सैटेलाइट क्या है? सैटेलाइट कैसे काम करता है? इसके क्या-क्या उपयोग हैं?

आपने सैटेलाइट का नाम जरूर सुना होगा। जैसे आपको टीवी का घर बैठे लुत्फ लेना हो, मौसम से जुड़ी जानकारी लेनी हो या फिर कोई इंटरनेशनल काॅल करनी हो तो यह काम सैटेलाइट के जरिये होता है। वैज्ञानिकों ने यह सैटेलाइट बनाकर पृृथ्वी की कक्षा में छोड़े हैं, इन्हीं के जरिये ताकि उनसे मौसम की जानकारी लेना, टीवी प्रसारण आदि संभव हो सका है। दोस्तों, आप जानते ही होंगे कि चांद भी एक सैटेलाइट या उपग्रह है, यह लगातार पृृथ्वी ग्रह के चक्कर लगाता है। आज इस पोस्ट में हम आपको यही बताएंगे कि सैटेलाइट क्या है? यह कैसे काम करता है? इसके क्या-क्या उपयोग हैं आदि।

सैटेलाइट क्या है? What is satellite?

सैटेलाइट को हिंदी में उपग्रह कहा जाता है। जैसे पृृथ्वी ग्रह का उपग्रह चांद है। एक उपग्रह ग्रह के चक्कर काटता है यानी अंतरिक्ष की बात करें तो छोटा object बड़े के चक्कर काटता है। जिस तरह चांद पृृथ्वी के चक्कर काटता है। इसी तरह वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए यह सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होकर वहां से सिग्नल भेजते हैं, जिन्हें स्कैन कर वैज्ञानिक इमेजिंग, नेविगेशन और कम्युनिकेशन में इस्तेमाल करते हैं। मसलन इनसे मिलने वाले सिग्नल के जरिये ही टीवी देखना, मौसम का हाल बताना, मोबाइल में जीपीएस नेविगेशन, फोन पर बातचीत आदि संभव हुआ है। कार्य और इस्तेमाल के हिसाब से इनके आकार अलग-अलग होते हैं।

मसलन यह टीवी के आकार के बराबर भी हो सकते हैं और ट्र्क के बराबर भी। लगे हाथ आपको यह भी बता दें कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अब चौथी महाशक्ति कहलाता है। हाल ही में भारत ने कई मिसाइलें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित की हैं। वह अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को लगातार मजबूत कर रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चीन के साथ उसका तनाव चल रहा है और अब तो नेपाल जैसे छोटे देश भी चीन की शह पर भारत को आंखें दिखाने की गुस्ताखी कर रहा है।

सैटेलाइट क्या है? सैटेलाइट कैसे काम करता है? इसके क्या-क्या उपयोग हैं?

सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं? Types of Satellite in hindi –

दोस्तों, आइए अब आपको बताते हैं कि सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं। मित्रों, यह तीन प्रकार के होते हैं। लो अर्थ आरबिट सैटेलाइट, मीडियम अर्थ आरबिट सैटेलाइट और हाई अर्थ आरबिट सैटेलाइट। कुछ सैटेलाइट इमेज और स्कैनिंग के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इन्हें लो अर्थ आरबिट सैटेलाइट भी कहते हैं। इसकी वजह यह है कि ये पृृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं। इनकी उंचाई 160 किलोमीटर से लेकर 1600 किलोमीटर तक होती है।

ये दिन में कई बार पृृथ्वी के चक्कर पूरे कर लेते हैं। मीडियम अर्थ आरबिट सैटेलाइट का उपयोग नेविगेशन के लिए किया जाता है। यह 12 घंटे में पृृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेते हैं। इनकी उंचाई 10 हजार किलोमीटर से 20 हजार किलोमीटर तक होती है।

कम्युनिकेशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सैटेलाइट हाई अर्थ आरबिट सैटेलाइट कहलाते हैं। यह धरती से करीब 36 हजार किलोमीटर की दूरी पर होते हैं। यह पृृथ्वी की गति के साथ ही उसका चक्कर लगाते हैं। आपको बता दें कि 1975 से लेकर अब तक भारत करीब सौ से अधिक सैटेलाइट प्रक्षेपित यानों के जरिये अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है।

आपको यह भी बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे इंगलिश में Indian space research organization यानी ISRO पुकारा जाता है, वह भारतीय Satellite का डिजाइन और निर्माण करता है।

सैटेलाइट कैसे काम करते हैं? How do Satellites Work?

