|| रस किसे कहते हैं? Ras kise kahate hain | Vatsalya ras kya hota hai | Ras ke ang kitne hote hain | रस के प्रकार | रस के प्रकार | Vir ras ki paribhasha in Hindi | Vismay ras ka udaharan | Bhay ras example in Hindi ||
Ras kise kaha jata hai :- हिंदी भाषा में रस शब्द का अत्यधिक महत्व होता है। आपने भी अपनी स्कूल की शिक्षा में इस शब्द के बारे में बहुत बार पढ़ा और सुना होगा। साहित्य में भी रस शब्द का उल्लेख कई बार मिल जाता है और जब बात कविताओं, काव्य, भावनाओं की अभिव्यक्ति की हो तो उसमे तो रस शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता (Ras kise kahate hain bataiye) है। रस का असली अर्थ आनंद के भावो से होता है।
इसे अच्छे से समझने के लिए इसकी परिभाषा और प्रकारों के बारे में जानना बहुत आवश्यक होता है। वैसे हिंदी भाषा में रस शब्द के कई अन्य अर्थ भी निकल सकते हैं जैसे की फलों का रस या खाने वाला रस या अन्य कोई (Ras kise kahate hain ras ke prakar) अर्थ। किंतु यहाँ रस शब्द का मूल आनंद से ही माना गया है और उसी से ही इसे परिभाषित भी किया गया है। ऐसे में आज हम आपके साथ रस किसे कहते है और इसका क्या अर्थ है, इसके बारे में ही चर्चा करने वाले हैं।
रस किसे कहते हैं? (Ras kise kahate hain)
जब हम किसी कविता को सुनते हैं, किसी कहानी को गढ़ते हैं या किसी नाट्य का रूपांतरण हो रहा होता है तब जिस आनंद की अनुभूति होती है तो उसे ही रस कहा (Ras kise kehte hai) जाता है। यह रस मन के भाव होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग हो सकते हैं। यह प्रेम रस भी हो सकते हैं तो वात्सल्य के रस भी तो क्रोध का रस भी।
कहने का तात्पर्य यह हुआ कि रस केवल मन के भाव है और यह व्यक्ति की भावनाओं के अनुसार परिवर्तित हो सकते हैं। इस पर केवल व्यक्ति की भावना ही निहित नही होती है अपितु इसमें स्थिति का भी आंकलन किया जाता है। उसी के अनुसार ही इन रस के भावो में परिवर्तन देखने को मिल जाता है। तो किसी स्थिति के अनुसार व्यक्ति के मन के भाव या उसके आनंद की अनुभूति को ही रस शब्द से तौला जा सकता है।
रस के प्रकार (Ras ke types in Hindi)
अब जब आपने यह जान लिया है की रस किसे कहते हैं या रस की परिभाषा क्या है तो इसके प्रकारों को जानने से इसकी पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अब जैसा कि हमने आपको ऊपर ही रस की परिभाषा में बताया कि यह आवश्यक नही कि रस केवल एक ही तरह का हो बल्कि यह स्थिति और मनोभाव के अनुसार अलग अलग भी हो सकता है। ऐसे में रस किस तरह का है और उससे किस तरह के मन के भाव जागृत हो रहे हैं, यह भी बहुत मायने रखता है।
इसी के अनुसार ही रस को कई भागो में विभाजित किया जाता है और उसी से ही इसे परिभाषित भी किया जाता है। हर भाव रस के अलग भाग को प्रदर्शित करता है और उसके आनंद की अनुभूति करवाता है। तो ऐसे में आइए जाने रस के विभिन्न प्रकारों और उनकी परिभाषा और भावो के बारे में।
श्रृंगार रस
