सभासद कौन होता है? योग्यता, वेतन व चुनाव प्रक्रिया

|| सभासद कौन होता है? | Sabhasad ko kya kahate hain | सभासद का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है? | सभासद किसे कहते हैं? | सभासद को चुने जाने की प्रक्रिया | सभासद बनने के लिए योग्यता | सभासद के कार्य क्या होते हैं? | Sabhasad ke adhikar | Sabhasad salary in India in Hindi ||

Sabhasad kise kahte hai :- बहुत लोगों के मन में स्थानीय निकाय के होने वाले चुनाव और उनके द्वारा चुने जाने वाले प्रतिनिधियों के नाम को लेकर संशय की स्थिति बनी रहती है। हमारे मन में यह तो स्पष्ट होता है कि हमारे शहर, राज्य या देश का प्रतिनिधित्व कौन करता है लेकिन स्थानीय स्तर पर जो चुनाव संपन्न करवाए जाते हैं, उनको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होती है। अब इसमें स्थानीय स्तर पर तीन अलग अलग चुनाव होते हैं जिन्हें हम नगर निगम, नगर परिषद तथा नगर पालिका के नाम से जानते (Sabhasad ko kya kahate hain) हैं।

हालाँकि आज के समय में नगर परिषद को खत्म कर उसे नगर पालिका की संज्ञा दे दी गयी है और नगर पालिका को नगर पंचायत के नाम से जाना जाने लगा है। इन सभी स्थानीय निकायों में तरह तरह के लोग चुन कर आते हैं जिन्हें मुख्य तौर पर पार्षद ही कहा जाता है। अब वह चाहे नगर निगम में लड़ रहा हो या नगर पालिका में या नगर पंचायत में, उसे पार्षद ही कहा जाता है। किन्तु प्रश्न यहीं समाप्त नहीं होता है, बल्कि उन पार्षदों के द्वारा जो ऊपर के पद बनाये जाते हैं, उन्हें क्या कहा जाता (Manonit sabhasad kya hota hai) है।

अब इसमें कुछ पदों के नाम महापौर, सभापति, अध्यक्ष इत्यादि होते हैं किन्तु इन सभी के बीच एक पद और होता है जिन्हें हम सभासद के नाम से जानते हैं। तो यह सभासद क्या होते हैं और क्या यह किसी अध्यक्ष के पद पर होते हैं या इनकी कुछ और भूमिका होती है। आज के इस लेख में हम आपके साथ सभासद कौन होता है और उसकी क्या कुछ भूमिका होती है, इसी के बारे में ही बातचीत करने वाले हैं। आइये जाने सभासद के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण (Sabhasad kon hota hai) जानकारी।

सभासद कौन होता है? योग्यता, वेतन व चुनाव प्रक्रिया

आज के इस लेख में आपको सभासद के बारे में सब कुछ पता चलने वाला है। भारत को स्वतंत्र हुए कई वर्ष बीत चुके हैं और भारत की शीर्ष सत्ता के द्वारा स्थानीय निकाय का प्रबंध किये हुए भी दशकों बीत चुके हैं। फिर भी लोगों को आज के समय में भी इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है या वे केवल अपने यहाँ की स्थानीय निकाय के बारे में ही जानते हैं, उन्हें बाकि निकायों के बारे में इतनी जानकारी नहीं होती (Sabhasad kya hote hain) है।

सभासद कौन होता है योग्यता, वेतन व चुनाव प्रक्रिया

यही कारण है कि आज के इस लेख में हम आपके साथ स्थानीय निकाय के पदों में एक प्रमुख पद सभासद के बारे में विचार विमर्श करने वाले हैं। अधिकतर लोगों को यह तो पता होता है कि उनके यहाँ का पार्षद कौन है तथा वहां की स्थानीय निकाय का प्रतिनिधित्व कौन व्यक्ति कर रहा है किन्तु उन्हें अपने यहाँ के सभासद के बारे में इतनी जानकारी नहीं होती (Sabhasad kon hote h) है। यही कारण है कि आज का यह लेख सभासद के पद के ऊपर ही लिखा गया है ताकि आप आगे से अपने स्थानीय प्रतिनिधियों से अच्छे से प्रश्न उत्तर कर सकें।

अब सभासद कौन होता है, उसकी क्या कुछ योग्यताएं होती है, वह किस तरह से चुना जाता है, उसके क्या कुछ कार्य होते हैं, इत्यादि सभी विषयों के बारे में जानने से पहले आपको स्थानीय निकाय के चुनाव और उनकी प्रक्रिया के बारे में जानना जरुरी हो जाता है। तो आइये जाने सभासद के बारे में शुरू से लेकर अंत तक हरेक बारीक जानकारी विस्तार से।

