हमारे देश भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन आदि तमाम धर्मों के अनुयाई निवास करते हैं। इनमें सभी की अपनी अपनी परंपराएं, प्रथाएं व मान्यताएं हैं। जैन धर्म की सल्लेखना/संथारा विधि अक्सर चर्चा में रहती है। क्या आप जानते हैं कि सल्लेखना क्या है? सल्लेखना कौन कर सकता है? सल्लेखना के कौन कौन से अतिचार हैं? यदि नहीं तो आज इस पोस्ट में हमने इसी संबंध में विस्तार से जानकारी देंगे। आइए, शुरू करते हैं –
सल्लेखना क्या है? (What is sallekhana?)
दोस्तों, अब जान लेते हैं कि सल्लेखना क्या है? यहां आप देख सकते हैं कि सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत्+लेखना। इसका शाब्दिक अर्थ है अच्छाई का लेखा-जोखा। इस प्रक्रिया में देह त्याग करने के लिए स्वेच्छा से अन्न और जल का त्याग किया जाता है और परमात्मा के प्रति अपना ध्यान लगाया जाता है। सम्यक् यानी उचित प्रकार से काया यानी शरीर/देह एवं कषाय यानी राग द्वेष आदि को कमज़ोर करके व्यक्ति परम तत्व को प्राप्त हो जाता है।
दोस्तों, आपको बता दें कि सामान्य रूप से जैन धर्म में समाधि लेने को ही सल्लेखना पुकारा जाता है। यह सुख के स्मरण के साथ बगैर किसी दुख के मृत्यु को धारण करने की प्रक्रिया (process) है। यह श्रावक और मुनि दोनो के लिए बतायी गयी है। दिगंबर जैन शास्त्र अनुसार इसे सल्लेखना या समाधि तो वहीं श्वेतांबर साधना पद्धति में इसे संथारा भी पुकारते हैं। बहुत से लोग इस प्रक्रिया को समाधिमरण या समाधिरमण कहकर भी पुकारते हैं।
जैन धर्म की उत्पत्ति कब हुई? (When jain dharma was originated?)
दोस्तों, अब थोड़ा जैन धर्म के बारे में भी जान लेते हैं। आपको बता दें कि जैन धर्म दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक माना जाता है। इसकी उत्पत्ति कम से कम ढाई हजार वर्ष से भी पूर्व की मानी जाती है। जैन धर्म यानी ‘जिन’ भगवान का धर्म। यह शब्द संस्कृत के ‘जि’ धातु से बना है। ‘जि’ का अर्थ है – जीतना। ‘जिन’ यानी जीतने वाला। यानी जिन्होंने अपने तन, मन, वाणी को जीत लिया उन आप्त अर्हंत भगवान को जिनेन्द्र या जिन पुकारा जाता है।
जिन के अनुयाई ‘जैन’ कहलाते हैं। भगवान आदिनाथ/ऋषभदेव इसके प्रथम प्रवर्तक व पहले तीर्थंकर माने जाते हैं। वहीं, महावीर स्वामी इस धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर हुए। आपको बता दें दोस्तों कि अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है।
जैन धर्म के अनुयाई खान-पान, आचार नियम आदि में इसका विशेष रुप से पालन करते हैं। जैन दर्शन में कण-कण को स्वतंत्र बताया गया है। जैन धर्म में तीर्थंकरों को जिनदेव, जिनेन्द्र या वीतराग भगवान भी पुकारा जाता है और इनकी आराधना का विशेष महत्व है। जैन धर्म का आध्यात्मिक लक्ष्य पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की सर्वज्ञ अवस्था को प्राप्त करना है।
कोई श्रावक अथवा मुनि सल्लेखना कब करता है? (When does a Muni or shravak take sallekhana?)
दोस्तों, आपको बता दें कि जब कोई व्यक्ति मरणासन्न होता है अथवा उसे अपनी मृत्यु निकट होने का आभास होता है, तो वह ऐसे में अन्न-जल का पूरी तरह से त्याग कर देता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी पुकारा जाता है। दोस्तों, आपको बता दें कि जैन धर्म में संथारा प्रथा को बहुत पवित्र माना जाता है। संथारा के जरिए आत्मशुद्धि एवं मोक्ष प्राप्ति की बात कही गई है।
सल्लेखना कौन कर सकता है? (Who can do sallekhana?)
