अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? | यह क्यों लाया जाता है? | What is No Confidence Motion? Why it is bring? | विश्वास मत न पाने के कारण कितने प्रधानमंत्रियों को अब तक इस्तीफा देना पड़ा है? | क्या अविश्वास प्रस्ताव के चलते भारत में कोई सरकार गिरी भी है? ||
मणिपुर के हालात से हर कोई व्यथित है। विपक्ष इसे लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है। उसका कहना है कि सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर संसद में जारी गतिरोध के बीच 26 जुलाई, 2024 को लोकसभा में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है। इस पर चर्चा के लिए सदन द्वारा मंजूरी भी दे दी गई है। यद्यपि बहुत से लोगों को अभी यह भी नहीं मालूम कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है।
यदि आप भी ऐसे ही लोगों में है तो चिंता मत कीजिए। आज हम आपको इस संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आपको बताएंगे कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? इसे क्यों लाया जाता है? सबसे पहले देश में अविश्वास प्रस्ताव कब लाया गया? अभी तक किस प्रधानमंत्री के खिलाफ सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है? आदि। आइए, शुरू करते हैं-
अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? यह क्यों लाया जाता है? (What is No Confidence Motion? Why it is bring?)
दोस्तों, आपको बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव यानी नो कॉन्फिडेंस मोशन (no confidence motion) एक संसदीय प्रक्रिया (parliamentary procedure) है। इसे सदैव विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ लाया जाता है। आपको बता दें दोस्तों कि सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव निचले सदन के किसी सदस्य द्वारा लोकसभा के प्रक्रिया व व्यवहार संबंधी नियम 198 के अंतर्गत लाया जा सकता है। वर्ष 1952 में यह प्रविधान किया गया कि 30 लोकसभा सदस्यों (अब 50) के समर्थन से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
यह प्रस्ताव सरकार में भरोसा खत्म हो जाने के प्रतीक के तौर पर पेश किया जाता है। इसके लिए सदन में 50 सदस्यों का समर्थन हासिल करना आवश्यक होता है। इसके पश्चात लोकसभा अध्यक्ष को सुबह 10 बजे से पहले इस संबंध में नोटिस दिया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष (speaker) द्वारा इसे स्वीकार कर लेते हैं तो इसके पश्चात दिन और समय (date and time) तय कर चर्चा के लिए बुलाया जाता है।
आवश्यकता पड़ने पर सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों ही पक्षों द्वारा वोटिंग की जाती है। वोटिंग में हार जाने पर प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है। हालांकि कई बार किसी खास मुद्दे को लेकर भी विपक्ष द्वारा सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, ताकि सरकार को घेरा जा सके। मामले पर चर्चा हो और प्रधानमंत्री को बोलने पर विवश किया जा सके।
देश में पहला अविश्वास प्रस्ताव कब लाया गया? (When the first no confidence motion was bring in country?)
दोस्तों, आपको जानकारी दे दें कि भारत में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था। वह 1963 का साल था। भारत -चीन के त्रासद युद्ध के पश्चात सन् 1963 में आचार्य जेबी कृपलानी द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे। वहीं, विरोध में 347 मत आए थे। लिहाजा, यह अविश्वास प्रस्ताव सिरे से गिर गया था।
अभी तक देश में कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है? (Till now how many times no confidence motion has been brought?
दोस्तों, यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है। आपको बता दें कि हमारे देश में अभी तक छह दशकों में कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। देश के पहले पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। दोस्तों, आपको बता दें कि कांग्रेस की सत्ता में पूरे 10 साल प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनके खिलाफ कभी कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया।
विश्वास मत न पाने के कारण कितने प्रधानमंत्रियों को अब तक इस्तीफा देना पड़ा है? (How many prime ministers had to left the post after not getting confidence vote?)
दोस्तों, आपको बता दें कि विश्वास मत पाने के लिए हुई वोटिंग में हारने के चलते देश में अभी तक तीन प्रधानमंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है और सत्ता छोड़नी पड़ी है। ये इस प्रकार से हैं-
विश्वनाथ प्रताप सिंह (vishwanath Pratap Singh) :
अविश्वास प्रस्ताव के चलते सन् 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिरी थी। 1990 के नवंबर महीने में विश्वनाथ प्रताप सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस दौरान राम मंदिर के मामले को लेकर भाजपा द्वारा सरकार से समर्थन वापस ले लिया गया। उस समय इस प्रस्ताव के पक्ष में 346, जबकि विरोध में 142 वोट पड़े थे।
एचडी देवगौड़ा (HD devegowda) :
विश्वनाथ प्रताप सिंह के विश्वास खोने के ऐन सात साल बाद सन् 1997 में एचडी देवगौड़ा की सरकार को कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। उस समय सरकार के पक्ष में 158, जबकि उसके खिलाफ 292 सांसदों ने वोटिंग की, लिहाजा सरकार को जाना पड़ा देवगौड़ा सरकार को जाना पड़ा।
अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) :
दोस्तों, इसके बाद सन् 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को भी अविश्वास प्रस्ताव की वजह से जाना पड़ा। उनके खिलाफ यह प्रस्ताव 17 अप्रैल, 1999 को लाया गया। मजे की बात यह थी कि इसमें अटल बिहारी वाजपेयी को महज एक वोट से हार का सामना करना पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ था कि क्योंकि, एआईएडीएमके द्वारा समर्थन वापस ले लिया गया था।
दोस्तों, यहां कोई है जानकारी भी दे दे कि अटल बिहारी वाजपेई सरकार को 2003 में भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था, यद्यपि इस वर्ष उन्हें बहुमत हासिल था। उनकी कुर्सी बची रही। उनके खिलाफ यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की नेता सोनिया गांधी द्वारा लाया गया था। वह अविश्वास प्रस्ताव 189 के मुकाबले 314 मतों से गिर गया।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सबसे लंबी बहस किस प्रधानमंत्री के खिलाफ चली थी? (Against which pm the most lengthy debate carried on during no confidence motion?)
मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि भारत के तीसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ कुल तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। पहली बार 2 सितंबर, 1964 में एनसी चटर्जी (NC Chatterjee) द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इस पर वोटिंग 18 सितंबर, 1964 को हुई। लेकिन चटर्जी लाल बहादुर शास्त्री की सरकार गिराने में असफल रहे।
अलबत्ता, उनके खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर लंबी चर्चा चली, जो सबसे लंबी चर्चा मानी जाती है। यह 24 घंटे से भी अधिक समय तक चली। दोस्तों, आपको बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ मार्च, 1965 और अगस्त 1965 में भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, लेकिन दोनों बार वह अविश्वास प्रस्ताव मुंह के बल गिरा।
भारत के किस प्रधानमंत्री ने सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया? (Which prime minister of India faced the maximum number of no confidence motion?)
दोस्तों, अब आप यह जरूर जानना चाहते होंगे कि हमारे देश के किस प्रधानमंत्री के खिलाफ सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव लाए गए तो आपको बता दें कि उस प्रधानमंत्री का नाम इंदिरा गांधी है। उनके खिलाफ सर्वाधिक 12 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया।
यह अलग बात है कि यह सभी प्रस्ताव गिर गए। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (cpm) के लोकसभा सदस्य ज्योतिर्मय बसु (jyotirmoy Basu) द्वारा वर्ष 1973 से लेकर सन् 1975 तक लगातार चार बार इंदिरा गांधी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए। ये प्रस्ताव क्रमशः नवंबर, 1973, मई, 1974, जुलाई, 1974 और मई 1975 में लाए गए। इनमें से एक अविश्वास प्रस्ताव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ उनके द्वारा आपातकाल यानी इमरजेंसी (emergency) की घोषणा से लगभग एक माह पहले लाया गया था। इसके अतिरिक्त उन्हें वर्ष 1981 और 1982 में भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा।
क्या अविश्वास प्रस्ताव के चलते भारत में कोई सरकार गिरी भी है? (Is there any fall of government due to no confidence motion?)
दोस्तों, आपको बता दें कि भारत में अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव से केवल एक बार ही सरकार गिरी है। वह मोरारजी देसाई (morarji desai) की सरकार थी। उस वक्त विश्वास मत के लिए वोटिंग (voting) से पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा इस्तीफा दे दिया गया था। दोस्तों, आपको बता दें कि देसाई के खिलाफ कांग्रेस के वाईबी चव्हाण (YB chavan) द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। मोरारजी देसाई के खिलाफ इससे पूर्व एक और अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) लाया गया था।
क्या प्रधानमंत्री राजीव गांधी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था? (Had Rajeev Gandhi also faced no confidence motion?)
जी हां दोस्तों, तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के पश्चात सानू होती की लहर पर सवार होकर प्रचंड बहुमत से राजीव गांधी सत्ता में पहुंचे थे। लेकिन उनके खिलाफ भी विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। वह सन 1987 था। यद्यपि राजीव गांधी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था। आपको बता दें दोस्तों कि उनके समय में बजाय वोटिंग के ध्वनि मत का इस्तेमाल किया गया था।
क्या कभी विश्वास मत का मामला कोर्ट भी पहुंचा है? (Has there been any matter brought in to the court regarding confidence vote?)
जी हां दोस्तों, विश्वास मत हासिल करने के दौरान विवाद की स्थिति पैदा होने पर कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल में ऐसा भी हुआ। आपको बता दें कि राव के सामने वर्ष 1992 में दो बार अविश्वास प्रस्ताव के कारण सरकार बचाने का संकट उत्पन्न हुआ।
पहला अविश्वास प्रस्ताव जसवंत सिंह द्वारा पेश किया गया, जो 46 वोट से गिर गया। इसके पश्चात नरसिम्हा राव के खिलाफ दूसरा अविश्वास प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेई द्वारा लाया गया। इस बार भी राव अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे।
आपको बता दें कि वर्ष 1993 में नरसिम्हा राव के खिलाफ तीसरा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इसमें वह बमुश्किल 14 वोट से सरकार बचा सके। दोस्तों, आपको बता दें कि सरकार द्वारा विश्वास मत हासिल करने के दौरान उस समय हलचल मच गई, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (jharkhand mukti morcha) के लोकसभा सदस्यों पर पैसा लेकर सरकार के पक्ष में वोटिंग का आरोप लगा। यह मामला कोर्ट भी पहुंचा था।
क्या वर्तमान की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पहले भी अविश्वास प्रस्ताव आ चुका है? (Has Narendra Modi government faced no confidence motion earlier too?)
