होलाष्टक क्या होता है? इसकी शुरुआत कब से होती है? इसके पीछे कौन सी कथाएं प्रचलित हैं?

रंग पर्व होली का हर किसी को इंतजार होता है। इसके लिए कुछ दिन पहले से ही घरों में गुझिया, मठरी, पापड़ आदि बनना शुरू हो जाता है। रंगों को लाकर रख लिया जाता है। पुराने कपड़े निकालकर रख लिए जाते हैं, ताकि उन्हें पहनकर रंग खेला जा सके। घरों से दूर रह रहे लोग किसी भी तरह ट्रेन आदि में सीट का जुगाड कर घर वापस पहुंचने लगते हैं।

लेकिन इसी बीच होलाष्टक भी पड़ता है। होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य करना निषेध होता है। क्या आप जानते हैं कि होलाष्टक क्या होता है? इस दौरान कौन से काम नहीं करने चाहिए? यदि नहीं, तो आज इस पोस्ट में हम आपको इसी संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं –

Contents show

होलाष्टक क्या होता है? (What is Holashtak?)

दोस्तों, सबसे पहले जान लेते हैं कि होलाष्टक क्या होता है? (What is Holashtak?) यह तो आप देख ही सकते हैं कि होलाष्टक दो शब्दों होली +अष्टक से मिलकर बना है। अष्टक का अर्थ है 8 दिन। दोस्तों, आपको बता दें कि होली के ठीक पहले आठ दिन का समय होलाष्टक पुकारा जाता है। इसकी शुरुआत फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से होती है और यह पूर्णिमा यानी होलिका दहन (Holika Dahan) के साथ पूरा होता है।

होलाष्टक क्या होता है

इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि होलाष्टक से ही होलिका दहन व रंग पर्व होली की तैयारी शुरू हो जाती हैं। स्कूलों अथवा मोहल्ले में बच्चे हल्की-फुल्की होली खेलना शुरू कर देते हैं। अक्सर स्कूली बच्चों की परीक्षाएं भी इसी बीच पड़ जाती हैं। ऐसे में स्कूलों में भी परीक्षा से पूर्व एक दूसरे को रंग लगाकर परीक्षा के लिए शुभकामनाएं दे दी जाती हैं।

वर्ष 2024 में होलाष्टक कब है? (When is holashtak in 2024?)

दोस्तों, अब आप निश्चित रूप से यह जानना चाहेंगे कि वर्ष 2024 में होलाष्टक कब है? तो आपको जानकारी दे देंगे वर्ष 2024 में 24-25 मार्च की होली है। ऐसे में होलाष्टक 17 मार्च, 2024 से प्रारंभ हो चुका है। यह 24 मार्च, 2024 को होलिका दहन (Holika Dahan) तक चलेगा। 25 मार्च को धुलंडी होगी यानी कि रंग खेला जाएगा।

होलाष्टक मनाए जाने के पीछे क्या कारण है? (What is the reason behind Holashtak?)

दोस्तों, होलाष्टक मनाए जाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से दो पौराणिक कथाएं आमतौर पर प्रमुखता से कही जाती हैं। इनमें से पहली कथा भक्त प्रहलाद से संबंधित है। इसके अनुसार, राजा हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। कहा जाता है कि राजा हिरण्यकशिपु को यह नहीं सुहाता था। अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक कठिन यातनाएं दीं। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जल सकती।

ऐसे में भाई हिरण्यकशिपु की सहायता के लिए वह भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गयी और जल गई। तभी से होलिका दहन होता आया है। भक्त प्रह्लाद ईश्वर की कृपा से सुरक्षित रहे। लेकिन प्रह्लाद को मिली यातनाओं के शोक में आठ दिन का होलाष्टक होता है। इस दौरान सभी मंगल कार्यों की मनाही होती है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव की तपस्या को कामदेव ने भंग कर दिया, जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने फाल्गुन शुक्ल की अष्टमी को अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। इस पर कामदेव की पत्नी रति विलाप करने लगी। रति ने भगवान शिव की लगातार 8 दिन तक तप-आराधना की, जिससे प्रभावित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। रति के 8 दिन के कठोर तप के दृष्टिगोचर यह समय होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।

होलाष्टक के दौरान कौन से कार्य नहीं करने चाहिए? (What activities should not be done in holashtak?)

दोस्तों, आपको बता दें कि होलाष्टक के दौरान किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इनमें सगाई, लग्न आदि विवाह संस्कार एवं मुंडन संस्कार समेत कुल 16 संस्कार शामिल हैं। इसके अतिरिक्त गृह प्रवेश, मकान अथवा जमीन की खरीद, वाहन की खरीद-बिक्री आदि भी निषेध होती है। दोस्तों इसके अतिरिक्त होलाष्टक के दौरान नया व्यापार भी शुरू नहीं किया जाता। यद्यपि कई स्थानों पर जन्म एवं मृत्यु संस्कार से जुड़े आवश्यक कार्य होते हैं।

होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित क्यों होते हैं? (Why auspicious activities are not done in Holashtak?)

