योगासन के नाम | योगासन का अर्थ, प्रकार, लाभ, सावधानियां व विधि | Yoga asanas names in Hindi

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Yoga asanas names in Hindi :- योगासन का मानव जीवन में बहुत महत्त्व है। प्राचीन काल से ही योग को अपनाए जाने के बहुत से प्रमाण मिले है। हमारे ग्रंथों में भी योग का बहुत उल्लेख मिलता है। उस समय पर ऋषि मुनियों और योगियों के द्वारा योगा की शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता था। योग के करने से हमारे शरीर में शारीरिक और मानसिक दोनो तरह की ऊर्जा का संचार (Yoga in Hindi) होता है। उसी के चलते आज के समय में भी दैनिक जीवनशैली में योग का अहम स्थान होना चाहिए।

योग की इसी महत्तवता को देखते हुए, हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाया जाता है। जिस अवसर पर जगह जगह योगा के शिविर लगाए जाते हैं। योग दिवस पर ही नहीं बल्कि अन्य दिन भी हम अक्सर योग करते हैं तथा अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाने का निरंतर प्रयास करते हैं। किंतु योग दिवस पर तो ये सब स्वाभाविक हो जाता है। सभी लोग योग दिवस पर अपने दैनिक जीवन से समय निकाल कर योग (Yogasan ka arth nibandh) करते हैं। योग के 4 प्रकार होते हैं, राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग।

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योगासन का क्या अर्थ है? (Yogasan Meaning in Hindi)

योगासन शब्द दो शब्दों के युग्म से बना है, योग और आसन। जिसमे योगा शब्द समाधि का प्रतिक है और आसन शब्द शरीर की उस प्रकिया को दर्शाता है जिसमे शरीर को एक निर्धारित अवस्था में लाया जाता है। इस प्रकार समाधि की स्थिति में शरीर को लाने की अवस्था को योगासन कहा जाता है। हमारे ग्रंथों में बहुत से योगासन (Yogasan kise kahate hain) का उल्लेख मिलता है।

योगासन के नाम योगासन का अर्थ, प्रकार, लाभ, सावधानियां व विधि Yoga asanas names in Hindi

हालांकि सभी योगासनों का उद्देश्य सिर्फ एक ही होता है, शरीर को हष्ट पुष्ट और सेहतमंद बनाने में सहायता करना। किंतु फिर भी अलग अलग योगासनों की अलग अलग महानता है। ग्रंथों में 80 से ऊपर योगासनों का उल्लेख मिलता है। उसके पश्चात योगासनों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और अब जिस प्रकार बीमारियों की संख्या (Number of asanas in Yoga) बढ़ती जा रही है उसी प्रकार योगासनों की संख्या भी बहुत अधिक हो गई है।

योगासन कितने प्रकार के होते हैं? (Yogasan ke Prakar in Hindi)

जैसा कि हमने अभी तक जाना योगासनों की संख्या बहुत अधिक है। सब योगासनों में एक समानता होती है कि उन्हें शांत वातावरण में और साफ जगह पर बैठ कर या खड़े होकर किया जाता है। संख्या में अधिक होने पर योगासनों को अलग अलग श्रेणियों में बांटा जा सकना आसन तथा अनिवार्य है। शरीर की अवस्था के अनुसार योगासनों को अलग अलग श्रेणियों (Types of Yoga asanas in Hindi) में बांटा जा सकता है। जिनमे निम्न श्रेणियां तथा योगासन शामिल होंगे:

खड़े होकर किए जाने वाले योगासन

ताड़ासन, वृक्षासन, अर्धचंद्रमासन, अर्धचक्रासन, दो भुज कटिचक्रासन, चक्रासन, पादहस्तासन इत्यादि आसन एक निश्चित मुद्रा में खड़े होकर किए जाते हैं।

बैठ कर किए जाने वाले योगासन

पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, वक्रासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, गोमुखासन, शशकासन आधी आसन शांत माहौल में बैठ कर किए जाते हैं।

पेट के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन

मकरासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, विपरीत नौकासन आदि वो आसन है जिन्हें पेट के बल लेट कर किया जाता है।

पीठ के बल लेट कर किए जाने वाले योगासन

अर्धहलासन, हलासन, सर्वांगासन, विपरीतकर्णी आसन, पवनमुक्तासन, नौकासन, शवासन आदि आसन पीठ के बल लेट कर किए जाते हैं।

