स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी क्या है? Statue of equality in Hindi

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी क्या है? इसकी खासियत क्या है? स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के बारे में सब कुछ यहां जानें (what is stetue of equality? What’s it’s speciality? Know everything here about stetue of equality)

दुनिया भर में महान लोगों की प्रतिमाएं, स्टेच्यू बनाने का कार्य सदियों से होता आ रहा है। भारत में भी यहां के महापुरूषों, वीरांगनाओं, समाजसुधारकों के स्टेच्यू निर्मित कर देश के नागरिकों से उनके जैसा बनने की उम्मीद रखी जाती है। कुछ समय पूर्व गुजरात में बना सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी खासी चर्चा में रहा।

इन दिनों स्टेच्यू ऑफ इक्विलिटी (stetue of equality) बेहद चर्चा में है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 5 फरवरी, 2022 को हैदराबाद (Hyderabad) के नजदीक इस स्टेच्यू का अनावरण किया है। आज इस पोस्ट में हम आपको इसी स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं-

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स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी क्या है? (What is stetue of equality?)

दोस्तों, यदि स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी (stetue of equality) का हिंदी में अर्थ देखें तो यह ‘समता की प्रतिमा’ कहलाता है। आपको बता दें कि 11वीं सदी के महान वैष्णव संत रामानुजाचार्य (Saint ramanujacharya) की प्रतिमा को स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का नाम दिया गया है।

आपको बता दें कि यह प्रतिमा आज से करीब आठ वर्ष पूर्व 2014 में बननी शुरू हुई थी। इसे चीन (china) में तैयार किया गया है। निर्माण के पश्चात इसे भारत (india) शिप किया गया। आपको बता दें कि इस प्रतिमा को हैदराबाद के बाहरी इलाके में शमशाबाद के पास स्थित मुचिन्तल (muchintel) गांव में वैष्णव संत त्रिदंडी चिन्ना जियर स्वामी ट्रस्ट की जियर इंटीग्रेटेड वैदिक एकेडमी (jiyar integrated vaidik academy) यानी जीवा (JIVA) में स्थापित किया गया है। एकेडमी 45 एकड़ में फेली है।

आपको बता दें कि चिन्ना जियर स्वामी ने ही इस प्रतिमा की परिकल्पना की थी एवं प्रतिमा की आधारशिला (foundation stone) रखी थी।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी क्या है? Statue of equality in Hindi

संत रामानुजाचार्य कौन थे? (Who was Saint ramanujacharya?)

आप यह जानने के लिए अवश्य उत्सुक होंगे कि आखिर संत रामानुजाचार्य कौन थे? आपको बता दें कि वे 11वीं के वैष्णव संत एवं महान समाज सुधारक थे। उनका जन्म तमिलनाडु के श्रीपेरूंबुदूर में 1017 में हुआ था। उनके पिता का नाम आसुरीदेव दीक्षित एवं मां का नाम कांतिमति था।

उनके मामा शैलपूर्ण एक संन्यासी थे एवं मां के नाना यमुनाचार्य एक बड़े संत। इन सबकी शिक्षाओं का उन पर बाल्यकाल से ही असर हुआ। आपको बता दें कि आठ वर्ष की उम्र में जनेऊ संस्कार के साथ ही उन्होंने वेदों की शिक्षा ग्रहण करनी आरंभ कर दी थी। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह रक्षांबा नाम की कन्या से हुआ। वे विशिष्टाद्वैत वेदांत (vedant) के प्रवर्तक भी थे।

उन्होंने कांची में अलवार यमुनाचार्य से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम में अपने निधन से पूर्व यमुनाचार्य ने रामानुजाचार्य को तीन मंत्र दिए-वेदांत सूत्रों के भाष्य की रचना करें, आलवारों के भजन संग्रह को संकलित कर पंचम वेद नाम से लोकप्रिय बनाएं एवं मुनि पराशर के नाम पर किसी विद्वान का नामकरण करें। उन्होंने गृहस्थ आश्रम का त्याग कर दिया। संन्यास की दीक्षा उन्होंने श्रीरंगम (Srirangam) के यतिराज नाम के संन्यासी से ली।

