प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है? | अधिकार, शक्तियां व कार्य | Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai

Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai: – कहने को तो भारत देश में राष्ट्रपति का पद सर्वोपरि होता है लेकिन देश के राजा के रूप में प्रधानमंत्री को ही देखा जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि भारत देश में प्रधानमंत्री का पद अप्रत्यक्ष रूप से सर्वोच्च पद माना जाता है जिसके सामने राष्ट्रपति की शक्तियां भी कुछ नहीं होती है। वह इसलिए क्योंकि राष्ट्रपति को तो सांसदों व विधायकों के द्वारा चुना जाता है जबकि प्रधानमंत्री को चुनने में भारतीय प्रजा का अहम योगदान होता (Pradhanmantri ka chunav kaise kiya jata hai) है।

भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री का नाम जवाहर लाल नेहरु था जबकि वर्तमान प्रधानमंत्री का नाम श्री नरेंद्र मोदी जी है। नरेंद्र मोदी जी वर्ष 2014 से देश के प्रधानमंत्री हैं। अब क्या कभी आपके मन में यह जानने का विचार आया है कि हमारे देश में प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है या उसकी क्या प्रक्रिया होती है? बहुत लोगों को इसके बारे में सही से जानकारी नहीं होगी और उन्हें लगता होगा कि देश के प्रधानमंत्री को सीधा प्रजा के द्वारा चुना जाता है जो कि गलत (Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai bharat mein) है।

आज के इस लेख में हम आपके साथ प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है, इसके बारे में बताने वाले हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री बनने के लिए क्या कुछ योग्यता की आवश्यकता होती है, प्रधानमंत्री की क्या क्या शक्तियां होती है, वह किसके द्वारा नियुक्त किया जाता है और उसके द्वारा यदि त्याग पत्र दे दिया जाए तो क्या होता है, इत्यादि के बारे में बताने वाले हैं। आइये जानते हैं भारत देश के प्रधानमंत्री का चुनाव किस प्रक्रिया के तहत किया जाता (Pradhanmantri ka chunav kon karta hai) है।

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प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है? (Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai)

देश में सबसे बड़ा पद प्रधानमंत्री का होता है और वही देश को आगे ले जाने का काम करता है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में प्रजा के हाथ में ही सभी शक्तियां होती है। आप और हम सभी मिलकर ही अपने मत के द्वारा जनप्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। मुख्य तौर पर हम तीन तरह के जनप्रतिनिधि चुनते हैं। इसमें हमारे वार्ड का प्रतिनिधित्व पार्षद के द्वारा किया जाता है, शहर का नेतृत्व विधायक करता है तो वहीं जिले का नेतृत्व सांसद के द्वारा किया जाता (Pradhanmantri ka chunav kaise karte hain) है।

Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai

सबसे बड़ा पद सांसद का होता है। ऐसे में प्रधानमंत्री भी देश की किसी संसदीय सीट से सांसद ही होता है जिसे बाद में प्रधानमंत्री के रूप में चुना जाता है। तो यह प्रक्रिया किस तरह से की जाती है और इसमें क्या कुछ मापदंड होते हैं, आइये उनके बारे में एक एक करके जान लेते (Pradhanmantri ka chunav kaise hota hai Hindi mein) हैं।

चुनाव आयोग द्वारा देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा

प्रधानमंत्री के चुनाव की प्रक्रिया में सबसे पहले देश में आम चुनावों की घोषणा करनी होती है। इसके लिए देश में चुनाव आयोग बनाया गया है जो निष्पक्ष होता है। चुनाव आयोग को अंग्रेजी में इलेक्शन कमीशन भी कहते हैं। इससे पहले जो भी देश का प्रधानमंत्री होता है, उसकी शक्तियां सीमित हो जाती है। जैसे ही चुनाव आयोग चुनावों की घोषणा कर देता है, वैसे ही पूरे देश में आचार संहिता लागू हो जाती है।

अब एक तरह से देश का प्रशासन व सभी अन्य पद चुनाव आयोग अपने नियंत्रण में ले लेता है। कार्यपालिका व विधायिका चुनाव आयोग को ही रिपोर्ट करती है। कार्यपालिका तो मुख्य रूप से चुनाव आयोग के अंतर्गत आ जाती है लेकिन विधायिका को सीमित शक्तियां मिली होती है ताकि वह देश को चलाने का काम कर सके। चुनाव आयोग के द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में कब और किस दिन चुनाव होंगे, इसके बारे में अधिसूचना निकाल दी जाती है।