दोस्तों, सैटेलाइट एक निर्धारित तरीके से काम करते हैं। सैटेलाइट के दोनों ओर सोलर पैनल लगे हुए होते हैं। इनको इसी से ऊर्जा अर्थात बिजली मिलती है। इनके बीच ट्रांसमीटर और रिसीवर लगे होते हैं। यही ट्रांसमीटर और रिसीवर सिग्नल को प्राप्त करने और भेजने का काम करते हैं। इसके अलावा इनमें कुछ कंट्रोल मोटर भी लगी होती हैं। जब भी सैटेलाइट की पोजीशन या एंगल को बदलना होता है तो यह कार्य कंट्रोल मोटर के जरिये किया जाता है।

सैटेलाइट को किस कार्य के लिए तैयार किया है, इसकी जानकारी आपको Satellite में देखकर मिल जाती है। उदाहरण के लिए यदि सैटेलाइट को पृृथ्वी की इमेज लेने के लिए बनाया गया है तो इस सैटेलाइट में कैमरे भी लगाए गए होंगे। इसी तरह स्कैनिंग के कार्य के लिए सैटेलाइट तैयार किया गया होगा तो उस पर स्कैनर लगाए गए होंगे।

आपको बता दें कि सैटेलाइट से सर्वाधिक कम्युनिकेशन से जुड़े कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इसे बेहतर करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों के बीच होड़ भी लगती है ताकि उनकी कंपनी का नेटवर्क सबसे बेहतर हो और वह इसके आधार पर अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को अपने पाले में खींचने में कामयाब हो सकें।

हवा में कैसे टिके रहते हैं सैटेलाइट? How do satellites stay in the air?

आपके मन में यह सवाल अवश्य आया होगा कि यदि सैटेलाइट ट्र्क के आकार के भी हैं तो वह हवा में टिके कैसे रहते हैं। जमीन पर क्यों नहीं गिरते तो आपको यह बता दें कि इसका एक सामान्य सा नियम है। नियम यह कि यदि किसी object को अंतरिक्ष में रहना है तो उसे अपनी एक गति से किसी बड़े object का चक्कर लगाते रहना होगा। इनकी स्पीड पृृथ्वी के ग्रेविटेशनल फोर्स यानी गुरूत्वाकर्षण बल को अपने उपर हावी नहीं होने देती।

लिहाजा, Satellite आसानी से हवा में टिके रहते हैं।  बात गुरूत्वाकर्षण बल की निकली है तो आपको बता दें कि ग्रेविटी के सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले न्यूटन को जिस पेड़ से सेब गिरने पर ग्रेविटी से जुड़ा ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह पेड़ आज भी खड़ा है और इस वक्त उसकी उम्र करीब साढ़े तीन सौ साल हो चुकी है।

दुश्मन पर निगरानी के काम भी आता है सैटेलाइट –

दोस्तों, आपको बता दें कि सैटेलाइट दुश्मन पर निगरानी के काम भी आता है। जैसे सीमा पर क्या हो रहा है, इसकी इमेज के जरिये पता लगाया जा सकता है। आपको बता दें कि इस वक्त भारत के पास कुल सात Military सैटेलाइट हैं। दोस्तों, आपको जानकारी दे दें कि बहुत से देश दुश्मन देश का सैटेलाइट नष्ट करने के लिए एंटी सैटेलाइट का सहारा लेते हैं। यह अंतरिक्ष में दुश्मन के खिलाफ एक बड़ा हथियार होते हैं। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि यह दुश्मन की सैटेलाइट को नष्ट करने के काम आते हैं।

आपको यह जानकर अवश्य अच्छा लगेगा कि हमारे देश भारत ने भी एंटी सैटेलाइट यानी ए सेट बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। इतना ही नहीं दोस्तों, उन्होंने अंतरिक्ष में एक Satellite को तीन मिनट में ध्वस्त करके इसका धांसू ट्रायल भी किया। वैज्ञानिकों की यह सफलता हर देशवासी के लिए गर्व का विषय है। भारत अपने अंतरिक्ष मिशन पर करोड़ों रूपये खर्च करता है। इसकी उपलब्धियों के जरिये ही देश सुरक्षित और दुश्मन देशों पर प्रभाव डालने में कामयाब रहता है।

मुसीबत के वक्त काम आते हैं सैटेलाइट फोन –

सैटेलाइट फोन लैंडलाइन या टावर की जगह उपग्रह से सिग्नल प्राप्त करता है। इनके जरिये किसी भी स्थान से फोन किया जा सकता है। चाहे वह रेगिस्तान हो या पहाड़। समुद्र हो या फिर कोई जंगल। आपने देखा होगा कि जब भी ट्रैकर जंगल या पहाड़ पर निकलते हैं तो उनके पास सैटेलाइट फोन होते हैं, वह इसीलिए ताकि वह आपस में बेहतरीन तरीके से कम्युनिकेशन कर सकें और किसी भी मुसीबत में फंसें तो सूचना दे सकें।

