जीरो बजट खेती योजना विधि, लाभ, उद्देश्य एंव विशेषताएं | Zero Budget Farming Scheme 2024

इन दिनों लोग अपनी सेहत के मद्देनजर खाने पीने का खास ध्यान रखने लगे हैं। वे उस तरह के उत्पादों को वरीयता देने लगे हैं, जिनके उत्पादन में केमिकल्स का इस्तेमाल न हुआ हो, ताकि उनके स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े। उधर, किसान भी शून्य उत्पादन लागत एवं खेत की मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

आज इस पोस्ट में हम आपको इसी जीरो बजट खेती योजना के संबंध में बिंदुवार जानकारी देंगे। मसलन यह खेती क्या है? इसके क्या क्या लाभ हैं? इसकी तकनीक कौन सी हैं आदि। ताकि, आप भी इससे लाभान्वित हो सकें। आइए, शुरू करते हैं-

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जीरो बजट खेती योजना क्या है? [What is Zero Budget Farming Scheme?]

दोस्तों, जीरो बजट (zero budget) खेती जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें खेती की लागत (cost) जीरो यानी शून्य होती है। यह प्राकृतिक खेती का एक तरीका है। इस तरीके से खेती में देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। कुल मिलाकर इस खेती में बाहर से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश निषिद्ध होता है।

जाहिर है कि इस विधि में किसान को बाजार से खाद, उर्वरक, कीटनाशक एवं बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे उसकी उत्पादन लागत शून्य होती है। जिन किसानों के पास खेती के लिए पूंजी यानी कैपिटल (capital) का अभाव होता है, उनके लिए यह खेती वरदान की तरह है।

इसमें हाइब्रिड बीज (hybrid seed) का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसके स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है।

जीरो बजट खेती योजना क्या है? Zero Budget Farming Scheme 2024

इस विधि से खेती में देशी गाय का इस्तेमाल, गणित समझें

दोस्तों, इस विधि से खेती का गणित ऐसे समझ सकते हैं-यदि आप इस विधि से खेती करते हैं तो 30 एकड़ जमीन खेती के लिए महज एक देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र की आवश्यकता होती है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृृत बनाया जाता है। खेत में इसका इस्तेमाल करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की बढ़ोत्तरी होती है।

आपको बता दें कि जीवामृत का इस्तेमाल सिंचाई के साथ अथवा एक से दो बार खेत में छिड़काव में किया जा सकता है। वहीं, बीजामृत का उपयोग बीजों को उपचारित करने में होता है।

जीरो बजट खेती योजना के लाभ – [Benefits of Zero Budget Farming Scheme -]

जीरो बजट खेती योजना को छोटे किसानों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। आइए, एक नजर जीरो बजट खेती योजना के लाभों डाल लेते हैं। इसके मुख्य-मुख्य लाभ इस प्रकार से हैं-

  • पूंजी की आवश्यकता नहीं। [No capital required.]
  • किसान को बाजार से खाद एवं उर्वरक, कीटनाशक एवं बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं होती। [The farmer does not need to buy fertilizers and fertilizers, pesticides and seeds from the market.]
  • उत्पादन लागत कम। [Lower production costs.]
  • देसी प्रजाति के गोवंश की सुरक्षा। [Protection of indigenous breeds of cattle.]
  • कम लागत में अधिक पैदावार। [Higher yield at lower cost.]
  • खेत की उर्वरता में वृद्धि। [Increase in the fertility of the farm.]
  • उपज की गुणवत्ता बेहतर। [Better quality of produce.]
  • बाजार में उपज के अधिक दाम। [Higher prices of produce in the market.]
  • बहुफसल संभव। [Multiple crops possible.]
  • भूमि की जलधारण क्षमता में इजाफा। [Increase in the water holding capacity of the land.]
  • जमीन से पानी का वाष्पीकरण कम होने से मिट्टी नम रहती है। [The soil remains moist due to less evaporation of water from the ground.]

