भारतीय राजनीति में उठा पटक कोई नई चीज नहीं है। सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा तमाम तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। वहीं, इस सत्ता को बनाए रखने के लिए उन्हें कई बार फ्लोर टेस्ट का भी सामना करना पड़ता है। क्या आप जानते हैं कि फ्लोर टेस्ट क्या है? इसकी आवश्यकता क्यों पड़ती है? फ्लोर टेस्ट की क्या प्रक्रिया है? यदि नहीं, तो आज इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आपको इस पोस्ट में आपके भीतर फ्लोर टेस्ट को लेकर उठने वाले सारे सवालों के जवाब मिलेंगे। आइए, शुरू करते हैं-
फ्लोर टेस्ट क्या है? (What is floor test?)
दोस्तों, यदि भारतीय राजनीति (Indian politics) के संदर्भ में बात करें तो फ्लोर टेस्ट (floor test) शब्द का इस्तेमाल बहुमत परीक्षण के लिए किया जाता है। यह बहुमत परीक्षण सरकार द्वारा विश्वासमत हासिल करने के लिए किया जाता है। दोस्तों, यदि दूसरे शब्दों में कहें तो फ्लोर टेस्ट(floor test) के आधार पर ही यह तय होता है कि वर्तमान सरकार के पास सत्ता में बने रहने के लिए पर्याप्त बहुमत (majority) है या नहीं।
फ्लोर टेस्ट की आवश्यकता कब पड़ती है? (When floor test is required?)
अब सवाल उठता है कि फ्लोर टेस्ट की आवश्यकता कब पड़ती है? तो आपको बता दें कि यदि विपक्ष द्वारा किसी राज्य के मुख्यमंत्री (सीएम) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है अथवा उसके साथ आवश्यक संख्या बल को लेकर संदेह है, तो उन्हें सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त यदि गठबंधन सरकार है तो भी ऐसे मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत प्राप्त करने/बहुमत हासिल करने के लिए कहा जा सकता है। आपको यह भी बता दें दोस्तों कि यदि मामला किसी राज्य (state) से संबंधित है तो ऐसे में मुख्यमंत्री (chief minister) को बहुमत साबित करना होता है। वहीं, यदि बात केंद्र (center) की हो तो ऐसे में बहुमत साबित करने का जिम्मा प्रधानमंत्री (prime minister) के कंधों पर होगा।
फ्लोर टेस्ट कॉल की पावर किसके पास होती है? (Who has the power to call for floor test?)
दोस्तों, अब आप पूछेंगे कि फ्लोर टेस्ट बुलाने की शक्ति किसके पास है? तो आपको बता दें कि भारतीय संविधान के एक अनुच्छेद में राज्यपाल यानी गवर्नर (governor) को यह शक्ति प्राप्त है। उसके पास मौजूदा सरकार के पास राज्य विधान सभा (विधानसभा) में बहुमत है या नहीं, इसके परीक्षण के लिए सदन के सदस्यों को बुलाने एवं बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट बुलाने की शक्ति है।
दोस्तों , आपको बता दें कि केंद्र या राष्ट्रीय स्तर (central/national level) पर यह शक्ति राष्ट्रपति (president) के पास निहित है। दोस्तों, यह भी साफ कर दें कि राज्यपाल/राष्ट्रपति केवल फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश (order) देते हैं। इसकी प्रक्रिया (process) में राज्यपाल/राष्ट्रपति का किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप (interference) नहीं होता है।
फ्लोर टेस्ट कराने की पूरी जिम्मेदारी सदन (house) के स्पीकर (speaker) के पास होती है। लेकिन यदि स्पीकर का चुनाव नहीं हुआ है तो ऐसे में पहले प्रोटेम स्पीकर (protem speaker) नियुक्त किया जाता है। यह तो आप जानते ही हैं कि प्रोटेम स्पीकर अस्थायी स्पीकर (temporary speaker) होता है। नई विधानसभा अथवा लोकसभा चुने जाने पर प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। वही सदन के सदस्यों को शपथ भी दिलाता है।
फ्लोर टेस्ट की क्या प्रक्रिया है? (What is the process of floor test?)
