|| विलफुल डिफॉल्टर क्या होता है?, Willful Defaulter kya hota hai, Willful Defaulter meaning in Hindi, भारत में सबसे बड़े लोन डिफाल्टर कौन हैं?, डिफॉल्टर व विलफुल डिफॉल्टर में क्या अंतर है?, India Willful Defaulter in Hindi ||
Willful Defaulter kya hota hai :- भारत देश में कई बैंक है जिनमे से कुछ सरकारी है तो कुछ प्राइवेट तो कुछ ग्रामीण या अंतरराष्ट्रीय स्तर के बैंक भी है। अब हर बैंक की भूमिका अलग अलग होती है किंतु उनके द्वारा कमाई करने का तरीका एक ही होता (Willful Defaulter ka matlab) है। वह होता है लोगों से पैसे लेकर उन्ही को लोन पर देना। कहने का मतलब यह हुआ कि हम बैंक में खाता खुलवाते हैं और उसमे पैसा जमा करवाते हैं। अब बैंक उसी पैसे को किसी और को लोन पर दे देता है और उस पर मिलने वाले ब्याज से कमाई करता है।
तो बैंक इतना बड़ा है और उसमे पैसों का इतने व्यापक स्तर पर लेनदेन हो रहा है तो अवश्य ही उसमे कुछ गड़बड़ियाँ भी होंगी। तो इसी में एक गड़बड़ी का (Willful Defaulter meaning in Hindi) नाम है विलफुल डिफॉल्टर जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। किंतु आपने इस विलफुल डिफॉल्टर शब्द का इस्तेमाल कई बार न्यूज़ में होते हुए देखा होगा या फिर इसे वित्त मंत्री के मुख से सुना होगा या फिर देश की संसद में इस शब्द को गूंजते हुए देखा होगा।
आखिरकार क्या होता है यह विलफुल डिफॉल्टर और क्यों इस (Willful Defaulter kon hote hain) शब्द की इतनी महत्ता है कि इसके बारे में देश की वित्त मंत्री से लेकर सभी बात करते हैं। तो आज के इस लेख में हम आपके साथ इसी बात पर ही चर्चा करने वाले हैं कि आखिरकार इस विलफुल डिफॉल्टर शब्द का क्या मतलब होता है और बैंकों से इसका क्या जुड़ाव होता है।
विलफुल डिफॉल्टर क्या होता है? (Willful Defaulter kya hota hai)
आज का लेख ही विलफुल डिफॉल्टर के ऊपर है और आपको इसके जरिये विलफुल डिफॉल्टर के बारे में शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी मिलने वाली है। हालाँकि विलफुल डिफॉल्टर की परिभाषा को हम पहले ही बता देते हैं लेकिन इसे उदाहरण सहित बाद में आपको समझाएंगे। तो विलफुल डिफॉल्टर का मतलब होता है किसी व्यक्ति के द्वारा बैंक से लिए गए कर्ज की राशि को जान बूझकर बैंक को वापस नहीं चुकाना। कहने का अर्थ यह हुआ कि यदि कोई व्यक्ति बैंक से कर्ज ले लेता है और वह अपने पास पैसा होने के बावजूद बैंक को उसकी किश्त का भुगतान नहीं करता है तो वह विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में आ जाता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिरकार यह कैसे संभव है या फिर यह कैसे होता होगा। कर्ज तो आपने भी लिया होगा और आप यदि एक किश्त भी ना चुकाए तो बैंक आपकी जान खा जाएगा या बैंक के अधिकारी आपके घर तक पहुँच जाएंगे। साथ ही ऐसा कौन ही होगा जिसके पास पैसा भी है लेकिन फिर भी उनके द्वारा बैंक की किश्त नहीं भरी जा रही है। तो इसी को तो आपको विस्तार से समझना होगा जो आज के समय में जानना भी बहुत जरुरी है।