राजनीतिक दलों के द्वारा प्रधानमंत्री के चेहरे के साथ लड़ना या नहीं लड़ना

जैसे ही चुनाव आयोग लोकसभा चुनावों की घोषणा करता है तो उसी के साथ ही वह पूरे दिशा निर्देश भी जारी कर देता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि कौन व्यक्ति लोकसभा का चुनाव लड़ सकता है और कौन नहीं, इसके नियम होते हैं जो हम आपको नीचे बतायेंगे। किसी भी व्यक्ति को सांसद का चुनाव लड़ने की सभी योग्यताओं का पालन करता है, वह किसी भी सीट से चुनाव लड़ सकता है।

अब यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव लड़ना चाहता है या निर्दलीय रूप से। देश में कई राजनीतिक दल हैं जिसमें से कुछ राष्ट्रीय तो कई क्षेत्रीय दल हैं। मुख्य राष्ट्रीय दल भाजपा व कांग्रेस है। अब यह राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर करता है कि वह लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ना चाहती है या बिना उसके।

कहने का अर्थ यह हुआ कि राजनीतिक पार्टी पर कोई बंदिश नहीं होती है कि वह प्रधानमंत्री के चेहरे के साथ ही चुनाव लड़े। वह बिना चेहरे के भी चुनावों में उतर सकती है और यदि उसे जीत मिलती है, तो वह बाद में किसी को भी प्रधानमंत्री बना सकती है। उदाहरण के तौर पर 2014 व 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में रखकर चुनाव लड़े थी जबकि कांग्रेस ने स्थिति स्पष्ट नहीं की थी।

जनता के द्वारा सांसदों के चुनाव के लिए मतदान करना

अब आती है मतदान की तारिख जब प्रजा ही सर्वोपरि हो जाती है। देश में लोकसभा चुनावों का प्रचार जोर शोर से हो रहा होता है और सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे होते हैं। जो भी व्यक्ति जहाँ से भी सांसद का चुनाव लड़ रहा होता है, वह वहां पर जमकर प्रचार प्रसार करता है। आखिर में लोकसभा चुनाव से 2 दिन पहले चुनाव प्रचार थम जाता है।

मतदान का समय सुबह से ही शुरू हो जाता है जो शाम तक चलता है। देश के सभी नागरिक जो 18 वर्ष से ऊपर के हो चुके हैं और जो भारत के नागरिक भी हैं, वे अपने अपने मत का उपयोग करते हैं। इसके लिए वे अपने पोलिंग बूथ पर जाते हैं और जिसे भी वे चुनाव जीतते हुए देखना चाहते हैं, उसे अपना मत दे देते हैं। इस प्रकार यह चुनाव संपन्न हो जाता है या यूँ कहें कि मतदान की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

चुनाव आयोग के द्वारा आज के समय में EVM मशीन का उपयोग किया जाता है जो इलेक्ट्रॉनिक मशीन है। पहले इसके लिए पर्ची सिस्टम चलता था जबकि आज के समय में यह बहुत ही आधुनिक हो गया है। अब सभी का निर्णय उन EVM मशीन में कैद हो जाता है जो चुनाव परिणामों के दिन खोला जाना होता है।

चुनाव आयोग द्वारा अंतिम परिणाम व सांसदों की जीत

चुनाव संपन्न हो जाने के बाद बारी आती है मतदान पेटियां खोले जाने की और उसमें लोगों के मतों को गिने जाने की। इसके लिए भी चुनाव आयोग ने एक तिथि घोषित की होती है। उसी दिन ही पूरी सुरक्षा में मतदान पेटियों को खोल दिया जाता है और उसमें से मतों को गिनने का काम शुरू हो जाता है। यह काम चुनाव आयोग प्रशासन के साथ मिलकर करता है जिसमें सरकारी अध्यापक समेत बाकि सभी कर्मचारी सम्मिलित होते हैं।

एक एक करके हर संसदीय क्षेत्र की मतदान पेटियां खोली जाती है और उसमें कुल मतों को गिना जाता है। उस क्षेत्र में चाहे जितने भी व्यक्ति चुनाव लड़ रहे हो लेकिन जिस भी व्यक्ति को बाकि सभी से ज्यादा मत मिलते हैं, वही उस क्षेत्र का सांसद चुन लिया जाता है। अब वह व्यक्ति चाहे 100 वोट से भी विजयी हो सकता है या एक लाख वोटों से भी। चाहे उसकी जीत कितनी भी बड़ी या छोटी क्यों ना हो, सांसद वही होता है।

यदि किसी कारणवश उस संसदीय सीट पर नोटा को सबसे अधिक मत मिलते हैं तो यह वहां खड़े सभी प्रत्याशियों के लिए बहुत ही शर्मनाक बात होती है। ऐसे में उस सीट पर फिर से मतदान करवाया जाता है और उसके लिए सभी नए प्रत्याशियों को खड़ा किया जाता है। इस तरह से देश की सभी संसदीय सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाता है और सांसदों के नाम बता दिए जाते हैं। हमारे देश में कुल 545 लोकसभा सांसदों की सीट आवंटित है।

