पॉक्सो एक्ट की धारा क्या है? समाज में एकता और भाईचारा बनाए रखने के लिए सभी लोगों का योगदान होना जरूरी है। समाज में एक ओर जागरूकता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर कई ऐसे कुकर्म भी बढ़े हैं, जो सामाजिक रूप से सही नहीं है। आज तक लोगों से कई सारे ऐसे अनुभव सुनने को मिले हैं, जो निश्चित ही सही दिशा की ओर अग्रसर नहीं होते हैं। बच्चों को ईश्वर के अनुपम संरचना रूप में देखा जाता है। ईश्वर का वरदान भी माना जाता है लेकिन इस समाज के कुछ संकुचित मानसिकता वाले लोगों ने बच्चों को भी नहीं छोड़ा है।
सामाजिक परिवेश में भी रहते हुए बच्चों के साथ गलत व्यवहार होता है, जो उनकी छोटी उम्र में मानसिक रूप से गलत असर डालती है। इस समस्या से बच्चों में हीन भावना आ जाती है और वे अपने मन की बात किसी को बता भी नहीं पाते हैं। कानून में बच्चों की भलाई देखते हुए एक नया एक्ट लागू किया है जिसके तहत बच्चों को न्याय दिलाया जा सकता है। बच्चों को दिलाए गए इस एक्ट को “पॉक्सो एक्ट” कहा जाता है।
पॉक्सो एक्ट क्या है? What is the POCSO Act In Hindi?
इस समाज में कई बार बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है। खुद को सभ्य कहने वाले भी मासूम बच्चों के साथ खिलवाड़ करते रहते हैं। बच्चों के साथ हुई यौन अपराध की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। बच्चे सदमे की वजह से बोल ही नहीं पाते। बच्चों के साथ ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं इसके लिए सरकार ने एक नया कानून “पॉक्सो एक्ट” सन 2012 में पारित किया। इस कानून मे बच्चों के साथ छेड़खानी, बलात्कार और अन्य कर्मों के खिलाफ सजा का प्रावधान है।
वर्ष 2018 में इस एक्ट में संशोधन भी किया गया है, जिसके बाद कम उम्र के बच्चों के साथ कुकर्म होने पर मौत की सजा दी जा सकेगी। नियमों में संशोधन होने से लोगों में जागरूकता आई है और अपराध कम होने की संभावना की जा सकती है। कानून से संशोधन से पॉक्सो एक्ट यानी “प्रोडक्शन ऑफ चिल्ड्रन सेक्सुअल ऑफेंस” को मजबूती मिली है।
पॉक्सोशब्द की उत्पत्ति – Origin of the word POCSO
POCSO शब्द सुनने में थोड़ा अलग है। यह अंग्रेजी वर्ण समूह है, जो “प्रोटक्शन आफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट 2012 ” से बना है। पॉक्सो शब्द मे शामिल सभी शब्द समूह के पहले अक्षर से मिलकर बना है। यह नाबालिक बच्चों के खिलाफ हुए शारीरिक उत्पीड़न के लिए सजा दिलाने के लिए बाध्य है। पॉक्सो में धारा 3 के तहत “पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असाल्ट” को भी बताया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने पर सजा का प्रावधान रखा गया है।
पॉक्सो एक्ट के प्रावधान – Provisions of POCSO act
पॉक्सो एक्ट बच्चों के साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ कार्य करता है, इसके लिए इसके कुछ नियम के अंतर्गत ही सजा का प्रावधान रखा गया है
- आजकल बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। जब कोई व्यक्ति बिना सहमति के ही यौन कृत्य को करें, तो वह व्यक्ति पॉक्सो एक्ट के तहत सजा का हकदार हो जाता है।
- 18 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चे के साथ हुए यौन कृत्य पर भी पॉक्सो एक्ट के तहत सजा का प्रावधान है।
- कभी-कभी बच्चे के रिश्तेदार व नजदीकी लोग ही कुकर्म करते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कारवाही का प्रावधान है।
2018 के संशोधन के बाद पॉक्सो एक्ट पूरे भारत में ही लागू किया गया है। यह एक तो बच्चों को संरक्षण प्रदान करता है और न्याय दिलाने की कोशिश भी करता है। पॉक्सो एक्ट की सुनवाई के लिए बच्चे को रजामंद करना आसान नहीं होता क्योंकि उस समय बच्चे का मानसिक स्तर सही नहीं रहता है –