विलफुल डिफॉल्टर के बारे में विस्तार से जानने के लिए आपको यह जानना होगा कि आखिरकार विलफुल डिफॉल्टर बनते कैसे हैं या फिर इसकी प्रक्रिया क्या होती है। साथ ही बैंक के द्वारा किसी व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर क्यों ही घोषित करवाया जाता है। आइए जाने इसके बारे में भी।
बैंक के द्वारा किसी प्रभावशाली व्यक्ति को पैसा देना
अब बैंक कमाई कैसे करता है, यह तो आपने ऊपर जान ही लिया। यदि आपको लगता है कि बैंक आपके या हमारे खाते खुलवाने से कमाई करता है तो आप गलत है। बल्कि बैंक के द्वारा तो हमें और आपको अपने पैसे वहां रखने के बदले में कुछ ब्याज दिया जाता है और साथ में अन्य सुख सुविधाएँ भी। तो अब बैंक कमाई कैसे करेगा? तो आपको भी कभी ना कभी किसी ना किसी बैंक से कोई कार्य के लिए लोन लेने की जरुरत पड़ी होगी।
तो अब आपको उस लोन पर निर्धारित ब्याज भी बैंक को चुकाना होता है। तो बैंक में आप और हम जो भी पैसा रखते हैं उन पैसों को बैंक के द्वारा अन्य लोगों को जिन्हें ऋण की आवश्यकता होती है, उन्हें ब्याज पर दे दिया जाता है। अब इसमें कोई भी हो सकता है, फिर चाहे वह गरीब हो, मध्यम आय वर्ग वाला हो या सुविधा संपन्न व्यक्ति। बैंक के द्वारा समाज के प्रभावशाली व्यक्तियों को तो पैसा देने की होड़ लगी रहती हैं क्योंकि उनके द्वारा ज्यादा पैसा उठाया जाता है और वो भी अच्छी ब्याज दर पर जिसे बैंक को लाभ होता है।
उस व्यक्ति के द्वारा बैंक की किश्त नहीं चुकाना
अब जिस व्यक्ति ने बैंक से पैसा लिया है वह बहुत प्रभावशाली भी है, सुविधा संपन्न भी और धनी भी। फिर भी उस व्यक्ति के द्वारा अपनी किश्त की तिथि आने पर बैंक को उसका भुगतान नहीं किया जाता और कारण पूछने पर कोई भी कारण बता दिया जाता है या फिर कारण बताया ही नहीं जाता है। एक तरह से उन व्यक्तियों के द्वारा बैंक की किश्त चुकाने में आनाकानी की जाती है।
बैंक के द्वारा इसकी जांच करवाया जाना
अब बैंक अपने स्तर पर अधिकारियो के जरिये इसकी जांच करता है कि उस व्यक्ति के द्वारा किश्त का भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा है। यदि उस व्यक्ति के द्वारा कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जाता या इसके लिए कोई सबूत नहीं दिए जाते या कारण नहीं बताया जाता तो बैंक के अधिकारी अगले स्तर पर जांच करते हैं। अब यदि जांच में यह पता चलता है कि संबंधित व्यक्ति के पास पैसा है और वह जान बूझकर बैंक का पैसा नहीं दे रहा है तो इसकी रिपोर्ट बड़े अधिकारियों को दे दी जाती है।
बैंक द्वारा उस खाते को NPA घोषित करना
अब आपने ऊपर सोचा था कि आप या हम बैंक की किश्त नहीं चुकाएं तो बैंक के अधिकारी हमारे घर पहुँच जाते हैं या हमारे ऊपर दबाव बनाते हैं और कई बार उसके लिए बाउंसर भी भेजे जाते हैं। किंतु ये जो व्यक्ति होते हैं उनके पास पहले से ही बहुत सी शक्तियां होती है और बैंक उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। ऐसे में उनके द्वारा लगातार किश्त ना चुकाए जाने पर बैंक उस खाते को NPA अर्थात नॉन परफोर्मिंग एसेट में डाल देता है।
बैंक द्वारा RBI से उस व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर घोषित करवाना