दोस्तों, आपको बता दें कि फ्लोर टेस्ट सदन में होने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया (partial process) है। अगर मामला राज्य का है तो विधान सभा में फ्लोर टेस्ट होता है और अगर मामला केंद्र का है तो लोकसभा में। आइए, जान लेते हैं कि इसकी क्या प्रक्रिया है। दोस्तों,
फ्लोर टेस्ट में विधायकों (राज्य के मामले में) या सासंदों (केंद्र के मामले में) सदन में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होता है। ये सभी यहां सदन के सामने अपना वोट देते हैं।
सबसे पहले स्पीकर विधायकों से ध्वनिमत से सरकार के पक्ष और विपक्ष में समर्थन जानने की कोशिश करते हैं। इसके पश्चात कोरम बेल बजती है। अब विधायकों को पक्ष (favor) और विपक्ष (opposition) में बंटने के लिए कहा जाता है।
इसके बाद पक्ष और विपक्ष के समर्थन में विधायकों की संख्या की गिनती की जाती है। इसके पश्चात स्पीकर द्वारा फ्लोर टेस्ट का नतीजा (result) घोषित किया जाता है। दोस्तों, यदि सरकार के पास आवश्यक विधायकों का समर्थन होता है तो साफ है कि ऐसा होने पर सरकार बच जाती है। लेकिन यदि अधिक विधायकों का समर्थन उसके विरोध में होता है तो ऐसे में सरकार गिर जाती है।
क्या किसी मुख्यमंत्री द्वारा फ्लोर टेस्ट से पहले भी इस्तीफा दिया जाता है? (Does any cm resign before floor test too?)
जी हां दोस्तों। ऐसा कई बार देखा गया है कि मुख्यमंत्रियों द्वारा फ्लोर टेस्ट से पूर्व ही इस्तीफा दे दिया गया हो। अब पूछेंगे कि ऐसा क्यों होता है? दोस्तों, ऐसा आम तौर पर तब होता है, जब उन्हें लगता है कि उनकी सरकार के पास में पर्याप्त विधायकों का समर्थन नहीं हैं। उनके इस्तीफा दे देने की स्थिति में फ्लोर टेस्ट की आवश्यकता नहीं रह जाती। सरकार गिर जाती है।
किसी सरकार के मुख्यमंत्री को बहुमत के लिए कितना समर्थन होना आवश्यक है? (How much support is necessary for any governments cm to get)
दोस्तों, विश्वास मत का अर्थ है भरोसा। यह आप जानते हैं कि किसी भी राज्य में सरकार चलाने के लिए मुख्यमंत्री के पास सदन का भरोसा यानी बहुमत होना चाहिए। यदि संख्या की बात करें तो दोस्तों जान लीजिए कि सरकार में बने रहने के लिए सत्ताधारी पार्टी को सदन में 50 फीसदी से एक अधिक विधायकों का समर्थन हासिल होना आवश्यक है।
फ्लोर टेस्ट के क्या क्या तरीके होते हैं? (What are the methods of floor test?)
दोस्तों, फ्लोर टेस्ट आपको बता दे जान लेते हैं कि इसमें बहुमत कितनी तरह से साबित होता है। दोस्तों, इसके तीन तरीके हैं- पहला ध्वनिमत, दूसरा संख्याबल और तीसरा हस्ताक्षर के जरिए। आइए अब इन तीनों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
ध्वनिमत (sound) : इस तरीके में बहुमत पक्ष/विपक्ष सदस्यों की ध्वनि आवृत्ति से जाना जाता है।
संख्याबल (headcount): जब विधायक सदन में खड़े होकर गिनती के जरिए अपना बहुमत दर्शाते हैं।
लॉबी बंटवारा (lobby partition) : इसमें विधानसभा सदस्य लॉबी में आकर रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं। यहां ‘हां’ एवं ‘न’ के लिए अलग लॉबी (seperate lobby) होती है। यद्यपि अब इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग (electronic voting) का भी सहारा लिया जाने लगा है।
वर्तमान में किस सरकार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा? (At present which government has to face floor test?)
दोस्तों, यह तो आप जानते ही है कि बिहार में राजद (आरजेडी) के साथ नाता तोड़कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला लिया है। गठबंधन सरकार होने के नाते अब 12 फरवरी, 2024 को नीतीश कुमार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा यानी कि उन्हें सदन (house) में बहुमत साबित करना होगा।
दोस्तों, आपको यह भी बता दें कि फ्लोर टेस्ट उसी दिन होता है जब सत्र ना चल रहा हो। यदि फ्लोर टेस्ट में नीतीश कुमार बहुमत साबित नहीं कर पाए तो उनकी सरकार गिर जाएगी। यद्यपि ऐसा होने की संभावना बेहद क्षीण है।
देश में पहली बार किस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया? (which government faced no confidence motion for the first time in india?)