- पॉक्सो कानून के तहत होने वाली सुनवाई कैमरे के सामने अपने माता-पिता के साथ होती है। एक विशेष न्यायालय में सुनवाई होती है, जहां किसी से डरने की जरूरत नहीं होती है।
- यदि पीड़ित बच्चा किसी भी प्रकार से विकलांग हो, ऐसे में विशेष अदालत में अनुवादक का होना आवश्यक है।
- यदि अभिव्यक्त किशोर हो, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम 2000 में मुकद्दमा चलाया जाएगा।
- अभियुक्त द्वारा झूठी जानकारी देने या बच्चे के खिलाफ गलत बोलने पर भी सजा का प्रावधान है।
- ऐसे लोग जो जानबूझकर बच्चों से देह व्यापार करवाते हैं, उन्हें भी पॉक्सो एक्ट के तहत सजा सुनाई जाती है।
- इस दौरान पुलिस की भूमिका बढ़ जाती है। बच्चे की देखभाल व संरक्षण करना पुलिस का ही कर्तव्य है। बच्चों के लिए उपचार सुविधा उपलब्ध कराना पुलिस का ही कार्य हो जाता है।
- पॉक्सो एक्ट में बच्चे के साथ हुए यौन शोषण की सुनवाई 1 साल के भीतर निपटाने को कहा जाता है।
- विशेष अदालत विशेष सुनवाई के दौरान मुआवजे की राशि भी निर्धारित कर सकती है, ताकि बच्चे को सहायता हो सके।
पीड़ित बच्चों को जल्दी न्याय नहीं मिल पाता, ऐसे में सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिए जिससे बच्चों को जल्दी न्याय मिल सके।
बाल यौन अपराध मुख्य समस्या – Child sex crime main problem
बाल यौन अपराध भारत की मुख्य समस्या बनकर उभर रही है। इस समस्या को जड़ से खत्म करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। पॉक्सो एक्ट में बच्चों से संबंधित अलग कानून, अलग अदालत होती हैं, जो अपने कार्यों को पूर्ण करती हैं। पॉक्सो अदालतों को भी नर्मी ना दिखाते हुए व्यस्क आरोपी को चार्जशीट दाखिल होने तक जमानत नहीं देनी चाहिए। इस संबंध में इलाहाबाद कोर्ट ने सभी पक्षों अदालतों के सामने उदाहरण पेश किया है। जिसके तहत लोगों में जागरूकता बढ़ गई और अपराध कम होने के संकेत मिल सकते हैं, जो बच्चों के हित में भी कार्य कर सकें और बाल यौन अपराध को कम कर सके।
पॉक्सो एक्ट में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव – Some important changes in the POCSO Act
भारत में बढ़ते हुए अपराधों को देखकर कुछ बदलाव किए गए हैं, जो बच्चो के लिए फायदेमंद होंगे –
- बच्चियों के साथ हुए बलात्कार की सजा को 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है।
- 12 वर्षीय या उससे अधिक आयु वाली बच्चियों के बलात्कार की सजा 10 साल से बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया है।
- गैंगरेप के मामले में भी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है।
- 2012 के एक्ट के संसोधन के बाद अलग-अलग सजा के लिए अलग-अलग कानून बनाया गया है।
- 18 वर्ष से कम उम्र के लड़के और लड़कियों के साथ हुए यौन व्यवहार पर इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में की जाने लगी, जिससे बच्चों को सुरक्षा दिलाई जा सके
- इस कानून के तहत एक सीनियर टेक्निकल एक्सपर्ट, टेक्निकल एक्सपर्ट और दो जूनियर टेक्निकल एक्सपर्ट होते हैं, जो जल्द से जल्द किसी भी केस के दोषी को सजा दे सकते हैं।
पॉक्सो एक्ट के तहत सजा – Punishment under POCSO Act
पिछले दिनों हुए कई प्रकार के अपराधिक घटना जैसे बलात्कार और हत्या के मामले सामने आए हैं पॉक्सो एक्ट में 12 वर्ष के बच्ची के साथ दुष्कर्म करने पर सजा का प्रावधान है। इस कानून के मुताबिक दोषियों को अधिकतम सजा उम्रकैद और न्यूनतम सजा 7 साल जेल है। अलग अलग किए गए अपराधों के लिए अलग-अलग कानून और सजा का प्रावधान है।
पॉक्सो एक्ट के तहत जमानत कैसे मिलेगी? How to get bail under POCSO Act?
