Shikshan ka arth :- समाज को आगे बढ़ने के लिए शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो छात्रों को बचपन से लेकर आगे तक पढ़ाने का कार्य करते हैं। अब उनके द्वारा जो कार्य किया जाता है उसे हम शिक्षण कहते हैं जिसके बारे में इस लेख में आपको अच्छे से जानने को मिलेगा। दरअसल शिक्षण की परिभाषा और उसका अर्थ अलग अलग व्यक्तियों की नज़र में बहुत अलग व व्यापक हो सकता है और इसे हम कुछ शब्दों में या एक लेख में समाहित नहीं कर सकते (Shikshan kya hota hai) हैं।
फिर भी आज के इस लेख के माध्यम से हम शिक्षण के बारे में गहन चर्चा करने वाले हैं। इसको पढ़कर आपको समझ में आ सकेगा कि आखिरकार शिक्षण किसे कहा जाता है या शिक्षण क्या होता है। शिक्षण ना केवल एक उत्तरदायित्व होता है बल्कि यह समाज को आगे बढ़ाने के लिए किया जाने वाला बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। इसलिए आपका शिक्षण के बारे में सही रूप में जानना बहुत ही जरुरी हो जाता (Teaching and its definition in Hindi) है।
शिक्षण को बहुत लोग आज के समय में केवल व्यवसाय समझ लेते हैं। आज यदि हम शिक्षण को देखें तो यह व्यवसाय का रूप ही ले चुका है जो कि एक गलत समाज का निर्माण करने में लगा हुआ है। ऐसे में आज हम आपको शिक्षण क्या है और इसका क्या अर्थ होता है, इसके बारे में विस्तार से (Shikshan in Hindi) बतायेंगे।
शिक्षण क्या है? (Shikshan ka arth)
सबसे पहले तो हम शिक्षण के अर्थ के बारे में बात कर लेते हैं। तो शिक्षण शब्द शिक्षा से आया है। शिक्षा का अर्थ ना केवल पुस्तकों से ज्ञान लेने से होता है बल्कि यह किसी भी रूप में किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी की शिक्षा लेना हो सकता है। ऐसे में शिक्षण का अर्थ व्यापक होता है और यह शिक्षक के द्वारा छात्र को शिक्षा देने से संबंधित होता (Shikshan kya hai) है।
तो यह किस तरह से होता है या इसमें क्या क्या चीज़ें मुख्य भूमिका निभाती है, इसके बारे में जानना जरुरी हो जाता है। ऐसे में आज हम आपके सामने शिक्षण को अलग अलग भागों में तोड़कर यह बताने का प्रयास करेंगे कि आखिरकार शिक्षण होता क्या है या फिर इसमें क्या क्या चीजें समाहित होती है। इसके लिए हम एक एक करके आगे बढ़ते हैं ताकि आपको शिक्षण का अर्थ अच्छे से समझ में आ (Shikshan kise kahte hain) सके।
पुस्तक
शिक्षण के अंतर्गत जिस चीज़ की सबसे पहले आवश्यकता होती है वह होती है पुस्तक। अब ऊपर हमने आपको बताया कि शिक्षा देने के लिए पुस्तक का होना अनिवार्य नहीं है लेकिन जो शिक्षा दी जा रही है या शिक्षण का ज्ञान दिया जा रहा है वह किसी ना किसी शब्द के रूप में तो होता ही है। अब यही शब्द व्याख्या, अर्थ, परिभाषा इत्यादि बनकर एक बड़ा रूप लेते हैं। तो इसे ही पुस्तक में समाहित किया जाता है। इस तरह से पुस्तक शिक्षण की पहली कड़ी होती (Shikshan ka arth in Hindi) है।
छात्र
अब इस शिक्षण में जो दूसरी कड़ी या महत्वपूर्ण पहलू है, वह है छात्र। शिक्षण का कार्य जिसके लिए किया जाता है, वह अन्तंतः छात्र ही होते हैं जिन्हें हम शिष्य भी कह सकते हैं। तो यह छात्र किसी भी विषय से संबंधित हो सकते हैं जो समय के अनुसार बदलते रहते हैं। वे इंजीनियरिंग, डॉक्टर, कानून, एकाउंट्स इत्यादि किसी का भी शिक्षण प्राप्त कर रहे हो सकते हैं।
