नाटो क्या है? रूस-यूक्रेन विवाद क्या है? रूस यूक्रेन विवाद का कारण

|| नाटो क्या है? इसका गठन कब हुआ? रूस-यूक्रेन विवाद क्या है? इन दिनों नाटो क्यों चर्चा में है?, रूस और यूक्रेन का विवाद क्या है, रूस यूक्रेन विवाद का कारण, यूक्रेन में मुस्लिम आबादी कितनी है, रूस यूक्रेन विवाद लाइव, यूक्रेन की जनसंख्या कितनी है ||

इन दिनों दुनिया भर में रूस-यूक्रेन (Russia-ukraine) विवाद छाया हुआ है। हर कोई इसी की चर्चा कर रहा है। विभिन्न देशों के राजनयिकों एवं सेना प्रमुखों की नजर इस विवाद पर लगी हुई है। बताया जाता है कि रूस ने यूक्रेन के पांच सैनिक मार गिराए हैं। दुनिया भर के लोग युद्ध की आशंका से सहमे हुए हैं।

यदि युद्ध होता है तो निश्चित रूप से कोई भी देश इसकी आंच से बेअसर नहीं रहेगा। इस बीच नाटो (NATO) की भी बहुत चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि यदि रूस यूक्रेन पर हमला करेगा तो ऐसी हालत में यूरोप एवं अमेरिका की ओर से नाटो सेनाएं संयुक्त कार्रवाई (joint action) के लिए बाध्य होंगी।

क्या आप नाटो (NATO) के बारे में जानते हैं? यदि नहीं तो कोई बात नहीं आज हम आपको नाटो के बारे में वह सब कुछ बताएंगे, जो एक व्यक्ति को जानना आवश्यक है। जैसे-नाटो क्या है? इसका गठन क्यों हुआ? वर्तमान यूक्रेन-रूस विवाद में नाटो की क्या भूमिका है? आदि। आइए, शुरू करते हैं-

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नाटो क्या है? (What is NATO?)

सबसे पहले आपको इसी सवाल का जवाब देते हैं कि नाटो क्या है (what is NATO)? आपको बता दें कि नाटो की फुल फाॅर्म नाॅर्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (North Atlantic treaty organization) है। इसे हिंदी में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन भी पुकारा जाता है। यह अमेरिका (America) एवं यूरोप (Europe) का एक साझा सैन्य एवं राजनीतिक संगठन है।

यह मूलतः सामूहिक सुरक्षा की एक प्रणाली तैयार करता है। इसके अंतर्गत इसके सदस्य देश किसी भी बाहरी पक्ष के हमले के जवाब में आपसी रक्षा के लिए सहमत होते हैं।

आपको बता दें दोस्तों कि इसका गठन 4 अप्रैल, 1949 को किया गया। वर्तमान में इसका मुख्यालय (headquarter) ब्रुसेल्स (brussels) बेल्जियम (belgium) में हैं। इस समय करीब करीब हर देश में लोग नाटो (NOTA) के बारे में चर्चा कर रहे हैं।

नाटो क्या है? रूस-यूक्रेन विवाद क्या है? रूस यूक्रेन विवाद का कारण

रूस-यूक्रेन विवाद क्या है? (What is Russia-ukraine matter?)

नाटो के बारे में जानने के पश्चात यह जानना आवश्यक है कि रूस-यूक्रेन विवाद क्या है, जिसके बाद से नाटो चर्चा में आया है। आपको बता दें कि विवाद की वजह यूक्रेन की एक चाहत है। वह नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है, लेकिन रूस इसका विरोध कर रहा है।

नाटो, जैसा कि हमने आपको बताया अमेरिका (America) एवं पश्चिमी देशों (western countries) के बीच एक सैन्य गठबंधन है, लिहाजा रूस नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश यूक्रेन नाटो का दोस्त सदस्य बने। इससे उसे नुकसान यह होगा कि जैसा हमने आपको बताया नाटो एक सैन्य समूह है, रूस के पड़ोसी देश जैसे एस्टोनिया एवं लताविया पूर्व में ही इसमें शामिल हो चुके हैं, जो पहले सोवियत संघ (Soviet union) का हिस्सा थे।

यूक्रेन भी यदि नाटो का हिस्सा बना तो रूस चारों ओर से दुश्मन देशों से घिर जाएगा। अमेरिका उस पर हावी हो जाएगा। यूक्रेन के नाटो का सदस्य बन जाने की स्थिति में यदि रूस उस पर हमला करता है तो समझौते के अंतर्गत समूह के सभी 30 देश से अपने पर हमला मानेंगे और यूक्रेन की सहायता करेंगे।

