NRC को लेकर देश भर में इस वक्त बवाल मचा हुआ है। नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA के साथ ही इसका भी जबरदस्त विरोध हो रहा है। कुछ लोग नागरिकता संशोधन कानून और NRC के बीच किसी तरह का कोई अंतर नहीं देखते, वह बगैर जाने बूझे इसकी आग में अपने हाथ सेंक रहे हैं। जबकि NRC एकदम अलग चीज है। आज इस post के जरिये हम NRC पर व्याप्त लोगों का भ्रम दूर करेंगे। आपको बताएंगे कि NRC क्या है? राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर क्या है? एनआरसी का फुल फॉर्म क्या है? nrc kya hai in hindi, एनआरसी अधिनियम, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन इन हिंदी और देंगे इससे जुड़ी सारी बारीक से बारीक जानकारी, जो कि आपके बड़े काम की होगी। इसके लिए आपको इस post को सिलसिलेवार पढ़ना भर है। आइए जानते हैं क्या है NRC –
NRC की full form क्या है?
NRC की full form है – National register of citizens। इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर भी पुकारा जाता है। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय नागरिक पंजी भी पुकारते हैं।
NRC क्या है? NRC कहां लागू है?
NRC की full form के बाद आए अब आपको यह बताएं कि आखिर यह NRC क्या है। दोस्तों आपको बता दें कि इस रजिस्टर में फिलहाल असम में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकार्ड रखा गा है। अलबत्ता, अभी तक NRC केवल असम में लागू है। वहां इसकी फाइनल सूची भी प्रकाशित हो चुकी है।
NRC में जगह किनको मिली है?
आपको यह भी बता दें कि NRC में उन्हीं लोगों को जगह मिली है, जो यह साबित कर सके हैं कि वह या उनके पूर्वज 24 मार्च, 1971 से पहले भारत आ चुके थे। इसके लिए कुछ दस्तावेज भी रखे गए थे, ताकि इन्हें देखकर लोग नागरिकता के लिए आवेदन कर सकें और नागरिकता पा सकें।
एनआरसी कब तैयार किया गया था?
दोस्तों, जैसा कि हम बता चुके हैं कि इसमें उन भारतीय नागरिकों के नाम हैं, जो असम में रहते हैं। आपको यह भी जानकारी दें कि इस रजिस्टर को भारत की 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था और तभी इसे अपडेट भी किया गया था। उस वक्त असम में कुल 80 लाख नागरिकों के नाम इसमें शामिल किए गए थे। इसका आधार जनगणना के दौरान दिए गए व्यक्तियों का ब्योरा था। इसी ब्योरे के आधार पर माना गया कि जो लोग असम में बांग्लादेश बनने से पहले यानी 25 मार्च, 1971 से पहले आए हैं, केवल उन्हें ही भारतीय नागरिक माना जाएगा।
AASU क्यों कर रहा था NRC की मुखालफत
1975 से ही अखिल असम छात्र संघ यानी AASU और जिसे हिंदी में आसू भी पुकारा गया वह संगठन NRC को अपडेट किए जाने की मांग कर रहा था। उसकी ओर से अवैध अप्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग को लेकर 1979 में एक आंदोलन शुरू किया गया, जो पूरे छह साल चला। 15 अगस्त, 1985 को यह आंदोलन असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद खत्म हुआ। समझौते की शर्त यह थी कि बांग्लादेश की आजादी से ठीक एक दिन पहले यानी 24 मार्च, 1971 की आधी रात असम राज्य में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएंगे और उन्हें वापस बांग्लादेश भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
आपको यह भी बता दें कि रजिस्टर अपडेट करने की मांग क्यों हो रही थी। उसकी वजह ही यही थी ताकि प्रदेश में विदेशी और भारतीय नागरिकों की पहचान हो सके। आसू जैसे संगठनों और असम के नागरिकों का दावा था कि बांग्लादेशी प्रवासियों ने उनके अधिकारों को लूट लिया है। और वह राज्य में हो रहीं आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं। लिहाजा, इन शरणार्थियों को उनके देश भेज दिया जाए।
क्या पूरे देश में लागू होगा एनआरसी?
