स्कूल कैसे खोलें? | भारत में स्कूल खोले जाने की प्रक्रिया | School kaise khole

School kaise khole :- बच्चों को सही स्कूल में पढ़ाने का सपना हर माता पिता का होता है। जैसे ही बच्चा पैदा होता है तो उसके माता पिता को सबसे अधिक चिंता उसकी पढ़ाई को लेकर ही होती है। मेरा बच्चा क्या पढ़ेगा, कौन से स्कूल में पढ़ेगा, उसके लिए क्या बेस्ट रहेगा, इत्यादि कई प्रश्न एक माता पिता के दिमाग में घूम रहे होते हैं। अब छोटे बच्चों के लिए स्कूल तो हर मोहल्ले में खुले हुए होते हैं जिन्हें हम प्ले स्कूल या किंडरगार्टन भी कहते (Apna school kaise khole) हैं।

स्कूल भी एक तरह के नहीं बल्कि कई तरह के होते हैं जो बच्चों की कक्षा के अनुसार अलग अलग स्तर के होते हैं। साथ ही स्कूल खोलना कोई एक दिन का काम नहीं होता है और ना ही यह कोई प्रॉपर बिज़नेस होता है। वह इसलिए क्योंकि यह पूर्ण रूप से बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ बिज़नेस होता है। पहले के समय के अनुसार आज के समय में बहुत ज्यादा परिवर्तन आ गया है और विभिन्न स्कूलों के बीच में प्रतिस्पर्धा भी बहुत बढ़ गयी (New school kaise khole) है।

ऐसे में आज के इस लेख में हम आपके साथ इसी के बारे में ही बात करने वाले हैं। यदि आप अपना खुद का स्कूल खोलने को इच्छुक हैं और इसके लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए, इसके बारे में सोच रहे हैं तो आज हम आपको उसी के बारे में ही बताने वाले हैं। तो आइये जाने किस तरह से आप भी अपना खुद का स्कूल खोल सकते (English medium school kaise khole) हैं।

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स्कूल कैसे खोलें? (School kaise khole)

जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि स्कूल खोलना कोई सरल और चुटकी में हो जाने वाला काम नहीं है। वहीं यदि आप स्कूल खोल भी लेते हैं तो इसे चलाने के लिए बहुत परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। इसलिए आपको बहुत सोच समझकर और सब चीज़ों को ध्यान में रखकर स्कूल को खोलने की आवश्यकता होती (School kaise khol sakte hain) है। उदाहरण के तौर पर स्कूल में कौन सा बोर्ड होगा, किस माध्यम में पढ़ाई होगी, स्टाफ कैसा होगा, इत्यादि।

School kaise khole

ऐसे में अब हम एक एक करके उन सभी बातों के बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं जो स्कूल को खोलने के लिए जरुरी होती है। यहाँ आपको एक भी पॉइंट को मिस नहीं करना चाहिए क्योंकि स्कूल खोलने के लिए हरेक कदम निर्णायक होता है। तो आइये जाने स्कूल को खोलने और उसे सही से चलाने के लिए आपको क्या कुछ करना (School kaise kholte hain) होगा।

भाषा का चयन करना

यदि आप स्कूल शुरू करने जा रहे हैं तो सबसे पहली जो चीज़ करनी होगी, वह है स्कूल में किस भाषा में पढ़ाई करवायी जाएगी, उसके बारे में देखना। कहने का अर्थ यह हुआ कि स्कूल इंग्लिश मीडियम होगा या हिंदी मीडियम या फिर आप जिस भी राज्य में रहते हैं, उसकी भाषा का मीडियम होगा। स्कूल में भाषा के आधार पर ही बच्चे प्रवेश लेते (School kaise chalaye) हैं।

पहले के समय में स्थानीय भाषाओं और हिंदी मीडियम के स्कूल ही प्रचलन में थे लेकिन वर्तमान समय में अंग्रेजी ने अपना प्रभुत्व जिस तरह से बनाया है, उसके हिसाब से इंग्लिश मीडियम स्कूल की भरमार हो गयी है। ऐसे में आप जिस भी जगह पर स्कूल खोलने जा रहे हैं, वहां की स्थिति का आंकलन कर ही स्कूल किस भाषा में खोलना है, उसका निर्धारण (School kholne ke liye kya kare) करें।