अन्य योगासन

उपरोक्त आसनों के अलावा अन्य भी श्रेणियों में आसनों को बांटा जा सकता है। इन श्रेणियों की आसनों में वो प्रकार आते हैं जो एक वस्तु या अन्य जीव की भांति अवस्था ग्रहण कर लेते हैं। शीर्षासन, मयुरासन, सूर्य नम:स्कार आदि आसन इस श्रेणी में आ सकते हैं।

योगासन के नाम जानकारी सहित (Yoga asanas names in Hindi)

अब हम उपरोक्त आसनों में से कुछ प्रमुख और लाभकारी आसनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते है। इस के अंतर्गत आने वाले आसनों के बारे में हम आसन को करने की प्रक्रिया (Yogasan ki Vidhi), आसन से होने वाले लाभ और आसन को करते हुए बरतने वाली सावधानी के बारे में जानेंगे।

ताड़ासन

ताड़ का शाब्दिक अर्थ होता है पहाड़, पेड़ या ऊंचा पेड़। इस आसन के अभ्यास के लिए खड़ा होकर आसन किया जाता है। यह आसन खड़े होकर किए जाने वाले सभी आसनों का आधार है। खड़े होकर किए जाने वाले सभी आसनों का बेसिक इसी आसन में है। इसी लिए यह आसन सबसे आसान और सबसे मूल रूप में है। पेड़ की तरह खड़ा होने का कारण इसका नाम ताड़ासन (Tadasana in Hindi) रखा गया है।

ताड़ासन करने की प्रक्रिया

सर्वप्रथम पैरों पर खड़े हो जाएं तथा दोनों पैरों के बीच दो इंच की दूरी रखें। सांस अंदर लेते हुए हाथों को सामने की ओर उठाएं और इस तरह हाथों को कंधों के स्तर तक उठाएं। दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे में फंसाएं तथा अपनी सांसों को भरते हुए हथेलियों को बाहर की ओर रखते हुए दोनों भुजाओं को सिर से ऊपर उठाएं। भुजाओं को ऊपर ले जाने के साथ-साथ पैर की एडियों को जमीन से ऊपर उठाएं। इसी प्रकिया में पैर की अंगुलियों पर अपना संतुलन बनाएं। इस स्थिति में 10 से 15 सेकेण्ड तक रुके रहें। इसके पश्चात एड़ियों को वापस जमीन पर ले आएं। अब श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए अपने हाथ की अंगुलियों को अलग-अलग करें तथा भुजाओं को वापस लाएं। इसके बाद प्रारंभिक स्थिति में वापस आ जाएं।

ताड़ासन के लाभ

इस आसन के निरंतर अभ्यास से शरीर में स्थिरता आती है। ताड़ासन मेरुदंड को मजबूत करने में पूरी तरह से सहायक होता है। यह मेरुदंड से जुड़ी नाडियो में रक्त प्रवाह को भी संतुलित करता है। इस आसन से शरीर में संतुलन बना रहता है।

सावधानी –

ताड़ासन करते हुए ऐसे लोग, जिनको अर्थराइटिस संबंधी या चक्कर आने से संबंधित समस्याएं होती हैं, अपनी ऐड़ी पर खड़े होने की कोशिश ना करें। बाकी प्रकिया समान रहती है।

वृक्षाशन

वृक्षासन शब्द दो शब्दों के युगम से बना है, वृक्ष और आसन। इसका अर्थ होता है वृक्ष की आकृति में किया जाने वाला आसन। इस आसन को करने में शरीर की अंतिम अवस्था एक पेड़ के भांति हो जाती है, इसी लिए इस आसन को वृक्षासन (Vrikshasana in Hindi) कहा जाता है।

वृक्षासन करने की प्रक्रिया –

वृक्षासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम दोनों पैरों में 2 इंच का अंतर रखते हुए खड़े हो जाएं। आखों के सामने किसी बिंदु पर अपना ध्यान केंद्रित करें। अपने श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए दाएं पैर को पकड़ें और उसके पंजे को बाएं पैर की जांघ पर अंदर की तरफ रखें। इस अवस्था में एड़ी मूलाधार क्षेत्र से मिली होनी चाहिए। श्वास को धीरे धीरे शरीर के अंदर लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर ले जाएं। अब दोनो हाथों की हथेलियों को जोड़ें। इसी स्थिति में 10 से 30 सेकंड तक बने रहें। ध्यान रखें कि इस दौरान सामान्य रूप से श्वास लेते रहें। अपने श्वास को शरीर के बाहर छोड़ते हुए हाथों को नीचे की ओर लाएं और पैर को पूर्व अवस्था में वापस लेकर जाएं। शरीर को शिथिल करते हुए पुनः पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इसके बाद यही प्रकिया बाएं पैर के साथ दोहराएं।