दोस्तों, अब सवाल उठता है कि सल्लेखना कौन कर सकता है? तो आपको बता दें कि बूढ़े हो चुके अथवा लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त होने की स्थिति में ही किसी श्रावक अथवा मुनि द्वारा संथारा ग्रहण किया जाता है। कोई बालक, युवक अथवा स्वस्थ व्यक्ति सल्लेखना/संथारा ग्रहण नहीं कर सकता। कोई भी श्रावक यूं ही संथारा ग्रहण नहीं कर सकता है। इसके लिए जैन धर्म के धर्मगुरु की आज्ञा/अनुमति चाहिए होती है। संथारा/सल्लेखना बगैर किसी दबाव के स्वेच्छा व सहमति से ग्रहण की जाती है। इसके लिए विवश नहीं किया जा सकता।
जैन ग्रंथ में सल्लेखना के कौन कौन से अतिचार बताए गए हैं? (What atichars are there in jain dharma?)
दोस्तों, आपको बता दे दें कि जैन धर्म में सल्लेखना के पांच अतिचार बताये गए हैं, जो कि इस प्रकार से हैं-
- मरणांशसा- वेदना से व्याकुल हो शीघ्र मरण की इच्छा।
- जीवितांशसा- सल्लेखना ग्रहण करने के पश्चात जीने की इच्छा।
- मित्रानुराग- अनुराग पूर्वक मित्रों का स्मरण।
- सुखानुबंध- पूर्व में भोगे गए सुखों का स्मरण।
- निदांन- आगामी विषय भोग की वांछा।
क्या सल्लेखना लेना आत्महत्या की श्रेणी में आता है? (Does sallekhana come under suicide?)
दोस्तों, जैसा कि हमने आप को बताया कि अहिंसा जैन धर्म का प्रमुख तत्व है। ऐसे में बहुत से लोग सल्लेखना को आत्महत्या जैसा ही कर्म मानते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। जैन धर्म के जानकारों के अनुसार आत्महत्या महापाप जैसा कृत्य है। सल्लेखना बिल्कुल अलग है। इसके कुछ खास बिंदु इस प्रकार से हैं-
सल्लेखना की प्रक्रिया में क्रोध और आत्महत्या के भाव नहीं पनपते। हैं। इस विधि द्वारा आत्म का कल्याण की बात कही जाती है, जबकि आत्म हत्या/इच्छा मृत्यु में मन संताप, चिंता, नैराश्य, प्रतिशोध (बदला), हताशा जैसी दुर्भावना होती है।
सल्लेखना में भोजन व पानी छोड़ कर मृत्यु का इंतजार नहीं किया जाता है, अपितु शरीर इसे अस्वीकार करता है तब इसे जबरन भोजन पानी बंद किया जाता है।
सल्लेखना का उल्लेख जैन धर्म के किन ग्रंथों में मिलता है? (In which religious texts one can find the allusion of sallekhana?)
दोस्तों, आपको बता दें कि जैन धर्म के कई ग्रंथों में सल्लेखना का उल्लेख मिलता है। ये धर्म ग्रंथ दूसरी शताब्दी से लेकर पांचवी शताब्दी तक रचे गए। इनमें विशेष रूप से सल्लेखना/संथारा का उल्लेख किया गया है। जैन ग्रंथ ‘रत्नकरंड श्रावकाचार’ में बताया गया है कि संथारा कौन ग्रहण कर सकता है। वहीं, जैन धर्म के ग्रंथ आचारांग सूत्र में संलेखना की तीन विधियों के बारे में बताया गया है। जैन ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र में जैन मुनियों द्वारा संथारा ग्रहण कर देह त्याग करने के संबंध में उल्लेख किया गया है।
इतिहास में किस किसके द्वारा सल्लेखना लेने का उल्लेख मिलता है? (In the history is there any allusion of who had taken the sallekhana?)
दोस्तों, यदि इतिहास की बात की जाए तो उसमें सल्लेखना के कई उदाहरण मिलते हैं। जैसे -मौर्य वंश (maurya Dynasty) के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य (Gupta Maurya) ने सल्लेखना विधि के जरिए अपनी देह का त्याग किया था। उन्होंने श्रवणबेलगोला में चंद्रगिरि की पहाड़ी पर अपनी आखिरी सांस ली थी। आपको बता दें दोस्तों कि चंद्रगुप्त मौर्य (350-295 ईसा पूर्व) का मगध (Magadh) का भौगोलिक रूप से बेहद विस्तृत साम्राज्य था।
उन्होंने 320 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक शासन किया। भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे (Acharya Vinoba bhave) द्वारा भी संथाला ग्रहण कर देह त्याग करने की बात कही जाती है। दोस्तों, यदि हाल फिलहाल की बात करें तो सन् 2024 की शुरुआत में ही पश्चिमी राजस्थान (Rajasthan) स्थित बाड़मेर जिले (Barmer district) के जसोल गांव के एक जैन दंपति पुखराज संकलेचा व गुलाब देवी द्वारा भी संथारा ग्रहण कर देह त्यागी गई।
क्या सल्लेखना/संथारा पर कभी रोक भी लगाई गई? (Has there been ban on sallekhana/santhara?)