चुने गए सांसदों के द्वारा प्रधानमंत्री का चुनाव

अब जब सभी सांसदों को चुन लिया जाता है तो देश को हरेक संसदीय सीट पर अपना अपना सांसद मिल जाता है। इसमें किसी राजनीतिक पार्टी को कितनी सीट मिली है तो किसी को कितनी। ऐसे में एक राजनीतिक पार्टी जो सबसे ज्यादा सीट पाती है, उसमे से ही किसी को देश का अगला प्रधानमंत्री चुना जाता है। हालाँकि यह जरुरी नहीं है कि उसी में से ही किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना जाए।

कहने का अर्थ यह हुआ कि कई बार यह देखने में आया है कि किसी अन्य राजनीतिक पार्टी या सहयोगी पार्टी के किसी व्यक्ति को भी प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। इसके लिए स्पष्ट नियम यह है कि जिस भी व्यक्ति को लोकसभा के आधे से अधिक सांसदों का समर्थन मिलता है, उसे ही देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया जाता है। लोकसभा में कुल 545 सीट है लेकिन इसमें से 2 सीट आरक्षित होती है जहाँ राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत व्यक्ति बैठता है।

ऐसे में बाकि सीट बच गयी 543। अब इसका आधा होता है 271.5, इसके अनुसार जिस भी व्यक्ति को 272 या उससे अधिक सांसदों का समर्थक मिलता है, वही देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेता है। अब इतनी सीट किसी एक ही राजनीतिक पार्टी को मिल जाये तो इसमें कोई व्यवधान नहीं आता है। वहीं यदि यह किसी अलायन्स या गठबंधन को मिल जाती है तो भी इतनी समस्या नहीं आती है।

वहीं यदि किसी भी एक राजनीतिक पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है तो स्थिति उठापठक होती है। उस स्थिति में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को आवश्यक 272 सांसदों का बहुमत चाहिए होता है। ऐसे में यदि आवश्यक समर्थन एक निश्चित अवधि में मिल जाता है तो प्रधानमंत्री का चुनाव हो जाता है अन्यथा देश में अजीब स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आवश्यकता पड़ने पर देश में फिर से चुनाव भी करवाए जा सकते हैं।

प्रधानमंत्री की योग्यता क्या है? (Pradhanmantri ki yogyata)

अब हम बात करते हैं, देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए एक व्यक्ति के अंदर क्या कुछ योग्यताओं का होना आवश्यक होता है। तो इसके लिए कोई लंबी चौड़ी प्रक्रिया या नियम नहीं है बल्कि कुछ साधारण से नियम हैं, जिनका पालन करना उस व्यक्ति के लिए आवश्यक होता (Pradhanmantri ki yogyata kya honi chahiye) है। आइये जानते हैं प्रधानमंत्री की योग्यता क्या कुछ होनी चाहिए।

  • भारत देश का प्रधानमंत्री बनना है तो उसके लिए सबसे बड़ी योग्यता उसका देश का ही नागरिक होना आवश्यक होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि कोई भी विदेशी नागरिक देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है।
  • उस व्यक्ति को या तो लोकसभा का या राज्यसभा का सदस्य होना आवश्यक है। यदि वह प्रधानमंत्री चुने जाने के समय दोनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो भी वह इस पद पर ज्यादा से ज्यादा 6 माह तक बने रह सकता है लेकिन इसके अंदर उसे किसी ना किसी सदन का सदस्य बनना होगा अन्यथा उसे 6 माह के अंदर अपने पद से त्याग पत्र देना होगा।
  • यदि वह लोकसभा का सदस्य चुना जाता है तो उसकी न्यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गयी है। अधिकतम आयु सीमा का कोई नियम नहीं है।
  • वहीं यदि वह राज्यसभा का सदस्य चुना जाता है तो उसकी न्यूनतम आयु 30 वर्ष की होनी आवश्यक है। राज्यसभा में भी अधिकतम आयु सीमा का कोई नियम नहीं है।
  • प्रधानमंत्री बनने के लिए उसे किसी भी सरकारी विभाग में नहीं होना चाहिए, फिर चाहे वह केंद्र सरकार का हो या राज्य सरकार का या अन्य किसी सरकारी विभाग का। कहने का अर्थ यह हुआ कि वह सरकारी कर्मचारी नहीं होना चाहिए और प्रधानमंत्री बनने से पहले उसे उस पद से त्याग पत्र देना होगा।

