एक पिता के अधिकार क्या हैं? What are the rights of a father?

|| एक पिता के अधिकार क्या हैं? What are the rights of a father? पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार, क्या पैतृक संपत्ति की वसीयत की जा सकती है, पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति वितरण, पिता की संपत्ति का अधिकार, माता-पिता की संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ||

पिता बच्चों के लालन पालन में आर्थिक योगदान देने के साथ ही घर की जिम्मेदारी उठाने वाला एक महत्वपूर्ण सिरा होता है। हमारे देश में मां को घर की धुरी माना जाता है तो पिता को परिवार से जुड़े निर्णय लेने वाला मुखिया। पिता के कर्तव्यों की बात हर कोई करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक पिता के क्या क्या अधिकार होते हैं? यदि नहीं, तो भी कोई बात नहीं। आज हम आपको इस संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं-

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पिता के क्या क्या अधिकार हैं? (What are the rights of a father?)

1. स्व अर्जित संपत्ति पर अधिकार (right on self earned property) :

पैतृक संपत्ति पर बेशक किसी व्यक्ति के बच्चों का अधिकार होता है, लेकिन पिता ने यदि कोई संपत्ति स्वयं अर्जित की है तो इस संपत्ति पर केवल उसका अधिकार होगा। इसे दूसरे शब्दों में यूं कह सकते हैं कि अपने पिता, दादा अथवा परदादा को छोड़कर किसी हिंदू द्वारा खुद अर्जित अथवा किसी से विरासत में मिली संपत्ति को व्यक्तिगत संपत्ति (individual property) माना जाता है।

अब यह उसकी इच्छा पर है कि वह इस स्व अर्जित संपत्ति को किसको देना चाहता है। वह इसे अपने पुत्र पुत्री दोनों के नाम कर सकता है। दोनों में से किसी एक के नाम कर सकता है। किसी तीसरे को दे सकता है। अथवा किसी को नहीं भी दे सकता। कोई भी उसे इसके बंटवारे के लिए विवश नहीं कर सकता।

मित्रों, यहां आपको यह भी जानकारी दे दें कि पूर्व में संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार में शुमार था, किंतु, संविधान अधिनियम (construction act) 1978 में संशोधन (ammendment) के कारण संपत्ति का स्वामित्व अब एक मौलिक अधिकार (fundamental right) नहीं है। हालांकि, यह बहुत ही कानूनी (legal), मानवीय (human) एवं संवैधानिक अधिकार (constitutional right) है.

एक पिता के अधिकार क्या हैं? What are the rights of a father?

2. संतान ध्यान न रखे तो पिता को उसे अपने घर से निकालने का अधिकार (right to out children from his home if they don’t pay care of father):

यह आपने जरूर देखा होगा कि प्रॉपर्टी अपने नाम होने तक तो बहुत से बच्चे मां बाप की खूब सेवा करते हैं, लेकिन इसके बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। बहुत से ऐसे दुखियारी मां बाप को आप कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते देख सकते हैं। लेकिन अब कोर्ट पूरी तरह से ऐसे पिताओं के साथ है। यदि कोई पिता अपनी संपत्ति बच्चों अथवा रिश्तेदारों के नाम ट्रांसफर कर चुका हो, चाहे गिफ्ट के रूप में या किसी अन्य वैध तरीके से, और वे अब उसकी देखभाल न कर रहे तो संपत्ति का ट्रांसफर (transfer of property) रद्द भी हो सकता है।

इसका अर्थ यह है कि संपत्ति फिर से पिता यानी संबंधित व्यक्ति के नाम हो जाएगी। इसके बाद पिता यदि चाहे तो उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकता है। मित्रों, इस मामले में सितंबर, 2021 में आया बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High court) का एक फैसला नजीर बन सकता है। आपको बता दें कि इस फैसले में कोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता को परेशान करने वाले इकलौते बेटे एवं उसकी पत्नी को उनका फ्लैट एक महीने के भीतर खाली करने का आदेश दिया था।