यह रस मुख्य रूप से रति भावो को जागृत करता है। इसे पुरुष व स्त्री के बीच में प्रेम रस को भी कहकर परिभाषित किया जा सकता है। अब किसी स्त्री को सजना संवरना पसंद होता है और वह इसी रस के सहारे ही किसी पुरुष को मोहित करने की क्षमता रखती है। तो वही दूसरी और कोई पुरुष अपने शारीरिक बल, मुख के रूप इत्यादि कई चीजों से स्त्री को आकर्षित (Shringar ras ki paribhasha) करता है। तो इसी से ही प्रेम रस की भावना जागृत होती है और श्रृंगार रस उदय होता है।
हास्य रस
इस प्रकार का रस मनोरंजन के क्षेत्र में बहुत महत्ता रखता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नाटक, कथाओं, सोशल मीडिया, वीडियोज इत्यादि के माध्यम से जिस कॉमेडी को किया जाता है या लोगों को हंसाने का काम किया जाता है वह हास्य रस का ही उदय होना माना (Hasya ras ki paribhasha) जाता है। इस रस के द्वारा व्यक्ति के मन में हंसने वाली भावनाओं को जागृत करने का कार्य किया जाता है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति को हंसने का मन करता है या वह अपना मुख खोल कर जोर जोर से हँसता है।
करुण रस
यह रस हास्य रस का विपरीत माना जाता है। अब यदि कोई व्यक्ति किसी बुरी परिस्थिति का सामना करता है या उसके साथ कुछ अनहोनी घटित हो जाती है या वह किसी की बुरी कथा सुनता है या फिर कोई बुरा नाटक देखता है या किसी विवशता का सामना करता है तो उसमे करुण रस के भाव जागृत हो जाते हैं। इस भाव में वह विवशता का सामना कर सकता है, रुआंसा हो सकता है, शोक में जा सकता है या रोने भी लग (Karun ras ki definition in Hindi) सकता है। इस रस के जागने से व्यक्ति की आँखों से अश्रु बह सकते हैं या वह दुःख में जीता है।
रोद्र रस
इस रस का प्रतिनिधित्व मुख्य रूप से भगवान शिव करते हैं और उनके द्वारा ही इस रस की महत्ता को दर्शाया गया है। अब यदि कोई कार्य हमारे अनुसार नहीं होता है या कोई धर्म की हानि करता है या कही अन्याय होता है या कोई गलत कार्य को बढ़ावा दिया जाता है या हमारे मन के विपरीत कार्य हो रहा होता है तो उस स्थिति में हमारे मन में क्रोध के भाव उत्पन्न (Raudra ras ki paribhasha) होते हैं। इन्ही क्रोध के भाव उत्पन्न होने को ही रोद्र रस कहा जाता है। इसमें मनुष्य के हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, रक्त संचार तेज हो जाता है, शरीर गर्म हो जाता है और आँखें लाल हो जाती है।
वीभत्स रस
इस रस को हम दूसरों के प्रति घृणा या ईर्ष्या की भावना के रूप में देख सकते हैं। ईश्वर के अनुसार कलियुग में वीभत्स रस की प्रधानता देखने को मिल सकती है जो कि हो भी रहा है। कहने का अर्थ यह हुआ कि वर्तमान समय में मनुष्य धर्म का परिपालन कम करके अपने मन के अनुसार कई तरह की परिभाषाएं गढ़ेगा और वैसा नहीं होने पर या दूसरों के वैसा नहीं करने पर या उनकी उन्नति देखकर वह उनसे घृणा करना शुरू कर (Vibhats ras ki definition) देगा। ऐसी परिस्थिति में वीभत्स रस के भाव उत्पन्न होने की संभावना प्रबल होगी।
भय रस
यह रस मनुष्य के सही कर्म करने के लिए बहुत ही आवश्यक होता है और यह हर युग में समान भाव से बना रहता है। हालाँकि मनुष्य को किस चीज़ से भय रस अनुभव हो रहा है, वह चीज़ बदलती रहती है। फिर भी जो चीज़ भय रस के भाव हमेशा ही उत्पन्न करती है वह मृत्यु (Bhay ras example in Hindi) होती है। तभी किसी मनुष्य को ईश्वर के द्वारा उसकी मृत्यु की तिथि नहीं बताई जाती हैं अन्यथा उसके मन से भय रस की समाप्ति हो जाएगी जो विश्व कल्याण के लिए अत्यधिक भीषण हो सकती है। इसके अलावा कई अन्य चीज़ों से मनुष्य के मन में भय रस की उत्पत्ति होती है जिनमे रिश्तों का संचालन मुख्य है।