दोस्तों, अब आप सोच रहे होंगे कि होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित क्यों होते हैं? तो आपको बता दें कि धार्मिक जानकारों के अनुसार होलाष्टक में सभी आठ ग्रह यथा अष्टमी पर चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी पर शनि, एकादशी पर शुक्र, द्वादशी पर बृहस्पति, त्रयोदशी पर बुध, चतुर्दशी पर मंगल और पूर्णिमा के दिन राहु उग्र अवस्था में होते हैं।

इनकी इन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों (adverse situations) के चलते इस समय महत्वपूर्ण कार्य से बचने को कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव (negative effect) से सफलता (success) प्रभावित होती है। व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता (ability of decision making) पर असर पड़ता है। वह कई बार परिस्थितियों के अनुरूप फैसला नहीं ले पाता। इस वजह से उसके जीवन में चुनौतियां (challenges) आती हैं। उसे अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

होलाष्टक में क्या किया जाना चाहिए? (What should be done in holashtak?)

दोस्तों, होलाष्टक में शुभ है वह मांगलिक कार्य बेशक निषेध होते हैं, लेकिन इस समय पूजा-पाठ एवं जप-तप आदि का निषेध नहीं होता, बल्कि इनका विशेष महत्व होता है। इस दौरान दान-पुण्य किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों को दान-भोज आदि कराना चाहिए। इस दौरान ग्रहों की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी लाभकारी माना जाता है। कुल मिलाकर यह भक्ति की शक्ति का समय होता है।

होलाष्टक मुख्य रूप से कहां-कहां मनाया जाता है? (Mainly where Holashtak is celebrated?)

दोस्तों, आपको बता दें कि होलाष्टक मुख्य रुप से उत्तरी भारत (North India) एवं पंजाब (Punjab) में मनाया जाता है। होली के आठ दिन पहले शुरू होता है। आम तौर पर होलाष्टक से ही लोग होलिका दहन एवं रंग पर्व होली के त्योहार से जुड़ी तैयारियां शुरू कर देते हैं। यदि गांव-देहात की बात करें तो होलाष्टक शुरू होने के दिन लोग होलिका दहन वाले क्षेत्र का चुनाव करते हैं। इस स्थान की गाय के गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई करते हैं।

उनके द्वारा इस स्थान पर दो डंडियां लगाई जाती हैं, जिनमें से एक डंडी को होलिका का एवं दूसरी डंडी को प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है। जहां अरंडी का वृक्ष होता है, उस स्थान पर एक डंडी इसी पेड़ की रखते हैं। इसकी वजह यह है कि ये आग में नहीं जलता। यहां होलिका दहन के लिए हर दिन पेड़ों से गिरी सूखी टहनियां, सूखी घास, उपले आदि एकत्र किए जाते हैं। होलिका दहन के दिन यह सब अग्नि में दहन कर दिया जाता है।

यद्यपि दोस्तों धीरे-धीरे पुरानी परंपरा (old tradition) लुप्त होती जा रही हैं। इंटरनेट (Internet) के बढ़ते प्रभावों ने इंसानी संबंधों और उत्सवों की मान्यताओं, रीति-रिवाजों व उनके मनाए जाने के तरीकों पर बुरा असर डाला है। होली भी इसका अपवाद नहीं है। अब होली पर लोग पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से बचने लगे हैं। हर दूसरा व्यक्ति सूखे और हर्बल रंगों (dry and herbal colours) के इस्तेमाल के लिए सचेत करना नजर आता है।

FaQ

होलाष्टक क्या होता है?

होलाष्टक दो शब्दों होली+अष्टक से मिलकर बना है, जिसका अर्थ आठ दिन होता है। ऐसे में होली से ऐन पहले 8 दिन का समय होलाष्टक कहलाता है।

होलाष्टक के पीछे कौन-कौन सी कथाएं प्रचलित हैं?

होलाष्टक के पीछे की कथाएं हमने आपके ऊपर पोस्ट में विस्तार से बताई हैं। आप वहां से देख सकते हैं।

इस दौरान किस प्रकार के कार्य निषेध होते हैं?

इस दौरान शुभ एवं मंगल कार्यों का निषेध होता है।

क्या होलाष्टक के दौरान पूजा-पाठ किया जा सकता है?

जी हां, होलाष्टक के दौरान पूजा-पाठ एवं जप-तप किया जा सकता है।

होलाष्टक कब से शुरू होकर कब तक चलता है?

होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से होती है। यह पूर्णिमा यानी होलिका दहन के साथ पूरा होता है।

वर्ष 2024 में होलाष्टक कब पड़ रहा है?

वर्ष 2024 में 24-25 मार्च की होली है। ऐसे में होलाष्टक 17 मार्च, 2024 से प्रारंभ हो चुका है। यह 24 मार्च, 2024 को होलिका दहन तक चलेगा।

होलाष्टक में क्या किया जाना चाहिए?

इस दौरान दान-पुण्य, ग्रहों की शांति के लिए महामृत्युंजय जाप आदि किया जाना चाहिए। इस समय उसका विशेष महत्व होता है।

होलाष्टक मुख्य रूप से कहां-कहां मनाया जाता है?

होलाष्टक मुख्य रूप से उत्तरी भारत एवं पंजाब में मनाया जाता है।

दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको बताया कि होलाष्टक क्या होता है? इसकी शुरुआत कब से होती है? इसके पीछे कौन सी कथाएं प्रचलित हैं? इस दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए? उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट से आपकी जानकारी में वृद्धि हुई होगी। ऐसी ही अन्य पोस्ट पाने के लिए आप हमें नीचे दिए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
[fluentform id="3"]

Leave a Comment