कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक क्या है? खास बातें, विरोध और स्पष्टीकरण

केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीनों कृषि विधेयक अब कानून बन चुके हैं। देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को अपनी मंजूरी दे दी। इससे पहले इन्हें पारित करने के दौरान संसद का मानसून सत्र हंगामे से भरा रहा। किसानों से जुड़े इन तीन विधेयकों कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक – 2024, कृषक सशक्तीकरण एवं संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2024 और तीसरे आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक के बारे में आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से जानकारी देंगे। आइए शुरू करते हैं-

कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक 2024 क्या है?

सबसे पहले आपको कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक-2024 की जानकारी दें। इस विधेयक में एक ऐसा सिस्टम बनाने की बात कही गई है, जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। इन प्रावधानों में राज्य के भीतर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इसके साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च करने की बात लाई गई है। हालांकि यह कोई नहीं बात नहीं क्योंकि किसानों के लिए अपनी फसल को लेकर देश में कहीं भी जाकर बेचने की आजादी पहले भी थी।

कृषक सशक्तीकरण व संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 202

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अब बात कृषक सशक्तीकरण व संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2024 की। आपको बता दें कि इस विधेयक में खेती से जुड़े करारों पर नेशनल फ्रेमवर्क तैयार करने की बात कही गई है। कहा गया कि यह विधेयक कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवा, कृषि बिजनेस फर्म, थोक विक्रेताओं और बड़े रिटेल विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है। मूल रूप से कांट्रेक्ट फार्मिंग की बात करता है।

कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक क्या है? खास बातें, विरोध और स्पष्टीकरण

इसमें अनुबंधित किसानों को क्वालिटी बीज की सप्लाई सुनिश्चित कराने, तकनीकी सहायता और फसल के स्वास्थ्य की निगरानी, लोन सुविधा और फसल बीमा सुविधा मुहैया कराने की बात कही गई है। हालांकि विपक्ष की ओर से इस बिल को किसानों को मजदूर बनाने की साजिश की तरह देखा जा रहा है।

आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 202

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इस विधेयक के माध्यम से 66 साल पुरानी व्यवस्था खत्म कर दी गई है। इसमें अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू, प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया है। इसके लाने के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि इसके प्रावधानों की वजह से बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उसके उत्पाद का सही मूल्य मिल सकेगा। हालांकि, विपक्ष इसे कालाबाजारी, जमाखोरी में बढ़ोत्तरी होने की राह खुलने की साजिश कहते हुए इसकी मुखालफत कर रहा है।

नए कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक का विरोध

दोस्तों, आप जानते ही होंगे कि इन तीनों कृषि विधेयकों के कानून बन जाने का देश भर में किसान संगठनों ने विरोध किया है। अब हम आपको यह बताएंगे कि इस विरोध का आधार क्या है। दरअसल, किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होने से कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों, काॅरपोरेट घरानों के कब्जे में चला जाएगा। इससे सीधे सीधे किसानों को नुकसान होगा। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का केवल दावा किया है। इस बाबत कानून नहीं बनाया है। ऐसे में जिन उत्पादों पर किसानों को यह नहीं मिलेगी, तो वह अपनी फसल को कम दामों पर बेचने को गजबूर हो जाएंगे।

पंजाब को ही लें, वहां पैदा होने वाले गेहूं और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफसीआई करती है या फिर उसकी खरीद करती है। किसान संगठनों को इस बात का डर है कि अब भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई राज्य की मंडी से खरीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को करीब ढाई प्रतिशत के करीब कमीशन का नुकसान होगा। इसके साथ ही राज्य भी अपना छह फीसदी कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की खरीद पर लगाता है। इससे मंडियां खत्म हो जाएंगी। यहां के करीब तीस हजार कमीशन एजेंटों, तीन लाख मंडी मजदूरों के साथ ही 30 लाख खेती मजदूरों के लिए भी यह खासा बड़ा नुकसान साबित होगा।

एक बड़ा आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि सरकार ये बिल किसानों के लिए नहीं बल्कि बाजार के लिए लेकर आई है। विशेशज्ञों के मुताबिक सरकार दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिए जाने का दावा कर रही है, जबकि सच यह है कि ज्यादातर छोटे किसान एक जिले से दूसरे जिले में नहीं जा पाते दूसरे राज्य में जाने का तो सवाल नहीं उठता।

पांच एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को कांट्रेक्ट से फायदा होने की बात को भी वह बेमानी करार देते हैं। उनके मुताबिक इस प्रावधान से किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएगा। आवश्यक वस्तु संशोधन बिल पर विरोध इसलिए हो रहा है, क्योंकि आरोप है कि इससे कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। जमाखोरी होगी।

संसद का मानसून सत्र हंगामे से भरा, ड्रामा भी खूब हुआ

संसद का मानसून सत्र हंगामे से भरा रहा। कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए पहले ही प्रश्न सत्र न कराए जाने का फेसला कर लिया गया था। इसका विपक्ष ने विरोध किया। उसका कहना था कि प्रश्न सत्र के बगैर मानसून सत्र बुलाए जाने का कोई मतलब नहीं। इसी सत्र में कृषि विधेयक को पारित करने के लिए राज्य सभा में रखा गया। इस दौरान खूब ड्रामा हुआ। बिल की मुखालफत करते सांसद संजय सिंह, डेरेक ओ ब्रायन आदि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश की कुर्सी के आगे पहुंच गए और बिल की प्रतियां फाड़ दी। इस पर उन्हें कुछ दिन के लिए निलंबित कर दिया गया।