नाटो देशों को लेकर उत्पन्न हुए इस विवाद पर युद्ध छिड़ जाने की दशा में एक से अधिक देश इसमें शामिल होंगे। आपको बता दें कि यूक्रेन से लगा 450 किलोमीटर लंबा इंटरनेशनल बार्डर (international border) इस समय भीषण तनाव पसरा हुआ है। रूस ने अपने लाखों सैनिक वहां तैनात किए हुए हैं।

इसके अतिरिक्त उसने काला सागर (black see) में भी अपने युद्ध पोत तैनात किए हैं। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के अलगाववादी बहुत दो क्षेत्रों लुंहास्क एवं दोनेत्स्क को दो देशों की मान्यता दे दी है। साथ ही इन क्षेत्रों में अलगाववादियों की सहायता के लिए सेना भेजने की घोषणा भी कर दी है।

इससे विवाद और बढ़ा है। रूस एवं यूक्रेन के आमने सामने आ जाने से दुनिया दो गुटों में बंट गई है। एक ओर रूस है, जिसे चीन (China) जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है एवं दूसरी ओर यूक्रेन (Ukraine) है, जिसे अमेरिका (America), ब्रिटेन (Britain) समेत अन्य नाटो देश (NATO countries) समर्थन कर रहे हैं।

रूस के लिए यूक्रेन क्यों महत्वपूर्ण है? (why Ukraine is necessary for Russia?)

यूक्रेन रूस के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। आपको बता दें कि जब 1939 से लेकर 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध (second world war) चला एवं रूस पर हमला हुआ तो यूक्रेन एकमात्र ऐसा इलाका था, जहां से रूस ने अपनी सीमा को सुरक्षित करने में कामयाबी हासिल की थी।

यदि यूक्रेन नाटो देशों के साथ हो जाता है तो रूस की राजधानी मास्को (Moscow) पश्चिम से सिर्फ 640 किलोमीटर दूर रह जाएगी। वर्तमान में इसकी दूरी करीब डेढ़ हजार किलोमीटर है।

रूसी क्रांति (Russian revolution) के महानायक ब्लादिमीर लेनिन की एक बात से यूक्रेन की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा था, ‘रूस के लिए यूक्रेन को खोना एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा’।

यूक्रेन नाटो का सदस्य क्यों बनना चाहता है? (why Ukraine wants to be NATO’s member?)

अब किसी के मन में भी यह सवाल अवश्य आ सकता है कि आखिर यूक्रेन नाटो का सदस्य क्यों बनना चाहता है? आपको बता दें दोस्तों यह कोई एक दो या दस साल पुराना नहीं, बल्कि करीब 100 साल पुराना मामला है। इतना पुराना कि जब अलग देश का अस्तित्व तक नहीं था। 1917 से पूर्व रूस एवं यूक्रेन रूसी साम्राज्य का ही एक हिस्सा थे।

1917 में रूसी क्रांति के पश्चात यूक्रेन ने स्वयं को आजाद देश घोषित कर दिया। यद्यपि यह केवल बामुश्किल तीन साल आजाद मुल्क (independent country) रहा। सन् 1920 में यह पुनः सोवियत संघ में शामिल हो गया, इसके बावजूद वहां के लोग स्वयं को स्वतंत्र देश का नागरिक मानते रहे।

आज से करीब 31 वर्ष पूर्व सन् 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो यूक्रेन समेत 15 नए मुल्क बने। यहीं से यूक्रेन सही मायनों में आजाद हुआ। यूक्रेन को अपनी हकीकत से इंकार नहीं। वह जानता है कि वह अपने दम पर रूस से कभी मुकाबला नहीं कर सकता। उसके पास न तो रूस जैसी विशाल सेना है एवं न ही आधुनिकतम हथियार।

उसके पास 1.1 मिलियन सैनिक एवं 98 लड़ाकू विमान (fighter plane) हैं। जबकि रूस की ताकत उससे बहुत अधिक। लिहाजा वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है, जिसके सहारे उसकी स्वतंत्रता बरकरार रहे। इसके लिए उसे नाटो सबसे बेहतर लगता है। यही वजह है कि वह नाटो में शामिल होना चाहता है।

नाटो की नींव कैसे पड़ी? (how NATO was formed?)