जीरो बजट प्राकृतिक खेती की तकनीक [zero budget natural farming techniques]

मित्रों, आइए अब आपको यह जानकारी दें कि जीरो बजट खेती योजना की क्या-क्या तकनीक हैं-

1-जीवामृत [Jeevamrut]

दोस्तों, जीवामृत की सहायता से जमीन तक पोषक तत्व पहुंचाए जाते हैं। ये एक उत्प्रेरक की तरह कार्य करते हैं, जिससे मिट्टी में बैक्टीरिया (bacteria) की गतिविधि में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा इसकी सहायता से पेड़ पौधों को कवक यानी फफूंद एवं बैक्टीरिया जनित रोगों से भी बचाया जा सकता है।

दोस्तों, आपको बता दें कि एक एकड़ जमीन के लिए आपको दो सौ लीटर जीवामृत मिश्रण की आवश्यकता पड़ेगी। अब आप जानिए कि जीवामृत कैसे तैयार किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार से है-

सबसे पहले एक बैरल में दो सौ लीटर पानी डालें एवं उसमें गाय का 10 किलो ताजा गोबर, वृद्ध गाय का पांच से 10 लीटर मूत्र, चने/बेसन/दालों का दो किलो आटा, दो किलो ब्राउन शुगर एवं मिट्टी को मिला दें। इसके पश्चात इस मिश्रण को 48 घंटे के लिए छाया में रख दें। इसके पश्चात यह मिश्रण तैयार हो जाएगा।

आपको बता दें कि किसान को दो माह में दो बार इस जीवामृत को फसलों पर छिड़कना होगा। किसान सिंचाई के पानी में इसे मिलाकर भी फसलों पर इसका छिड़काव कर सकते हैं।

2-बीजामृत [bijamrut]

मित्रों, आपको बता दें कि नए पौधे के बीजारोपण के दौरान इसका बीजामृत का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी सहायता से नए पौधों की जड़ों को कवक, मिट्टी से पैदा होने वाले रोगों एवं बीजों को बीमारियों से बचाया जाता है। बीजों को बोने से पहले उन बीमों में बीजामृत लगाने के पश्चात कुछ देर सूखने के लिए छोड़ दें।

मिश्रण सूख जाने के पश्चात आप बीजों को बो सकते हैं। बीजामृत बनाने के लिए गाय के गोबर के साथ ही एक प्राकृतिक कवक नाशक, गोमूत्र, बैक्टीरिया नाशक तरल एवं नींबू व मिट्टी का प्रयोग किया जाता है।

3-आच्छादन यानी मल्चिंग [Mulching]

मित्रों, आपको बता दें कि मिट्टी की नमी एवं उसकी प्रजनन क्षमता को कायम रखने के लिए मल्चिंग की जाती है। मिट्टी की गुणवत्ता कायम रखने की इस प्रक्रिया में मिट्टी की सतह पर कई प्रकार के मैटीरियल लगाए जाते हैं।

आपको बता दें कि मल्चिंग के तीन प्रकार हैं-मिट्टी मल्च, स्ट्रा मल्च एवं लाइव मल्च। अब इन तीनों प्रकारों के बारे में हम विस्तार से बताएंगे-

क-मिट्टी मल्च- [soil mulch-]

मिट्रटी की ऊपरी सतह को नुकसान से बचाने के लिए मिट्टी मल्च का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मिट्टी के आस पास और मिट्टी को एकत्र करके रखा जाता है, ताकि इसकी जल प्रतिधारण क्षमता को बेहतर बनाया जा सके। इससे उसकी नमी बरकरार रहती है।

ख- स्ट्रा मल्च- [straw mulch-]

दोस्तों, आप जान लीजिए कि स्ट्रा यानी भूसा सबसे बेहतर मल्च सामग्री में से एक माना जाता है। इसका इस्तेमाल सब्जी के पौधों में अधिक किया जाता है।

चावल एवं गेहूं के भूसे का इस्तेमाल सब्जी की खेती में कर न केवल अच्छी फसल पाना संभव है, वरन मिट्टी की क्वालिटी भी बेहतर बनी रहती है।

