आईपीसी की धारा 302 – इन दिनों आदमी की जिंदगी का कोई भी मोल नहीं रहा है। मामूली सी बात पर भी लोग एक-दूसरे से उलझने, एक-दूसरे की जान लेने से नहीं चूकते। आदमी को मारना जैसे बाएं हाथ का खेल हो गया है। हाल ही में चोरी के आरोप में एक शख्स को दो लोगों ने पीट पीट कर मार डाला था। बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता होता कि किसी आदमी को मारने के जुर्म में उसे कितने साल अंदर होना पड़ सकता है। आदमी को मारने पर कौन सी धारा लगती है? क्या आप जानते हैं? यदि नहीं तो भी चिंता मत कीजिए। आज इस पोस्ट में हम आपको इसी संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं-
आदमी को मारने पर कौन सी धारा लगती है? (Which section is applicable on killing a man?)
मित्रों, यदि कोई किसी व्यक्ति को मार देता है यानी उसकी हत्या (murder) कर देता है तो हत्या के आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (Indian penal code)-1860 यानी आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा (case) चलाया जाता है। यदि आरोपी हत्या के मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे धारा 302 के तहत ही सजा दी जाती है। यदि आप हिंदी फिल्में देखते हैं तो आपने किसी न किसी फिल्म के दृश्य में जज को अक्सर यह वाक्य दोहराते हुए जरूर देखा होगा- ‘ताजिरात-ए-हिंद दफा 302 के तहत मुजरिम को फांसी की सजा दी जाती है।’ इस बड़ी धारा को लेकर भी लोगों में सामान्य रूप से अज्ञानता देखने को मिलती है।
धारा 302 के तहत हत्या के लाने के लिए कौन से तत्व आवश्यक हैं? (Which elements are necessary to be a murder under section 302?)
मित्रों, धारा 302 के तहत किसी अपराध को हत्या तभी माना जाएगा, जबकि उसमें कुछ आवश्यक तत्व (elements) शुमार हों, जो कि इस प्रकार से हैं-
इरादा : हत्या के पीछे मारने वाले का साफ इरादा होना चाहिए।
मौत का कारण: आदमी को मारने वाले की जानकारी में होना चाहिए कि उसका यह कृत्य अन्य व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है।
शारीरिक चोट : पीड़ित के शरीर पर ऐसी चोट का इरादा होना चाहिए, जिससे उसकी मृत्यु की आशंका हो।
क्या धारा 302 के तहत अपराध गैर जमानती अपराध है? (Is crime under section 302 is a non-bailable offence?)
दोस्तों, आपको बता दें कि आईपीसी-1860 की धारा 299 अंतर्गत हत्या को परिभाषित किया गया है। यह एक गैर जमानती (non-bailable) और संज्ञेय अपराध (cognizable crime) है। इस अपराध की सुनवाई जिला एवं सेशन न्यायाधीश (district and session magistrate) द्वारा होती है। एक और विशेष बात यह है कि यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता (compromise) करने योग्य नहीं है।
धारा 302 के तहत दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को क्या सजा मिलती है? (What punishment is given if a person found guilty under section 302)
मित्रों, अब धारा 302 के तहत मिलने वाली सजा के बारे में जान लेते हैं। इस धारा में जो प्रावधान किए गए हैं, उनके अनुसार आरोपी को दोष सिद्ध होने पर हत्या की गंभीरता के आधार पर आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड तक की सजा तजवीज की जा सकती है। इतना ही नहीं, दोषी को सजा के साथ – साथ जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।
हालांकि अदालत यह मानती है कि मौत की सजा केवल तभी दी जानी चाहिए, जब इसे दिया जाना बेहद अनिवार्य हो। साथ ही, सजा का कोई अन्य विकल्प न हो। ऐसे मामलों में, जहां अपराध की सीमा बहुत जघन्य हो, वहीं मौत की सजा दी जानी चाहिए। रही बात सजा के साथ जुर्माने की तो आपको बता दें कि जुर्माने की राशि कोर्ट द्वारा उसके विवेक के आधार पर तय की जाती है।
हत्या के मामलों में सजा का फैसला किन बिंदुओं के आधार पर होता है? (On which basis the decision in case of murder is done?)
मित्रों, आपको जानकारी दे दे की हत्या से संबंधित मामलों में फैसला देने से पहले जज हत्या की परिस्थिति, हत्या के उद्देश्य, संबंधित व्यक्ति के इरादे जैसे तमाम बिंदुओं पर गौर करते हैं और इन्हीं के आधार पर अपना फैसला सुनाते हैं। कई बार व्यक्ति से परिस्थिति के हाथों मजबूर होकर भी हत्या जैसा जघन्य अपराध कर बैठता है। जैसे अपनी अथवा अपने परिवार की सुरक्षा को उसे ऐसा करना पड़ा हो।
इसके अतिरिक्त कई बार महिलाएं अपने शील की रक्षा के लिए भी परिस्थिति के अनुसार आरोपी की जान लेने पर मजबूर हो जाती हैं। ये मामले आदमी को मारे जाने के बावजूद धारा 302 में कवर नहीं होते। हत्या से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान जज इन सभी बिंदुओं पर ध्यान देते हैं।
यदि किसी को हत्या के झूठे आरोप में फंसा दिया गया है तो उसे क्या करना होगा? (If someone has trapped in a false case then what he will have to do?)