दोस्तों, देश के गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। इसे लेकर देश के लोगों के दिमाग में सवाल है कि क्या NRC पूरे देश में लागू किया जाएगा? तो हम आपको बता दें कि अभी तक इसके प्रावधान तक भी तय नहीं हैं। सरकार यह भी साफ कर चुकी है कि देश में लागू होने वाली NRC की रूपरेखा असम के एनआरसी के मानकों और मापदंडों से कतई अलग होगी। लेकिन दोस्तों यह काम आसान कतई नहीं होने जा रहा है।
NRC लाने में सरकार को अभी बहुत लंबा काम करना पड़ेगा। उसे NRC का ड्राफ्ट यानी मसौदा लाकर संसद के दोनों सदनों में पारित कराना पड़ेगा, फिर राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर कर उसे मंजूरी देंगे, जिसके बाद ही यह अधिनियम यानी कानून बन पाएगा। फिलहाल NRC को लेकर हो रहे देश भर चल रहे विरोध, प्रदर्शनों के बीच ऐसा हो पाएगा, इसमें थोड़ा संशय भी है और ऐसा कहना जल्दबाजी भी होगा।
कब शुरू हुई नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया –
दोस्तों जैसा कि हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि असम देश का पहला राज्य है, जिसके पास NRC है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर असम में बांग्लादेशियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नागरिक सत्यापन की प्रक्रिया दिसंबर, 2012 में शुरू हुई। मई, 2015 में असम की नागरिकता के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए।
असम में नागरिकता के लिए दो करोड़ से अधिक दावे पेश किए गए थे, जिनकी जांच पूरी होने के बाद कोर्ट ने एनआरसी के पहले मसौदे यानी ड्राफ्ट को 31 दिसंबर, 2017 तक प्रकाशित किए जाने का आदेश दिया था। इन दो करोड़ में 38 लाख ऐसे लोग थे, जिनकी ओर से प्रदान किए गए दस्तावेजों पर संदेह था। कोर्ट के आदेश के अनुसार 31 दिसंबर, 2017 को इसका पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया।
कब जारी की गई NRC की फाइनल सूची –
आपको बता दें कि अंतिम एनआरसी सूची 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई। इस सूची में 19, 06,657 लोगों को शामिल नहीं किया गया, जबकि 3.11 करोड़ लोग नागरिकता सूची में शामिल किए गए हैं। इस सूची में कुल 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था।
NRC के काम में कितना खर्च आया –
दोस्तों आपको बता दें कि NRC के काम में कोई छोटा-मोटा खर्च नहीं हुआ है। इस पर सरकार ने करीब 1200 करोड़ रुपये के आस पास खर्च किया है। इस कठिन काम को पूरा करने में पूरा सरकारी अमला और साधारण भाषा में कहें तो करीब 55 हजार सरकारी अधिकारी जुटे। सत्यापन की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान करीब 64.4 मिलियन दस्तावेजों की जांच की गई।
एनआरसी में नाम कैसे शामिल करें?
दोस्तों, NRC में नाम शामिल करने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया निर्धारित की गई। NRC सूची में नाम के लिए सूची ए में से कोई एक दस्तावेज NRC फार्म के साथ जमा करना जरूरी किया गया। इससे साबित होगा कि 25 मार्च, 1971 से पहले राज्य में आपका निवास था। अगर कोई यह दावा करता है कि उसके पूर्वज असम के मूल निवासी हैं, इसलिए वह भी असम का मूल निवासी है। इसके लिए उसे सूची बी में से कोई भी एक दस्तावेज NRC फार्म के साथ जमा करना जरूरी होगा। आइए आपको इन दोनों सूचियों में शामिल दस्तावेजों की जानकारी दे दें। यह दस्तावेज हैं –
एनआरसी दस्तावेजों की सूची – ए –
- 25 मार्च, 1971 तक इलेक्टोरल रोल
- 1951 का एनआरसी
- किराया और किरायेदारी के रिकार्ड
- नागरिकता प्रमाण पत्र
- स्थायी निवासी प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट
- बैंक या एलआईसी दस्तावेजों
- स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र
- शैक्षिक प्रमाण पत्र
- शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र
एनआरसी दस्तावेजों की सूची बी –
- भूमि दस्तावेज
- बोर्ड या विश्वविद्यालय प्रमाण पत्र
- जन्म प्रमाण पत्र
- बैंक, एलआईसी या पोस्ट आफिस रिकार्ड
- राशन कार्ड
- मतदाता सूची में नाम
- कानूनी रूप से स्वीकार्य अन्य दस्तावेज
- विवाहित महिलाओं के लिए एक सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव की ओर से जारी प्रमाण पत्र
NRC से बाहर लोगों का क्या होगा –
दोस्तों, लोगों के पास अपनी बात रखने का मौका होगा। जिन लोगों को एनआरसी की फाइनल लिस्ट से बाहर किया गया है वह उन विदेशी ट्रिब्यूनलों पर आवेदन कर सकते हैं, जो 1964 के कानून के तहत अर्ध न्यायिक निकाय हैं। यह लोग सूची जारी होने के 120 दिन के भीतर इन न्यायाधिकरणों में अपील कर सकते हैं। अगर किसी को विदेशी ट्रिब्यूनल विदेशी घोषित करता है तो वह हायर कोर्ट्स में अपील कर सकता है। अगर किसी को कोर्ट विदेशी घोषित करती है तो सरकार इसके बारे में उनके देश की सरकार से उन्हें वापस लेने के लिए बात करेगी।
