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जुलूस, विरोध-प्रदर्शन या दंगों के दौरान दंगाई बहुत बार सरकारी संपत्तियों को निशाना बना देते हैं। उन्हें जला देते हैं या तोड़ फोड़ कर देते हैं। इसे देखते हुए इस पर रोक लगाने के लिए 1984 में लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम यानी Prevention of Damage to Public Property Act लाया गया। आज इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस अति महत्वपूर्ण अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। आप ध्यान से पढ़िए और अंत तक हमारे साथ इस post पर बने रहिए। आइए, शुरू करते हैं-
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम क्या है? What is The Prevention of Damage to Public Property Act?
दोस्तों, लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम यानी The Prevention of Damage to Public Property Act 1984 में लागू हुआ। इस अधिनियम के जरिए यह व्यवस्था दी गई कि अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य के माध्यम से नुकसान पहुंचाता है तो उस दंड एवं निषेधात्मक कार्रवाई की जाएगी।
लोक संपत्ति के दायरे में क्या क्या आएगा –
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 के मुताबिक लोक संपत्तियों में जिन संपत्तियों को शामिल किया गया है, वे इस प्रकार से हैं-
- कोई भी ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण में किया जाता है।
- लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई भी साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
- खान अथवा कारखाना।
- सीवेज संबंधी कार्यस्थल।
- तेल संबंधी प्रतिष्ठान।
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के तहत सजा का प्रावधान –
दोस्तों, आपको बता दें कि यदि कोई भी व्यक्ति इस The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 के प्रावधान के तहत दोषी पाया जाता है तो उसे पांच साल तक की जेल अथवा जुर्माना हो सकता है। या फिर एक साथ दोनों सज़ाएं दी जा सकती हैं। यह दंडाधिकारी के विवेक पर निर्भर करेगा। दोस्तों, आपको बता दें कि हमारे देश भारत में ऐसे बहुत सारे मामले हैं, जहां कोर्ट ने दोषी पर दोनों दंड साथ साथ लगाए हैं।
हाल ही में चर्चा में क्यों रहा लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम –
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम यानी The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 हाल ही में खासी चर्चा में रहा। दरअसल, उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने जुलूसों, विरोध प्रदर्शनों, बंद आदि के दौरान नष्ट होने वाली संपति के नुकसान की भरपाई के लिये ‘उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई अध्यादेश यानी Uttar Pradesh Recovery of Damage to Public and Private Property Ordinance-2020 पास किया था।
इसी दौरान The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 पर जमकर बहस मुबाहिसों का दौर चला। इसके तहत उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति की नुकसान की वसूली के दावे के लिए एक नई authority गठित की। तय किया गया कि इसकी अगुवाई राज्य सरकार की ओर से नियुक्त एक रिटायर्ड ज़िला जज करेंगे। इसमें एक एडिशनल कमिश्नर रैंक के अफसर को शामिल किया जा सकता है।
इस अध्यादेश के तहत एक ही घटना के लिये कई अधिकरणों का गठन किया जा सकता है, ताकि कार्यवाही तीन महीने के भीतर सुनिश्चित की जा सके। साथ ही authority को एक ऐसे मूल्यांकनकर्त्ता की नियुक्ति का अधिकार भी दिया गया है, जो कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्त पैनल में हानि का आकलन करने के लिए तकनीकी रूप से योग्य हो। Authority को civil court की शक्ति प्रदान की गई है।
सबसे खास बात यह है दोस्तों कि इसका फैसला आखिरी होगा और उसके खिलाफ किसी भी court में अपील नहीं की जा सकेगी। अध्यादेश की धारा 3 के अनुसार, पुलिस का एक सीओ FIR के आधार पर घटना में हुए नुकसान की भरपाई के लिए दावा याचिका रिपोर्ट तैयार करेगा। रिपोर्ट तैयार हो जाने पर ज़िला मजिस्ट्रेट या पुलिस कमिश्नर याचिका दायर करेंगे। अध्यादेश की धारा 13 के तहत यदि आरोपी उपस्थित नहीं होता तो उसकी संपत्ति की कुर्की करने का आदेश जारी कर दिया जाएगा। सार्वजनिक रूप से उसकी तस्वीर नाम, पते के साथ प्रकाशित की जाएगी।
विपक्ष ने किया अधिनियम का जबरदस्त विरोध –
यूपी सरकार की ओर से लाए गए इस अधिनियम Uttar Pradesh Recovery of Damage to Public and Private Property Ordinance-2020 का विपक्ष ने जबरदस्त तरीके से विरोध किया। उसका कहना था कि सरकार इस अधिनियम की आड़ में विपक्षियों के दमन की कार्रवाई करेगी। आरोपितों को बगैर दोष सिद्ध हुए जेल में डाला जाएगा।
उन्होंने अधिनियम के प्रावधानों को भी प्रताड़ित करने के लिए लाए गए करार दिया। उनका कहना था कि यह प्रावधान सत्ता और शक्ति के दुरुपयोग का रास्ता साफ करने वाले हैं। उन्होंने लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम को लाए जाने के पीछे उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर भी सवाल खड़े किए।
सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने पर नाराजगी तक जता चुके चीफ जस्टिस –
दोस्तों, आपको शायद न पता हो कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे कुछ समय पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों के दंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने पर नाराज़ थे। उन्होंने अपनी नाराज़गी को खुलकर जताया भी।
जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर कथित पुलिस ज़्यादती संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई के लिये सहमत होते हुए बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच का कहना था कि प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन यदि वे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं तो कोर्ट उनकी बात नहीं सुनेगी।
एक्ट के बावजूद घटनाओं पर रोक नहीं –
साथियों, आपको बता दें कि The Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 के बावजूद देश भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान दंगा, संपत्ति को नष्ट किए जाने, आगज़नी की घटनाएं बेहद आम हैं। इन पर प्रभावी रोक संभव नहीं हो सकी है। आपको बता दें कि खुद न्याय की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट भी कई अवसरों पर इस कानून को अपर्याप्त बता चुकी है। इसमें बदलाव को अपरिहार्य बता चुकी है।
बदलाव के लिए गठित की गई कमेटी, मांगे गए सुझाव –
दोस्तों, आपको बता दें कि वर्ष 2007 में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान का सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। पूर्व जज के.टी. थॉमस और सीनियर वकील फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया। इसका मकसद कानून में बदलाव के लिये सुझाव प्राप्त करना था। आपको बता दें कि वर्ष 2009 में Destruction of Public & Private Properties v State of AP and Others के मामले में supreme Court ने दोनों समितियों की सिफारिशों के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किए।
उसने कहा कि अभियोजन को यह साबित करना होता है कि किसी संगठन की प्रत्यक्ष कार्रवाई में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है और आरोपी ने भी ऐसी प्रत्यक्ष कार्रवाई में भाग लिया है। उसने सार्वजनिक संपत्ति से जुड़े मामलों में कहा कि आरोपी को ही स्वंय को बेगुनाह साबित करने की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। कोर्ट को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिए कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिए जाने की बात कही। उसने हाई कोर्ट से भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किए। इसके साथ ही सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जांच के लिए एक सिस्टम की स्थापना करने के लिए कहा।
प्रदर्शनकारियों की पहचान मुश्किल काम –
दोस्तों, सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक संपत्ति के विनाश से जुड़े मामलों में बेशक दिशा निर्देश दिए हैं, लेकिन इस कानून की ही तरह इन दिशा-निर्देशों का भी सीमित प्रभाव ही दिखा। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि प्रदर्शनकारियों की पहचान करना अभी भी एक बेहद मुश्किल कार्य है। दोस्तों, खास तौर पर ऐसा उन मामलों में है, जहां कोई नेता सीधे सीधे किसी विरोध प्रदर्शन का आह्वान नहीं करता। ऐसे में इस अधिनियम के तहत दोषी की पहचान किया जाना और उस पर सख्त कार्रवाई संभव नहीं हो पाती।
सुबूतों के अभाव में भी कार्रवाई संभव नहीं हो पाती –
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम होने के बावजूद सुबूतों के अभाव में भी आरोपी पर दोष सिद्ध नहीं हो पाता। अब हार्दिक पटेल वाले मामले को ही लें। वर्ष 2015 में पाटीदार आंदोलन के बाद हार्दिक पटेल पर हिंसा भड़काने के लिये राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि क्योंकि कोर्ट के पास हिंसा भड़काने से संबंधित कोई सुबूत नहीं है, इसलिये उसे संपत्ति के नुकसान के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
इसी प्रकार वर्ष 2017 में एक याचिकाकर्त्ता ने दावा किया था कि उसे एक आंदोलन के चलते सड़क पर 12 घंटे से अधिक समय बिताने के लिये मजबूर किया गया था। Koshi jaicab vs union of India नामक इस मामले के फैसले में कोर्ट ने कानून में बदलाव की आवश्यकता जरूर बताई, लेकिन याचिकाकर्त्ता को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया। वजह यह थी कि विरोध-प्रदर्शन करने वाले कोर्ट के सामने उपस्थित नहीं थे।
सारांश –
दोस्तों, किसी बड़ी मांग को लेकर किए जा रहे प्रदर्शनों या किसी बात पर छिड़ गए दंगों की बात छोड़ दें, छोटे-मोटे कालेजों के चुनाव ही ले लें। इस दौरान भी छात्र संगठन अपना वजूद कायम करने की होड़ में लोक या सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा देते हैं। जबकि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में यह साफ लिखा गया है कि लोक संपत्ति को बदरंग नहीं किया जा सकता है, या उसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता है।
इसके बावजूद कहीं किसी कालेज की दीवार गिरा दी जाती है तो कहीं पोस्टर से पाटकर उसे बदरंग बना दिया जाता है। यह इस बात का गवाह है कि लोक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाए जाने या उनके विनाश से जुड़े अधिनियम और कानूनों में बदलाव बेहद जरूरी है। इसे समय रहते कर लिया जाए और सख्ती के साथ लागू भी किया जाए तो बहुत सारी लोक संपत्तियों को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है।
तो दोस्तों, यह थी लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम यानी Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 संबंधी जानकारी। उम्मीद है कि यह post आपको पसंद आई होगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित होगी। यदि आपके मन में इस विषय पर कोई सवाल है तो आप उसे नीचे दिए comment box में लिखकर हमें भेज सकते हैं। मित्रों, यदि किसी विषय पर आप हम से जानकारी चाहते हैं तो उसका भी स्वागत है। विषय का नाम हमें लिख भेजिए। आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव का हमें हमेशा की तरह इंतजार है। ।।धन्यवाद।।
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