स्कूल का टाइप

अब स्कूल की भाषा का चयन हो गया है तो स्कूल किस टाइप का खोलना है, उसका निर्धारण करना बाकी रह गया है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह स्कूल के टाइप से क्या मतलब होता है। तो यहाँ स्कूल के टाइप या प्रकार का अर्थ हुआ स्कूल में कहाँ तक की कक्षाएं लगेगी, उसके बारे में (Nursery school kaise khole) जानकारी। आइये इसके बारे में भी जान लेते हैं।

प्ले स्कूल (Play school kaise khole)

यह स्कूल केवल बच्चों के खेलने के लिए ही होते हैं। यहाँ पर प्री नर्सरी के बच्चों को ही भेजा जाता है जो अन्य बच्चों के साथ मिलकर खेलते हैं और बेसिक चीज़े सीखते हैं। एक तरह से यहां पर केवल एक वर्ष या उससे भी कम समय के लिए एडमिशन लिया जाता (School kholne ka process) है। इस तरह का स्कूल खोलने के लिए तो कोई स्पेशल परमिशन लेने या नीचे दिए गए पॉइंट के अनुसार काम करने की भी जरुरत नहीं है।

किंडरगार्टन

यह भी छोटे बच्चों का ही स्कूल होता है। इसमें प्री नर्सरी से लेकर UKG स्तर तक के बच्चों की पढ़ाई करवायी जाती है। इस तरह के स्कूल आपको अपने घर के आसपास ही दिख (Pre primary school kaise khole) जाएंगे। वह इसलिए क्योंकि माता पिता अपने छोटे बच्चों को दूर के स्कूल में भेजना पसंद नहीं करते हैं और छोटी आयु में पास के ही किसी स्कूल में पढ़ाते हैं। ऐसे में यह स्कूल भी खोला जा सकता है।

प्राइमरी स्कूल

यह स्कूल कक्षा 5 तक के होते हैं। इसके लिए अनुमतियाँ लिए जाने की जरुरत होती (School kholne ka tarika) है। आज के समय में जो किंडरगार्टन खुले हुए हैं, वे अक्सर अपने आप को अपडेट करके कक्षा पांच तक बढ़ा लेते हैं।

सेकेंडरी स्कूल

यह बड़े स्कूल की श्रेणी में आ जाते हैं। सेकेंडरी स्कूल को हिंदी में माध्यमिक विद्यालय भी कहा जाता है जहाँ कक्षा आठ तक की पढ़ाई होती है।

सीनियर सेकेंडरी स्कूल

यह सबसे उच्च स्तर के स्कूल हो जाते हैं जिन्हें हिंदी में उच्च माध्यमिक विद्यालय के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर कक्षा बारहवीं तक की पढ़ाई करवायी जाती (School kholne ke liye kya kya chahiye) है। ऐसे में यहाँ छात्रों की पढ़ाई से संबंधित हर चीज़ का ध्यान रखा जाना बहुत जरुरी हो जाता है।

तो इस तरह से आपको अपने भी स्कूल का एक प्रकार चुनना होगा। इस बात का ध्यान रखें कि आप स्कूल के प्रकार में जितना ऊपर बढ़ते चले जाएंगे, आपको उतनी ही अनुमति ज्यादा लेनी होगी, काम ज्यादा करना होगा, पैसा ज्यादा लगाना होगा और दायित्व भी ज्यादा होगा।

स्कूल का बोर्ड देखना

अब जब आपने अपने स्कूल के प्रकार को निर्धारित कर लिया है और भाषा का भी चयन कर लिया है तो बारी आती है स्कूल के बोर्ड को चुने जाने की। तो हमारे देश में मुख्य तौर पर हर राज्य में लगभग 4 तरह के बोर्ड होते हैं जिनमें से दो बोर्ड सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। आइए इनके नाम जान लेते (CBSE board school kaise khole) हैं।