वृक्षासन के लाभ –

यह आसन तंत्रिका से सम्बन्धित समन्वय और शरीर को संतुलित बनाने में सहायता करता है। यह आसन सहनशीलता, जागरुकता एवं एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है। इस आसन का नियमित अभ्यास नई चेतना और ऊर्जा को बढ़ाने में भी सहायक है। शरीर का संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। ये पैरों के लिगामेंट और टेंडोंस को मजबूत बनाता है।

सावधानी –

वृक्षासन को सामान्य तौर पर सुबह के समय किया जाना चाहिए और अगर शाम के वक्त किया जाए तो खाने से 5 घंटे पहले किया जाना चाहिए। इसको करते हुए पेट खाली होना चाहिए। योगी को चक्कर आने की समस्या नहीं होनी चाहिए।

अर्धचक्रासन

इस आसन को भी खड़ा होकर ही किया जाता है। इस आसन को करते हुए शरीर का संतुलन बनाए रखना होता है। इस आसन को करते हुए धड़ और सिर से आधे चक्कर के जैसी आकृति का निर्माण होता है, जिसके चलते इस आसन का नाम अर्धचक्रासन (Ardha chakrasana in Hindi) रखा गया है।

अर्धचक्रासन करने की प्रक्रिया –

इस आसन को करने के लिए साफ मैट पर पैरों के बीच दो इंच की दूरी रखकर खड़े हो जाएं। दोनों हाथों की अंगुलियों से कमर को बगल से पकड़े। कोहनियों को समानान्तर रखने को प्रयास करें। सिर को पीछे की ओर झुकाते हुए ग्रीवा की मांसपेशियों को खींचना चाहिए। श्वास लेते हुए पीठ के भाग से पीछे की ओर झुके। श्वास को बाहर छोड़ते हुए शिथिल हो जाइए। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रुकें तथा सामान्य रूप से श्वास लेते रहें। श्वास को अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे पहले वाली अवस्था में वापस लौटें।

अर्धचक्रासन के लाभ –

अर्ध चक्रासन को निरंतर करने से मेरुदण्ड काफी लचीला बनता है तथा मेरुदण्ड से सम्बंधित नाड़ियां तथा मांसपेशियां को मजबूती मिलती हैं। सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के प्रबंधन में भी ये आसन लाभकारी है। पेट की चर्बी को कम करने में भी ये आसन बहुत सहायक है।

सावधानी –

उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति पीछे की तरफ झुकते हुए सावधानी रखें। इस आसन को करते समय अपने आस पास नुकीली चीजों से दूरी रखें। इस आसन को खाली पेट ही करना लाभकारी होता है।

त्रिकोणासन

इस आसन को करते हुए पैरो के बीच निश्चित दूरी होती है। साथ ही इस आसन को करने के दौरान योगी के शरीर की धड़, बाहों और पैरो की आकृति त्रिभूज के जैसी हो जाती है। इसी लिए इस आसन को त्रिकोणासन (Trikonasana in Hindi) कहा जाता है।

त्रिकोणासन करने की प्रक्रिया –

त्रिकोणासन के अभ्यास के समय दोनों पैरों को तीन फुट तक फैला कर आराम से खड़ा होना चाहिए। दोनों हाथों को बगल से कन्धों के स्तर तक धीरे धीरे ऊपर उठाना चाहिए। दाएं पैर के पंजों को दाएं तरफ मोड़ें। श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए धीरे-धीरे दाई तरफ झुकना चाहिए। बायें हाथ को सीधे ऊपर की ओर रखते हुए दायें हाथ की सीध में लाना चाहिए। तत्पश्चात् बाईं हथेली को आगे की ओर लाना चाहिए। सिर को घुमाते हुए बाएं हाथ की बीच वाली अंगुली को देखना चाहिए। सामान्य श्वास लेते हुए इस आसन में 10-30 सेकेंड तक रुकना चाहिए। श्वास को शरीर के अंदर लेते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाएं। इस आसन को शरीर के दूसरी तरफ से भी दोहराएं।