अब उस व्यक्ति के द्वारा बहुत लंबी अवधि तक उस बैंक का पैसा नहीं चुकाया जाता है तो बैंक उसकी शिकायत लेकर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया तक पहुँच जाता है। इसके लिए उस बैंक को पूरी प्रक्रिया का पालन करना होता है और एक लंबा चौड़ा फॉर्म भर कर RBI को देना होता है। यह फॉर्म आपको RBI की वेबसाइट पर भी मिल जाएगा जिसका लिंक https://www.rbi.org.in/Scripts/BS_ViewMasterCirculars.aspx है।
अब बैंक इस फॉर्म को भर कर भारतीय रिज़र्व बैंक को सौंप देता है। इसमें उस व्यक्ति से संबंधित संपूर्ण जानकरी होती है और साथ ही बैंक के द्वारा अपने स्तर पर क्या जांच की गयी, इसकी जानकारी भी निहित होती है। इसके बाद यह RBI पर निर्भर करता है कि वह उक्त मामले पर क्या संज्ञान लेता है।
आरबीआई द्वारा विलफुल डिफॉल्टर घोषित करना
अब बैंक के द्वारा आरबीआई में विलफुल डिफॉल्टर का फॉर्म जमा करवाने के बाद आरबीआई भी अपने स्तर पर जांच करता है ताकि उसके द्वारा कोई गलत निर्णय ना लिया जा सके। यदि मामला ज्यादा बड़ा है और कर्ज की राशि बहुत अधिक है और उसके लिए कई बैंकों ने विलफुल डिफॉल्टर घोषित करवाने के लिए आवेदन दिया है तो फिर आरबीआई के द्वारा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से भी संपर्क किया जाता है।
इसके बाद सब सही रहता है और इस जांच में पाया जाता है कि संबंधित व्यक्ति ने बैंक से इतना कर्ज लिया था, अब उसके पास उस कर्ज को चुकाने के लिए पर्याप्त पैसा भी है लेकिन फिर भी वह जान बूझकर बैंक का पैसा नहीं चुका रहा है तो आरबीआई उस व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर देती है।
डिफॉल्टर व विलफुल डिफॉल्टर में क्या अंतर है? (Defaulter and Willful Defaulter difference in Hindi)
आपको साथ के साथ यह भी जान लेना चाहिए की एक डिफॉल्टर और विलफुल डिफॉल्टर में क्या अंतर होता है। वह इसलिए क्योंकि बैंक का पैसा वापस नहीं चुकाए जाने पर व्यक्ति को दो श्रेणियों में रखा जाता है जिसमे एक होता है डिफॉल्टर और दूसरा होता है विलफुल डिफॉल्टर। तो इन दोनों के बीच मे क्या अंतर होता है, यह अब हम आपको बता देते हैं।
इसमें डिफॉल्टर वह व्यक्ति होता है जिसने बैंक से पैसा तो लिया था लेकिन बाद में किसी बुरी परिस्थिति, दुर्घटना, आर्थिक मंदी, व्यापार या उद्योग नहीं चलने, बिज़नेस में नुकसान या अन्य किसी कारण की वजह से वह पैसा समय पर चुका पाने में असमर्थ होता है या उसे नहीं चुका पाता है। कहने का अर्थ यह हुआ की ऐसा नही है कि उस व्यक्ति के द्वारा जान बूझकर बैंक से लिया गया कर्ज वापस नहीं चुकाया जा रहा है बल्कि उसके सच में अपने निजी कारण है जिस कारण वह उन पैसों को चुका पाने में असक्षम है। ऐसी स्थिति में बैंक के द्वारा उस व्यक्ति को डिफॉल्टर की श्रेणी में रखा जाता है।
अब एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास पैसा भी है या संपत्ति है लेकिन फिर भी वह बैंक से लिया गया पैसा नहीं चुका रहा है या उसे चुकाने में आनाकानी कर रहा है तो वह अपनी इच्छा से ऐसा कर रहा है और इसके पीछे उसकी मंशा बुरी है। तो इस स्थिति में बैंकों के द्वारा उस व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर घोषित करवाने का प्रयास किया जाता है।
विलफुल डिफॉल्टर घोषित होने के बाद क्या होता है?