  • स्टेट बोर्ड: हर राज्य का अपना एक अलग बोर्ड होता है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान का अपना बोर्ड है तो कर्नाटक का अपना बोर्ड है। इन बोर्ड के स्कूल केवल उसी राज्य में ही होते हैं। इन बोर्ड में पढ़ाई वहां की स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों में करवायी जा सकती है।
  • सीबीएसई बोर्ड: यह केंद्र सरकार का बोर्ड होता है जिसकी फुल फॉर्म Central Board of Secondary Education होती है। इसे हिंदी में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कहते हैं। पूरे देश में अधिकतर स्कूल स्टेट बोर्ड या सीबीएसई बोर्ड के ही होते हैं।
  • ICSE बोर्ड: सीबीएसई की तरह ही यह भी केंद्र सरकार का ही बोर्ड होता है जिसका स्तर सीबीएसई से थोड़ा ऊँचा हो जाता है। इसके स्कूल आमतौर पर बड़े शहरों में होते हैं या फिर छोटे शहरों में बहुत कम स्कूल होते हैं। इसकी फुल फॉर्म Indian Certificate of Secondary Education होती है।
  • इंटरनेशनल बोर्ड: आज के समय में भारत देश में एक और बोर्ड चलने लग गया है जिसे हम सभी इंटरनेशनल बोर्ड या अंतरराष्ट्रीय बोर्ड के नाम से जानते हैं। यहाँ पर विश्व स्तर की पढ़ाई करवायी जाती है और यहाँ का सिलेबस भी एकदम अलग होता है।

इस तरह से आपको यह देखना होगा कि आप किस बोर्ड का स्कूल खोलना चाहते हैं। हालाँकि प्ले स्कूल और किंडरगार्टन में आपको इस झंझट में पड़ने की जरुरत नहीं होती है। वहीं उससे ऊपर के स्कूल को खोलने के लिए किसी एक बोर्ड का चुनाव किया जाना जरुरी है। इस बात का ध्यान रखें कि जैसे जैसे आप बोर्ड में ऊपर जाते जाएंगे, उसके नियम भी कठोर होते जाएंगे।

बोर्ड से अनुमति लेना

अब जब आपने बोर्ड का चुनाव कर लिया है तो उसके लिए अनुमति लिए जाने की जरुरत होती है। स्टेट लेवल के बोर्ड के लिए कम अनुमति चाहिए होती है तो वहीं सीबीएसई के लिए अधिक चाहिए होती है। वहीं यदि आपको ICSE या IB के तहत अपना स्कूल खोलना है तो उनके नियम बहुत ही कठोर होते हैं जिनका पालन किया जाना आवश्यक होता (How to start a private school in Hindi) है।

एक तरह से स्कूल खोलने के नियम सभी के लिए अलग अलग होते हैं और यह उस शहर की स्थिति, स्थान, बजट, बच्चों की संख्या इत्यादि कई कारकों पर निर्भर करते हैं। कोई स्कूल छोटा होता है तो कोई स्कूल बहुत बड़ा होता है। ऐसे में यह पूर्ण रूप से उस समय व स्थिति पर ही निर्भर करेगा कि आप किस तरह से आगे बढ़ना चाहते हैं।

स्कूल के लिए भूमि

अब बारी आती है स्कूल के लिए एक सही भूमि का चुनाव किये जाने की। यदि आपको स्कूल खोलना है तो उसके लिए आप किस जगह पर स्कूल खोलने का सोच रहे हैं, यह बहुत ही मायने रखने वाला है। यदि आपका स्कूल बहुत दूर है तो उसके लिए आप ट्रांसपोर्ट की सुविधा कैसे देंगे और वह कितनी होगी, यह भी बहुत ज्यादा मायने रखता (How to start a school in India in Hindi) है।

वहीं स्कूल किस जगह खुल रहा है, वहां आसपास की स्थिति कैसी है, माहौल कैसा है, आसपास कौन से घर और दुकाने है, वहां पहुँचने का रास्ता कैसा है, इत्यादि बहुत सी बातों का ध्यान रखे जाने की जरुरत है। साथ ही स्कूल के लिए अधिकृत की गयी भूमि कितनी बड़ी है, वहां बिल्डिंग कितनी बड़ी होगी, उसमें कितने कमरे हैं, इत्यादि सब भी आपको पहले ही देखना होगा।

कक्षा के हिसाब से स्कूल का डिजाईन

स्कूल की भूमि का चुनाव हो गया है और उस पर भवन तैयार कर लिया गया है तो बच्चों की कक्षाओं को डिजाईन करने का समय आ गया है। स्कूल में बच्चों की कक्षा हवादार होनी चाहिए, वेंटिलेशन की पूरी सुविधा हो, वहां बोर्ड सही हो, टेबल चेयर लगे हुए हो इत्यादि सब देखा जाना चाहिए। इसी के साथ ही बदलते जमाने के साथ साथ अब स्कूल की क्लास को आधुनिक व मॉडर्न रूप दिया जा रहा है, जिसका ध्यान आपको भी रखना (How to open a school in India in Hindi) होगा।