त्रिकोणासन के लाभ –

यह आसन शरीर को लचीला बनाए रखने में सहायक होता है। इस आसन के माध्यम से बाहों, पैरों और धड़ को मजबूती प्रदान होती है। यह आसन फेफड़ों की कार्यक्षमता को भी सही करता है।

सावधानी –

पेट की सर्जरी के बाद इस आसन को करने से बचना चाहिए। इस आसन को करते वक्त अपने शरीर की सहन शक्ति के अनुसार ही पैरो की दूरी बनानी चाहिए और अपने शरीर का झुकाव बनाना चाहिए। यदि शरीर से ज्यादा न झुका जाए तो घुटनों तक भी झुक कर इस आसन को किया जा सकता है।

वक्रासन/ मरिच्यासन

यह आसन बैठ कर किया जाता है। इस आसन को करते वक्त शरीर के मुख्यतः सभी भागों की मासपेशियों पर जोर पड़ता है। इस आसन को करते हुए शरीर में पूरी तरह से घुमाव होता है, जिसके चलते वक्र जैसी अवस्था हो जाती है। इसी लिए इस आसन को वक्रासन (Marichyasana in Hindi) कहते हैं।

वक्रासन करने की प्रक्रिया –

इस आसन को करने के लिए सर्वप्रथम दाएं पैर को मोड़ते हुए उसके पंजे को बाएं घुटने के बगल में रखें। बाएं हाथ को दाएं घुटने के पास लाएं और दाएं हाथ को पीछे ले जाएं और हथेली को जमीन पर रखें, जब तक कि पीठ लंबवत् न हो जाए। दाएं पैर के अंगूठे को पकड़ लें अथवा हथेली को दाएं पैर के पास रखें। श्वास को लेते हुए अपने शरीर को वापस लाएं और श्वास छोड़ते हुए शिथिल हो जाएं। श्वास को बाहर छोड़ते हुए शरीर को दाई तरफ घुमाएं। इस स्थिति में 10-30 सेकेंड तक रहें। इसी प्रकिया को शरीर के दूसरी तरफ से दोहराएं।

वक्रासन के फायदे –

यह आसन एब्स को मजबूत बनाता है। शरीर को लचीला बनाने में सहायता मिलती है। यह आसन बाॅडी को डिटाॅक्स भी करता है और मेटाबॉलिज्म को मजबूत बनाता है। इस आसन की मदद से साइटिका के दर्द को दूर किया जा सकता है। शरीर के भीतरी अंगों को संतुलित करता है। शरीर की गर्मी को शांत करता है और पाचन तंत्र को मजबूत करता है।

सावधानी –

पेट और पीठ में दर्द की स्थिति में इस आसन को नहीं करना चाहिए। मासिक धर्म के दौरान भी इस आसन को करने से बचना चाहिए। अगर पेट की सर्जरी हुई है तो इस आसन को नहीं करना चाहिए।

शशकासन

शशकासन को वृजासन की अवस्था से ही किया जाता है। इस आसन को करते हुए शरीर में झुकाव के चलते सभी मासपेशियों पर जोर पड़ता है। इस आसन को करते हुए योगी के शरीर की अवस्था एक खरगोश की भांति हो जाती है। शशक (Shashankasana in Hindi) का अर्थ भी खरगोश ही होता है। इसीलिए इस आसन का नाम शशकासन रखा गया है।

शशकासन करने की प्रक्रिया –

इस आसन को करने के लिए सबसे पहले वज्रासन में बैठना चाहिए। दोनों पैरों के घुटनों को एक दूसरे से दूर फैलाएं तथा इस प्रकार बैठें कि पैरों के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों। श्वास लेते हुए दोनों हथेलियों को घुटनों के बीच जमीन पर रखें। श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुके और ठुड्डी को जमीन पर रखने की कोशिश करें। दोनों भुजाओं को एक दूसरे के समानांतर रखें। सामने की ओर देखें और इस स्थिति को बनाए रखें। श्वास को अंदर खींचते हुए ऊपर की ओर हो जाएं। वज्रासन को छोड़कर दण्डासन में आएं फिर विश्राम करें।

शशकासन के लाभ –

शशकासन का निरंतर अभ्यास तनाव और चिंता को कम करने में सहायता करता है। जननांगों में कसावट लाता है तथा कब्ज से मुक्ति दिलाता है। यह आसन पाचन क्रिया संबंधी बीमारियां एवं पीठ दर्द से छुटकारा दिलाने में सहायक है।