शिक्षक
शिष्य के बाद आते हैं शिक्षक जो शिक्षण देने का कार्य करते हैं। ये शिक्षण की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है और यदि यही कड़ी ख़राब हो जाती है तो फिर शिक्षण का कोई अर्थ नहीं होता है। ऐसे में जो व्यक्ति छात्रों को शिक्षण देने का कार्य करता है या उन्हें पुस्तक के माध्यम से ज्ञान देने का कार्य करता है, उसे हम शिक्षक के नाम से जानते हैं। ये शिक्षक भी अलग अलग विषय में पारंगत होते हैं और उसी विषय के अनुरूप ही शिक्षा देने का कार्य करते हैं।
शिक्षा
पुस्तक, शिष्य व शिक्षक के बाद शिक्षण में जो अगली कड़ी आती है वह होती है शिक्षा। तो शिक्षा के लिए किसी स्थान का होना अनिवार्य है जिन्हें हम विद्यालय, कॉलेज या यूनिवर्सिटी के नाम से जानते हैं। वहां की एक व्यवस्था होती है और उसे एक प्रणाली से चलाया जाता है। इस प्रणाली को ही शिक्षा प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली के तहत शिक्षक के द्वारा शिष्य को पुस्तक का ज्ञान दिया जाता है।
शिक्षण का अर्थ
अब करते हैं मुख्य मुद्दे की बात और वह है शिक्षण का अर्थ। तो ऊपर की सभी कड़ियाँ मिलकर जो बनता है, वही शिक्षण कहलाता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि शिक्षण एक क्रिया है और जो शिक्षक के द्वारा शिष्य को पुस्तक के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है, उसे ही हम शिक्षण के नाम से जानते हैं। तो इस तरह से शिक्षण का अर्थ किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को ज्ञान देने से संबंधित होता है।
इसमें वह व्यक्ति कोई भी हो सकता है। वह आपके विद्यालय के अध्यापक, आपके माता पिता, कोई अनजान व्यक्ति, मित्र या रिश्तेदार कोई भी हो सकते हैं और आपके लिए शिक्षक की भूमिका निभा सकते हैं। आपको जिस भी व्यक्ति से महत्वपूर्ण व आवश्यक ज्ञान मिल रहा है या शिक्षा प्राप्त हो रही है तो आपके लिए वह शिक्षण का ही कार्य हो रहा है।
शिक्षण की परिभाषा (Shikshan ki definition in Hindi)
अब हम बात करते हैं शिक्षण की परिभाषा के बारे में। तो ऊपर तो आपने शिक्षण के अर्थ के बारे में जानकारी ली है लेकिन शिक्षण की परिभाषा अलग अलग व्यक्तियों के संदर्भ में बदल जाती है। कहने का अर्थ यह हुआ कि किसी स्कूल के प्रधानाचार्य के लिए शिक्षण का अर्थ अलग होता है तो वहीं शिक्षक के लिए यह अलग संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता (Shikshan definition in Hindi) है।
ठीक इसी तरह शिष्य और अभिभावक के लिए इसका अर्थ या परिभाषा अलग होती है। अब शिक्षण का कार्य तो वही हो रहा है और परिभाषा के बदल जाने से इसका अर्थ नहीं बदलता है लेकिन व्यक्तियों के संदर्भ में यह अलग अलग होता है। इसलिए अब हम आपके साथ शिक्षण की परिभाषा को रखने जा रहे हैं।
प्रधानाचार्य