इसके पश्चात पूरे भारत में घूम-घूमकर उन्होंने वेदांत एवं वैष्णव धर्म (vaishno religion) का प्रचार किया। उन्होंने ही भक्ति आंदोलन (bhakti andolan) को पुनर्जीवित किया। उनके उपदेशों से उस समय हजारों लोग प्रभावित हुए थे।

आपको बता दें दोस्तों कि संत रामानुजाचार्य ने अपने जीवनकाल में कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचनाएं कीं। श्रीभाष्य एवं वेदांत संग्रह उनके द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने गद्य त्रयम, भावार्थ रत्नाकर, वेदार्थ संग्रह, वेदांत सूत्र, भागवत का वेदांत सार आदि की भी रचना की। 1137 में श्रीरंगम 120 वर्ष की उम्र में उन्होंने प्राण त्याग दिए।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी की खासियत क्या है? (What is the speciality of stetue of equality?)

दोस्तों, आप यह अवश्य जानना चाहते होंगे कि देश भर में जिस प्रतिमा यानी स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी की चर्चा हो रही है, आखिर उसकी खासियत क्या है? इसे हम चंद बिंदुओं के सहारे आपके सामने स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे, जो कि इस प्रकार से हैं-

  • * स्टेच्यू को चीन में बनाया गया है। इसका निर्माण करने वाली कंपनी का नाम एरोसन कारपोरेशन (aerosun corporation) है।
  • * इस पर करीब एक हजार करोड यानी 130 मिलियन यूएस डालर (million us dollars) का खर्च आया है।
  • * स्टेच्यू का निर्माण एक 54 फीट फंची तीन मंजिला इमारत पर किया गया है, जिसे भद्रवेदी (bhadravedi) नाम दिया गया है।
  • * इमारत में वैदिक डिजिटल लाइब्रेरी (vaidik digital library) के साथ ही एक रिसर्च सेंटर (research center), एक थिएटर (theatre) एवं एक एजुकेशन गैलरी (education gallery) भी निर्मित की गई है। इसमें संत रामानुजाचार्य के जीवन, शिक्षा, सिद्धांत आदि पर लोगों को जानकारी दी जाएगी।
  • * श्रद्धालुओं के दान से इस प्रोजेक्ट का भुगतान किया गया।
  • * रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती के अवसर पर इस स्टेच्यू का निर्माण कराया गया।
  • * स्टेच्यू का निर्माण पंचलौह यानी सोना, चांदी, तांबा, पीतल एवं जस्ता धातुओं से हुआ है।
  • * इस स्टेच्यू की ऊंचाई 216 फीट यानी 66 मीटर है।
  • * इसका निर्माण 2 मई, 2014 को प्रारंभ हुआ था।
  • * स्टेच्यू का निर्माण करीब 34 एकड़ (acre) जमीन पर हुआ है।
  • * मूर्ति के साथ ही पूरे कैंपस (campus) में 108 दिव्य देश यानी माडल टैंपल (model temple) भी बनाए गए हैं।

प्रतिमा को स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का नाम क्यों दिया गया है? (Why the idol given the name stetue of equality?)

दोस्तों, आपको बता दें कि संत रामानुजाचार्य ऐसे पहले संत थे, जिन्होंने हमेशा भक्ति, ध्यान एवं वेदांत को जातिगत बंधनों से दूर रखने की बात की। वे धर्म, मोक्ष एवं जीवन में समानता की भी बात करते थे।

प्रतिमा को स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का नाम वैष्णव संप्रदाय के संन्यासी संत चिन्ना जियर स्वामी ट्रस्ट ने दिया है, जहां इस प्रतिमा की स्थापना की गई है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के अलावा 120 किलो सोने की एक और मूर्ति

दोस्तों, स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी जिस परिसर में निर्मित है, उसी में एक मंदिर भी बनाया गया है। स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के अतिरिक्त संत रामानुजाचार्य की एक और प्रतिमा इस मंदिर के गर्भगृह में रखी गई है। यह 120 किलो सोने (gold) से निर्मित है।