स्कूल में केवल क्लास ही नहीं होती है बल्कि बच्चों के लिए खेलने के मैदान, मीटिंग हॉल, प्रार्थना कक्ष इत्यादि की भी व्यवस्था की हुई होनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर प्रिंसिपल का रूम, स्टाफ रूम, पेरेंट्स के लिए रूम इत्यादि भी आपको ही देखना होगा। इसलिए पूरे स्कूल का डिजाईन आपको बहुत ही सोच समझ कर करना होगा।

स्कूल में स्टाफ की नियुक्ति करना

स्कूल खोलने के लिए जो एक चीज़ बहुत ही ज्यादा जरुरी होती है और जो आपके स्कूल को निरंतर सही रूप में चलाये रखने के लिए जरुरी है, वह है वहां का स्टाफ। स्टाफ में स्कूल के प्रधानाध्यापक से लेकर अध्यापक, कर्मचारी, पियोन इत्यादि सब आते हैं। एक तरह से स्कूल को चलाने और उसकी देखरेख में जो भी व्यक्ति चाहिए होता है, वह सब स्कूल को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसमें सबसे जरुरी भूमिका अध्यापक व प्रिंसिपल की होती है। वे ही बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे होते हैं। ऐसे में यदि आप सही टीचर का चुनाव करते हैं तो बच्चों को भी उनसे पढ़ने में मजा आता है और आपका स्कूल बाकि जगह भी प्रसिद्ध होता चला जाता है। इसलिए टीचर्स की पूरी तरह से जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए और साथ ही उनका पिछला रिकॉर्ड भी जांच लेना चाहिए। इसी के आधार पर ही उन्हें स्कूल में रखा जाना चाहिए।

आज के समय में बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही स्टाफ की नियुक्ति की जानी चाहिए। आपकी एक भी गलती आपके ऊपर बहुत भारी पड़ सकती है। ऐसे में स्कूल की साफ सफाई करने वाले, पियोन, बस या ऑटो चलाने वाले, कंडक्टर इत्यादि हर किसी का बैकग्राउंड अच्छे से जांच लें और उसके बाद ही उन्हें काम पर रखें। ध्यान रखें बच्चों की पढ़ाई से भी ज्यादा जो जरुरी चीज़ है, वह है उनकी सुरक्षा। यदि इस पर कोई आंच आयी तो आपको पुलिस कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।

क्लास का पाठ्यक्रम व अन्य शेड्यूल

स्कूल में स्टाफ की भर्ती हो चुकी है तो बारी आती है स्कूल के सिलेबस व अन्य शेड्यूल को बनाये जाने की। अब आपके स्कूल का टाइम टेबल क्या होगा, कब कौन सी क्लास लगेगी, कौन से विषय को पढ़ाया जाएगा, कब आधी छुट्टी होगी, कब पूरी छुट्टी होगी, कब त्योहारों की छुट्टी होगी, कितने दिन की छुट्टी होगी, कब कौन सा कार्यक्रम होगा, इत्यादि के बारे में काम करने की जरुरत होगी।

एक तरह से स्कूल के खुलने के बाद उसका पूरा शेड्यूल क्या रहने वाला है और सभी किस तरह से और किस रूप में काम कर रहे होंगे, इसका निर्धारण किया जाना चाहिए। इसलिए आपको बहुत ही सोच समझ कर आगे की रणनीति पर काम करना होगा क्योंकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण टास्क होगा। यही आपके स्कूल के नीति निर्देश व अन्य नियम बनाने में अहम भूमिका निभाने वाला है।

बच्चों की फीस व अन्य जरुरी सामान का निर्धारण

जब कोई बच्चा स्कूल में प्रवेश लेने आता है तो उसके माता पिता सबसे पहले यही प्रश्न पूछते हैं कि उस स्कूल में बच्चे की फीस कितनी होगी। अब स्कूल में कई तरह की फीस ली जाती है, जैसे कि बच्चों की एडमिशन फीस, हर महीने की फीस, उसके अलावा एक्स्ट्रा कर्रिकुलम की फीस इत्यादि। एक तरह से कई तरह की फीस और चार्ज स्कूल का स्टाफ उनके माता पिता से लेता है।