यदि किसी व्यक्ति को हत्या के झूठे केस में फंसा दिया गया है तो उसे सबसे पहले हाई कोर्ट (high court) में अपील करके अपनी जमानत (bail) का प्रबंध करना चाहिए। यद्यपि ऐसे मामलों में जमानत बहुत मुश्किल से मिलती है। इसके पश्चात उसे वह सबूत जुटाने चाहिए जो उसकी बेगुनाही को साबित करें। आपको बता दें कि भारतीय कानून में अधिकांशतः अपने को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर ही होती है। रही बात जमानत की, तो यह फैसला कोर्ट करती है कि संबंधित आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए अथवा नहीं।
हत्या के किसी अभियुक्त को जमानत मिल सकती है अथवा नहीं, यह मामले से जुड़े तथ्यों (factors) और परिस्थितियों (circumstances) पर अत्यधिक निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त यदि हत्यारोपी के खिलाफ दिए गए सुबूत (proof) बहुत मजबूत या पुख्ता हैं तो ऐसे में भी जमानत मिलने में देरी होगी।
यदि जमानत अर्जी खारिज हो जाए तो क्या करें? (What to do if the bail application is rejected?)
दोस्तों, ऐसा बहुत बार होता है कि जमानत का आवेदन करने के बाद भी जमानत नहीं मिलती और जबरदस्त अर्जी खारिज हो जाती है। यदि आपकी भी जमानत अर्जी अदालत द्वारा खारिज कर दी गई है, तो आपके पास संबंधित आदेश (order) की समीक्षा (review) करने के लिए जज के समक्ष एक समीक्षा याचिका दायर (review petition file) करने का मौका होता है। इसके अतिरिक्त यदि आपको लगता है कि आपके मामले में दम है तो आप जमानत अर्जी खारिज किए जाने के आदेश (bail rejection order) को सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के समक्ष भी चुनौती (challenge) दे सकते हैं। यदि आपके पास जमानत मांगने का कोई नया आधार है तो आप दूसरी जमानत अर्जी भी दाखिल कर सकते हैं।
आदमी को मारने के किन मामलों में धारा 302 नहीं लगती? (In which cases of murder section 302 is not applicable?)
दोस्तों, आपको बेशक सुनकर आश्चर्य होगा, लेकिन यह सच है कि आदमी को मारने के कई मामलों में धारा 302 नहीं लगाई जाती। उसे हत्या की जगह मानव वध की संज्ञा दी जाती है और धारा 304 लगाई जाती है। इस धारा के अपवाद इस प्रकार से हैं –
1. उकसावा : यदि आपसी विवाद अथवा किसी अन्य मामलों में किसी व्यक्ति को मारने के लिए उकसाया गया हो।
2. आत्म रक्षा (personal defence) : यदि व्यक्ति का वध निजी अथवा आत्म रक्षा के लिए किया गया हो।
3. कानूनी शक्ति (legal power) का इस्तेमाल : यदि किसी सरकारी नौकरशाह द्वारा अपने निजी स्वार्थ के लिए कानूनी शक्ति का इस्तेमाल करके किसी आदमी को मरवा दिया गया हो।
4. अचानक लड़ाई : यदि अचानक झगड़े, मारपीट के बाद हुई लड़ाई में किसी की जान चली गई हो।
आदमी को मारने पर कौन सी धारा लगती है?
आदमी को मारने पर आईपीसी की धारा 302 लगती है।
धारा 302 के तहत कितनी सजा का प्रावधान किया गया है?
धारा 302 के तहत आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी जा सकती है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 302 के अंतर्गत जुर्माने की राशि कौन तय करता है?
धारा 302 के अंतर्गत जुर्माने की राशि कोर्ट द्वारा उसके विवेक के आधार पर तय की जाती है।
आदमी को मारने के किन मामलों में धारा 302 नहीं लगती?
ऐसे धारा 302 के अपवाद वाले मामलों की सूची हमने आपको ऊपर पोस्ट में दी है। आप वहां से देख सकते हैं।
धारा 302 के तहत अपराध कैसा अपराध है?
यह एक गैर-जमानती एवं संज्ञेय अपराध है।
इन मामलों की सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में होती है।
हत्या के मामले में फैसला किन बिंदुओं के आधार पर होता है?
हत्या के मामले में फैसला देते हुए जज अपराध की परिस्थिति अपराध के इरादे और उद्देश्य जैसे बिंदुओं को ध्यान में रखते हैं।
यदि अदालत में जमानत की अर्जी खारिज हो जाए तो क्या करें?
ऐसे में आप जज के समक्ष समीक्षा याचिका दायर कर सकते हैं और यदि मामले में दम है तो सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकते हैं।
धारा 302 के तहत अपराध को हत्या माने जाने के लिए क्या तत्व आवश्यक हैं?
धारा 302 के तहत अपराध को हत्या माने जाने के लिए हत्या का इरादा, मौत का कारण एवं शारीरिक चोट जैसे तत्व आवश्यक हैं।
क्या दोबारा याद जमानत याचिका दायर की जा सकती है?
यदि किसी आरोपी के पास जमानत का नया आधार है तो वह दोबारा भी जमानत याचिका दायर कर सकता है।
दोस्तों, हमने इस पोस्ट (post) में आपको बताया कि आदमी को मारने पर कौन सी धारा लगती है। उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट से आपकी कानून संबंधी जानकारी में इजाफा हुआ होगा। इसी प्रकार की और पोस्ट पाने के लिए आप हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।