स्थानीय निकाय के चुनाव क्या होते हैं? (Sthaniya nikay chunav in Hindi)

भारत एक संघीय ढांचा है और यहाँ पर समय समय पर तरह तरह के चुनाव होते हैं। तो जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ था तब यहाँ पर केवल दो तरह के ही चुनाव होते थे जिनमे सांसद के जरिये प्रधानमंत्री का चुनाव तथा विधायकों के जरिये मुख्यमंत्री का चुनाव था। इसमें प्रधानमंत्री पूरे देश का जबकि मुख्यमंत्री अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करता था। उन्हीं के पास ही पूरे शासन तंत्र की बागडौर होती थी जिन्हें वे अलग अलग पदों पर काम कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों को दिशा निर्देश देकर करवाते थे।

फिर एक समय बाद भारत सरकार व राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर भी राजनीति स्थापित करने की आवश्यकता अनुभव हुई। इसी के तहत ही शहर व ग्राम स्तर पर स्थानीय निकाय स्थापित किये गए जिन्हें वहां की जनसँख्या घनत्व के अनुसार बाँट दिया गया। इसमें सबसे बड़ा नगर निगम, फिर नगर पालिका और उसके बाद नगर पंचायत की व्यवस्था की गयी। साथ ही गांवों में ग्राम पंचायत का गठन किया गया। अब राजनीति में स्थानीय निकाय के द्वारा इन लोगों का भी प्रवेश हो गया और शक्तियों तथा कर्त्तव्यों का और अधिक बंटवारा हो गया।

एक तरह से राजनीतिक स्तर पर पैसा खाने वाले लोग बढ़ गए और इसी के साथ ही प्रजा को यह झंझट हो गया कि हम अपना काम करवाने के लिए या ना होने के लिए किस व्यक्ति को कोसे। क्या स्थानीय निकाय को कोसा जाए या विधायक को या फिर सांसद को या फिर प्रशासनिक अधिकारियों को या खुद को ही उन्हें वोट देने के लिए कोसा जाए।

सभासद किसे कहते हैं? (Sabhasad kise kahte hai)

तो बात हो रही थी सभासद की। आपने ऊपर यह तो जान लिया कि स्थानीय निकाय क्या होते हैं और अब बारी है सभासद को जानने की। तो यहाँ आप यह जान लें कि नगर निगम, नगर पालिका या नगर परिषद व नगर पंचायत में वहां के स्थान व जनसँख्या के अनुसार वार्ड का निर्माण किया जाता है। हर वार्ड पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों व निर्दलीय रूप से कई तरह के व्यक्ति चुनाव में खड़े होते हैं। इसके बाद जो व्यक्ति चुन लिया जाता है वह उस वार्ड का पार्षद कहलाया जाता है।

इसके बाद चुने हुए पार्षद वहां की स्थानीय परिषद में बैठते हैं जिसे हम वहां के शहर की सभा भी कह सकते हैं। अब उस सभा में जो जो पार्षद चुन कर आये हैं, उन्हें ही वहां का सभासद कह दिया जाता है। एक तरह से कहा जाए तो किसी भी शहर की स्थानीय निकाय में चुने गए पार्षदों को ही सभा में बैठने पर वहां का सभासद कह कर संबोधित किया जाता है। सभासद का अर्थ होता है उस सभा का सदस्य।

जिस तरह से किसी व्यक्ति को सांसद का चुनाव लड़ने पर और उसके जीत जाने पर सांसद कहा जाता है लेकिन जब वह लोकसभा में भाग ले रहा होता है तो उसे सांसद के साथ साथ लोकसभा सदस्य कह कर भी संबोधित किया जाता है। ठीक उसी तरह पार्षद जब सभा में बैठा होता है या जब वहां के स्थानीय निकाय की बैठक चल रही होती है तब उस बैठक के अंदर उपस्थित पार्षद को सभासद कह कर संबोधित किया जाता है।

सभासद बनने के लिए योग्यता (Sabhasad eligibility in Hindi)

अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि यदि आप सभासद का चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उसके लिए क्या कुछ योग्यता निर्धारित की गयी है ताकि बाद में चल कर कोई दिक्कत ना होने पाए। ऐसे में एक सभासद का चुनाव लड़ने के लिए कानूनन तौर पर कुछ ही योग्यता निर्धारित की गयी है लेकिन नैतिक तौर पर उसे कई तरह की योग्यताओं का पालन करना होता है जो कि आज के समय में दुर्लभ है। फिर भी भारतीय कानून के अनुसार एक सभासद के अंदर इन योग्यताओं का होना अनिवार्य है।