आपको जानकारी दे दें कि इस कानून से पहले, ऐसी स्थिति में बुजुर्ग को भरण-पोषण के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ता था। उसकी ट्रांसफर की गई संपत्ति पर भी सिर्फ और सिर्फ उन्हीं का हक होता था जिनके नाम वह ट्रांसफर की गई थीं। यानी संपत्ति पर बुजुर्ग का कोई अधिकार नहीं रह जाता था। लेकिन इस कानून के बनने के बाद बुजुर्ग ऐसी संपत्ति पर फिर से अपना दावा कर सकता है।

3. प्रत्येक माह 10 हजार रुपए तक गुजारा भत्ते का अधिकार : (right of getting upto 10 thousand rupees as alimony)

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि ऐसे पिता, जिनके पास अपनी ऐसी कोई आय अथवा संपत्ति (income/property) नहीं कि जिसके जरिए वे अपनी देखभाल करने में सक्षम हो सकें व उनके बच्चे अथवा रिश्तेदार उनका ध्यान नहीं रख रहे तो वे गुजारा भत्ता (alimony) के लिए दावा (claim) कर सकते हैं। उन्हें प्रत्येक माह 10 हजार रुपए तक का गुजारा-भत्ता दिए जा सकने का प्रावधान किया गया है। विशेष बात यह है कि भरण-पोषण के आदेश का एक महीने के भीतर पालन करना अनिवार्य किया गया है।

मित्रों, लगे हाथों आपको यह भी बता दें कि 60 वर्ष से ऊपर के ऐसे शख्स, जिनकी कोई संतान न हो, वे भी अपने रिश्तेदारों अथवा अपनी संपत्ति के उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं। कानून में भी इस प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए मेंटिनेंस ट्रिब्यूनल (maintenance tribunal) एवं अपीलेट ट्रिब्यूनल (appellate tribunal) की व्यवस्था की गई है। भारत के अधिकांश जिलों में इस प्रकार के ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं। ट्रिब्यूनल को शिकायत मिलने के पश्चात तीन माह यानी 90 दिन के भीतर फैसला सुनाना होता है।

4. सीआरपीसी के अंतर्गत भरण पोषण का अधिकार (right to maintanence under crpc):

मित्रों, अब माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक देखभाल एवं कल्याण कानून-2007 की बात कर लेते हैं। इस कानून के जरिए बुजुर्ग पिता भरण पोषण के लिए दावा कर सकता है। इसके अतिरिक्त सीआरपीसी (crpc) में भी पिता के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान किया गया है। आपको जानकारी दे दें दोस्तों कि सीआरपीसी-1973 की धारा 125 (1) (डी) एवं हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (Hindu adoption and maintenance act) -1956 की धारा 20 (1 और 3) के अंतर्गत भी पिता अपनी औलाद से भरण-पोषण पाने का अधिकारी है।

सीआरपीसी की धारा 125(1) कहती है कि यदि अगर बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर रहे हैं तो प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट (first class magistrate) उन्हें गुजारा-भत्ता (alimony) देने का आदेश दे सकता है। यद्यपि यह भत्ता कितना होगा, इसकी कोई राशि (amount) तय नहीं है। केस के आधार पर मजिस्ट्रेट इस राशि को अपने विवेक के अनुसार तय कर सकता है।

पिताओं के लिए अधिकारों की जानकारी न होना कितना मुश्किल भरा? (For fathers It is how much difficult not knowing their rights?)

