा होता है तो वो और तेजी से चर्चा में आता है। ऐसे में लोगों की दिलचस्पी भी इस तरह के मामलों में बढ़ जाती है।

इससे पूर्व कई मीडिया कंपनियों में इस प्रकार कै समझौते देखने को मिले हैं, जहां उन्होंने एक दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी न देने को लेकर कांट्रेक्ट किया है। लेकिन दोस्तों वह कांट्रेक्ट लिखित रूप में न होकर अघोषित रहा है। इसी प्रकार सैलरी हाइक को लेकर भी कई कंपनियों के बीच इस प्रकार के समझौते देखने को मिले हैं। इससे साफ है कि नुकसान कर्मचारियों को ही होता है। कंपनियां अपने हित में कर्मचारियों की सेवा शर्त खराब करने से बाज नहीं आतीं।

नो पोचिंग एग्रीमेंट का चलन तेजी से क्यों बढ़ रहा है?

दोस्तों, हमने आपको बताया कि इन दिनों नो पोचिंग एग्रीमेंट का चलन तेजी से बढ़ रहा है। आखिर इसकी वजह क्या है? दोस्तों, इसकी बड़ी वजह ‘टैलेंट वॉर’ और ‘सैलरी हाइक’ को माना जा सकता है। जिसकी की वजह से कंपनियां ‘नो पोचिंग’ एग्रीमेंट पर जोर दे रही हैं। कर्मचारियों की डिमांड अथवा यूं कहिए कि बढ़ती सैलरी कंपनियों के लिए एक जोखिम बना हुआ है। खासकर उस सेक्टर में जहां टैलेंट की कमी है। कारपोरेट में लगातार स्पेशलाइज्ड फील्ड में स्किल्ड, काब‍िल लोगों की कमी बढ़ रही है।

लिहाजा, कंपन‍ियों को काबिल लोगों को वेतन, भत्‍ते भी अधिक देने पड़ रहे हैं। इसल‍िए कंपन‍ियां चाहती हैं कि वे टैलेंट पर जो निवेश कर रही हैं, उसका लाभ केवल उन्हीं को मिले। किसी दूसरी कंपनी को नहीं। क्योंकि स्किल्ड कर्मचारी अपना पद, सैलरी आदि बढ़वाकर कंपनी बदल लेते हैं। ऐसे में जब वे वापसी करते हैं तो उनकी डिमांड और ऊंचे पर एवं वेतन वृद्धि की होती है। लिहाजा, ये नो पोचिंग एग्रीमेंट उनके लिए फायदेमंद साबित होता है।

यहां आपके दिमाग में यह प्रश्न अवश्य आ रहा होगा कि किस प्रकार के क्षेत्र में नो पोचिंग एग्रीमेंट अधिक देखने को मिलते हैं? तो आपको बता दें दोस्तों कि एक ही व्यवसाय करने वाली दो कंपनियों के बीच स्किल्ड लोगों को रोके रखने के लिए नो पोचिंग एग्रीमेंट अधिक देखने को मिलते हैं।

पोचिंग का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?

पोचिंग का शाब्दिक अर्थ शिकार करना होता है।

नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या होता है?

नो पोचिंग एग्रीमेंट का अर्थ कंपनियों के बीच एक दूसरे के कर्मचारियों को नौकरी न देने को लेकर होने वाले स्वीकृति पत्र से है।

इन दिनों नो पोचिंग एग्रीमेंट क्यों चर्चा में हैं?

देश के दो बड़े कारपोरेट घरानों अडवाणी एवं अंबानी के बीच नो पोचिंग एग्रीमेंट होने की वजह से इन दिनों यह टर्म चर्चा में है।

इससे किसी कंपनी के कर्मचारियों को क्या नुकसान होता है?

इससे किसी कंपनी के कर्मचारियों के लिए उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।

कंपनियां नो पोचिंग एग्रीमेंट क्यों करती हैं?

वे ऐसा अपने कर्मचारियों के दूसरी कंपनी में जाने से उनके माध्यम से सूचना साझा करने से होने वाले नुक़सान से बचने को करती हैं।

क्या नो पोचिंग एग्रीमेंट भारत में कोई नई बात है?

जी नहीं, नो पोचिंग एग्रीमेंट भारत में कोई नई बात नहीं है। ऐसा पहले से होता रहा है।

किस प्रकार के क्षेत्र में नो पोचिंग एग्रीमेंट अधिक देखने को मिलते हैं?

एक ही व्यवसाय करने वाली दो कंपनियों के बीच स्किल्ड लोगों को रोके रखने के लिए नो पोचिंग एग्रीमेंट अधिक देखने को मिलते हैं।

दोस्तों हमने आपको इस पोस्ट (post) में नो पोचिंग एग्रीमेंट क्या होता है? इस संबंध में आवश्यक जानकारी दी। उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यदि इसी प्रकार की जानकारीप्रद पोस्ट आप हमसे चाहते हैं तो उसके लिए नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके अपनी बात हम तक पहुंचा सकते हैं। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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