सावधानी –

इस आसन से भले ही पीठ के दर्द में सहायता होती हो, परंतु अधिक पीठ दर्द की स्थिति में इसे करने से बचना चाहिए। घुटनों की समस्या होने पर भी इस आसन को नहीं करना चाहिए। इस आसन को करते वक्त पेट खाली होना चाइए और सुबह का समय हो तो और भी अच्छा है।

भुजंगासन

यह आसन योगी अपने पेट के बल लेट कर करता है। इस आसन को करते वक्त शांत वातावरण में साफ सुथरे स्थान पर मैट बिछा कर पेट के बल लेटा जाता है। उसके पश्चात इस आसन की प्रक्रिया की जाती है। इस भुजंग का शाब्दिक अर्थ सांप होता है। इस आसन को करते हुए योगी के शरीर की अवस्था सांप के जैसी हो जाने के कारण इस आसन का नाम भुजंगासन (Bhujangasana benefits in Hindi) रखा गया है।

भुजंगासन करने की प्रक्रिया –

सबसे पहले साफ मैट पर पेट के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों पर सिर को टिकाते हुए शरीर को स्थिर रखें। हाथों को खींचकर रखते हुए ललाट को जमीन पर टिका रहने दें। अब हाथों को इस तरह रखे की वो शरीर के ठीक बगल में आ जाए तथा हथेलियां और कोहनियां जमीन पर टिकी रहें। इसी स्थिति में हाथों को रखते हुए, धीरे-धीरे श्वास अंदर लेते हुए सिर और छाती को ऊपर उठाएं। ऐसा तब तक करें जब तक नाभि तक का क्षेत्र ऊपर ना उठ जाए। कुछ समय तक इस स्थिति में आराम से रहें। इस अभ्यास को सरल भुजंगासन कहा जाता है। वापस पहले वाली स्थिति में लौटते हुए ललाट को जमीन पर टिकाएं। हथेलियों को वक्ष के बगल में रखें और कोहनियां ऊपर की ओर उठी हुई होनी चाहिए। अब 10-30 सेंकेड सामान्य श्वास-प्रश्वास के साथ इस स्थिति में बने रहें।

भुजंगासन के लाभ –

इस आसन को करने से पेट की बीमारियों से निजात मिलता है और कब्ज दूर होता है। इस आसन के निरंतर अभ्यास से तनाव से भी मुक्ति मिलती है और पेट की अतिरिक्त चर्बी कम होती है। यह आसन श्वास नली से संबंधित समस्याओं का भी समाधान है।

सावधानी –

हर्निया तथा अल्सर से संबंधित रोगी को ये आसन करने से बचना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान भी इस आसन से बचना चाहिए। शरीर को ऊपर की तरफ उतना ही उठाना चाहिए जिससे मेरुदंड पर अतिरिक्त तनाव न पड़े।

सेतुबंधासन

सेतुबंधासन एक ऐसा आसन है, जिसमें शरीर को अंग्रेजी के अक्षर यू की आकृति में मोड़ना पड़ता है। संस्कृत में सेतु का अर्थ पुल होता है तथा बांध का अर्थ बांधना होता है और आसन का अर्थ शरीर की अवस्था। इस प्रकार इस आसन का अर्थ होता है, शरीर को पुल की अवस्था में बंधना या बनाना। इसमें शरीर एक पुल की आकृति की तरह लगता है। इसी कारण इस आसन का नाम सेतुबंधासन (Setubandhasana in Hindi) है।

सेतुबंधासन करने की प्रक्रिया –

इस आसन को करने के लिए पीठ के बल लेट जाएं। फिर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ते हुए एडियों को नितंबों के पास लाएं। हाथों से पैर के टखनों को मजबूती से पकड़ें और घुटनों एवं पैरों को एक सीध में रखें। श्वास अंदर खींचते हुए धीरे-धीरे अपने नितंब और धड़ को ऊपर की ओर उठाएं और इस दौरान सामान्य तरीके से श्वास लेते रहें। इस तरह आपके शरीर से पुलनुमा आकृति बनाएं। इस अवस्था में 10-30 सेकंड तक रहें। इसके पश्चात श्वास बाहर छोड़ते हुए धीरे-धीरे मूल अवस्था में वापस आएं और शवासन में लेटकर शरीर को शिथिल छोड़ दें।

