Panchayati raj system in Hindi: भारत देश का संविधान बहुत ही विशाल है और उसमें कई तरह की व्यवस्थाएं की गयी है। जहाँ एक और पूरे देश को चलाने के लिए सांसदों के माध्यम से केंद्र सरकार को चुनने का प्रबंधन किया गया है तो वहीं राज्य सरकार को चलाने के लिए विधानसभा के माध्यम से राज्य सरकार का प्रबंधन किया गया है। इसी तरह से देश के विभिन्न राज्यों और शहरों की सरकारों के लिए नगर पालिका, नगर निगम व नगर परिषद का गठन किया गया (Panchayati Raj system kya hai) है।
अब भारत देश तो बहुत बड़ा है और यहाँ हजारों शहर होने के साथ साथ असंख्य गाँव भी हैं जिनका प्रबंधन किया जाना आवश्यक होता है। ऐसे में भारत सरकार ने 73 वीं संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया था। बहुत से लोगों को पंचायती राज व्यवस्था के बारे में ठीक से जानकारी नहीं होगी और वे सोचते होंगे कि यह पंचायती राज व्यवस्था केवल गावों तक ही सीमित होती है जबकि ऐसा नहीं (Panchayati Raj vyavastha ki shuruaat kab hui) है।
इस पंचायती राज व्यवस्था को पूरे देश में लागू किया गया था जिसका दायरा केवल गावों तक ना होकर शहरों में भी था क्योंकि किसी भी शहर या जिले में ही गाँव आते हैं। गाँव कोई अलग से नहीं होते हैं बल्कि जिले के ही अंग होते हैं। ऐसे में आज के इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ पंचायती राज व्यवस्था क्या होती है और यह किस तरह से काम करती है, इसके बारे में बात करने वाले (Panchayati Raj vyavastha kab lagu hua) हैं।
पंचायती राज व्यवस्था क्या है? (Panchayati raj system in Hindi)
सबसे पहले बात कर लेते हैं आखिरकार यह पंचायती राज व्यवस्था क्या होती है या इससे हमारा क्या तात्पर्य है। तो पंचायती राज व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था होती है जिसके माध्यम से केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को अपने अंतर्गत आने वाले सभी तरह के गाँवों का निष्पक्ष प्रबंधन करने का उत्तरदायित्व सौंप दिया है। इस पर केंद्र सरकार ने केवल अधिसूचना जारी की है लेकिन उसका कोई नियंत्रण नहीं होता है। यह पूर्ण रूप से वहां की राज्य सरकार के हाथ में होता (Panchayati Raj system kya hai in Hindi) है।
अब पंचायती राज व्यवस्था तो हर राज्य में लागू है जिसका प्रबंधन वहां की चुनी हुई राज्य सरकार के द्वारा ही किया जाता है। आपने भारत देश की स्वतंत्रता से पहले हर गाँव में एक पंचायत के बारे में सुना होगा जिसके माध्यम से उस गाँव का सञ्चालन किया जाता था। तो कुछ उसी तरह की व्यवस्था को लोकतंत्र का अंग बना लिया गया है जो सन 1992 में 73वीं संविधान संशोधन के द्वारा अंगीकृत किया गया था। कहने का अर्थ यह हुआ कि देशभर में पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए केवल कुछ दशक ही हुए (Panchayati raj vyavastha kya hai) हैं।
भारत देश में असंख्य गाँव हैं और यह हर राज्य के हर जिले में आते हैं। अब आपका जो भी जिला हो, उसमें एक मुख्य शहर होता है जो उसी जिले के नाम पर ही होता है। इसके अलावा वहां पर कई तरह की तहसील आती है। इन तहसीलों की संख्या भी 5 से 15 तक होती है। इन सभी के अलावा वहां पर कई गाँव आते हैं जिनकी संख्या 20 से 100 तक हो सकती है। तो एक जिला इसी मुख्य शहर, तहसील व गाँवों को मिलाकर बना हुआ होता है।
ठीक इसी तरह इन सभी जिलों को मिलाकर एक राज्य बनता है और सभी राज्यों को मिलाकर देश बनता है। तो देश को केंद्र सरकार संभालती है, राज्य को राज्य सरकार और जिले को वहां की नगर परिषद संभालती है किन्तु गावों को कौन संभालेगा? इसी कारण जो व्यवस्था देश में स्वतंत्रता से पहले लागू थी जिसे हम गाँव की पंचायत कहते थे, उसी व्यवस्था को ही सुधार कर देश में 1992 से पंचायती राज व्यवस्था को लागू कर दिया गया था।
पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास (Panchayati Raj system history in Hindi)
अब यदि हम पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास की बात करें तो यह हमारे देश में तब से लागू थी जब देश स्वतंत्र भी नही हुआ था। हालाँकि उस समय देश में लोकतंत्र ना होकर राजतंत्र हुआ करता था। ऐसे में वहां के स्थानीय राजा के द्वारा ही हरेक गाँव में एक प्रधान नियुक्त किया जाता था जो उस गाँव की शासन व्यवस्था को संभालने का कार्य करता था। उसके बाद जब देश स्वतंत्र हुआ तो भारत सरकार के हाथ में पूरा नियंत्रण चला गया था।
भारत सरकार कई वर्षों तक तो राज्य सरकारों व जिला सरकारों के माध्यम से गाँवों के शासन का प्रबंधन करती रही लेकिन यह सामाजिक न्याय व अनुरूपता के लिए ठीक नहीं था। जिले या राज्य में बैठे जनप्रतिनिधियों के द्वारा गावों का शासन चलाना न्याय सम्मत नहीं कहा जा सकता था और इसी कारण केंद्र सरकार को इसके लिए पंचायती राज व्यवस्था को लागू करना पड़ा।
इसके लिए सन 1992 में संविधान में संशोधन किया गया और उसके अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया। इसे 73वाँ संविधान संशोधन कहा जाता है जिसके बाद हर गाँव को अपनी एक स्वतंत्र सरकार मिल गयी थी।
पंचायती राज व्यवस्था के लिए बनायी गयी समितियां (Panchayati Raj vyavastha se sambandhit samitiyan)
भारत सरकार ने 73वीं संविधान संशोधन से पहले कई तरह की समितियां बनायी थी ताकि इस पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया जा सके। ऐसे में आपका उन समितियों के नाम जानना भी आवश्यक है और साथ ही वह कब बनायी गयी, उसके बारे में भी जानकारी लेनी आवश्यक है।
- बलवंत राय मेहता समिति (1956-57)
- अशोक मेहता समिति (1977-78)
- जी वी के राव समिति (1985)
- डॉ एल ऍम सिन्घवी समिति (1986)
- पी के थुंगन समिति (1988)
इस तरह से भारत सरकार ने देश के स्वतंत्र होने के कुछ वर्षों के पश्चात ही पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने के लिए समय समय पर कई समितियों को बनाया और उनके द्वारा सुझाव लिए। फिर अन्तंतः वर्ष 1992 में देश के सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था को लागू कर दिया गया जो आज तक प्रभावी है।
पंचायती राज व्यवस्था के प्रकार (Panchayati Raj vyavastha ke prakar)
अब ऊपर ही हमने आपको बताया कि पंचायती राज व्यवस्था का प्रभाव केवल गाँव तक ही सीमित नहीं होता है क्योंकि हर गाँव किसी ना किसी जिले का ही अंग होता (Panchayati Raj system types in Hindi) है। ऐसे में पंचायती राज व्यवस्था को गाँव से निकाल कर जिले तक भी ले जाया गया ताकि उसका प्रभाव बना रहे। ऐसे में हम पंचायती राज व्यवस्था को तीन भागों में विभाजित करके जान सकते हैं। आइये जानते हैं।
ग्राम पंचायत
पंचायती राज व्यवस्था में सबसे पहले और जमीनी स्तर पर जिसका नाम आता है वह होती है ग्राम पंचायत। तो यह हर गाँव की एक अलग पंचायत के बारे में बताता है। हर गाँव में चुनाव संपन्न करवाए जाते हैं और यह पूरे राज्य में एक साथ होते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि किसी एक राज्य में विधानसभा की तरह ही पंचायत के चुनाव भी होते हैं। ठीक उसी तरह जैसे शहर के लोग अपने पार्षदों को चुनकर नगर परिषद का गठन करते हैं, ठीक उसी तरह पंचायत के चुनाव भी होते हैं।
इसके माध्यम से गाँव के सभी लोग अपने लिए पंच चुनते हैं और उन्हीं में से किसी एक को सरपंच बनाया जाता है। इसी सरपंच के साथ ही एक उप सरपंच का चुनाव भी होता है। यह सरपंच ही उस गाँव का मुखिया कहा जाता है जिसके ऊपर उस गाँव के विकास का दायित्व होता है।
पंचायत समिति
पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत ग्राम पंचायत से बड़ी होती है पंचायत समिति जो किसी एक शहर या तहसील के अंतर्गत आने वाले सभी गावों की समिति होती है। अब ऊपर हमने आपको बताया कि एक जिले में कई तहसील होती है और एक शहर होता है। तो जो गाँव होते हैं वह अलग से नहीं होते हैं बल्कि वे इन्हीं तहसील या शहर के ही अंग होते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि जिस प्रकार एक जिले में तहसील व शहर अलग भूभाग के रूप में आता है, उस तरह गाँव अलग से नहीं आता है, बल्कि वह किसी तहसील या शहर के अंदर आता है।
इस प्रकार एक शहर या तहसील में कई गाँव आते हैं जिन्हें मिलाकर वह तहसील या शहर बनता है। इस तरह से उस तहसील के अंतर्गत जितने भी गाँव हैं, उनकी अपनी अपनी ग्राम पंचायत होगी। अब उन्हीं ग्रांम पंचायत में से एक से दो सदस्य चुने जाते हैं जिन्हें मिलाकर उस तहसील की एक पंचायत समिति बनती है। इस तरह से तहसील की नगर पालिका से बातचीत करने के लिए उसी पंचायत समिति को रखा जाता है ताकि वह सभी गावों की बात को प्रभावी रूप से रख सके।
जिला परिषद
पंचायती राज व्यवस्था के ऊपर के दोनों भागों को समझ कर अवश्य ही आपने जिला परिषद का भी अनुमान लगा लिया होगा। आपका अनुमान सही भी है क्योंकि एक जिले में जितनी भी पंचायत समिति होती है, उन सभी को मिलाकर ही जिला परिषद का गठन किया जाता है। अब हर जिले में वहां की नगर परिषद होती है और मेट्रो शहर में इसे नगर निगम का नाम दिया जाता है। सामान्य तौर पर इसे नगर परिषद ही कहा जाता है जहाँ उस जिले के सभी चुने हुए पार्षद व सभापति बैठते हैं।
ठीक उसी तरह उस जिले में एक जिला परिषद भी होती है जहाँ पंचायत समिति के सदस्य बैठते हैं। ये सभी ग्राम पंचायत फिर पंचायत समिति से निकल कर और जन प्रतिनिधियों में से चुन कर ही जिला परिषद तक पहुँचते हैं या फिर उनका चुनाव सीधे जनता के द्वारा भी किया जा सकता है। यह जिला परिषद जिला स्तर पर अपनी बात रखने और गाँवों में विकास करवाने के लिए उत्तरदायी होती है।
पंचायती राज व्यवस्था के कार्य (Panchayati Raj vyavastha ke karya)
जिस प्रकार देश का विकास करने का दायित्व केंद्र सरकार का होता है और राज्य का राज्य सरकार के पास ठीक उसी तरह का कार्य पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत भी किया जाता है। अब जो केंद्र सरकार या राज्य सरकार होती है, वह बड़े कार्य करती है। उनके द्वारा सफाई व्यवस्था, शौचालय, सामान्य सड़क, अतिक्रमण इत्यादि को देखने का कार्य नहीं किया जाता (Work of panchayati raj system in Hindi) है।
वह बस नियम या कानून बना देती है और उसका पालन करना पंचायती राज व्यवस्था या नगर परिषद का काम होता है। तो शहर या तहसील के स्तर पर तो यह कार्य नगर परिषद करती है तो वहीं पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा गावों में यह काम किया जाता है। एक गाँव का विकास करना और उसे आधुनिक बनाना ही पंचायती राज व्यवस्था का मुख्य कार्य होता है। इसी के साथ ही केंद्र सरकार व राज्य सरकार के द्वारा जो भी नीतियाँ व योजनाएं बनायी जा रही है, उसे अपने गाँव तक पहुँचाना ही पंचायती राज व्यवस्था का कार्य होता (Panchayati Raj system ke karya) है।
पंचायती राज व्यवस्था की शक्तियां (Panchayati Raj system ki shaktiyan)
इसके बारे में बहुत ही झंझट की स्थितियां आ जाती है क्योंकि संविधान में पंचायती राज व्यवस्था की शक्तियों को सही रूप में नहीं प्रदर्शित किया गया है। इस कारण एक तरह से यह पंचायती राज व्यवस्था बहुत ही कमजोर सिद्ध हो जाती है। वह इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को संभालने का कार्य राज्य सरकारों पर स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया है। अब यह हर राज्य की राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वह अपने यहाँ की पंचायती राज व्यवस्था को कितनी शक्तियां देती है, उसे किस तरह से कार्य करने को कहती (Panchayati Raj vyavastha ki shaktiyan) है।