दोस्तों, आइए लगे हाथों यह भी जान लेते हैं कि भारत में पहली बार नो कॉन्फिडेंस मोशन (no confidence motion) यानी अविश्वास प्रस्ताव किस सरकार के खिलाफ लाया गया। मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि आज से करीब 62 वर्ष पूर्व सन् 1962 में चीन युद्ध (china war) में हार के पश्चात आचार्य जेबी कृपलानी (Acharya JB kriplani) बहुत व्यथित थे।
उनके द्वारा अगस्त, 1963 में संसद (parliament) के मानसून सत्र (monsoon session) के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू (pandit Jawaharlal Nehru) के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) लाया गया। लेकिन जान लीजिए कि इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े। 347 मत इसके विरोध में रहे। सरकार बची रही।
फ्लोर टेस्ट के लिए विभिन्न पार्टियों द्वारा क्या रणनीति अपनाई जाती है? (What strategy is adopted by different parties for floor test?)
दोस्तों, आपको बता दें कि विभिन्न पार्टियों द्वारा अपने विधायकों/सांसदों को फ्लोर टेस्ट (floor test) वाले दिन सदन में मौजूद रहने के लिए व्हिप (Whip) यानी श्वेत पत्र (white paper) जारी किया जाता है। यदि दल के सदस्यों द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है तो ऐसी स्थिति में उसके खिलाफ दल बदल में कार्रवाई (action) भी की जाती है।
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फ्लोर टेस्ट क्या होता है?
इस शब्द को सदन में बहुमत परीक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया जाता है?
यदि किसी सरकार के मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो अथवा गठबंधन सरकार हो तो ऐसे में फ्लोर टेस्ट बुलाया जाता है।
फ्लोर बुलाने की शक्ति किसके पास होती है?
राज्य के मामले में यह शक्ति राज्यपाल के पास होती है। जबकि केंद्र के मामले में यह शक्ति राष्ट्रपति के पास निहित है।
फ्लोर टेस्ट की क्या प्रक्रिया है?
इस प्रक्रिया के बारे में हमने आपको ऊपर पोस्ट में विस्तार से जानकारी दी है। आप वहां से देख सकते हैं।
फ्लोर टेस्ट में खरा उतरने के लिए किसी सीएम के पास कितना बहुमत होना चाहिए?
फ्लोर टेस्ट में खरा उतरने के लिए किसी सीएम के पास 50 फ़ीसदी से अधिक बहुमत होना चाहिए।
वर्तमान में किस सरकार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा?
वर्तमान में बिहार की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा।
बिहार में फ्लोर टेस्ट के लिए कौन सी तिथि निर्धारित की गई है?
बिहार में फ्लोर टेस्ट के लिए 12 फरवरी, 2024 का दिन निर्धारित किया गया है।
क्या किसी मुख्यमंत्री द्वारा फ्लोर टेस्ट से पहले भी इस्तीफा दिया जाता है?
जी हां। जब किसी मुख्यमंत्री को लगता है कि उसके पास सरकार बचाए रखने लायक आवश्यक विधायकों का समर्थन नहीं है तो ऐसी स्थिति में उसके द्वारा त्यागपत्र यानी इस्तीफा दे दिया जाता है। और सरकार गिर जाती है।
फ्लोर टेस्ट के लिए विभिन्न पार्टियों द्वारा क्या रणनीति अपनाई जाती है?
विभिन्न पार्टियों द्वारा अपने सदस्यों को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में मौजूद रहने के लिए श्वेत पत्र जारी किया जाता है।
दोस्तों, इस पोस्ट में हमने आपको बताया कि फ्लोर टेस्ट क्या है? इसकी आवश्यकता क्यों पड़ती है? फ्लोर टेस्ट की क्या प्रक्रिया है? उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट ने आपकी जानकारी में इजाफा किया होगा। इस पोस्ट पर अपना कोई भी सवाल अथवा सुझाव आप हमें नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके भेज सकते हैं। ।।धन्यवाद।।