दोस्तों आपको बता दें कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात फ्रांस (France) एवं यूके (UK) को जर्मनी (Germany) अथवा सोवियत संघ द्वारा हमले की आशंका थी। इसे देखते हुए संभावित हमले की स्थिति में फ्रांस व यूनाइटेड किंगडम ने गठबंधन एवं पारस्परिक सहायता के लिए डनकर्क की संधि पर हस्ताक्षर किए।

1948 में ब्रुसेल्स संधि संगठन (brussels treaty organization) यानी बीटीओ (BTO) के द्वारा वेस्टर्न यूनियन (western union) के रूप में इस गठबंधन का विस्तार किया गया एवं बेनेलक्स (Benelux) देशों को भी इसमें शामिल किया गया। इसके पश्चात एक नए सैन्य गठबंधन के लिए बातचीत शुरू हुई, जिसमें उत्तरी अमेरिका (North America) के भी शामिल होने की बात हुई।

4 अप्रैल, 1949 में गठबंधन का विस्तार हुआ। उत्तरी अटलांटिक संधि (North Atlantic treaty) पर हस्ताक्षर किए गए। इसके शुरूआती सदस्य देशों में वेस्टर्न यूनियन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल, इटली, नार्वे, डेनमार्क एवं आइसलैंड शामिल थे।

बेनेलक्स देश कौन कौन से हैं? (which are the Benelux countries?)

हमने आपको ऊपर पोस्ट में बताया कि बीटीओ (BTO) के जरिए गठबंधन का विस्तार करते हुए उसमें बेनेलक्स (Benelux) देशों को भी शामिल किया गया। यहां आपके दिमाग में यह प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि आखिर बेनेलक्स देश कौन कौन से हैं।

दोस्तों, आपको बता दें कि बेनेलक्स तीन पड़ोसी देशों बेल्जियम (Belgium), नीदरलैंड (Netherlands) एवं लक्समबर्ग (luxumberg) का आर्थिक संघ है। बेनेलक्स नाम इन देशों के अंग्रेजी भाषा (english language) के नाम के पहले दो अक्षरों को मिलाकर बनाया गया था।

कौन कौन से देश नाटो के सदस्य हैं? (which countries are the members of NATO?)

दोस्तों, आपको बता दें कि दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं। अब आपको इन देशों के नाम बताते हैं। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, अल्बानिया, बुल्गारिया, बेल्जियम, क्रोएशिया, कनाडा, चेक गणराज्य, डेनमार्क, फ्रांस, एस्तोनिया, यूनान, हंगरी, जर्मनी, इटली, आइसलैंड, लिथुआनिया, लताविया, लक्जमबर्ग, मोंटेनग्रो, उत्तरी मैसेडोनिया, नीदरलैंड, नार्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम एवं तुर्की शामिल हैं। इनमें से 10 देश रूस के एकदम आस पास स्थित हैं।

नाटो के देशों का इस विवाद में क्या रूख है? (what is the attitude of NATO countries in this matter?)

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि चीन पूरी तरह से रूस के साथ है। लेकिन अमेरिका भी पीछे नहीं है। युद्ध की हालत में यूक्रेन को साथ देने की वह पूर्व में घोषणा कर चुका है। उसने अपने नौ हजार सैनिकों को यूक्रेन संकट से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा दिया है। 5,000 सैनिक, जो नाटो का हिस्सा हैं, वे इस वक्त रूस के पड़ोसी पोलैंड (Poland) में हैं। 4,000 सैनिक रोमानिया (Romania) एवं बुल्गारिया (Bulgaria) में हैं।

यद्यपि अमेरिका एवं नाटो देशों ने साफ किया है कि वे अपने सैनिक सीधे यूक्रेन नहीं भेजेंगे। किंतु वे उसे अन्य सहयोग मसलन, अस्त्र-शस्त्र, मेडिकल सुविधा आदि प्रदान करते रहेंगे। जहां तक अन्य देशों की बात है तो वर्तमान विवाद में नाटो के यूरोपीय देश (European countries) अपने व्यापारिक हितों के मद्देनजर अमेरिका जितने हमलावर नहीं हैं।

आपको बता दें कि हाल ही में जर्मनी (Germany) एवं फ्रांस (France) प्रमुख ने मास्को की यात्रा की हैं एवं विवाद को कम करने का प्रयास किया है। ये देश मामले का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं। दरअसल, नार्ड गैस पाइप लाइन (Nord gas pipeline) उनके लिए इस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है। यह गैस पाइप लाइन रूस एवं जर्मनी के बीच करीब करीब तैयार है। गहराते ऊर्जा संकट के बीच यूरोपीय देश इस पाइप लाइन को आवश्यक मानते हैं।

अब साफ है कि यदि नाटो के यूरोपीय देश यूक्रेन के पाले में जाते हैं तो रूस इस पाइप लाइन को रद्द कर सकता है। अलबत्ता, यदि रूस की आर्थिक नाकेबंदी की जाती है तो नाटो के यूरोपीय देशों को साथ देना ही होगा। अमेरिका रूस के बैंकिंग सिस्टम (banking system) तो तोड़ने की पूरी जुगत लगा चुका है। नाटो के यूरोपीय देशों की बात करें तो उसमें केवल ब्रिटेन का ही थोड़ा बहुत रूख अमेरिका से मिलता है। वह यूक्रेन की संप्रभुता का हामी है।

नाटो व रूस-यूक्रेन को लेकर भारत का क्या रूख है? (what is India’s stand on NATO and Russia-ukraine?)