इस तरह से देश के प्रधानमंत्री को इन सभी योग्यताओं को पूरा करना आवश्यक होता है। अब यदि वह लोकसभा का चुनाव हार जाता है तो भी उसे प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद 6 माह के अंदर अंदर उसे फिर से चुनाव लड़ना होगा और सांसद बनना होगा या फिर राज्यसभा का सदस्य बनना होगा। कहने का अर्थ यह हुआ कि प्रधानमंत्री का दोनों सदनों में से किसी एक सदन का सांसद होना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है? (Pradhanmantri ka chunav kaun karta hai)

अब बारी आती है प्रधानमंत्री की नियुक्ति किये जाने की। जब देश के सभी सांसदों के द्वारा एक नेता चुन लिया जाता है और उस व्यक्ति का देश का अगला प्रधानमंत्री बनना तय हो जाता है तो उसकी नियुक्ति कौन करेगा? तो इसका सीधा सा उत्तर है देश के राष्ट्रपति। भारत देश के राष्ट्रपति के द्वारा ही देश के प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जाती है और उन्हें शपथ दिलवाई जाती (Pradhanmantri ki niyukti kaun karta hai) है।

आपने भी वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री की शपथ लेते हुए देखा होगा। उस समय देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी थे जिन्होंने शपथ दिलवाने का काम किया था। संविधान के अनुसार देश में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च माना गया है और प्रधानमंत्री भी उन्हें ही रिपोर्ट करता है। ऐसे में उसकी नियुक्ति किया जाना या उनका त्याग पत्र लिया जाना राष्ट्रपति के हाथ में ही होता है।

प्रधानमंत्री का त्यागपत्र कौन लेता है? (Pradhanmantri ka tyagpatra kaun leta hai)

अब जो व्यक्ति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है, वही उसका त्याग पत्र भी लेता है। यदि हम संविधान के अनुसार पदों को देखें तो पाएंगे कि देश का सबसे बड़ा पद राष्ट्रपति का और फिर उप राष्ट्रपति का होता है। इसके बाद तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री आते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री को यदि त्याग पत्र देना है या सरकार भंग हो जाती है या वह चुनाव हार जाता है, तो उसके द्वारा त्याग पत्र देश के राष्ट्रपति को ही दिया जाएगा।

अब यह राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह प्रधानमंत्री का त्याग पत्र ले लेते हैं या उसे पुनः लौटा देते हैं। यदि सरकार गिर जाती है तो राष्ट्रपति के द्वारा देश के सभी सांसदों को कुछ और दिन दिए जाते हैं ताकि वह अपने में किसी अन्य को प्रधानमंत्री पद के लिए चुन ले। यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर देश में फिर से चुनाव करवाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री की शक्तियां व कार्य (Pradhanmantri ki shaktiyan)

आपको शायद ही प्रधानमंत्री की शक्तियों और कार्यों के बारे में बताने की आवश्यकता पड़े क्योंकि वह देश का सर्वेसर्वा होता है। एक तरह से संविधान में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पद प्रधानमंत्री को ही माना गया है। वही देश का मुख्य चेहरा होता है और विदेशों में देश का प्रतिनिधित्व करता है। वह देश से जुड़े कोई भी निर्णय ले सकता है और कुछ भी नए कानून बना सकता (Pradhanmantri ke karya) है।

प्रधानमंत्री अपने विवेक पर कुछ मामलों में बिना संसद की अनुमति के निर्णय ले सकता है या फिर यूँ कहें कि कानून के दायरे में रहकर कोई भी निर्णय ले सकता है। वहीं यदि उसे कानून या संविधान की किसी धारा में बदलाव करना है, उसे हटाना है या नयी धारा जोड़नी है तो फिर उसे संसद में बिल लाना होता है और आवश्यक प्रक्रिया का पालन करना होता है। कानून या धारा को बनाने या जोड़ने के अलावा उसके पास पहले के कानूनों के अनुसार किसी भी तरह का कार्य करने की शक्ति होती है।

प्रधानमंत्री का चुनाव कैसे होता है – Related FAQs 

प्रश्न: प्रधानमंत्री को वोट कौन देता है?

उत्तर: प्रधानमंत्री को वोट हमारे द्वारा चुने गए सांसद देते हैं।

प्रश्न: प्रधानमंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: प्रधानमंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया को हमने ऊपर के लेख के माध्यम से बताया है जो आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: भारत के प्रधानमंत्री को कौन हटा सकता है?

उत्तर: भारत के प्रधानमंत्री को त्यागपत्र राष्ट्रपति को देना होता है।

प्रश्न: प्रधानमंत्री का पद कितने साल का होता है?

उत्तर: प्रधानमंत्री का पद 5 साल का होता है अर्थात प्रधानमंत्री 5 साल तक कार्यरत रहता है।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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