शिक्षण का सबसे पहले जुड़ाव किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य से होता है जो उसके प्रधान कहे जाते हैं। इन्हें हम प्रिंसिपल के नाम से भी जानते हैं। तो प्रधानाचार्य के लिए शिक्षण का अर्थ अपने विद्यालय के सही सञ्चालन से है। इसके लिए वे अपने यहाँ उत्तम से उत्तम शिक्षक की भर्ती करते हैं ताकि शिक्षण का गुणवत्तापूर्ण कार्य हो सके। इसी के साथ ही उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा शिष्यों को अपने यहाँ भर्ती करने से होता है।
विद्यालय के सही सञ्चालन के लिए उनके द्वारा कई तरह के नियम बनाये जाते हैं जिनका पालन करना शिष्य सहित शिक्षक के लिए भी अनिवार्य होता है। इसी के साथ ही प्रधानाचार्य को शिष्य से शिक्षण देने के बदले में शुल्क चाहिए होता है तो वहीं शिक्षक को शिक्षण देने के लिए शुल्क देना होता है। इस तरह से प्रधानाचार्य के लिए शिक्षण की परिभाषा एक व्यवसाय करने से कही जा सकती है।
शिक्षक
शिक्षक के लिए शिक्षण की परिभाषा नौकरी करने से कही जा सकती है। इसके लिए शिक्षक पहले तो स्वयं शिक्षा को प्राप्त करता है और उसके लिए कठिन परिश्रम करता है। वह उच्च स्तर की शिक्षा को प्राप्त कर उसमें पारंगत होता है। फिर वह कठिन परीक्षा से होकर गुजरता है ताकि उसे शिक्षक की उपाधि मिल सके और फिर उसके माध्यम से किसी विद्यालय में नौकरी मिल सके।
इसके बाद उसे जो भी कक्षा और उसके माध्यम से जो भी शिष्य प्रदान किये जाते हैं, उसे एक निश्चित समय सीमा में उन्हें अपने विषय को अच्छे से समझाना होता है। उसका उद्देश्य शिष्य को अपना ज्ञान देना और उसे शिक्षित कर अच्छे अंक लाने में सहायता करना होता है। शिक्षण की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी शिक्षक ही होते हैं जो शिष्य को शिक्षा देने का कार्य करते हैं। इसके बदले में वे विद्यालय से अपना मासिक वेतन लेते हैं जिससे उनका घर परिवार चलता है।
शिष्य
शिष्य के लिए शिक्षण का अर्थ शिक्षा प्राप्त करने से होता है। वे विद्यालय में प्रवेश लेते हैं और शिक्षक की देखरेख में रहकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसके लिए वे अपने विषय में कठिन परिश्रम करते हैं, उसके बारे में अपने शिक्षक से प्रश्न पूछते हैं, उसका अभ्यास करते हैं, हर बिंदु का गहन विश्लेषण करते हैं और इस तरह से वे शिक्षा प्राप्त करते जाते हैं।
फिर हर वर्ष उनकी परीक्षा ली जाती है जहाँ उनको मिली शिक्षा व ज्ञान को परखा जाता है। इसमें उन्हें उत्तीर्ण होना होता है तभी वे अगली कक्षा में जा पाते हैं। यदि वे इसमें अनुत्तीर्ण हो जाते हैं तो उन्हें एक वर्ष और उसी कक्षा में रहकर पढ़ना होता है। इस तरह से शिष्य या छात्र के द्वारा शिक्षण को अपना ज्ञान बढ़ाने और किसी विषय में पारंगत होने के लिए लिया जाता है।
अभिभावक
अब यहाँ पर बात शिष्यों के माता पिता या अभिभावक को लेकर हो रही है जो धन देकर अपने बच्चों पर निवेश कर रहे होते हैं। किसी भी छात्र के माता पिता उस पर बचपन से लेकर एक आयु तक या उच्च शिक्षा प्राप्त करने तक उस पर धन बरसाते हैं या यूँ कहें कि उसके विद्यालय व कॉलेज की फीस देते हैं। इसके लिए छात्र के माता पिता दोनों ही बहुत परिश्रम करते हैं।