जी हां दोस्तों। यह तो आप जानते ही हैं कि सल्लेखना को लेकर अक्सर विवाद उठता रहा है। ऐसे में सन् 2006 में कुछ लोगों द्वारा संथारा को आत्महत्या करार देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan Highcourt) में एक जनहित याचिका यानी पीआईएल दायर (PIL file) की थी। इसमें कहा गया था कि अन्न-जल का त्याग कर मौत का इंतजार करना अमानवीय है। यह
किसी व्यक्ति के संविधान प्रदत्त अधिकारों (constitutional rights) का उल्लंघन है। राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा अगस्त, 2015 में मामले की सुनवाई के पश्चात संथारा प्रथा को आत्महत्या मानते हुए इस पर रोक (ban) लगा दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट का यह फैसला जैन समुदाय को मंजूर नहीं था। वह इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) गया। जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए इस पर लगी रोक को हटा दिया गया।
इन दिनों सल्लेखना चर्चा में क्यों है? (Why sallekhana is in news these days?)
दोस्तों, आइए अब आपको बताते हैं कि इन दिनों सल्लेखना प्रथा चर्चा में क्यों है? दोस्तों, दरअसल कुछ ही समय पूर्व प्रसिद्ध जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज का छत्तीसगढ़ स्थित डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि तीर्थ पर निधन हो गया था। उनके द्वारा सल्लेखना विधि से अपनी देह त्यागे जाने की वजह से यह विधि पुनः चर्चा में है।
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सल्लेखना का क्या शाब्दिक अर्थ है?
सल्लेखना दो शब्दों सत्+लेखना से मिलकर बना है। इसका अर्थ है अच्छाई का लेखा-जोखा।
सल्लेखना क्या है?
यह अन्न, जल त्याग कर स्वेच्छा से देह त्याग करने की प्रक्रिया है।
सल्लेखना को और किन नामों से पुकारा जाता है?
सल्लेखना को संथारा, समाधि, समाधिरमण आदि कहकर भी पुकारा जाता है।
सल्लेखना कौन कर सकता है?
बूढ़े हो चुके अथवा लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त होने की स्थिति में ही किसी श्रावक अथवा मुनि द्वारा संथारा ग्रहण किया जाता है।
सल्लेखना कौन नहीं ले सकता?
कोई बालक, युवक अथवा स्वस्थ व्यक्ति सल्लेखना नहीं ले सकता।
इतिहास में किसके द्वारा संलेखना लेने का उल्लेख मिलता है?
इतिहास में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य, भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे आदि का संलेखना से देह त्यागने का उल्लेख मिलता है।
जैन धर्म के प्रवर्तक कौन थे?
भगवान आदिनाथ/ऋषभदेव को जैन धर्म का प्रवर्तक एवं प्रथम तीर्थंकर कहा जाता है।
महावीर स्वामी कौन थे?
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर थे।
जैन धर्म का मूल सिद्धांत क्या है?
जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है।
क्या कभी किसी कोर्ट द्वारा द्वारा सल्लेखना पर रोक भी लगाई गई है?
जी हां। सन् 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा सल्लेखना पर रोक लगाई गई थी। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजस्थान हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया गया था और इस पर से रोक हटा दी गई थी।
इन दिनों सल्लेखना चर्चा में क्यों है?
जैन संत आचार्य विद्यासागर के सल्लेखना से देह त्याग की वजह से इन दिनों यह प्रक्रिया चर्चा में है।
दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको जानकारी दी कि सल्लेखना क्या है? सल्लेखना कौन कर सकता है? सल्लेखना के कौन कौन से अतिचार हैं? उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट से आपकी जानकारी में इजाफा हुआ होगा। यदि इसी प्रकार की जानकारीपरक पोस्ट आप हमसे चाहते हैं तो उसके लिए नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके हमें बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।