ग-लाइव मल्च- [live mulch-]

मित्रों, आपको बता दें कि इस प्रक्रिया में एक खेत में एक साथ कई प्रकार के पौधे लगाए जाते हैं। ये सभी एक दूसरे को बढ़ाने में सहायता करते हैं।

4- व्हापासा- [Vapasa-]

इस विधि के तहत पौधों को बढ़ने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। ये पौधे वाष्प यानी भाप की सहायता से भी बढ़ सकते हैं। व्हापासा का अर्थ उस स्थिति से होता है, जिसमें हवा के अणु मिट्टी में मौजूद पानी के अणु से मिलकर पौधो का विकास करती है।

सरकार जीरो बजट खेती योजना को प्रोत्साहित कर रही

दोस्तों, आपको बता दें कि सरकार का लक्ष्य 2024 तक किसानों की आय दोगुनी करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह जीरो बजट प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है। इसमें माना जाता है कि मिट्टी में पौधे के विकास के लिए सभी आवश्यक तत्व पहले से विद्यमान हैं।

ये बैक्टीरिया की आपसी क्रिया के फलस्वरूप विघटित होते हैं। इसलिए रसायनों की आवश्यकता नहीं होती। अलबत्ता, दीर्घकाल (long term) में प्रत्येक क्षेत्र के लिए खेती को समान रूप से उपयोगी नहीं माना जा रहा है।

योजना2019-20 बजट अनुमान (करोड़ रुपए में)2019-20 संशोधित अनुमान (करोड़ रुपए में) 2020-21 बजट अनुमान ( करोड़ रुपए मे)
नेशनल प्रोजेक्ट ऑन ऑर्गेनिक फार्मिंग 2212.5
पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ऑर्गेनिक वेल्यू चेन डवलपमेंट 160 160175
परंपरागत कृषि विकास योजना 325299.36500
कुल487461.36687.5

पूर्व कृषि वैज्ञानिक पालेकर ने विकसित किया जीरो बजट खेती योजना प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट

अब आपके दिमाग में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती के कांसेप्ट को किसने विकसित किया है। आपको बता दें कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट महाराष्ट्र के पद्मश्री प्राप्त किसान सुभाष पालेकर ने विकसित किया है। यह रसायनमुक्त यानी केमिकल फ्री (chemical free) खेती का एक रूप है।

यह पारंपरिक भारतीय विधियों पर आधारित है। आपको बता दें कि सुभाष पालेकर एक पूर्व कृषि वैज्ञानिक हैं। उन्होंने जीरो बजट खेती योजना पर विभिन्न भारतीय भाषाओं में 60 से अधिक किताबें भी लिखी हैं।

आंध्र प्रदेश जीरो बजट खेती योजना को अपनाने वाला पहला राज्य

जीरो बजट खेती योजना के लाभ देखते हुए आंध्र प्रदेश ने खेती की इस विधि को पूरी तरह अपना लिया है। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश ऐसा करने वाला पहला राज्य है। प्रदेश सरकार ने सभी गांवों तक इस खेती को 2024 तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।

आपको बता दें कि आज से छह साल पहले यानी 2015 में आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार ने जीरो बजट खेती योजना को कुछ गांवाें में पायलट प्रोजेक्ट (pilot project) के तौर पर शुरू किया था। इसके अच्छे नतीजे निकले। अब यहां के करीब पांच लाख किसान जीरो बजट खेती योजना से जुड़े हैं।

हिमाचल प्रदेश (himachal pradesh) ने भी जीरो बजट खेती योजना को बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू किए हैं। यहां हाइब्रिड के स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील बीज का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं, झारखंड (jharkhand) में करीब 3500 हेक्टेयर जमीन पर जीरो बजट प्राकृतिक खेती से पौधों को उगाए जाने की कवायद हो रही है।

इसके अलावा ओडिशा (Odisha), मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) एवं तमिलनाडु (tamilnadu) में भी किसान जीरो बजट प्राकृतिक खेती में हाथ आजमा रहे हैं।