उनके लिए शिक्षण की परिभाषा अपने बच्चों का करियर उज्जवल बनाने और अपने बुढ़ापे के लिए निवेश करने के संदर्भ में ली जा सकती है। यदि उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त करेंगे तो वे आगे चलकर अधिक धन कमाने के लायक बन पाएंगे। इसलिए अभिभावकों के लिए शिक्षण की परिभाषा बदल जाती है।
समाज
अब यदि हम समाज या देश की बात करें तो उनके लिए शिक्षण की परिभाषा और उसका संदर्भ पूरी तरह से बदल जाता है। वे शिक्षण को उस रूप में देखते हैं जहाँ भविष्य के लिए एक नयी पीढ़ी तैयार हो रही है ताकि वे बेहतर समाज का निर्माण कर सके। अभी तक जो समाज बना हुआ है, वह इसलिए ही सुचारू रूप से चल रहा है क्योंकि उन्होंने अपने समय में शिक्षण लेने का कार्य किया है।
ठीक इसी तरह वे अभी हो रहे शिक्षण के कार्य को यही देखकर सोचते हैं कि इसके द्वारा भविष्य के लिए उज्जवल पीढ़ी का निर्माण हो रहा है जिन्हें नैतिक मूल्यों सहित क्या सही है और क्या गलत, इसका ज्ञान हो रहा है। ऐसे में समाज के लिए शिक्षण की परिभाषा पूरी तरह से बदल जाती है।
शिक्षण के प्रकार (Shikshan ke prakar)
अभी तक आपने शिक्षण के अर्थ सहित उसकी परिभाषा को विभिन्न रूपों में जान लिया है। ऐसे में अब आपका शिक्षण के प्रकारों के बारे में जान लेना भी सही (Shikshan types in Hindi) रहेगा। शिक्षण भी कई तरह का होता है और आज के समय में इसके कई रूप देखने को मिलते हैं। ऐसे में हम सभी रूपों को समाहित कर शिक्षण के मुख्य प्रकारों को आपके सामने रखने जा रहे हैं।
पुस्तक शिक्षण
यह शिक्षण का वह प्रकार है जो सामान्य तौर पर विद्यालय या कॉलेज की कक्षा में एक शिक्षक के द्वारा अपने छात्रों को पुस्तकों के माध्यम से पढ़ाया जाता है। इसके लिए शिक्षक छात्रों के सामने प्रतिदिन किसी ना किसी विषय पर लेक्चर देते हैं। इसके माध्यम से वे अपने ज्ञान को छात्रों तक पहुंचाने और उसे सही रूप में समझाने का कार्य करते हैं। इससे छात्रों की जिज्ञासा शांत होती है और वे आगे बढ़ पाते हैं।
प्रैक्टिकल शिक्षण
ऊपर वाले शिक्षण के साथ साथ यह शिक्षण भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए हर विद्यालय व कॉलेज में प्रैक्टिकल लैब होती है जहाँ पर छात्र सिखाये गए ज्ञान के आधार पर प्रैक्टिकल करके देखते हैं। कहने का अर्थ यह हुआ कि यहाँ पर शिष्यों के द्वारा अपने को मिले शिक्षण को आगे के स्तर पर ले जाकर उसे व्यवहारिक रूप से कैसे करना है, इसके बारे में जानते हैं। यह शिक्षण का अगला स्तर माना जा सकता है।
विषय विशेष शिक्षण
अब यह शिक्षण का वह प्रकार है जिसके माध्यम से कोई छात्र किसी विषय विशेष में अपना करियर बनाता है और साधारण शिक्षण से आगे बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर किसी को डॉक्टर बनना है तो वह उसके लिए ही विशेष शिक्षण प्राप्त करता है तो वहीं अधिवक्ता को कानून की पढ़ाई करनी होती है। इसके लिए उसे उसी कॉलेज का चुनाव कर उसमें शिक्षण प्राप्त करना होता है ताकि वहां से वह डिग्री प्राप्त कर अपना करियर उज्ज्वल बना सके।
चर्चा आधारित शिक्षण