इस स्वर्ण प्रतिमा का उद्घाटन अब 13 फरवरी, 2022 को भारत के राष्ट्रपति (president of India) रामनाथ कोविंद (ramnath kovind) करेंगे। बताया जाता है कि संत रामानुजाचार्य ने 120 वर्ष की उम्र में देह त्यागी थी, लिहाजा इसकी मूर्ति में 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है।

आपको बता दें कि प्रतिमा का डिजाइन साउथ (south) के मशहूर आर्ट डायरेक्टर (art director) आनंद साईं ने तैयार किया है। उन्हें इसका डिजाइन (design) तैयार करने में करीब करीब दो वर्ष का समय लगा। इसके लिए संत चिन्ना जियर से उनकी कई मीटिंग्स हुईं, जिन पर इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट (project) को लेकर खासी चर्चा हुई।

संत रामानुजाचार्य के स्टेच्यू का अनावरण उनकी 1000वीं जयंती पर किया गया

मित्रों, आपको बता दें कि संत रामानुजाचार्य के स्टेच्यू का अनावरण उनकी 1000वीं जयंती के उपलक्ष्य में चल रहे रामानुजम सहस्त्राब्दि समारोहम के दौरान किया गया। इस समारोह का शुभारंभ 2 फरवरी, 2022 से हुआ। आपको बता दें कि बीते वर्ष उनकी जयंती वैशाख शुक्ल षष्ठी को 18 मई, 2021 को थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बसंत पंचमी (basant panchami) के शुभ अवसर पर समानता के प्रबल समर्थक संत रामानुजाचार्य के इस स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी को दुनिया को समर्पित किया। तेलंगाना (telangana) के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर ने भी इस पूरे प्रोजेक्ट में व्यक्तिगत दिलचस्पी प्रदर्शित की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न परंपराओं का निर्वहन करते हुए कहा कि स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी संत रामानुजाचार्य के ज्ञान, वैराग्य एवं आदर्शों का प्रतीक है। भारत एक ऐसा देश है, जिसके मनीषियों ने ज्ञान को खंडन-मंडन, स्वीकृति-अस्वीकृति से ऊपर उठकर देखा है। यहां द्वैत भी है, अद्वैत भी। इन्हें समाहित करते हुए रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत भी है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी बैठी अवस्था में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा

साथियों, आपको जानकारी दे दें कि अभी तक थाईलैंड (Thailand) में भगवान बुद्ध (lord Buddha) की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा दुनिया की सबसे फंची प्रतिमा मानी जाती है।

हैदराबाद के संत चिन्ना जियर आश्रम में जिस मूर्ति को लगाया गया है, वह बैठने की मुद्रा में दुनिया की दूसरी सबसे फंची प्रतिमा है।

संत रामानुजाचार्य द्वारा प्रतिपादित विशिष्टाद्वैत क्या है

मित्रों, आपके मन में यह प्रश्न अवश्य उठ रहा होगा कि संत रामानुजाचार्य द्वारा प्रतिपादित विशिष्टाद्वैत क्या है? आपको बता दें कि यह दो शब्दों विशिष्ट एवं अद्वैत से मिलकर बना है। विशिष्ट का अर्थ है ‘विशेष’ एवं ‘अद्वैत’ का अर्थ है जहां कोई द्वैत अथवा भेद न हो।

सामान्य शब्दों में भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित करने वाले रामानुजाचार्य भक्ति में भेद के विरोधी थे। वे समानता के प्रतिपालक थे। विशिष्टाद्वैत संत रामानुजाचार्य का दार्शनिक मत है। इसके अनुसार जगत एवं जीवात्मा दोनों कार्यतः बेशक ब्रह्म से भिन्न हैं, फिर भी वे ब्रह्म से ही उद्भूत हैं।