मित्रों, यह बात कोई अबूझी नहीं है कि भारत में माता पिता अपने अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक नहीं। वे बच्चों से जुड़े अपने तमाम फैसले चाहे वह संपत्ति से संबंधित हो या कुछ और, अधिकांशतः भावुकता में बहकर करते हैं। इसका खामियाजा भी अक्सर उन्हें भुगतना पड़ता है और उनके लिए जीवन यापन बेहद मुश्किल हो जाता है। कई पिताओं को बच्चों की उपेक्षा के चलते वृद्ध आश्रमों में आसरा तलाश करना पड़ता है।

कई बार बच्चे बेहतर अवसरों की तलाश में बाप की देखभाल को प्राथमिकता पर नहीं रखते। वे केवल प्रापर्टी मिलने तक मोह दिखाते हैं। इसके बाद उन्हें वृद्धाश्रम की सहायता लेने को विवश करते हैं, जहां वे अपने जैसे अन्य तमाम लोगों के साथ जीवन काटते हैं। कई पिता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होते हुए भी अपने बच्चों के खिलाफ शिकायत या केस करने से कतराते हैं और अपनी खराब स्थिति को ही अपनी नियति समझ बैठते हैं। चुपचाप वृद्ध आश्रमों का रुख कर लेते हैं।

इसी वजह से वृद्ध आश्रमों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आपको जानकारी दे दें कि वर्तमान समय में हमारे भारत देश के करीब 250 जिलों में लगभग 400 वृद्धाश्रम संचालित किए जा रहे हैं। यदि बुजुर्गों की संख्या की बात करें तो उसमें भी लगातार बढ़ोतरी ही देखने को मिल रही है। आपको बता दें दोस्तों कि मौजूदा समय में देश में बुजुर्गो की कुल संख्या करीब 14 करोड़ के आस-पास है।

बच्चों के आश्रित न रहें, अपने बुढ़ापे के लिए पहले से ही प्लानिंग करें (don’t be department on children, do planning for your old age)

दोस्तों, सबसे पहली बात तो यह है कि यदि आप कानूनी जानकारी रखें। और एक पिता के तौर पर आप के क्या क्या अधिकार हैं? इन को अवश्य जानें। इसके बावजूद यदि आप नहीं चाहते कि किसी भी मामले में आप को बच्चों के खिलाफ कोर्ट जाना पड़े अथवा आपको अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनका मुंह ताकना पड़े तो इसके लिए जरूरी है कि आप अपने बुढ़ापे के लिए पहले से प्लानिंग (planning) करें।

इसके लिए आप किसी भी सीनियर सिटीजन स्कीम (senior citizen scheme) में निवेश (invest) कर सकते हैं, ताकि आपको उसका बाद में अच्छा रिटर्न मिले। इसके अलावा भी कई सारी ऐसी निवेश योजनाएं हैं, जहां आप पहले से पैसा लगाकर अपने बुढ़ापे को अच्छे से जीने का इंतजाम कर सकते हैं।

एक पिता के क्या क्या अधिकार हैं?

इन अधिकारों की पूरी सूची हमने आपको ऊपर पोस्ट में दी है। आप वहां से देख सकते हैं।

क्या एक पिता बच्चों को वैध तरीके से ट्रांसफर की गई प्रापर्टी वापस ले सकता है?

जी हां, यदि बच्चे पिता की देखभाल नहीं करते तो वह उन्हें दी गई प्रापर्टी वापस ले सकता है।

क्या पिता देखभाल न होने पर गिफ्ट की गई संपत्ति भी वापस लेने का अधिकारी है?

जी हां, उसे ऐसा करने का अधिकार है।

यदि संतान पिता की देखभाल नहीं करती तो पिता का क्या अधिकार है?

पिता ऐसी संतान को अपने घर से निकालने का अधिकार रखता है।

शिकायत पर ट्रिब्यूनल को कितने दिन में फैसला सुनाना होता है?

ट्रिब्यूनल को शिकायत प्राप्त होने के पश्चात 90 दिन के भीतर फैसला सुनाना होता है।

दोस्तों, हमने आपको इस पोस्ट (post) में बताया कि एक पिता के क्या क्या अधिकार होते हैं। उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यदि आप इसी प्रकार के किसी महत्वपूर्ण विषय पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो उसके लिए नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके अपनी बात हम तक पहुंचा सकते हैं। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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