मित्रों, भारत के रूस एवं अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। भारत के 55 फीसदी हथियारों का आयात (import) रूस से होता है, वहीं, पिछले 10 वर्ष में अमेरिका के साथ भी उसके संबंध बहुत बेहतर हुए हैं। यूक्रेन ने एशिया (Asia) में जिस देश में सबसे पहले अपना दूतावास (ambassy) खोला था, वह भारत था।

तभी से भारत के साथ यूक्रेन के आर्थिक (economic) एवं राजनयिक संबंध (diplomatic relations) हैं। भारत (india) ऐसी स्थिति में है कि वह किसी के भी साथ जाकर खड़ा नहीं हो सकता। ऐसे में अभी तक भारत ने तटस्थ रूख अपनाया है। उसने रूस-यूक्रेन विवाद को कूटनीति (diplomacy) के जरिए हल किए जाने की वकालत की है।

यूक्रेन पर तटस्थता की नीति (policy) ही अभी तक सर्वोत्तम है। यही वजह है कि जब अमेरिका समेत 10 देश हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) यानी यूएन (UN) में यूक्रेन पर एक प्रस्ताव लेकर आए थे तो भारत ने किसी के पक्ष में वोटिंग (voting) नहीं की। भारत के इस मामले में तटस्थ रहने की एक और भी वजह है।

आपको बता दें कि रूस ने अभी तक भारत-चीन सीमा विवाद पर तटस्थ रूख अपनाया है। यदि ऐसे में भारत यूक्रेन का समर्थन करता है कूटनीतिक रूप से रूस चीन के पक्ष में खड़ा हो जाएगा। यह भारत के लिए ठीक नहीं होगा। भारत के लिए चिंता का सबब इस समय यूक्रेन में फंसे करीब 20 हजार भारतीय भी हैं, जिनमें से 18 हजार छात्र वहां मेडिकल (medical) की पढ़ाई करने के लिए गए थे।

नाटो की फुल फाॅर्म क्या है?

नाटो की फुल फाॅर्म नार्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन है। इसे हिंदी में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन भी पुकारा जाता है।

नाटो का गठन कब हुआ?

नाटो का गठन आज से करीब 73 वर्ष पूर्व 4 अप्रैल, 1949 को हुआ था।

नाटो में कितने सदस्य देश हैं?

नाटो में कुल 30 सदस्य देश हैं, इनके नामों की जानकारी हमने आपको ऊपर पोस्ट में दे दी है।

बेनेलक्स देश कौन से होते हैं?

बेनेलक्स देशों में तीन देश बेल्जियम, नीदरलैंड एवं लक्जमबर्ग शामिल हैं। इनके नाम के शुरूआती अक्षरों को मिलाकर बेनेलक्स बनाया गया है। यह इन राष्ट्रों का आर्थिक संघ है।

क्या यूक्रेन पहले रूस का ही हिस्सा था?

जी हां, 1917 से पूर्व यूक्रेन रूस का ही हिस्सा था।

यूक्रेन नाटो का सदस्य क्यों बनना चाहता है?

अपनी आजादी को बरकरार रखने के लिए यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है, क्योंकि वह अपने दम पर रूस का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है।

नाटो के यूरोपीय देशों का रूस के प्रति क्या रूख है?

नाटो के यूरोपीय देशों का अपने व्यापारिक हितों के मद्देनजर अभी रूस के प्रति हमलावर रूख नहीं है।

रूस-यूक्रेन विवाद में भारत का क्या रूख है?

रूस-यूक्रेन विवाद में भारत का रूख तटस्थता का है।

इस वक्त यूक्रेन को लेकर भारत सरकार की सबसे बड़ी चिंता क्या है?

इस समय यूक्रेन को लेकर भारत सरकार की सबसे बड़ी चिंता उसके वहां फंसे करीब 20 हजार नागरिक हैं। इनमें से 18 हजार वहां मेडिकल की पढ़ाई करने गए छात्र हैं।

दोस्तों, हमने आपको इस पोस्ट में नाटो क्या है? रूस-यूक्रेन विवाद क्या है? रूस यूक्रेन विवाद का कारण के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उम्मीद है कि जानकारी बढ़ाने के उद्देश्य से यह पोस्ट (post) आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी। यदि आप इसी प्रकार की जानकारीप्रद पोस्ट हमसे चाहते हैं तो इसके लिए हमें नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में कमेंट करके बता सकते हैं। आपकी प्रतिक्रियाओं का हमेशा की भांति स्वागत है। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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