यदि आरबीआई या भारत सरकार किसी व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर देती है तो उस व्यक्ति पर कई तरह के प्रतिबन्ध लग जाते हैं और साथ ही बैंकों को भी कोर्ट में उसका केस लड़ने में आसानी हो जाती है। इसके साथ ही उस व्यक्ति के देश छोड़कर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है ताकि वह देश छोड़कर भाग ना जाए। किंतु यदि कोई व्यक्ति पहले ही देश छोड़कर भाग जाता है और फिर उसे विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया जाता है तो सरकार को वही देखना पड़ता है जो विजय माल्या या नीवन मोदी के साथ देखना पड़ रहा है।
ऐसे में जो व्यक्ति विलफुल डिफॉल्टर घोषित हो जाता है तो बैंकों के पास उसकी संपत्ति, घर, व्यापार, एसेट इत्यादि को जब्त करने या उसकी नीलामी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। तो इस तरह से देश में उसकी जिनती भी संपत्ति है उसकी नीलामी करवा कर बैंक अपने कर्ज की राशि की भरपाई करती है। इसी के साथ उस व्यक्ति को भारतीय कानून के अनुसार दंड भी दिया जा सकता है।
भारत के बड़े विलफुल डिफॉल्टर के नाम (India Willful Defaulter in Hindi)
इसमें से कुछ नाम तो आपने सुन ही रखें होंगे जैसे कि विजय माल्या, नीरव मोदी इत्यादि। किंतु यह सूची बहुत लंबी है और हर वर्ष इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। तो ऐसे में देश के कुछ बड़े विलफुल डिफॉल्टर के नाम विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, एबीजी शिपयार्ड, किंगफ़िशर एयरलाइन्स, रुचि सोया इंडस्ट्रीज, नूम डेवलपर इत्यादि है। हालाँकि इसमें बहुत सारे नाम है किंतु सभी नामों को लिखना इस लेख में संभव नहीं होगा। इसलिए हमने कुछ बड़े विलफुल डिफॉल्टर के नाम आपके सामने रखें हैं।
विलफुल डिफॉल्टर क्या होता है – Related FAQs
प्रश्न: विलफुल डिफॉल्टर होने का क्या मतलब है?
उत्तर: विलफुल डिफॉल्टर होने का मतलब होता है किसी व्यक्ति के द्वारा बैंक से लिए गए कर्जे का जान बूझकर भुगतान नहीं किया जा रहा है।
प्रश्न: भारत में सबसे बड़े लोन डिफाल्टर कौन हैं?
उत्तर: भारत में सबसे बड़े लोन डिफाल्टर विजय माल्या, नीरव मोदी व मेहुल चोकसी है।
प्रश्न: क्या विलफुल डिफॉल्टर डायरेक्टर बन सकता है?
उत्तर: हां, विलफुल डिफॉल्टर डायरेक्टर बन सकता है।
प्रश्न: डिफॉल्टर क्या होता है?
उत्तर: डिफॉल्टर का मतलब होता है किसी व्यक्ति के द्वारा किसी कारणवश बैंक का पैसा नहीं चुकाया जाता है।
तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने विलफुल डिफॉल्टर के बारे में सब कुछ जान लिया है। अब आपको यह भलीभांति पता चल गया है कि आखिरकार क्यों किसी व्यक्ति या कंपनी को विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में डाला जाता है और इसके पीछे की क्या कहानी होती है।