इन सभी के अलावा स्कूल की एक यूनिफार्म होती है तो उसके बारे में निर्धारण करना होता है। स्कूल में कौन कौन सी किताबों से पढ़ाया जाना है, कॉपी कितनी लेनी है, व अन्य चीज़े कौन कौन सी लानी है, यह सब भी बच्चों और उनके माता पिता को बताया जाना चाहिए। यह सब कुछ फिक्स करने के बाद ही आप स्कूल को चलाने का सोच सकते हैं।

बच्चों का एडमिशन कर स्कूल की शुरुआत करना

अब आते हैं अंतिम चरण पर जो है स्कूल में बच्चों का एडमिशन करवा कर उन्हें पढ़ाई करवाना शुरू करना। तो यहाँ आप यह जान लें कि कोई भी स्कूल यूँ ही प्रसिद्ध नहीं हो जाता है या फिर वहां माता पिता के द्वारा अपने बच्चों का एडमिशन यूँ ही नहीं करवा दिया जाता है। इसके लिए स्कूल की पब्लिसिटी करवाई जानी और उसका सही जगह प्रोमोशन करवाने की भी जरुरत होती है।

तो इसके लिए आप कई तरह के तरीके अपना सकते हैं। उदाहरण के लिए जब आपके स्कूल की ओपनिंग हो तो आप उससे जुड़े पम्फलेट छपवा कर लोगों में बांटे, उसे अपने यहाँ के अख़बार में लोगों के घर पहुंचाएं। सोशल मीडिया पर स्कूल के नाम का पेज या प्रोफाइल बनाएं और उस पर स्कूल से जुड़ी फोटोज और वीडियोज डालें। इससे आपके स्कूल के बारे में लोगों को पता चलेगा और वे अपने बच्चों को आपके स्कूल में डालेंगे।

स्कूल कैसे खोलें – Related FAQs

प्रश्न: स्कूल खोलने में कितना पैसा लगता है?

उत्तर: यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह का स्कूल खोलने जा रहे हैं। सामान्य तौर पर इसमें 20 लाख रुपये तो वहीं बड़े स्तर पर 2 करोड़ रुपये भी लग जाते हैं।

प्रश्न: स्कूल की मान्यता कैसे प्राप्त करें?

उत्तर: आप अपने स्कूल में जिस भी बोर्ड में पढ़ाई करवाने जा रहे हैं, आपको उसी बोर्ड के अंतर्गत ही उसकी मान्यता लेनी होगी। इसके लिए या तो आपको अपनी यहाँ की राज्य सरकार के शिक्षा विभाग या फिर केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग से संपर्क साधना होगा।

प्रश्न: स्कूल खोलने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?

उत्तर: स्कूल खोलने के लिए योग्यता के रूप में बस पैसा होना चाहिए बाकि सब योग्यता वाला काम यह पैसा करके दे देता है।

प्रश्न: अपना खुद का स्कूल कैसे बनाएं?

उत्तर: यदि आप अपना खुद का स्कूल बनाना चाहते हैं तो उससे संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी को हमने इस लेख में दिया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि अगर आपको खुद का स्कूल खोलना हुआ तो वह आप कैसे खोल सकते हो। हमने आपको स्कूल खोलने से संबंधित पूरी जानकारी इस लेख में दी है जैसे कि स्कूल कितने प्रकार के होते हैं कौन कौन से लाइसेंस लेने पड़ते हैं किस किस को काम पर रखना होगा इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने के लिए आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। फिर भी यदि कोई शंका आपके मन में शेष रह गई है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।

लविश बंसल
लविश बंसल
लविश बंसल वर्ष 2010 में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया और वहां से वर्ष 2014 में बीटेक की डिग्री ली। शुरुआत से ही इन्हें वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना या इससे संबंधित क्षेत्रों में भाग लेना अच्छा लगता था। इसलिए ये काफी समय से लेखन कार्य कर रहें हैं। इनके लेख की विशेषता में लेख की योजना बनाना, ग्राफ़िक्स का कंटेंट देखना, विडियो की स्क्रिप्ट लिखना, तरह तरह के विषयों पर लेख लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट लिखना इत्यादि शामिल है।
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