सामान्य तौर पर यही देखने को मिलता है कि जिस राज्य में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव हो रहे हैं, वहां पर उन्हीं व्यक्तियों को चुना जाता है, जहाँ की वहां राज्य सरकार है। बहुत ही कम स्थितियों में उसके विपरीत सरकार चलती है क्योंकि यह एक बहुत ही छोटी व्यवस्था हो जाती है जो अपनी सरकार या सरकारी मशीनरी से पंगा नहीं ले सकती है। ऐसे में इसकी पंचायती राज व्यवस्था की शक्तियां एक तरह से वहां की राज्य सरकार के अंतर्गत ही निहित होती (Panchayati Raj system power in Hindi) है।
पंचायती राज व्यवस्था का महत्व (Panchayati Raj system ka mahatva)
अंत में हम पंचायती राज व्यवस्था के महत्व के बारे में भी बात कर लेते हैं ताकि आपको पता चल सके कि आखिरकार क्यों केंद्र सरकार के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को देशभर में लागू किया गया था और इसके पीछे सरकार का क्या उद्देश्य निहित था। अब जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि भारत एक बहुत ही बड़ा देश है और यहाँ केवल शहर या तहसील ही नहीं आते हैं बल्कि असंख्य या लाखों गाँव भी आते हैं। भारत सरकार या राज्य सरकार योजनाएं और नीतियाँ तो बना देती थी लेकिन उन्हें दरतल तक उतारने के लिए स्थानीय नेतृत्व की आवश्यकता की कमी थी।
केवल अधिकारियों के द्वारा उन्हें गावों तक पहुंचाना संभव नहीं था। इसके लिए ऐसे नेताओं की तलाश थी जो उसी गाँव के हो और लोगों के बीच जिसका प्रभुत्व हो। साथ ही गावों में सभी नीतियों को लागू करवाने के लिए लोगों को प्रभावित करना भी आवश्यक था जो प्रशासन के माध्यम से संभव नहीं था क्योंकि यह तो कोई भी हो सकता था। ऐसे में नीतियों व योजनाओं को लागू करने के उद्देश्य से ही पंचायती राज व्यवस्था को देशभर में लागू किया गया था।
जब से भारत सरकार ने देशभर में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया है तब से ही कई तरह के परिवर्तन देश में देखने को मिले हैं। ग्राम पंचायत, पंचायत समितियों व जिला परिषद के द्वारा समय समय पर अपने गावों के विकास के लिए कई तरह के कार्य किये जाते हैं और अपने जिले में इसके लिए आवाज उठायी जाती है।
पंचायती राज व्यवस्था क्या है – Related FAQs
प्रश्न: पंचायती राज व्यवस्था क्या होती है?
उत्तर: पंचायती राज व्यवस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको ऊपर का लेख पढ़ कर मिल जायेगी जो आपको पढ़ना चाहिए।
प्रश्न: पंचायती राज की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर: पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना 73वीं संविधान संशोधन के तहत 1992 में की गई थी।
प्रश्न: पंचायत कितने प्रकार की होती है?
उत्तर: पंचायत के तीन प्रकार हैं जो हमने ऊपर के लेख में विस्तार से बताए हैं।
प्रश्न: भारत में पंचायती राज लागू करने वाला पहला राज्य कौन था?
उत्तर: भारत में पंचायती राज लागू करने वाला पहला राज्य राजस्थान है।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि पंचायती राज व्यवस्था क्या है। साथ ही हमने आपको बताया कि पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास क्या है पंचायती राज व्यवस्था के प्रकार क्या हैं पंचायती राज व्यवस्था के कार्य, शक्तियां या महत्व क्या हैं इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई प्रश्न आपके मन में शेष है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।