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अगर सरकार ने वापस लेने पर राजी हो जाती है तो ठीक है वरना उन्हें डिटेंशन सेंटर में रख दिया जाता है। इसे असम में बनाया गया है और इसे नजरबंदी केंद्र भी कहते हैं। ऐसे में उस व्यक्ति को गिरफ्तार करके डिटेंशन सेंटर यानी कि नजरबंदी केंद्र में रखा जा सकता है। लगे हाथ आपको यह भी बता दें कि जुलाई, 2019 तक 1,17,164 लोगों को विदेशी घोषित किया जा चुका है। इनमें से 1,145 हिरासत में हैं।
एनआरसी का असर किस पर पड़ेगा –
दोस्तों, NRC लागू होने पर बांग्लादेश, अफगानिस्तान, और पाकिस्तान से भारत आए हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्, जैन और पारसी धर्म के लोगों पर असर नहीं पड़ेगा। बस उन्हें साबित करना होगा कि उनके देश में उनका धार्मिक उत्पीड़न हो रहा है। अलबत्ता मुस्लिम शरणाार्थियों पर असर पड़ेगा, क्योंकि उन्हें नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए में शामिल नहीं किया गया है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के NRC विरोध के पीछे एक मुख्य वजह यह भी है।
NRC कब और क्यों राजनीतिक मसला बना –
दोस्तों, अब आपको यह बताते हैँ कि NRC राजनीतिक मसला कब बना। इसके लिए आपको करीब सौ से ज्यादा साल पीछे चलना होगा। दरअसल, 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया उस वक्त पूर्वी बंगाल और असम के रूप में नया प्रांत बनाया गया। तब असम को पूर्वी बंगाल से जोड़ा गया था। जब देश का बंटवारा हुआ तो यह डर भी पैदा हो गया कि कहीं ये पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग न कर दिया जाए। तब गोपीनाथ बोडोंली की अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ और असम अपनी रक्षा में कामयाब रहा।
लेकिन सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया। 1950 में असम देश का राज्य बना। यह रजिस्टर यानी NRC 1951 में तैयार किया गया, इसमें तब के असम के नागरिकों को शामिल किया गया। अंग्रेजों के वक्त से ही चाय बागानों में काम करने और खाली पड़ी जमीन पर खेती करने के लिए बिहार और बंगाल के लोग असम जाते रहते थे। इसलिए वहां के स्थानीय लोगों का विरोध बाहरी लोगों से रहता था। 50 के दशक में इन बाहरी लोगों का मसला राजनीतिक बन गया था।
देश में कई जगह क्यों हो रहा एनआरसी का विरोध –
जैसा कि हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि नागरिकता संशोधन कानून में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया है, ऐसे में उन राज्यों में NRC का सख्त विरोध हो रहा है, जहां मुस्लिम बहुलता है। उन्हें लग रहा है कि NRC की वजह से उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा। नागरिकता संशोधन कानून और NRC को लेकर ज्यादातर लोग कंफ्यूजन की स्थिति में हैं। पश्चिम बंगाल, असम, कर्नाटक आदि जगहों पर हिंसक प्रदर्शन हुए हैं।
पहले खुद असम में डिटेंशन सेंटर की बात कहने वाली सरकार अब इससे मुकर चुकी है। उसकी ओर से भी लोगों में भ्रम पैदा किया गया। अब डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार ने विज्ञापन जारी कर इस संबंध में लोगों को जानकारी देने की पहल की है। भाजपा कार्यकर्ताओं से भी कहा गया है कि वह जनसभाएं कर लोगों को इस बारे में जानकारी दें। साथ ही, केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भी 250 से ज्यादा पत्रकार वार्ता कर लोगों को इस संबंध में जानकारी देने का लक्ष्य रखा गया है।
क्यों हो रहे विदेशी संबंध खराब
दोस्तों, इस वक्त देश में जिधर भी देखो NCR को लेकर चर्चा छिड़ी है। इसी बीच सरकार के बांग्लादेश जैसे देशों से संबंधों में खटास की बात सामने आ रही है। और अब तो केंद्र की भाजपा सरकार ने एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी NPR को लेकर भी कवायद तेज कर दी है। इसे भी कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। जाहिर सी बात है कि इस रजिस्टर के जरिए पता लग सकेगा कि देश में किन धर्मावलंबियों की कितनी संख्या है। कौन बहुसंख्यक हैं और कौन अल्पसंख्यक। इसके कानून में अभी वक्त लगेगा।
तो दोस्तों, यह थी NRC से जुड़ी बारीक से बारीक जानकारी। और वह सब कुछ जो कि आप जानना चाहते हैं। उम्मीद है कि आपको यह post पसंद आई होगी। अगर आपके दिमाग में NRC से जुड़ा कोई और सवाल उत्पन्न हो रहा है तो आप हमें नीचे लिखे comment box में comment करके भेज सकते हैं इसके अलावा अगर आपका कोई सुझाव हमारे लिए है तो उसे भी आप comment box में comment करके हम तक पहुंचा सकते हैं।
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