इसके अलावा पुलिस, फौज, आपदा रिस्पांस बलों के पास भी यह Satellite फोन होते हैं। विशेष रूप से आपदा के वक्त बल के जवानों का एक दूसरे संपर्क मुश्किल हो जाता है। बल के जवान कभी बाढ़ तो कभी अग्निकांड के वक्त आम जान माल की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। उनके बीच संवाद का Satellite एक अहम जरिया होता है। इसी के जरिये वह प्रभावित क्षेत्रों के हालात का हाल अपने उच्चाधिकारियों तक पहुंचाते हैं।

इस सूचना के आधार पर ही मदद और बचाव की व्यवस्था संभव हो पाती है। इस संबंध में उत्तराखंड में सन् 2013 में केदारनाथ में आई आपदा का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। यहां सैटेलाइट फोन के जरिये ही जवानों ने जंगलों के भीतर और पहाड़ों पर लापता लोगों की खोज कर उनका बचाव सुनिश्चित किया।

NASA भी देता है बच्चों को अंतरिक्ष और सैटेलाइट संबंधित जानकारी –

नासा यानी National aeronautics and space administration (NASA) भी स्कूली बच्चों के लिए एक कार्यक्रम चलाता है। इसमें विभिन्न स्कूलों के बच्चों को नासा का दौरा कराया जाता है। यहां वह अंतरिक्ष, पृथ्वी, चंद्रमा और तमाम सेटेलाइट के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। दोस्तों, आपको बता दें कि नासा की इस पहल का मकसद बच्चों में वैज्ञानिक अभिरुचि को विकसित करना है और अंतरिक्ष के प्रति उनमें दिलचस्पी को बढ़ाना है।

देश के विभिन्न स्कूलों के बच्चे नासा जाकर अंतरिक्ष के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। नासा भ्रमण कार्यक्रम को विभिन्न स्कूल अपने ब्रोशर में प्राथमिकता से प्रकाशित करते हैं। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए छात्रों को अलग से एक निश्चित धनराशि चुकानी पड़ती है।

अंतिम शब्द –

मित्रों, सैटेलाइट स्पेस से जुड़ा विषय जरूर है, लेकिन अन्य क्षेत्रों के लिए भी इसका महत्व कम नहीं होता। विज्ञान के विद्यार्थियों को तो Satellite से जुड़ी जानकारी होती ही है, लेकिन अन्य विषयों के विद्यार्थियों को भी प्रतियोगी परीक्षाओं के मद्देनजर सैटेलाइट से जुड़ी जानकारी पढ़ाई जाती है। अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं के सामान्य अध्ययन के वर्ग में इससे जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके प्रकार और इसके इस्तेमाल पर प्रश्न आ जाते हैं। ऐसे में छात्रों को अपनी तैयारी मजबूत रखनी चाहिए।

खास तौर पर सैटेलाइट के विषय में अध्ययन अवश्य करना चाहिए। ग्रुप डिस्कशन यानी जीडी में भी कई बार Satellite पर डिस्कशन कराया जाता है। एक कक्षा दस के विद्यार्थी से भी यह अपेक्षा होती है कि वह भारत के अंतरिक्ष में कदम और सैटेलाइट के विषय में जानता होगा।

सैटेलाइट के बारे में पढ़कर ही ढेरों बच्चे बड़े होकर अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने का सपना सजाते हैं। इसमें से ढेरों कामयाब भी होते हैं और इसरो में नियुक्ति भी प्राप्त करते हैं। हालांकि दोस्तों, आपको बता दें कि पिछले कुछ समय से वैज्ञानिक बनने के प्रति युवाओं में दिलचस्पी लगातार घटी है इसका एक कारण इसकी सेवा शर्तों में वर्तमान केंद्र सरकार के समय में हुए बदलाव भी माने जा सकते हैं। एक बात अलबत्ता, तय है कि सैटेलाइट के क्षेत्र में देश उत्तरोत्तर प्रगति कर रहे हैं।

दोस्तों, हमने अभी आपको सैटेलाइट के बारे में विस्तार से जानकारी दी। यदि आप ऐसे ही रोचक विषयों पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो उसके लिए आपको नीचे दिए गए कमेंट बाॅक्स में कमेंट करके अपनी बात हम तक पहुंचानी होगी। तो फिर देर किस बात की, कमेंट करिए और बताइए अपना मनपसंद विषय। आपकी प्रतिक्रियाओं/सुझावों की हमें सदैव की भांति प्रतीक्षा है।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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