हम कई लोगों के साथ चर्चाएँ करते हैं लेकिन आज के समय में चर्चा ने ज्ञानवर्धन या शिक्षण का रूप ना लेकर बहस का रूप ले लिया है। पहले के समय में चर्चा शिक्षण या दूसरों का ज्ञान बढ़ाने के लिए की जाती थी किन्तु आज सभी जीतने में ही इस कदर पागल हो गए हैं कि सार्थक चर्चा गायब सी ही हो गयी है। ऐसे में चर्चा आधारित शिक्षण का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है जब आप विद्वान लोगों के साथ चर्चा करते हैं। इससे आप एक साथ कई लोगों से शिक्षण प्राप्त करते हैं और अपना शिक्षण उन्हें देते हैं।
प्रोजेक्ट शिक्षण
यह एक समान लोगों का एक जैसे ही किसी विषय या प्रोजेक्ट पर काम करने के संदर्भ में लिया जा सकता है। हम कई क्षेत्रों में काम करते हैं और यह जरुरी नहीं है कि हम हमेशा अकेले ही काम करें। इसके लिए ओरों के साथ मिलकर भी काम किया जा सकता है ताकि एक दूसरे के शिक्षण का लाभ दोनों को मिल सके। तो जब दो या दो से अधिक लोग एक साथ किसी प्रोजेक्ट या व्यवसाय में काम करते हैं तो उसे भी शिक्षण का एक प्रकार माना जा सकता है।
ऑनलाइन शिक्षण
जैसा कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि समय के साथ साथ शिक्षण में अन्य प्रकार भी जुड़ गए हैं तो उसमें एक प्रकार ऑनलाइन रूप से शिक्षण प्राप्त करने का भी है। अब आप ऑनलाइन रूप से कई तरह की जानकारी ले रहे होते हैं फिर चाहे वह टेक्स्ट, फोटो या वीडियो इत्यादि किसी भी फॉर्म में हो। आपको जहाँ से भी जानकारी मिल रही है वह आपके लिए शिक्षण का ही काम कर रही है।
अनुसंधान शिक्षण
अनुसंधान को अंग्रेजी में रिसर्च भी कहा जाता है। इस तरह का शिक्षण सर्वोच्च शिक्षण प्रकार भी कहा जा सकता है क्योंकि इसमें आप मानव सभ्यता के लिए किसी नयी चीज़ की खोज कर रहे होते हैं। इस अनुसंधान के सफल होने से शिक्षण का दायरा बढ़ जाता है और सभी आपको उस चीज़ के जनक के रूप में जानते हैं। आज के समय में हम शिक्षण में जो कुछ भी पढ़ते हैं या सीखते हैं तो उसका जनक कोई ना कोई व्यक्ति इतिहास में रहा है। इसी तरह अनुसंधान भी शिक्षण का एक प्रमुख और लगातार चलने वाला प्रकार कहा जा सकता है।
शिक्षण क्या है – Related FAQs
प्रश्न: शिक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: शिक्षण एक क्रिया है और जो शिक्षक के द्वारा शिष्य को पुस्तक के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है, उसे ही हम शिक्षण के नाम से जानते हैं।
प्रश्न: शिक्षण क्या है परिभाषा और चर्चा?
उत्तर: शिक्षण का अर्थ किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को ज्ञान देने से संबंधित होता है बाकि की जानकारी आप ऊपर का लेख पढ़ कर प्राप्त कर सकते हो।
प्रश्न: शिक्षण कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: शिक्षण के प्रकारों के बारे में हमने ऊपर के लेख में चर्चा की है जो आप पढ़ सकते हो।
प्रश्न: शिक्षण की सबसे अच्छी परिभाषा क्या है?
उत्तर: शिक्षण की परिभाषा हमने ऊपर लेख में विस्तार से दी है जो आप पढ़ सकते हो।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने शिक्षण के बारे में जानकारी हासिल कर ली है। आपने जाना कि शिक्षण क्या है शिक्षण की परिभाषा क्या है और शिक्षण के प्रकार क्या हैं इत्यादि। आशा है कि आप जो जानकारी लेने के लिए इस लेख पर आए थे वह जानकारी हम आपको दे पाने में समर्थ हुए हैं। यदि ऐसा है तो आप हमें नीचे कॉमेंट करके अवश्य बताइएगा।