सेतुबंधासन के लाभ –

यह आसन पीठ के निचले हिस्से में दर्द और टखने, पीठ, जांघों और कंधे की अकड़ को दूर करने में सहायता करता है। यह आसन तनाव से मुक्ति दिलाता है और रक्तचाप को संतुलित रखने में सहायक होता है। इस आसन से पीठ को मजबूती मिलती है और पाचन शक्ति भी बढ़ती है। शरीर को लचीलापन भी मिलता है।

सावधानी –

इस आसन को खाली पेट करना ही सही होता है। अगर पीठ में चोट लगी है, तो इस आसन को करने से बचे। सेतुबंधासन को करते वक्त, अपने सिर को दाएं या बाएं ओर ना घुमाएं। अगर आपके घुटनों में दर्द रहता है, तो इस योगासन को करते हुए सावधानी बरतें। इसके साथ ही अगर आप पहली बार सेतुबंधासन को कर रहे हैं, तो इसे करते हुए विशेषक की मार्गदर्शन लेना आवश्यक है।

नटराज आसन

इस आसन का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। इस आसन को करते समय शरीर की अवस्था नटराज की मूर्ति (Natarajasana in Hindi) की तरह हो जाती है। शुरुआत में इसे करने में कठिनाई आ सकती है। परंतु इसके नियमित अभ्यास से इसे आसानी से किया जा सकता है।

प्रक्रिया –

इस आसन को करने के लिए सबसे पहले आराम की मुद्रा में खड़े हो जाएं। शरीर का भार बाएं पैर पर स्थापित करें और दाएं घुटने को धीरे धीरे मोड़ें और पैर को जमीन से ऊपर उठाएं। दाएं पैर को मोड़कर अपने पीछे ले जाएं। इसके बाद दाएं हाथ से दाएं टखने को पकड़ें। बाएं हाथ को कंधे की ऊँचाई में उठाएं। सांस छोड़ते हुए बाएं पैर को ज़मीन पर दबाएं और आगे की ओर झुकें। दाएं पैर को शरीर से दूर ले जाएं। सिर और गर्दन को रीढ़ की सीध में रखें। इस अवस्था में 15 से 30 सेकेण्ड तक बने रहें।

गोमुखासन

यह आसन बैठ कर किया जाता है। संस्कृत में गोमुख शब्द का अर्थ गाय का चेहरा या मुख होता है। इस आसन में पांव की स्थिति बहुत हद तक गाय के मुंह की आकृति जैसे होती है। इसीलिए इसे गोमुखासन (Gomukhasana in Hindi) कहा जाता है। यह महिलाओं के लिए अत्यंत लाभदायक आसन है। गठिया, अपचन, कब्ज, धातु रोग, मधुमेह, कमर में दर्द होने पर यह आसन बहुत अधिक लाभप्रद हैं।

इस आसन को करने के लिए दंडासन की अवस्था में बैठा जाता है। उसके पश्चात दोनों पैरों को एक दूसरे से क्रॉस किया जाता है। फिर एक हाथ को कंधे के ऊपर से और एक हाथ को बगल से पीठ की ओर ले जाकर, दोनों हाथो को पीछे मिलाया जाता है। फिर कुछ देर इसी अवस्था में बैठा जाता है।

योगासन के नाम और जानकारी – Related FAQs

प्रश्न: योग कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: योग 4 प्रकार के होते हैं, राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग।

प्रश्न: अष्टांग योग कौनसे हैं?

उत्तर: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रात्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि अष्टांग योग हैं।

प्रश्न: योग किस समय और किस अवस्था में करना चाहिए?

उत्तर: योगासन करते हुए ध्यान रखना चाहिए कि योग सामान्यतः सुबह के समय करना चाहिए और खाली पेट करना चाहिए।

प्रश्न: योगासन करने के लिए माहौल कैसा हो?

उत्तर: योगासन के समय आस पास का वातावरण शांत और स्थान साफ होना चाहिए।

प्रश्न: योगासन को कितनी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?

उत्तर: योगासनों को 5 श्रेणियों में बांटा जा सकता है, बैठे वाले, खड़े होने वाले, पेट के बल और पीठ के बल लेट कर किए जाने वाले और अन्य।

शेफाली बंसल
शेफाली बंसल
इनको लिखने में काफी रूचि है। इन्होने महिलाओं की सोशल मीडिया ऐप व वेबसाइट आधारित कंपनी शिरोस में कार्य किया। अभी वह स्वतंत्र रूप में लेखन कार्य कर रहीं हैं। इनके लेख कई दैनिक अख़बार और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
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