पॉक्सो एक्ट में 2018 के संशोधन के बाद महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। जिस में जमानत के लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं
- पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद दोषी को जमानत मिलना आसान नहीं रहा है। पॉक्सो एक्ट के अनुसार बलात्कार के मामले में अब एंटीसिपेटरी बेल नहीं हो सकती है। किसी भी हालत में दोषी को सरेंडर करना ही होगा। एक्ट के अनुसार दोषी का छिपना नामुमकिन है।
- यदि दोषी पर झूठा केस कर दिया गया है और दोषी के पास सबूत भी उपस्थित हैं, तो ऐसे में रिट या हाईकोर्ट के बिना जेल जाए बेल ले सकते हैं।
- पॉक्सो एक्ट में बलात्कार केस के अलावा बाकी केस में भी बिना जेल जाए एंटीसिपेटरी बेल ले सकते हैं
पॉक्सो केस की समय सीमा – POCSO case deadline
नए नियमों के अनुसार पॉक्सो केस के संशोधन के बाद किसी भी केस में पुलिस को 2 महीने के अंदर अपनी जांच पूरी करनी होगी। कोर्ट को 6 महीने के अंदर फैसला सुनाना होगा। यह समय सीमा से सिर्फ बलात्कार के केस के लिए हैं बाकी किसी भी केस में समय सीमा नहीं है।
पॉक्सो केस कैसे जीता जाए? How to win the POCSO case?
- पॉक्सो एक्ट बच्चों के लिए है। बच्चे अगर शिकायत अच्छे से नहीं कर पाते हैं, तो फिर भी बच्चे के पक्ष में केस रहता है। बच्चे कभी-कभी इस घटना से डर व सहम जाते हैं। 12 वर्ष से ज्यादा उम्र होने पर बच्चा सही तरीके से शिकायत कर सकता है और अपनी बात अदालत के सामने रख सकता है।
- कई बार बच्चे बहुत छोटे होते हैं और वे अपनी बात बोल नहीं पाते और ना ही समझ पाते हैं। ऐसे में बच्चे के माता-पिता भी केस कर सकते हैं और कोर्ट में बच्चे की मनोभावना के बारे में बता सकते हैं। इस संबंध में कोर्ट बच्चे के माता-पिता के पक्ष में ही होती है।
- केस से संबंधित सबूत रिपोर्ट, कपड़े, सामान को नष्ट नहीं करना चाहिए। इसी के आधार पर कानूनी लड़ाई लड़ी जा सकती है। सारे सबूत भली प्रकार से संभाल कर रख लेना चाहिए।
- हमेशा कोर्ट में बिना डरे सभी जानकारी सही तरीके से देना चाहिए।
समाज की जागरूकता – Society awareness
समाज में रहने वाले लोगों को जागरूक रहने की भी आवश्यकता होती है। जिसके माध्यम से ऐसे अपराधी कुकर्म ना हो पाए। कई बार ऐसा देखा गया है कि लोग बातों को छुपा लेते हैं सब पता होने के बाद भी पुलिस को सही जानकारी नहीं देते हैं छोटी मानसिकता ही ऐसे अपराधों को बढ़ावा देती है। अपने घर की सुरक्षा अपने ही हाथों में है। स्कूल में भी गुड टच व बैड टच के बारे में जानकारी देना उत्तम विचार है। बच्चों को सही जानकारी देने से उनमें आत्मनिर्भरता बढ़ती है। यदि सही तरीके सही बात बच्चों को समझाई जाए तो बच्चे जरूर बात समझेंगे। यह एक्ट बच्चों के लिए बनाया गया है, जो बच्चों की मासूमियत और बचपन दोनों ही छीन लेते हैं।
पॉक्सो एक्ट बच्चों के हित में कार्य करता है, जहां हर बच्चे को सुरक्षित रखकर न्याय दिलाया जाता है। इस मामले में माता-पिता को भी बच्चे का ही साथ देना चाहिए। किसी भी बात को छुपाना नहीं चाहिए और पुलिस प्रशासन को सही जानकारी साझा कर इंसाफ की लड़ाई लड़नी चाहिए। इसके लिए बच्चों को भी उचित मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है ताकि वे बिना डरे अपने जिंदगी में आगे बढ़ सके।