इनका ब्रह्म से ठीक वैसा ही नाता है, जैसा किरणों का सूर्य से है। उनका मानना था कि भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ अथवा कीर्तन-भजन नहीं है। इसका अर्थ इसके स्थान पर ध्यान करना अथवा ईश्वर की प्रार्थना है। कहते हैं कि अपनी गहन भक्ति के बल पर संत रामानुजाचार्य को मां सरस्वती (maa saraswati) के दर्शन भी हासिल हुए। संत रामानुजाचार्य की शिक्षा यही थी कि भक्ति द्वारा ब्रह्म को प्राप्त कर जीवन एवं मृत्यु के बंधन से छूटना यही मोक्ष है।

भारत में संत रामानुजाचार्य के असंख्य फाॅलोअर्स

दोस्तों, संत रामानुजाचार्य बेशक 11वीं सदी के समाज सुधारक थे, लेकिन वर्तमान भारत की बात करें तो आज भी यहां संत रामानुजाचार्य के असंख्य फाॅलोअर्स (followers) हैं। माना जाता है कि वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परंपरा में ही रामानंद हुए, जिनके प्रमुख शिष्य में कबीर, रैदास, सूरदास आदि थे।

कबीर के दोहे आपने अपनी किसी कक्षा की पाठ्य-पुस्तक में अवश्य पढ़े होंगे। उनके दोहे आज भी प्रासंगिक हैं। वह भी जातिगत भेदभाव से उठकर समानता की बात करते थे।

वे भक्ति में पाखंड के भी विरोधी थे। उनके दोहों में व्यावहारिक ज्ञान का सागर भरा रहता था। सूर भी कृष्ण भक्ति में ऐसे दीवाने हुए कि फिर उन्हें किसी का नाम न सूझा। रैदास को भी संत की उपाधि मिली थी।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी क्या है?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का नाम संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा को दिया गया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण किसने किया है?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण चीन की एरोसन कारपोरेशन नाम की कंपनी ने किया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का डिजाइन किसने तैयार किया है?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का डिजाइन साउथ के मशहूर आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने तैयार किया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण कब शुरू हुआ?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण 2014 में प्रारंभ हुआ।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का अनावरण कब और किसने किया?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का अनावरण 5 फरवरी, 2022 को बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी की स्थापना कहां की गई है?

इस स्टेच्यू की स्थापना हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थित संत चिन्ना जियर ट्रस्ट में की गई है।

प्रतिमा का नाम स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी रखने के पीछे क्या कारण है?

संत रामानुजाचार्य भक्ति में जाति के बंधनों के सख्त विरोधी थे तथा समानता के प्रबल समर्थक थे। ऐसे में प्रतिमा का नाम इक्वलिटी रखा गया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी बनाने पर कुल कितने रूपये का खर्च आया है?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी बनाने पर कुल एक हजार करोड़ रूपये से भी अधिक का खर्च आया है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी पर होने वाले खर्च के लिए राशि कहां से जुटाई गई?

स्टेच्यू पर होने वाले खर्च के लिए राशि श्रद्धालुओं के दान से जुटाई गई है।

संत रामानुजाचार्य का कौन सा जयंती वर्ष मनाया जा रहा है?

संत रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती के उपलक्ष्य में सहस्त्राब्दि समारोह मनाया जा रहा है।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के साथ कितने माॅडल टेंपल बनाए गए हैं?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के साथ 108 माॅडल टेंपल बनाए गए हैं।

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण किस धातु से हुआ है?

स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण पंचलौह से हुआ है। इसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल एवं जस्ता शामिल हैं।

संत रामानुजाचार्य ने किस सिद्धांत का प्रतिपादन किया?

संत रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

दोस्तों, हमने आपको स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी के बारे में विस्तार से जानकारी। उम्मीद है कि ये जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।

यदि आप इसी प्रकार के किसी अन्य महत्वपूर्ण विषय पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए कमेंट बाक्स में कमेंट करके बता सकते हैं। आपकी प्रतिक्रियाओं का हमेशा की भांति स्वागत है। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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