  • वह व्यक्ति भारत का स्थानीय नागरिक होना जरुरी है और वह विदेश से आकर बसा हुआ नहीं होना चाहिए। उसके माता पिता भी भारतीय होने आवश्यक है तथा वह भारत में कई वर्षों से रह रहा हो।
  • इसी के साथ ही वह जिस भी वार्ड से सभासद का चुनाव लड़ने जा रहा है वह उस वार्ड का भी स्थानीय निवासी होना आवश्यक है तथा साथ ही वहां की वोटिंग लिस्ट में भी उसका नाम होना जरुरी है।
  • उसे किसी तरह के आपराधिक मुकदमे के तहत सजा मिली हुई नहीं होनी चाहिए और ना ही उसे भारतीय न्याय प्रणाली के द्वारा किसी तरह का कारावास दिया गया हो या वह पहले से ही कारावास में ना हो।
  • उसे कम से कम दसवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ होना जरुरी है। हालाँकि इसे लेकर अलग अलग राज्यों में अलग अलग नियम बनाये गए हैं।
  • वह अपने यहाँ के वार्ड के लिए चुनी गयी सीट पर आरक्षण के अनुसार ही लड़ पायेगा। अब इसमें भी भारतीय संविधान के अनुसार अलग अलग राज्यों में आरक्षित वर्ग के लिए सीट रखी गयी है और यहाँ तक कि महिलाओं के लिए भी सीट को आरक्षित किया गया है।
  • वह पहले से ही किसी सरकारी विभाग में कर्मचारी नहीं होना चाहिए अर्थात किसी सरकारी विभाग का कर्मचारी सभासद का चुनाव नहीं लड़ सकता है। यदि उसे सभासद का चुनाव लड़ना है तो पहले उसे अपनी नौकरी से त्याग पत्र देना होगा।
  • इसी के साथ ही उसे अपने वार्ड की स्थानीय भाषा का ज्ञान होना भी जरुरी होता है। हालाँकि यह कानूनन रूप से जरुरी तो नहीं है लेकिन नैतिक रूप से आवश्यक होता है।

सभासद को चुने जाने की प्रक्रिया (Sabhasad election process in Hindi)

अब जब आपने सभासद के बारे में इतनी सब जानकारी ले ली है तो अब बारी आती है कि सभासद का चुनाव किस तरह से आयोजित करवाया जाता है। तो इसकी प्रक्रिया एकदम सामान्य होती है लेकिन यह दो भागो में बंटी हुई होती है। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि किसी व्यक्ति को सभासद बनना है तो उसके पास सभासद बनने के लिए दो तरह के विकल्प उपलब्ध होते हैं जिनमे से वह किसी भी एक विकल्प को चुन सकता है।

इसमें से जो पहला विकल्प होता है वह होता है चुनावी प्रक्रिया में भाग लेना जो चुनाव आयोग करवाता है और उसमे जनता के द्वारा ही अपने यहाँ के सभासद को चुना जाता है। इसके लिए हर पांच वर्ष में उस राज्य की सभी तरह की स्थानीय निकाय में चुनावों का आयोजन करवाया जाता है और उसके बाद वहां सभासद का चुनाव होता है। इसका नियंत्रण वहां के स्थानीय चुनाव आयोग के साथ साथ राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हाथ में होता है।

वहां पर हर वार्ड से अलग अलग तरह के प्रत्याशी उतारे जाते हैं जो या तो राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी से संबंधित होते हैं या राज्य स्तर की राजनीतिक पार्टी से या फिर वे निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे होते हैं। इसके बाद एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत लोगों के द्वारा सभी प्रत्याशियों में से किसी एक व्यक्ति को अपना सभासद चुना जाता है। इसके लिए उस वार्ड के जितने भी लोग चुनावी प्रक्रिया में भाग लेते हैं और अपने अपने वोट देते हैं, उनमे से सभी के वोट अंत में गिने जाते हैं। उसके बाद जिस भी प्रत्याशी को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे ही वहां का सभासद मान लिया जाता है।

इसी तरह सभासद बनने की दूसरी प्रक्रिया के तहत होता है वहां के स्थानीय मंत्री के द्वारा नामित सभासदों का चुनाव किया जाना। इनकी संख्या सीमित होती है और इनके अधिकार भी सीमित ही होते है। साथ ही ये किसी वार्ड का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं बल्कि बस उस सभा के नामित सभासद होते हैं जिन्हें उसकी कार्यवाही में भाग लेने और अपना पक्ष रखने का अधिकार होता है। तो आप इस प्रक्रिया के तहत भी सभासद बन सकते हैं।

सभासद का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है?