पूरे देश में चार लाख हेक्टेयर जमीन पर जीरो बजट खेती योजना

यदि पूरे देश की बात की जाए तो करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन पर जीरो बजट खेती योजना की जा रही है। इसके लिए देश भर के आठ राज्यों में 40 करोड़ रूपये से अधिक बजट का प्रावधान किया गया है।

इसका उद्देश्य यही है कि मिट्टी की गुणवत्ता को कायम रखते हुए किसान कम लागत में अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त करें एवं अधिक मुनाफा प्राप्त करें। जाहिर सी बात है कि उनका लाभ बढ़ेगा तो उनकी आय में भी बढ़ोत्तरी होगी।

रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल से बंजर हो रहे खेत

खेती की नई तकनीक के साथ किसान अपने खेत में रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे किसानों की उपज तो बढ़ रही है, लेकिन उत्पादन लागत में भी इजाफा हो रहा है।

कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा। लिहाजा, खेती घाटे का सौदा बन रही है। साथ ही किसानों के खेत की उर्वरता कम हो रही है, मिट्टी बंजर बनती जा रही है।

जहरमुक्त खेती के लिए जागरूक हो रहे किसान

दोस्तों, आपको बता दें कि रसायनयुक्त खाद्य पदार्थ लोगों को कैंसर जैसे अनेक रोगों का शिकार बना रहे हैं। ऐसे कई लोगों की मौत तक हो चुकी है। यही वजह है कि अब लोग जहरमुक्त खेती के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं।

उन्होंने खेत के कुछ हिस्से में ही सही प्राकृतिक खेती यानी नेचुरल फार्मिंग (natural) की शुरुआत की है। इसके नतीजे भी अच्छे आए हैं। कुछ स्वयं सेवी संगठन यानी एनजीओ (NGO) भी इस क्षैत्र में आगे आकर बेहतरीन कार्य कर रहे हैं।

जीरो बजट खेती योजना से क्या आशय है?

जीरो बजट खेती योजना प्राकृतिक विधि है। इसमें किसान की उत्पादन लागत शून्य आती है।

जीरो बजट खेती योजना का आधार क्या है?

जीरो बजट खेती योजना का आधार गोवंश है। इस विधि से खेती में देशी गाय का गोबर एवं गोमूत्र इस्तेमाल किया जाता है।

जीरो बजट खेती योजना किसके लिए लाभदायक है?

जीरो बजट खेती योजना छोटे किसानों के लिए लाभदायक है। जिनके पास खेती के लिए पूंजी का अभाव है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती के मुख्य लाभ क्या-क्या हैं?

इस विधि से खेती में मिट्टी की उर्वरता नष्ट नहीं होती, उत्पादन लागत शून्य होती है, उसका मुनाफा बढ़ता है। एक साथ कई फसल ली जा सकती हैं। साथ ही देशी गोवंश का संरक्षण होता है। क्योंकि यह खेती गोवंश आधारित है। गो पालन को भी इससे बढ़ावा मिलेगा।

सबसे पहले पहले किस राज्य ने जीरो बजट खेती योजना को अपनाया है?

आंध्र प्रदेश पहला ऐसा राज्य है, जिसने पूरी तरह जीरो बजट प्राकृतिक खेती (zero budget natural farming) को अपना लिया है।

मित्रों, हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से जीरो खेती के संबंध में आवश्यक जानकारी दी। यदि आप इसी तरह महत्वपूर्ण विशयों पर हमसे जानकारी चाहते हैं तो हमें नीचे दिए गए कमेंट बाक्स में कमेंट करके भेज सकते हैं। आपकी प्रतिक्रियाओं का हमेशा की भांति स्वागत है। ।।धन्यवाद।।

प्रवेश
प्रवेश
मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से व्यक्तिगत प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में डिप्लोमा भी किया है। उन्हें यात्रा और ट्रेकिंग में बहुत रुचि है। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
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