विस्मय रस
अब यदि ईश्वर ने यह जीवन दिया है तो उसमे हमें आश्चर्य चकित करने वाली कई चीजों का निर्माण उसने किया है। यह चीज़े भौतिक रूप में हो सकती है, मानसिक रूप में हो सकती है, आध्यात्मिक रूप में भी हो सकती है या किसी स्थिति के कारण निर्मित हो (Vismay ras ka udaharan) सकती है। जीवन में मनुष्य कई चीजों को देखकर जो उसने अनुमानित नहीं की होती है, उसे घटित हुआ देख कर आश्चर्य के भावो को उत्पन्न करता है, उसे ही विस्मय रस में रखा जाता है। इससे मनुष्य की आँखें बड़ी हो जाती है और मस्तिष्क खुल जाता है।
वीर रस
मनुष्य को अपने जीवन में कई घटनाओं का ना चाहते हुए भी या उन्हें करने के उद्देश्य से उनका सामना करना पड़ता है और उसके लिए उसके अंदर उत्साह का संचार होना बहुत आवश्यक होता है। तो वही उत्साह बनाने या निर्मित करने के लिए वीर रस की अनुभूति की जानी जरुरी (Vir ras ki paribhasha in Hindi) होती है। अब यदि उसमे वीर रस ही नही होगा तो उसमे उत्साह का निर्माण नहीं होगा। वह इसलिए क्योंकि वीर रस ही उसे यह अनुभव करवाएगा कि वह काम कर पाने में सक्षम है और उसी से ही उत्साह का संचार शरीर में देखने को मिलता है।
शांत रस
यह रस सृष्टि के कल्याण के लिए अति आवश्यक माना जाता है। इसमें शांत का अर्थ केवल शांत हो जाने से ही नही होता है बल्कि सृष्टि के कल्याण के लिए क्या क्या किया जाना चाहिए वह आवश्यक होता (Shant ras ki paribhasha) है। अब सृष्टि में अशांति कैसे होती है? वह इस भाव से होती है कि आप अपनी चीज़ को तो ले ही बल्कि दूसरों की चीज़ पर भी अधिकार करने का प्रयास करे या उसे छीन ले तो ऐसे में त्याग भाव का जागृत होना जरुरी है। त्याग की भावना के लिए शांत रस का उदय होना जरुरी होता है क्योंकि बिना इसके त्याग की भावना आपके मन में नहीं आएगी।
वात्सल्य रस
रति रस में हमने पुरुष व स्त्री के प्रति प्रेम को जाना लेकिन यह केवल उसी तक ही सीमित रहे यह जरुरी नही। ऐसा रहेगा तो विश्व में केवल पति पत्नी का रिश्ता ही बचेगा जो केवल सृष्टि के निर्माण का कार्य करेगा लेकिन उसके संचालन का उत्तरदायित्व वह रस नही ले (Vatsalya ras kya hota hai) पाएगा। तो सृष्टि का संचालन करना है तो उसके लिए रति रस के साथ साथ वात्सल्य रस का होना भी बहुत आवश्यक है। इस रस के तहत एक पिता अपने पुत्र से प्रेम कर सकता है और एक माता अपनी पुत्री से। इसी तरह एक पुत्र या पुत्री अपने माता पिता से भी प्रेम की अनुभूति करते है और बदले में अपने पुत्र पुत्री को वात्सल्य रस देता है।
रस के अंग (Ras ke ang kitne hote hain)
जिस प्रकार आपने रस के प्रकारों के बारे में जाना ठीक उसी तरह रस के अंग भी जान लेने चाहिए। रस के प्रकार तो उसके भावो को बताने का काम करते हैं लेकिन वह भाव किस तरह से आते हैं, कितने समय तक रहते हैं, उनका उद्देश्य क्या होता है, यह सब उसके अंग में निहित (Ras ke ang kitne hai) होते हैं। तो ऐसे में रस के अंगों को चार भागो में विभाजित किया जा सकता है, जो हैं:
स्थायी भाव
रस के इस अंग में वह सब भाव आते हैं जो ऊपर हमने आपको बताये हैं। यह रस के स्थायी भाव अर्थात मनुष्य के मन में हमेशा रहने वाले भाव (Sthayi bhav kya hai) होते हैं। अब किसी भी मनुष्य के मन से क्रोध, प्रेम, वात्सल्य, शांति, घृणा इत्यादि भावो को नहीं निकाला जा सकता है और यह उसके मन के स्थायी भाव होते हैं। इस कारण ऊपर बताये गए सभी भाव स्थायी भाव का ही एक हिस्सा होते हैं और इन्हें ही रस की आत्मा कहा जा सकता है।
विभाव
अब जो भी कारण स्थायी भाव को जागृत करने का काम करते हैं, उसे रस के विभाव कहा जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह हुआ की जिस व्यक्ति, घटना या स्थिति को देखकर व्यक्ति के मन में किसी स्थायी भाव की भावना जागृत हो तो उस व्यक्ति, घटना या स्थिति को विभाव कहा (Vibhav kya hota hai) जाएगा। उदाहरण के रूप में वाटिका में माता सीता को देखकर श्रीराम के मन में रति रस का उदय हुआ तो माता सीता वहां पर विभाव थी।
अनुभाव
अब विभाव के कारण मनुष्य के मन में जिन स्थायी भावो का उदय हुआ और उसके फलस्वरूप वह जिस प्रकार की प्रतिक्रिया करता है, उसे अनुभाव कहा जाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि स्थायी भाव आने के बाद मनुष्य की प्रतिक्रिया ही अनुभाव कहलाती है। यह प्रतिक्रिया शारीरिक व मानसिक दोनों तरह की हो (Anubhav kya hota hai) सकती हैं। उदाहरण के रूप में माता सीता को देखकर श्रीराम के मन में रति रस का उदय हुआ और उसके फलस्वरूप उन्हें थोड़ी बहुत लज्जा का अनुभव हुआ और उस कारण उनकी आँखें बड़ी हुई और वे थोड़ा झुक भी गयी और शरीर में कंपकंपी हुई तो उसे अनुभाव कहा जाएगा।
संचारी भाव
जो भाव व्यक्ति के मन में कुछ समय के लिए उत्पन्न होते हैं और उसका प्रमुख स्रोत स्थायी भाव ही होते हैं, तो उसे संचारी भाव कहा जाता है। यह भाव स्थायी भाव का ही अंग होते हैं लेकिन यह कुछ समय के लिए (Sanchari bhav kya hai) रहते हैं। उदाहरण के रूप में माता सीता को देखने के बाद श्रीराम के मन में उनकी छवि अंकित हो गयी और जब भी उन्हें उनका विचार आता तो उनके मन में रति रस का संचारी भाव उत्पन्न हो रहा था।
रस किसे कहते हैं – Related FAQs
प्रश्न: रस किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: रस मन के भावो को कहते हैं और यह 10 प्रकार के होते हैं।
प्रश्न: हिंदी के रस कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: हिंदी के रस 10 प्रकार के होते हैं।
प्रश्न: रस की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर: रस की कुल संख्या 10 है।
प्रश्न: पहला रस कौन सा है?
उत्तर: पहला रस रति रस है जिसे प्रेम रस भी कहा जा सकता है।
तो इस तरह से आज के इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि रस क्या होते हैं और उनका उदय किस कारण से हो सकता है। हर मनुष्य के मन में यह 10 प्रकार के रस पाए ही जाते हैं और वह समय और परिस्थिति के अनुसार इनका प्रदर्शन करता रहता है। हालाँकि यह अलग बात है कि किसी मनुष्य में किसी रस की अधिक प्रधानता होती है तो किसी में अलग रस की। ऐसे में वह सभी रस का संतुलन बनाते हुए किस तरह से जीवनयापन करता है यह महत्वपूर्ण होता है।