दोस्तों, यदि आप नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि पिछले 9 वर्ष में यह दूसरा अवसर होगा, जबकि मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी। जी हां दोस्तों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बार इससे पूर्व भी अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) लाया जा चुका है।
आपको बता दें कि वह प्रस्ताव आज से लगभग 5 वर्ष पूर्व सन 2018 में टीडीपी (TDP) यानी तेलुगू देशम पार्टी (Telugu desham party) के श्रीनिवास केसिनेनी द्वारा पेश किया गया था। यद्यपि 11 घंटे की बहस के बाद वह प्रस्ताव गिर गया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में 126, जबकि विपक्ष में 325 मत पड़े थे।
आपको याद होगा दोस्तों कि प्रस्ताव पर बहस के पश्चात कांग्रेस नेता राहुल गांधी (congress leader Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री मोदी की सीट पर पहुंचकर उन्हें गले लगाया था। उनका यह आचरण कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। उनके इस कदम पर कई मीम्स (memes) भी बने। यद्यपि उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस अविश्वास प्रस्ताव को अपनी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अहंकार करार दिया गया।
क्या लोकसभा नियमों में विश्वास प्रस्ताव का प्रावधान भी होता है? (Is there any provision of confidence motion in parliament rules too?)
साथियों, हमने आपको अविश्वास प्रस्ताव के बारे में तो बताया, लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि क्या लोकसभा के नियमों में कोई विश्वास प्रस्ताव का भी नियम है? तो जी हां दोस्तों। जान लीजिए कि
लोकसभा नियमों में विश्वास प्रस्ताव का भी प्रावधान किया गया है। आपको बता दें कि इसे सरकार की तरफ से प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद सदन में वोटिंग के सहारे सरकार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास करती है। विश्वास मत को लेकर अभी तक जो सरकारें गिरी है उसके संबंध में हम आपको पर पोस्ट में जानकारी दे ही चुके हैं।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कितने दिनों के भीतर करनी होती है?
दोस्तों, यह तो हमने आपको बताया ही है कि वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मंजूर कर लिया गया है। अब इस पर चर्चा होनी है जिसके लिए सदन के भिन्न सदस्यों के साथ विचार के पश्चात दिन और समय तय किया जाएगालेकिन आपको यह भी बता दे कि इस चर्चा को प्रस्ताव पेश करने के 10 दिन के अंदर कराया जाना आवश्यक है।
दोस्तों, इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि किसी भी सरकार के खिलाफ लगातार एक के बाद एक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाए जा सकते। इसके लिए 180 दिन का यानी 6 महीने का अंतर होना आ.वश्यक है।
अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?
यह एक संसदीय प्रक्रिया होती है इसके माध्यम से विपक्ष यह बताता है कि उसकी सरकार में भरोसा समाप्त हो चुका है।
अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कितने सदस्यों का समर्थन आवश्यक है?
अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए संसद के निचले सदन यानी लोकसभा के 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।
वर्तमान में किस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है?
वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।
क्या नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है?
जी नहीं, नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है?
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सबसे लंबी बहस किस प्रधानमंत्री के खिलाफ चली थी?
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सबसे लंबी बहस तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ चली थी।
देश के किस प्रधानमंत्री द्वारा सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया गया?
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया गया।
अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद ही अब तक किसकी सरकार गिरी है?
अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद ही अब तक केवल मोरारजी देसाई की सरकार गिरी है। उन्होंने बगैर वोटिंग ही इस्तीफा दे दिया था।
विश्वास मत के लिए वोटिंग के बाद अब तक कितनी सरकारों को जाना पड़ा है?
विश्वास मत के लिए वोटिंग के बाद अब तक तीन सरकारों को जाना पड़ा है इनमें वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेई एवं एचडी देवगौड़ा सरकार शामिल हैं।
क्या किसी सरकार के खिलाफ एक के बाद एक अविश्वास प्रस्ताव लाए जा सकते हैं?
जी नहीं, इसके लिए दो प्रस्तावों के बीच 180 दिन यानी छह माह का अंतर होना आवश्यक है।
दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको अविश्वास प्रस्ताव के बारे में जानकारी दी। उम्मीद करते हैं कि इससे आपकी जानकारी में बढ़ोतरी हुई होगी। यदि इस पोस्ट को लेकर आपका कोई सवाल अथवा सुझाव है तो उसे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके हमें बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।