अब आपको यह भी जान लेना चाहिए की किसी भी सभासद का कार्यकाल कितने वर्षों के लिए होता है या उसे भारतीय चुनावी प्रक्रिया के तहत कितने वर्षों तक अपने पद पर बने रहने दिया जाता है। तो इसके अनुसार एक सभासद को सभासद चुने जाने के बाद के पांच वर्षों तक उस वार्ड का सभासद रहना होता है। हालाँकि वह अपनी इच्छा से कभी भी त्याग पत्र दे सकता है। यदि वह त्याग पत्र नहीं देता है तो फिर वह अगले चुनाव होने तक सभासद रहता है।

हालाँकि भारत सरकार के द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाये जाने, राजकीय स्तर पर स्थानीय निकाय के भंग हो जाने, न्यायिक प्रक्रिया के तहत कोई अवरोध उत्पन्न होने पर वह समय से पहले भी सभासद के पद से हटाया जा सकता है। उदाहरण के रूप में यदि उस पर कोई आपराधिक मुकदमा चल रहा है और उस पर आरोप सिद्ध हो जाते हैं तथा भारतीय न्याय व्यवस्था उसे कारावास का दंड सुना देती है तो उसे तुरंत सभासद के पद से हटा दिया जाता है।

सभासद के कार्य क्या होते हैं? (Sabhasad ke adhikar)

आपको यह भी जान लेना चाहिए कि यदि आप अपने यहाँ के सभासद चुने जाते हैं तो आपके क्या कुछ कार्य होते हैं। तो इसमें सबसे प्रमुख कार्य अपने वार्ड का विकास करवाना, जो भी स्थानीय निकाय के कार्य होते हैं, उसे अपने वार्ड में फलीभूत करवाना, लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में बताना, सड़कों का निर्माण करवाना, स्वच्छता का ध्यान रखना, अतिक्रमण को रोकना व उन्हें हटाना, अपराध पर नियंत्रण, लोगों में जागरूकता फैलाना इत्यादि होते हैं।

इनके अलावा अपने वार्ड की स्ट्रीट लाइट, उद्यान, सार्वजानिक शौचालय इत्यादि स्थलों का रखरखाव करना और उन्हें बनाना भी एक सभासद का ही कार्य होता है। इसी के साथ ही जब भी स्थानीय निकाय की सभा आयोजित हो तो वहां अपने वार्ड से जुड़े मुद्दों को उठाना तथा नए विकास कार्यों व उपायों के बारे में बताना भी एक सभासद का ही कार्य होता है।

सभासद की सैलरी कितनी होती है? (Sabhasad salary in India in Hindi)

अंत में आपको यह भी जान लेना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति को सभासद चुना जाता है तो भारतीय संविधान के अनुसार उसका वेतन कितना तक होता है। तो यहाँ हम आपको बता दें कि यह तो पूर्ण रूप से वहां की राज्य सरकार पर ही निर्भर करता है और वहां की स्थिति कैसी है, इस पर भी बहुत सीमा तक निर्भर रहता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि उत्तर प्रदेश के सभासद का वेतन अलग होगा तो वहीं हिमाचल प्रदेश के सभासद का वेतन अलग होगा।

हालाँकि सामान्य तौर पर एक सभासद का वेतन 30 से 60 हज़ार रुपये के बीच में होता है। इसी के साथ साथ उसे निजी तौर पर भारत सरकार व राज्य सरकार के द्वारा अन्य तरह की सुविधाएँ भी मिलती है जिनका वह लाभ उठा सकता है। कुल मिलाकर एक सभासद महीने के 50 हज़ार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक कमा सकता है।

सभासद किसे कहते हैं – Related FAQs 

प्रश्न: सभासद का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है?

उतर: सभासद का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।

प्रश्न: सभासद की सैलरी कितनी होती है?

उतर: सभासद की सैलरी 30 से 60 हजार के बीच में होती है।

प्रश्न: सभासद के कार्य क्या होते हैं?

उतर: सभासद के कार्यों के बारे में हमने आपको इस लेख में बताया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: सभासद किसे कहते हैं?

उतर: सभासद के बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने ऊपर के लेख में बताया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

तो इस तरह से आपने इस लेख के माध्यम से जाना कि सभासद कौन होता है सभासद बनने के लिए क्या योग्यता होती है सभासद को चुने जाने की प्रक्रिया क्या है सभासद का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है सभासद के कार्य क्या होते हैं और साथ ही जाना की सभासद की सैलरी कितनी होती है। आशा है कि जो जानकारी लेने आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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