इस पर सांसद गांधी जी की प्रतिमा के समक्ष धरने पर बैठ गए। सुबह के वक्त हरिवंश खुद इन सांसदों के लिए चाय लेकर पहुंचे। इस पूरे ड्रामे को देखकर सभी ने खूब चटखारे लिए। सोशल मीडिया पर भी यह विरोध और हरिवंश का तरीका खूब वायरल होते रहे। सभी ने अपने अपने कमेंट्स के जरिये सांसदों के इस कदम पर अपनी प्रतिक्रिया दी। किसी ने सांसदों के कदम को ठीक ठहराया तोे किसी ने इसे उप सभापति का अपमान और सदन की गरिमा तार तार करने का प्रयास माना और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश के कदम की सराहना की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि हरिवंश के इस कदम की खूब सराहना की। लगे हाथ आपको यह भी बता दें कि हरिवंश एक अखबार प्रभात खबर के संपादक भी रह चुके हैं। वहां से वह एनडीए की ओर से राज्यभा के उपसभापति चुने गए थे। इस बार उन्हें दोबारा इस पद को संभालने का अवसर मिला है। यह उपसभापति के रूप में उनकी दूसरी पारी है।

राहुल गांधी ने किसान विरोधी बताया तो हरसिमरत कौर का इस्तीफा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिलों को किसान विरोधी षड़यंत्र करार दिया है। उन्होंने इस बारे में एक के बाद एक ट्वीट कर केंद्र सरकार पर बिलों को लेकर निशाना साधा। वहीं, केंद्रीय राज्य मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया। शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के खिलाफ इस्तीफे की बात कही। यह भी कहा कि किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है। अलबत्ता वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे आजादी के बाद किसानों को किसानी में नई आजादी करार दिया।

उत्तर प्रदेश के किसानों को बार्डर पर ही रोक दिया गया –

उत्तर प्रदेश के किसान अपनी उपज लेकर हरियाणा जा रहे थे, जिन्हें वहां के किसानों ने बार्डर पर ही रोक दिया। उत्तर प्रदेश के किसानों का कहना था कि वह अपनी फसल कहीं भी बेच सकते हैं, तो वहीं हरियाणा के किसान अपने राज्य में अपनी उपज प्राथमिकता से बेचे जाने की बात पर अड़े रहे। उनका कहना था कि उनके राज्य में उपज बिक्री का पहला हक उन्हें है। दोनों ओर के किसान आमने सामने आ गए।

अंतिम शब्द –

भारत आज भी एक कृशि प्रधान देश है। सदियों से किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं आया है। अब केंद्र सरकार किसानों के लिए आजादी के बाद नई आजादी की बात करते हुए तीन विधेयक लेकर आई, जो कानून भी बनें। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद के मानसून सत्र में लोकसभा की ओर से पारित तीनों विधेयकों को किसानों के लिए फायदेमंद बताया। वह बता चुके हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर किसानों से फसलों की खरीद पहले की ही तरह होगी। बिक्री के केवल तीन दिन के भीतर किसानों को भुगतान करने का प्रावधान है। उनका मानना था कि कृषि उत्पादों की बिक्री पर टैक्स कम होने से किसानों को उनकी उपज का ज्यादा दाम मिलेगा।

लेकिन जानकारों का कहना है कि इन विधेयकों के आने के बाद पूंजीपतियों की पूंजी बेशक बढ़े, लेकिन किसानों की हालत में सुधार होगा, यह सोचना बेमानी होगी। उल्टा वह किसानों की हालत उनके ही खेत में मजदूरों वाली होने की बात दोहरा रहे हैं। वह आवश्यक वस्तु संशोधन से जुड़े विधेयक को भी आम जन और किसान हित में न बताते हुए विरोध कर रहे हैं। खुद किसान संगठन जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

25 सितंबर को भारतीय किसान यूनियन से जुड़े 17 संगठनों ने दोपहर 12 से शाम तीन बजे तक बंद का आह्वान किया था। कई राज्यों में विरोध अभी चल रहा है। उनका कहना कि विधेयक तैयार करने और इन्हें संसद में लाए जाने से पूर्व किसानों से कोई बात नहीं की गई। उन्हें इस बात का डर है कि यह विधेयक, जो कि अब कानून का रूप ले चुके हैं, उनके लिए मुश्किल बनकर खड़े होंगे। इससे किसानों की स्थिति तो नहीं सुधरेगी, अलबत्ता उनकी हालत और खराब हो जाने की आशंका जरूर है। इससे केवल बड़े किसान ही फलेंगे फूलेंगे। छोटे किसान बर्बाद होकर रह जाएंगे।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के जरिये एक बार फिर इन कानूनों की अच्छी बात सामने रखी। इनके संबंध में स्पष्टीकरण भी दिया, लेकिन असल बात यह है कि किसानों के मन से डर फिर भी नहीं निकल पा रहा है। उनका मानना है कि उनके लिए खेती पहले भी फायदे का सौदा नहीं थी और अब ज्यादा मुश्किल हो जाएगी। केंद्र सरकार ने सपना 2024 तक किसानों की आय दुगुनी करने का दिखाया था, यह पता नहीं होगा कि नहीं, लेकिन खेती करने की लागत दुगुनी अवश्य हो जाएगी।

दोस्तों, यह थी कृषि उपज व्यापार संवर्धन एवं सरलीकरण विधेयक क्या है? खास बातें, विरोध और स्पष्टीकरण के संबंध में पूरी जानकारी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो नीचे दिए गए कमेंट बाॅक्स में कमेंट करके हम तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। आपकी प्रतिक्रियाएं हमारे लिए महत्वपूर्ण है। तो फिर देर किस बात की? कमेंट करिए और अपनी बात हम तक पहुंचाइए। ।।धन्यवाद।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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